Wednesday, December 25, 2013

यादें गुजरे लम्हों की

वक़्त गुज़र गया, ज़माने हुए हमें दुनिया के सामने आये हुए. प्रशांत से जब बात हुई तो हमने खोई हुई व्योमा को फ़िर से ढूँढने कि कोशिश की. व्योम… और उसका दुनिया 'वर्ल्ड' से पहला परिचय करवाया पिता ने. उन्होंने मेरे लिए नंदन, चंदामामा, बाल-भारती और इंद्रजाल कॉमिक्स की नियमित बंदी लगवाई थी. इसके अलावा हमारे घर में कादम्बिनी भी आती थी पर मैं दीवानी थी इंद्रजाल कॉमिक्स की. वेताल और मेंड्रेक मेरे हीरो थे. हमारे घर में जो कॉमिक्स देनेवाले अंकल आते थे उनकी आँखे पीली थी, बहुत प्यार करते थे. हर हफ़्ते सोमवार का इंतज़ार रहता था.

जब वो कॉमिक्स ले के आते थे तो मैं जैसे सारी जंज़ीरें तोड़ के भागती थी. किसे फ़िक्र थी फ्रॉक के बटन लगे हैं के नहीं, किसे फ़िक्र थी बाल बँधे हैं कि खुले बस इस हफ्ते वेताल आयेगा या मेंड्रेक दोनों में से कोई भी मिला तो मज़े. गार्थ मिला तो रोना शुरू.. कभी भाग-१ हुआ तो इंतज़ार ज़माने भर का. भाग-२ के मिलते ही अंकल को रोककर सबसे पहले आखरी पन्ना देखती कि भाग-३ तो नहीं? यदि हुआ तो पीली आँखों वाले अंकल पे लात-घूंसे बरसाना शुरू खैर बाक़ी हरक़तें बाद में. एक बार डेढ़ महीने वेताल-मेंड्रेक गायब थे तब फोकस हुआ किर्बी, नोमेड, ब्रूसली, गार्थ और सॉयर से.

बचपन के दिनों की यादें या यूँ कहें जज़बात बाँट रही हूँ. आप भी सुनिये किस्से कॉमिक्स-दीवानी के, तो शुरू करें? एक नंबर है 'भुतहा मकान' दिल के बहुत क़रीब.. पहले तीन बॉक्सेस से ही चार जिज्ञासाएँ निकलीं :
१.' कैरेबियन सी' क्या है?
२. 'गोताखोरी का रेकॉर्ड' मतलब?
३. 'अफ्रीका' कहाँ है?
४. डुप्लीकेट मतलब?
अब इंतज़ार था पापा का आते ही घेर लिया.. ५ मिनिट में जवाब देके छूटे और मैं फ़िर बॉक्स १ से शुरू. फ़िर थोड़ी देर में पापा से, 'पापा, दवाई लेने से भूत दिखतें हैं?' (पापा असमंजस में) और मैं पढ़ती जा रही हूँ। पापा से पूछा मेरे पास भेड़िये की खाल क्यूँ नहीं है (मेरे पापा मुझे अपनी राजकुमारी कहते थे)

'सेंडविच', और 'भूत-पूर्व उड़ाका' का अर्थ जानने के बाद मैं व्यस्त हो गयी थोड़ी देर बाद पूछा 'शून्य-दृष्टता' क्या होती है? फ़िर जानवर क्यूँ पूँछ हिलाता है.. जानवर का चाटना प्यार का सूचक होता है.. ये जाना काँटा निकालने के बाद जंगली जानवर को भी भरोसे से जीता जा सकता है.. सीखा जब वो रेने पर आरोप लगाता है और रेने की आँखों में आँसू (तब मेरी ऑंखें नम हो गयीं थीं फ़र की नरमाहट मैं भी भूल गयी थी ).. बाद मुद्दत के जब पति-पत्नी के संवाद में 'मुझे नहीं देखना हाथ लगाके' कैसा दर्द था.. फ़िर 'मुझे लगता है उस भेड़िये की खाल क्रिस्टी ने ओढ़ रखी है।' घर में,क्रिस्टी पूछती है 'मेरा फ़र कहाँ रखा है?(वो तो सामने की कुर्सी पर ही रखा होता है).. टेलीग्राम के बाद 'मैंने सही कहा था न मैंने भेड़िया देखा था'....'तुम हमेशा सही कहते हो.....'
how sweet......


