Friday, December 28, 2012

आर्ची, ये तूने क्या किया!


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आर्ची तो मुझे आज भी पसंद है. उन्मुक्त जी को भी यह पसंद है. आपको पसंद है या नहीं? कुछ अरसा पहले आर्ची के हिंदी में आने की खबर सुनी थी तो बड़ी उत्सुकता बनी हुई थी.
परंतु उस खबर के बाद लंबे समय हिंदी आर्ची तक आस-पास के न्यूज-स्टैंड पर दिखाई नहीं दिया और न ही इसके किसी ऑनलाइन खरीदी-बिक्री का लिंक मिला तो यह फिर दिमाग से एक तरह से उतर ही गया था.
अभी कुछ दिनों पूर्व पुस्तक मेले में एक स्टाल पर यह दिख गया. उत्सुकतावश इसके भाग 5 के कुल 7 अंकों में से तीन खरीद लिए.
परंतु हिंदी-आर्ची ने मुझे पूरी तरह निराश कर दिया. एक तरह से पूरा पैसा बरबाद!
अब आपको कुछेक कारण तो गिनाने ही होंगे.
लीजिए -
  • अनुवाद - अनुवाद और भाषा सामान्य है. अनुवाद का स्तर और भाषा प्रवाह थोड़ा सा और युवा केंद्रित और बेहतर हो सकता था.
  • एक अंक की कीमत है तीस रुपए. जो बहुत ही ज्यादा है. 30 रुपए और वह भी ज्यादा? जी हाँ. तीस रुपए में आपको मिलते हैं सिर्फ 2 - 3 छोटी छोटी कहानियाँ. छोटे-छोटे 11 पन्ने (22 पृष्ठ) की कीमत 30 रुपए! यह तो सरासर लूट है. और, शायद इसीलिए, कहानी के किसी भी पन्ने पर पृष्ठ संख्या नहीं लिखी है. और शायद इसीलिए एक अंक में पृष्ठ उलटे पुलटे लग गए हैं!
  • आधे अधूरे अंक - आप तीस रुपए का कोई एक अंक खरीदते हैं, और अपने प्रिय आर्ची की कोई कहानी पढ़ते पढ़ते पाते हैं आखिरी पन्ने में क्रमश: लिखा मिलता है - यानी कहानी अधूरी रह गई, और उस पूरी कहानी को पढ़ने के लिए आपको उसका अगला अंक खरीदना होगा. वह भी पूरे 30 रुपए में, ऊपर से, भाग्य से यदि मिल जाए तो. हद है!
  • किताब का आकार - मूल आर्ची कॉमिक्स का आकार पॉकेट बुक साइज का होता है और वो आमतौर पर रीसाइकल पेपर में प्रिंट होता है. हिंदी आर्ची का आकार एकदम बेहूदा किस्म का है. न तो वो पत्रिका के आकार का है, न वो अपने मूल आकार में है. एकदम बेसुरे, आकार में है. ऊपर से गिनती के दस पन्ने! लगता है कोई विज्ञापन पैम्प्लेट पढ़ रहे हों.
  • आज के जमाने में फ़िजूल-खर्ची? ना ना! पर हिंदी आर्ची तो फिज़ूलखर्च है. दोनों ही इनर कवर कोरे हैं. इनमें में न तो कोई आर्टवर्क है और न ही कोई कार्टून स्ट्रिप. जब पत्रिका इतनी पतली सी है तो खाली स्थान का भरपूर उपयोग भी तो होना चाहिए था - वह भी नहीं!
कुल मिलाकर, आर्ची को हिंदी में लाने में प्रोफ़ेशनल टच कहीं नहीं दिखा. पूरा चलताऊ एटीट्यूड ही नजर आया जिससे इसका फ्लॉप होना तय है. मैंने तीन अंक खरीदे थे - नब्बे रुपए देकर. वह शायद मेरी पहली और आखिरी खरीद थी.
रवि रतलामी जी के ब्लॉग से साभार. यह रवि जी की कलम से ही है.