मेरे आग्रह पर व्योमा मिश्रा जी ने यह लिख भेजा मुझे और यह कामिक्स भी, जिसे मैं आप दोस्तों के साथ शेयर कर रहा हूँ.
डाउनलोड लिंक के लिए यहाँ क्लिक करें

Tuesday, December 24, 2013

वो ज़हन मे जिंदगी जीते रहेंगे! - मोहित शर्मा (ज़हन)

नमस्ते!

वैसे तो कुछ साल पहले कि कविता है पर इसमें हास्य भाग ख़ास Comics Fest India 2013 के लिए जोड़ा था। अभिनेता शिवा जी आर्यन ने बस एक-दो बार में इसको याद कर के स्टेज पर अपने एक्ट से पहले बोला।  देखें आप इनमे से कितने अमर किरदारो को पहचान पातें है।

साथ ही जोड़ रहा हूँ अंसार अख्तर जी और हवलदार बहादुर को ट्रिब्यूट देती यह आर्ट जिसको मैंने अथर्व ठाकुर और युधवीर सिंह के साथ तैयार किया है। 



वो ज़हन मे जिंदगी जीते रहेंगे! 

इंसानियत के जज्बे को जागते रहेंगे।
सुनी है रात के अन्धकार मे कुत्तो की गुर्राहट ?
और कब्र पर प्रिंस की कर्कशाहट ?
या दिल्ली की छत के नीचे अपराध की दस्तक ?
महसूस किये है जासूस सर्पो के मानसिक संकेत ?
या सूचना देता कमांडो फोर्स का कैडेट ?
झेला है जंगल मे किसी निर्बल पर अत्याचार ?
या सुनी है किसी अबला की करुण पुकार ?
ली है राजनगर पुलिस हेडक्वाटर से प्रेषित कोई ज़िम्मेदारी ?
या मिला है रोशन सुरक्षा चक्र के पीछे इंतज़ार करता कोई वर्दीधारी?
जब तक अपराध होते रहेंगे,
पन्नो मे कैद ही सही,
ये सभी किरदार इंसानों मे जिंदा होकर इंसानियत के जज्बे को जागते रहेंगे। 

मिली है कभी किसी से अनचाही पुच्ची?
या फटते देखा है किसी के गुस्से से ज्वालामुखी? 
मनाया है क्या किटी पार्टी को मेला?
या पाया है किसी ने दर्जन बच्चो वाला चेला?
खायी है क्या किन्ही चार फ़ुटियों से लातें?
या बड़े ध्यान से सुनी किसी कि छोटी-छोटी मगर मोटी बातें? 
बोले कहीं एक कुपोषित जासूस ने धावे,
या किसी हवलदार के हवालात मे सड़ाने के दावे? 
खुद को जीनियस क्यों समझता एक बुद्धू बच्चा सिंगल पसली?
या साथ रहा कभी आजकल के नेताओ का पूर्वज असली?
और एक बिना बात धर्मार्थ करने वाले क्यूट अंकल जी.… 
जब तक लोग जीवन से बोर होने लगेंगे .... 
पन्नो मे कैद ही सही,
ये किरदार अंतर्मन में जीवित हो हमे गुदगुदाते रहेंगे।

Monday, November 25, 2013

कॉमिक्स फेस्ट इंडिया 2013




पहले कॉमिक्स फेस्ट इंडिया का आयोजन को दिल्ली में होने जा रहा है। पिछले वर्ष तक राज कॉमिक्स में "नागराज जन्मोत्सव" नाम से प्रख्यात आयोजन को इस बार और बड़ा रूप दिया गया है जिसमे देश भर से हिंदी-अंग्रेजी के कई विख्यात कॉमिक्स एवम बाल साहित्य के प्रकाशक हिस्सा ले रहे है। साथ ही नामी कलाकार और लेखक इवेंट में शिरकत करेंगे। 30 नवंबर और 1 दिसंबर चलने वाले इवेंट के मुख्य आकर्षण है। 




*) - राज कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स, कैंपफायर-कल्याणी प्रकाशन, फेनिल कॉमिक्स, होली काऊ एंटरटेनमेंट,  पुस्तक महल, लोट-पोट, नेशनल बुक ट्रस्ट आदि बहुत से प्रकाशनों का एक जगह जमावड़ा।

*) - कॉमिक्स, एनिमेशन से जुडी बड़ी हस्तियों उपस्थिति और वर्कशॉपस, सेमिनार्स। हर दिल अज़ीज़ अभिनेता श्री मुकेश खन्ना जी कि इवेंट मे शिरकत। 

*) - मशहूर जादूगर खरबंदा बंधुओ का मैजिक-मिरैकल शो। 

*) - प्रकाशको द्वारा आयोजन के लिए तैयार ख़ास कॉमिक्स, किताबें, कलेक्टर्स एडिशन वस्तुएँ।

*) - कलाकारों को सम्मान देने के लिए विभिन्न कैटगिरीज़ जैसे चित्रांकन, पटकथा, वेबकॉमिक, इंकिंग, रंगसज्जा आदि में कल्पना लोक अवार्ड्स। 

*) - अभिनेता श्री शिवा जी आर्यन के प्ले, स्किट्स एवम स्टेज परफॉरमेंस। 

*) - शाम को श्री रजत मिश्रा और बैंड का एक रॉक शो कॉन्सर्ट। 

*) - पश्चिम बंगाल के मूर्तिकार श्री मिहिर वैद द्वारा रचित आदमकद मूर्तियाँ ।  

*) - मनोरंजन के लिए करैक्टर डॉल्स, विशालकाय डोगा झूला आदि।  

*) - कॉमिक क्विज, रचनात्मक लेखन, कॉसप्ले, मिमीक्री, ऑनलाइन  आदि बहुत सी प्रतियोगिताएँ। 

*) - सुपर कमांडो ध्रुव पर आधारित गेम का प्रीव्यू।

*) - साथ ही कॉमिक्स, एनिमेशन से जुड़े बहुत से आयोजन।

तो दिल्ली हाट में इस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बनकर भारत में दोबारा जाग रहे कॉमिक्स कल्चर को बढ़ावा दें, और उन सैंकडो मेहनती-प्रतिभावान कलाकारो, प्रकाशको को इन दो दिन बस अपनी उपस्थिति से प्रोत्साहित करें।  

सेलिब्रेटिंग कॉमिक्स!








*एंट्री का कोई चार्ज नहीं है और वेबसाइट पर  रेजिस्ट्रशन करने पर आप पा सकते है आकर्षक गिफ्ट्स, बाहर से आने वाले फैंस के लिए रुकने कि व्यवस्था भी है। 

आपके इंतज़ार में....


*आर्यन क्रिएशनज़ के कलाकारो द्वारा कॉमिक्स फेस्ट के प्रोमोशन में बनायीं गयी स्ट्रिप, इसमें आप अप्रकाशित बाली और धुरंदर पाण्डेय के बाल रूप को देख सकते है. 

Sunday, September 8, 2013

निगेटिव्स - परचेजिंग रिव्यू

निगेटिव्स हाथ में आया. ठीक तीस अगस्त को मैंने ऑर्डर किया राज-कामिक्स के वेब साईट से. अभी तक के अच्छे अनुभव रहे हैं राज-कामिक्स के साईट से ऑर्डर करने के, मगर वह अनुभव ही क्या जिसमें खराब कुछ भी ना हो? सो इस बार ख़राब अनुभव मिलकर अनुभव का चक्र पूरा कर दिया राज कामिक्स ने. सिलसिलेवार ढंग से बताता हूँ.

1. तीस अगस्त को ऑर्डर किया, वह भी सबसे महंगे वाले कूरियर सर्विस से. मगर कामिक्स मिली पूरे आठ दिन बाद. शिकायत इस बात की नहीं कि आठ दिन बाद मिली. देरी किसी भी कारण से हो सकती है, सो इस मुआमले में छूट दे दी मैंने. शिकायत तो इस बात की ठहरी की मैं लगातार दो-तीन दिन से इन्हें मेल और फोन के जरिये संपर्क करना चाहा मगर इनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.