Monday, December 3, 2012

पवित्र गाय मनोरंजन! (Holy Cow Entertainment)


होली काऊ इंटरटेनमेंट, 2011 मे इस कंपनी का  नाम सुना और पता चला इस प्रकाशन के संस्थापक खुद एक नामी कलाकार श्री विवेक गोयल है। हालाँकि, ख़बरें तो 2010 से ही आने लगी थी पर पहले इतने प्रकाशनों का नाम सुनकर आगे काफी समय तक कोई अपडेट न आने पर निराशा होती थी इसलिए कुछ ऐसा सुनने पर अधिक उम्मीद नहीं रखी। पहले विवेक जी से शुरू करता  हूँ, 31 वर्षीय विवेक जी (वैसे अब अगले ही महीने उनका जन्मदिन आ रहा है) के पास कई राष्ट्रीय एवम अंतरराष्ट्रीय कॉमिक प्रकाशनों और कंपनियों मे काम करने का अनुभव है जिनमे प्रमुख है - लेवल 10, राज कॉमिक्स, मूनस्टोन बुक्स, कॉमिक्स इंडिया और अब होली काऊ। साथ ही  उन्होंने अपना शुरुआती पेशेवर दौर स्टार प्लस, कुछ विज्ञापन एजेन्सियों के साथ भी बिताया। 2008 मे जब ये राज कॉमिक्स के लिये काम कर रहे थे तब भी इनपर,  तब के कामो पर ज़ोर देते हुए एक ब्लॉग राज कॉमिक्स की साईट और फ़ोरम्स पर  लिखा था।

कॉमिक्स एक असेम्बली लाइन पद्धति के तहत एक परिकल्पना से होती हुई कहानी-पटकथा-चित्र-स्याही-रंग-शब्द, आदि   सबके साथ लगकर एक पूरा प्रोडक्ट बनती है। अब भरत नेगी जी, अनुपम सिन्हा जी जैसे कलाकार ये सारा काम स्वयं निपटा सकते है जबकि समय की कमी, आदि की वजह से अक्सर इस पद्धति मे क्रमवार कई लोग शामिल रहते है। कई बार चित्रकार, लेखक की शेली, सोच और बहुत सी बातें मेल नहीं खाती जिस वजह से रचनात्मक घर्षण और टकराव होता है। यही प्रमुख वजह थी होली काऊ के अस्तित्व मे आने का। इन बातों पर फिर कभी प्रकाश डालेंगे अभी तो मै  इस पवित्र गाय से इतना भौचक हूँ कि आज इसपर ही लिखता हूँ।  किसी कलाकार द्वारा कॉमिक प्रकाशन खोलना भारत के हिसाब से नयी बात है जिसके लिए मै  विवेक गोयल की तारीफ़ करता हूँ।

होली काऊ की पहली कॉमिक वेयरहाउस मई 2011 मे प्रकाशित हुई जिसमे 3 अलग कहानियाँ थी।  फिर बहुचर्चित 7 कॉमिक्स वाली रावाणयन सीरीज़ आई जिसमे कुछ नए दृष्टिकोणों से रामायण की महागाथा को दिखाया गया। जिसको काफी मीडिया कवरेज मिली. इस सीरीज़ के ख़त्म होने से पहले ही उनकी दूसरी मुख्य सीरीज़ अघोरी सितंबर 2012 से शुरू हुई और अक्टूबर मे ही उसका दूसरा भाग भी प्रकाशित हो चुका है। सीरीज़ का प्रमोशन एक छोटी मुफ्त कॉमिक  अघोरी (00) और यूट्यूब पर एक मोशन कॉमिक ट्रेलर से किया गया। साथ ही होली काऊ इंटरटेनमेंट लगातार भारतीय कॉमिक कोन और स्थानीय पुस्तक मेलो मे हिस्सा लेती रही है। इतने कम समय मे कॉमिक्स के लिए तत्कालीन भारत जैसे बाज़ार मे इतने अनुशासन के साथ लगातार अच्छी कॉमिक्स निकलना किसी अजूबे से कम नहीं। हालाँकि, अभी पेजों की संख्या, कॉमिक्स का दाम, कॉमिक्स मिलने के सीमित साधन जो अभी तक मुख्यतः ऑनलाइन है, कुछ बातें है जिनपर ध्यान दिया जाना चाहिए। इनसे जुड़े  प्रमुख कथाकार और कलाकार है - विजयेन्द्र मोहंती, राम वी, गौरव श्रीवास्तव, योगेश, श्वेता तनेजा, अंकुर आमरे। 

होली काऊ के आगामी आकर्षण है। मुझे लगता है ये प्रकाशन निकट भविष्य मे लोकप्रिय होगा।


*) - रावाणयन ( समापन भाग, विशेषांक)

*) - अघोरी (भाग 3) 


*) -  स्कल रोज़री (ग्राफ़िक नोवल)


*) - सेरेंगेटी स्ट्राइप्स सीरीज़ 


*) - देट मैन सोलोमन 


*) - प्रोज़ेक्ट शोकेस


Website: http://www.holycow.in/


Vivek Goel (Official Page): http://www.facebook.com/vivekart


Vivek & Ram (Mumbai Film and Comic Con, October 2012)