2. कामिक्स की बात आगे के नंबरों में, फिलहाल तो अनुपम सिन्हा जी, मनीष गुप्ता जी और संजय गुप्ता जी द्वारा हस्ताक्षरित पन्ने को देख दिल खुश हो गया. मुझे पता है की उन्होंने कई कामिक्स पर बिलकुल यही शब्द अंकित किये होंगे, मगर लिखने के तरीके से यह नहीं लग रहा था की यह बस यूँ ही लिख दिया गया हो. अपनापन झलक रहा था उन शब्दों से... शुभकामनाएं...सप्रेम...आपका... मगर वहीं "युगांधर" कामिक्स पर संजय गुप्ता जी और मनीष गुप्ता जी के हस्ताक्षर देख ऐसा लगा जैसे मात्र खानापूर्ति की गई हो. खैर, उनकी भी अपनी कोई वजह और व्यस्तता रही होगी.

3. दफ़्तर से घर पहुंचा...कामिक्स हाथ में थी.. तो पहला काम "निगेटिव्स" को ही निपटाने का हुआ. पढ़ा, और सच कहूँ तो पढ़कर मजा नहीं आया. शायद मैंने बहुत अधिक अपेक्षा कर रहा था, जहाँ अधिक अपेक्षा रहती है वहीं हम निराश भी होते हैं. एक पल को तो लगा की शायद मैं अब रेणु, निर्मल वर्मा, एंगल, गैब्रियल मार्केज जैसे लेखकों को पढ़ते-पढ़ते कामिक्स का लुत्फ़ ही उठाना भूल गया था. मगर निगेटिव्स को पढने के बाद जब साथ आये अन्य ध्रुव के कामिक्स को पढ़ा तो लगा कि मैं अभी भी लुत्फ़ उठाता हूँ..मतलब यही की कहीं कुछ कमी थी. शायद मैं कम से कम "नागायण" के टक्कर की उम्मीद तो कर ही रहा था. दरअसल होता यह है की एक बार जब हम किसी भी कला के श्रेष्ठता को देख लेते हैं तो उम्मीदें भी वैसी ही हो जाती है. शायद उतनी अपेक्षा ना होती तो बेहतरीन लगती.

4. आखिर में ग्रीन पेज पढ़ते वक़्त अधिक मजा आया. अनुपम सिन्हा जी द्वारा लिखा गया ग्रीन पेज उनके बिलकुल दिल से निकालता सा लगा. इस कामिक्स के आदि से अंत तक बेहद विस्तार से बताया उन्होंने. क्या-क्या परेशानियाँ आई, और उससे उन्होंने कैसे पार पाया. एक साथ कैसे कई प्रोजेक्ट्स पर काम करते रहे. वगैरह-वगैरह बातों से यह साफ़ झलक रहा था की कितने जुझारू और अपने काम के प्रति कितने कर्तव्यनिष्ठ हैं वह.

5. आखिरी बात...अपने इस कामिक्स ब्लॉग के एक मोडरेटर आलोक शर्मा को ग्रीन पेज में देख उत्साह अपने चरम पर था...वाकई मजा आ गया उन्हें ग्रीन पेज पर देख कर.. :-)

रेटिंग : **** आऊट ऑफ़ फाईव.

आप सोच रहे होंगे की इतनी आलोचना के बाद भी चार रेटिंग कैसे? तो दोस्तों वह इसलिए क्योंकि कामिक्स वाकई शानदार है. चाहे पेज क्वालिटी हो या कहानी या चित्रांकन. बस मुझे उतना पसंद इसलिए नहीं आया क्योंकि मैं बहुत अपेक्षा रख रहा था. आखिर इतने सालों से अनुपम सिन्हा जी इस पर काम कर रहे हैं तो मेहनत रंग क्यों ना लाएगी?

Saturday, July 27, 2013

नेगेटिव्स

राज कामिक्स के बहुचर्चित कामिक्स सीरिज "नागायण" के बाद अब फिर से एक आगामी कामिक्स बेहद चर्चे में है, जिसका नाम है "नेगेटिव्स". इस कामिक्स के लेखक "अनुपम सिन्हा" जी का मंतव्य आपके सामने रख रहा हूँ जो वे अक्सर फेसबुक पर अपने दोस्तों से आजकल बांच रहे हैं. इसे उन्होंने तीन भाग में बेहद रोचक अंदाज में लिखा है. मैं सिर्फ यहाँ कॉपी-पेस्ट से काम चला रहा हूँ. फिलहाल तो मुझे इस मल्टीस्टारर विशेषांक का इन्तजार है.


भाग एक :

नागायण...और फिर नेगेटिव्स! ये 'न' से शुरू होने वाली कॉमिक्स काफी फैल कर बैठना पसंद करती हैं। ये जो चित्र साथ में अपलोडेड हैं ये पोस्ट की खूबसूरती बढाने के लिए नहीं है। इसमें एक ख़ास बात है। ...तो 'अवशेष' सीरीज के बाद हम लोग एक नए शाहकार की तलाश में थे। ये आईडिया संजय गुप्ता जी का था कि इस बार 10,000 के बजाए 1 लाख वाली लड़ी छुटाई जाए। 55 पेजों के तीन कॉमिक की सीरीज बनाने के बजाए क्यों न एक ही 160 पृष्ठों क़ी कॉमिक बनाई जाए। संजय जी का तो आग्रह ही मेरे लिए आदेश होता है, और आईडिया तो नवीनता से परिपूर्ण था ही, इसीलिए मैंने भी लम्बी सांस बाद में ली और हाँ पहले किया। न कांसेप्ट था उस वक़्त तक, न कांसेप्ट का अता-पता! नाम का तो पूछो ही मत! बस ये तय था कि कॉमिक मल्टी-स्टारर होगी। नागराज, ध्रुव और डोगा के साथ और कौन से ब्रह्माण्ड-रक्षक होंगे, इसका जिम्मा भी मेरे कन्धों पर डाल दिया संजय जी ने! फिर भी मैंने उनकी व्यक्तिगत पसंद जानने को जोर डाला तो उन्होंने कहा कि हो सके तो तिरंगा को इसमें शामिल कर लें। तो तिरंगा शामिल हो गया....और क्या शामिल हुआ!!
भाग दो :
तिरंगा तो नेगेटिव्स में शामिल हो गया था पर दूसरे हीरोज को चुनना अभी बाकी था | कल किसी ने ज़िक्र किया था कि संजय जी अगर बांकेलाल का नाम लेते तो ? तो ये विचार मुझे आया था और संजय जी ने कहा था कि जैसा ठीक समझें, कर लें | परन्तु बांकेलाल का समय-काल काफी दिक्क़तें पेश कर रहा था | काफी सोचा, पर बांकेलाल की गडबड करने की प्रवृत्ति इस कहानी तक को प्रभावित कर रही थी | हार कर मैंने बांकेलाल जी को हाथ जोड़ लिए कि आप को किसी और कॉमिक में पूजूँगा | आखिरकार ब्रह्माण्ड-रक्षकों की लाइन तय हो गयी कि इसमें नागराज, ध्रुव, डोगा, परमाणु और, ज़ाहिर है, तिरंगा शिरकत करेंगे | तो ईटें, सीमेंट आ चुकी थीं पर मकान का नक्शा और प्लाट यानि भूखंड का अता-पता तक नहीं था | दरअसल 160 पेजों की एक कहानी लिखने और 55-55 पेजों के तीन खंड की कहानी लिखने में थोड़ा फर्क होता है | ज़ाहिर है कि 160 पेजों की कहानी एक बार में पढी जाएगी तो उसमे फ्लो यानि सततता का होना अति-आवश्यक है | साथ ही विलेन कोई नया और महाशक्तिशाली होना चाहिए ताकि कॉमिक में इतने दिग्गजों की उपस्थिति को उचित ठहराया जा सके | उस विलेन का उद्देश्य भी दुनिया को हिला देने वाला होना चाहिए | अबतक मैं ब्रह्माण्ड-रक्षकों की हर कॉमिक में यही सोच अपनाता आया हूँ, पर 160 पेजों तक आपको बिना रस्सी के कुर्सी या बेड से बाँधे रखने के लिए रोमांच की मजबूत डोर तो चाहिए न? जो आईडिया सोचो तो लगता था की अरे, ये तो हम यूज कर चुके, ...