Monday, June 18, 2012

ट्रेंडी बाबा अपडेट्स






नमस्ते!
ट्रेंडी बाबा कौन है और इनकी कहानी क्या है ये कभी आराम से बताऊंगा आज तो कुछ अपडेट्स देने आया हूँ.... 84 Tears को मिले ज़बरदस्त रेस्पोंस के बाद मैंने कुछ और इंडीपेनडेंट कॉमिक्स और कहानियाँ प्रकाशित करने की ठानी. हालाकि, मुझे भी अंदाज़ा है की अगर मैंने 84 Tears (ई-बुक) को मुफ्त न रखा होता यह तो काफी कम लोगो तक पहुँचती (पेपरबेक का तो उन चेनल्स के हिसाब से मूल्य है जो ज्यादा नहीं बिकी..ही ही..). ये बात इसलिए कह रहा हूँ क्योकि के 84 Tears साथ मैंने "देसी-पन!" (Desi-Pun!) नाम का अपनी  इंग्लिश कहानियों का संग्रह भी प्रकाशित किया था जिसको 84 Tears से कम पाठक मिले. पर मै कम से कम अभी तो पैसो के लिए नहीं लिख रहा. 

कभी-कभी सवाल आता है की आप किसी बड़े प्रकाशन से क्यों नहीं जुड़ते. मै उनसे जुड़ा हूँ और गाहे-बगाहे कोई आईडिया या छोटी स्क्रिप्ट दे देता हूँ. पर उनके कुछ नियम है और उनके दिए कामो की डेडलाइनस होती है जो मै अपने जीवन के दूसरे कामो की वजह से फोलो नहीं कर सकता. साथ ही अभी तक जो काम मै अलग से कर रहा हूँ वो पूरी तरह कामर्शियल श्रेणी मे नहीं आते...उन्हें प्रकाशक एक्सपेरिमेंटल कहते है और सही भी है इसपर दांव लगाना एक जुआ ही कहा जायेगा. 



भारतीय परिदृश्य की कुछ सीमायें है जो मैंने समझी है और आगे अपने लेखन मे इन सीमाओं को ध्यान मे रखूँगा. हाँ, कुछ 84 Tears जैसे प्रोजेक्ट्स रहेंगे जिनमे मै चाहूँगा की वो ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुँचे और भाग्य से मै अभी ऐसे 2 प्रोजेक्ट्स "माँ का मोनोलोग" और "लोंग लिव इंकिलाब" (कॉमिक) पर काम कर रहा हूँ....और भी कुछ कांसेप्टस है मन मे, आगे कोशिश करूँगा की कुछ कॉमिक प्रकाशनों से परमानेंट जुड़ सकूँ. 

मेरी कॉमिक्स, ई-बुक्स और प्रकाशित लेख, कहानियों, कविताओं के लिए मैंने फेसबुक पर  Mohitness {मोहितपन}
नाम से अपना पेज बनाया है. 


Saturday, March 3, 2012

84 Tears (भोपाल गैस काण्ड और सिख विरोधी दंगे, 1984 पर आधारित काव्य कॉमिक)



जैसा की मैंने यहाँ बताया था की मै एक काव्य कॉमिक लिख रहा था, जो हाल ही मे प्रकाशित हुई. आर्टिस्ट रवि शंकर  के बनाये दृश्य अदभुत है. पहले तो मैंने उसका दाम रखा पर मेरा मन नहीं माना. मुझे लगा कई सामाजिक संदेश देती किताब, अनमोल है और वो अधिक से अधिक लोगो तक पहुँचनी चाहिए इसलिए मैं  84 Tears को ऑनलाइन मुफ्त प्रकाशित कर रहा हूँ. अभी ये Pothi Networks aur Myebook पर उपलब्ध है. जल्द ही कुछ और ऑनलाइन चेनल्स पर  प्रकाशित करूँगा.



निम्न वेब-लिंकस पर आपको मुफ्त पढने और Download करने को मिलेगी. अगर ये प्रयास अच्छा लगे या 84 Tears आपके दिल को छुए तो इसको ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुँचाने मे मदद कीजिये.



मै आगे ऐसे और प्रयास करता रहूँगा. आप लोगो के प्रोत्साहन और मार्गदर्शन की ज़रुरत है. मेरे रचनात्मक काम, किताबे, प्रकाशित लेखो, आदि के लिये फेसबुक पर यह पेज है. -

http://www.facebook.com/Mohitness

- Mohit Sharma (Trendy Baba / Trendster)