ओह, ये तो उस कॉमिक से मिलता-जुलता आईडिया है! बिना 100% आश्वस्त हुए मैं कोई कॉमिक शुरू नहीं करता चाहे संजय जी कितना ही डाट लें! पर वो आईडिया आएगा कहाँ से जो 160 पेजों की महागाथा की गरिमा के अनुरूप हो? मेरे दिमाग में काम करते वक्त जो भी आईडिया आता है उसको मैं या तो लिख लेता हूँ, या उसका रफ स्केच बना लेता हूँ या अगर बहुत खुश हो गया तो फाईनल ड्राईग बना कर भी रख लेता हूँ | ये मेरा आईडिया-बैंक है और जब मैं सब तरफ से हार जाता हूँ तो इसी की शरण लेता हूँ ! मैंने जब अपने आईडिया-बैंक को खंगालना शुरू किया तो पहले तो कुछ खास नहीं मिला , लेकिन फिर मिला एक चित्र ! जब मैंने इसका फाईनल स्केच बनाया था तो इसके लायक कोई कहानी मेरे दिमाग में नहीं थी | पर अब ये मेरी सोच पर ऐसा फिट बैठ रहा था जैसे कि पैरों में मोजा! इस चित्र को देखते ही पूरा प्लाट अपने आप दिमाग में खटाखट बैठने लगा! जिस काम के लिए हफ्ते लगा दिए थे वो मिनटों में हो गया ! चित्र यही वाला था जो मैंने आप के अवलोकन के लिए लगाया है | पर इसमें रहस्य क्या है? रहस्य तो Sanjay जी भी आज आप लोगों के साथ ही जानेंगे ! अभी तक मैंने उनको भी नहीं बताया है कि ये टाइटल/एड डिज़ाइन मैंने 2008 के पूर्वार्ध में बना कर छोडा हुआ था ! तब से ये 160 पृष्ठों की नेगेटिव्स बनने की राह देख रहा था! तो सब तैयार था लेकिन अभी तो पहाड़ को सिर्फ चुना गया था | उस पर चढने की शुरुआत अभी होनी थी | और यकीन मानिए, अगर पहले से पता हो कि 160 ऊंची-ऊंची सीढियां एक सांस में चढनी हैं तो सांस पहले से ही फूलने लग जाती है ! पर आप सब के लिए ये पहाड़ तो मुझे चढना ही था!
भाग तीन :
लोग कहते हैं की हर कहानी की एक आत्मा होती है! मैं मानता हूँ | पर हर कहानी की एक जन्मपत्री भी होती है और उस जन्मपत्री में ग्रहों यानि पात्रों को उनके घरों में यानि स्थितियों में सही जगह पर बैठाना होता है | तभी उनका सही भाग्यफल दृष्टिगोचर होता है | ये जन्मपत्री कहानी शुरू करने से पहले बनानी ज़रूरी है, खासकर के तब, जब आप किसी बड़ी कहानी पर हाथ आजमा रहे हों | नेगेटिव्स जैसी कहानी ! तिरंगा को मैंने बहुत दिनों से हैंडल नहीं किया था | उसको इस कहानी में एक महत्त्वपूर्ण रोल देना एक चुनौती थी |अभी किसी ने पिछली पोस्ट पर (भाग २) ये कमेन्ट किया था कि कुछ मल्टी-स्टारर को छोड कर हर कॉमिक में, हीरोज की क्षमता के साथ अन्याय होता है | मैं इस बात से कतई इत्तेफाक नहीं रखता | मेरी कहानी में हीरोज को उनकी प्रसिद्धि के आधार पर नहीं बल्कि उस खास कॉमिक में उनके रोल के अनुसार जगह दी जाती है | और हर हीरो को वही काम दिया जाता है जिसे कि सिर्फ वो ही कर सके | नेगेटिव्स में डोगा का सीक्वेंस अगर नागराज पर फिट करने कि कोशिश की जाए तो नागराज बहुत ज्यादा ड्रामेटिक और विश्वास से परे लगेगा| मेरी हर मल्टी-स्टारर में किसी दूसरे हीरो को किसी और के रोल में फिट नहीं किया जा सकता | हर हीरो अपनी क्षमता के अनुरूप एक महत्वपूर्ण कार्य करता है | फिलहाल तो, नेगेटिव्स पर आगे चर्चा करते हैं | ग्रहों की यानि मुख्या पात्रों की जगह तय हो जाने के बाद बारी आती है नक्षत्रों की, यानि सहायक पात्रों की, जो समय समय में कहानी में आकर कहानी को गति और दिशा प्रदान करते हैं| इनका चुनाव सबसे मुश्किल कार्य होता है, क्योंकि ध्यान रखना पड़ता है की कहीं ये सहायक इतने महत्वपूर्ण न हो जाएँ कि मुख्य पात्रो पर हावी होने लगें | ये दरअसल वे छोटे छोटे सीक्वेंस करते हैं जो मुख्य पात्रों के सीक्वेंस को आपस में जोड़ते हैं | जब इनका चुनाव भी हो गया तो असली काम शुरू हुआ; कहानी की शुरुआत ! अभी सिर्फ इतना ही बता सकता हूँ कि कहानी शुरू करने का अवसर तिरंगा को दिया गया है | उसकी सोच और उसकी शक्तियों (?) को नवीनता दी गई है | वैसे किसी बहुत बड़े बदलाव कि अपेक्षा न करें , तिरंगा शत प्रतिशत वही है जैसा कि आप देखते आए हैं, बस उसके तेवर ज़रा बदले मिलेंगे आपको ! कहानी की शुरुआत एक जटिल निर्णय होता है | कई कहानियाँ तो सिर्फ इस कारण से लटकी पड़ी रहती हैं क्योंकि लेखक उसकी शुरुआत नहीं ढूंढ पाता | हम हर बार भाग्यशाली साबित हुए हैं और इस बार भी हुए! कहानी एक बार जो शुरू हो गई तो रूकती नहीं! बस कहीं कहीं पर अटकती ज़रूर है १ नेगेटिव्स भी अटकी लेकिन हमने हर बार जोर लगाकर गाडी पार लगा ही दी ! जब तक मैं कहानी से संतुष्ट नहीं होता तक तक मैं उसको आप तक नहीं पहुंचाता | क्योंकि मेरा मानना है कि मेरा दिमाग आप सब के दिमागों से जुड़ा हुआ है ; ‘कॉमिक-वेव्स’ की अदृश्य डोर से ! अगर मैं संतुष्ट नहीं तो आप भी नहीं होंगे! नेगेटिव्स लिखने और बनाने के बाद मैं महासंतुष्ट हूँ! बताना तो बहुत कुछ है पर हर बात ‘घर का भेदी’ साबित हो रही है ! रहस्यों को पहले से ही खोलने कि धमकी दे रही है ! तो और ज्यादा नहीं बताऊँगा | हिन्दुस्तान में कॉमिक्स ने कई दौर देखे हैं | सबसे सफल दौर 1990 से लेकर 2005 तक के वर्ष रहे हैं | आज भी आप में से कई पाठक उस दौर को आवाज़ लगाते रहते हैं | नेगेटिव्स वही दौर वापस ले कर आया है! कम से कम प्रयास तो यही है ! ! भरपूर कहानी, ठसाठस भरे धमाकेदार डाएलॉग्स और एक्शन से सराबोर चित्र ! लाइन-आर्ट में बने चित्रों में सिर्फ बुनियादी कलर-इफेक्ट ! बस, एक शिकायत मत करना, दोस्तों, कि 160 पृष्ठ कम पड गए! वैसे नेगेटिव्स पर एक अगला लेख भी लिखूंगा | जब आप सब इसे पढ़ लेंगे, उसके बाद! वह होगी नेगेटिव्स बनाने की पूरी यानि सम्पूर्ण कहानी ! अब आपके लेखो यानि रिव्यूज़ का इन्तज़ार रहेगा !

तो दोस्तों, इसका आखिरी अंक अनुपम जी द्वारा लिखते ही मैं इसे उस चौथे अंक के साथ अपडेट कर दूंगा. तब तक के लिए अलविदा |

Monday, July 15, 2013

इंडियन कॉमिक्स फैंडम (Indian Comics Fandom Magazine)



इंडियन कॉमिक्स फैंडम (Indian Comics Fandom) एक पत्रिका के रूप में प्रयास है भारतीय कॉमिक परिदृश्य को दिखाने का कॉमिक्स से जुडी ख़बरों, साक्षात्कारो,  कहानियों, चित्रों, आयोजनों, रिपोर्ट्स, लेखों, विश्लेषण आदि द्वारा। वैसे तो काफी पहले से इसको प्रकाशित करने की इच्छा थी पर बात टलती रही। 2010  मे "कॉमिक्स स्टोलोन" नाम से एक पत्रिका का एक अंश आया पर फिर वो भी ठंडे बसते मे गयी। अंततः अक्टूबर 2012 में यह पत्रिका शुरू की और अब तक इसके 6 वॉल्यूम प्रकाशित हो चुके है।

इसका आगामी  सातवा अंश स्थानीय कॉमिक्स स्पेशल है जिसमे भारत की स्थानीय भाषाओँ की कॉमिक्स या अनुवादित कॉमिक्स को कवर किया जायेगा। इस से पहले ऐसे थीम बेस्ड दो वॉल्यूम आये एक इंडिपेंडेन्ट कॉमिक्स कम्पनीज केन्द्रित और एक व्यस्क कॉमिक्स केन्द्रित। अंग्रेजी-हिंदी (और कभी-कभी स्थानीय) भाषाओँ के लेख रहते है इस पत्रिका मे।




Indian Comics Fandom FB Page जहाँ आपको इस फ्री ऑनलाइन पत्रिका से जुडी साड़ी जानकारियाँ और लिंक्स मिल जायेंगे। 

Wednesday, July 10, 2013

आपको ही नहीं, मुझे भी लुभाते हैं ये नकाबपोश

14 जून 2013 को नई दुनिया पत्रिका में प्रकाशित यह लेख आप लोगों के सामने जस का तस रख रख रहा हूँ.


Sunday, May 5, 2013

एक नज़र, फेनिल कॉमिक्स का अब तक का सफ़र

2011 में अस्तित्व मे आयी फेनिल कॉमिक्स, भारतीय कॉमिक्स के एक बहुत बड़े प्रशंषक और सूरत, गुजरात के व्यवसायी श्री फेनिल शेरडीवाला के निरंतर प्रयासों की देन है। फेनिल कॉमिक्स 2012 कॉमिक कॉन में भाग लेकर पाठको को अपनी प्रतिबद्धता भी दिखायी। हालाँकि, अभी तक फेनिल कॉमिक्स की 4 कॉमिक्स बाज़ार मे उपलब्ध है पर जल्द ही इनका अगला सेट प्रकाशित हो रहा है साथ ही फेनिल कॉमिक्स द्वारा कुछ ऑनलाइन कॉमिक्स समय-समय पर आ रही है।

जासूस बलराम "दस का दम" से फेनिल कॉमिक्स नए लेखकों एवं कलाकारों को मौके देने का बीड़ा उठाया है जिसकी पहली कॉमिक 'नादान' (जासूस बलराम के सर्वश्रेष्ठ कारनामे - 1) अप्रैल 2013 मे प्रकाशित की गयी।  ऑनलाइन कॉमिक्स मे फ्रीलांस टेलेंटस ग्रुप के साथ मिलकर फेनिल कॉमिक्स मे अब तक 3 काव्य कॉमिक्स भी आयी है जिनमे कहानी की जगह कविताओं के साथ कला का समागम कर कॉमिक्स बनायीं गयी है। वैसे फेनिल जी ने लगभग 3 दर्जन किरदारों और सीरिज़ सोच रखी है पर निकट भविष्य में आगामी कॉमिक्स मुख्यतः फौलाद, ओम, बजरंगी, क्राइमफाइटर और स्टंटगर्ल की होंगी।

कॉमिक्स के अलावा इनका अगला पड़ाव एक ऐसी कंपनी का निर्माण है जो अलग-अलग मनोरंजन के साधनों पर आना है जिसके तहत जासूस बलराम के टी.वी. सीरीयल और फौलाद के एनीमेशन पर कार्य जारी है। वैसे अभी मुख्यधारा के स्तर के हिसाब से फेनिल कॉमिक्स को चित्रांकन और कहानियों में काफी मेहनत करनी है, यह भी सलाह दूंगा कि एक समय मे सीमित प्रबंधन कि वजह से कम काम उठाना चाहिये। पर अभी तक प्रयास संतोषजनक रहे है और आगे बेहतर परिणाम आने की उम्मीद है।



मेरी शुभकामनायें फेनिल कॉमिक्स के साथ है।