निगेटिव्स हाथ में आया. ठीक तीस अगस्त को मैंने ऑर्डर किया राज-कामिक्स के वेब साईट से. अभी तक के अच्छे अनुभव रहे हैं राज-कामिक्स के साईट से ऑर्डर करने के, मगर वह अनुभव ही क्या जिसमें खराब कुछ भी ना हो? सो इस बार ख़राब अनुभव मिलकर अनुभव का चक्र पूरा कर दिया राज कामिक्स ने. सिलसिलेवार ढंग से बताता हूँ.
1. तीस अगस्त को ऑर्डर किया, वह भी सबसे महंगे वाले कूरियर सर्विस से. मगर कामिक्स मिली पूरे आठ दिन बाद. शिकायत इस बात की नहीं कि आठ दिन बाद मिली. देरी किसी भी कारण से हो सकती है, सो इस मुआमले में छूट दे दी मैंने. शिकायत तो इस बात की ठहरी की मैं लगातार दो-तीन दिन से इन्हें मेल और फोन के जरिये संपर्क करना चाहा मगर इनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.
2. कामिक्स की बात आगे के नंबरों में, फिलहाल तो अनुपम सिन्हा जी, मनीष गुप्ता जी और संजय गुप्ता जी द्वारा हस्ताक्षरित पन्ने को देख दिल खुश हो गया. मुझे पता है की उन्होंने कई कामिक्स पर बिलकुल यही शब्द अंकित किये होंगे, मगर लिखने के तरीके से यह नहीं लग रहा था की यह बस यूँ ही लिख दिया गया हो. अपनापन झलक रहा था उन शब्दों से... शुभकामनाएं...सप्रेम...आपका... मगर वहीं "युगांधर" कामिक्स पर संजय गुप्ता जी और मनीष गुप्ता जी के हस्ताक्षर देख ऐसा लगा जैसे मात्र खानापूर्ति की गई हो. खैर, उनकी भी अपनी कोई वजह और व्यस्तता रही होगी.
3. दफ़्तर से घर पहुंचा...कामिक्स हाथ में थी.. तो पहला काम "निगेटिव्स" को ही निपटाने का हुआ. पढ़ा, और सच कहूँ तो पढ़कर मजा नहीं आया. शायद मैंने बहुत अधिक अपेक्षा कर रहा था, जहाँ अधिक अपेक्षा रहती है वहीं हम निराश भी होते हैं. एक पल को तो लगा की शायद मैं अब रेणु, निर्मल वर्मा, एंगल, गैब्रियल मार्केज जैसे लेखकों को पढ़ते-पढ़ते कामिक्स का लुत्फ़ ही उठाना भूल गया था. मगर निगेटिव्स को पढने के बाद जब साथ आये अन्य ध्रुव के कामिक्स को पढ़ा तो लगा कि मैं अभी भी लुत्फ़ उठाता हूँ..मतलब यही की कहीं कुछ कमी थी. शायद मैं कम से कम "नागायण" के टक्कर की उम्मीद तो कर ही रहा था. दरअसल होता यह है की एक बार जब हम किसी भी कला के श्रेष्ठता को देख लेते हैं तो उम्मीदें भी वैसी ही हो जाती है. शायद उतनी अपेक्षा ना होती तो बेहतरीन लगती.
4. आखिर में ग्रीन पेज पढ़ते वक़्त अधिक मजा आया. अनुपम सिन्हा जी द्वारा लिखा गया ग्रीन पेज उनके बिलकुल दिल से निकालता सा लगा. इस कामिक्स के आदि से अंत तक बेहद विस्तार से बताया उन्होंने. क्या-क्या परेशानियाँ आई, और उससे उन्होंने कैसे पार पाया. एक साथ कैसे कई प्रोजेक्ट्स पर काम करते रहे. वगैरह-वगैरह बातों से यह साफ़ झलक रहा था की कितने जुझारू और अपने काम के प्रति कितने कर्तव्यनिष्ठ हैं वह.
5. आखिरी बात...अपने इस कामिक्स ब्लॉग के एक मोडरेटर आलोक शर्मा को ग्रीन पेज में देख उत्साह अपने चरम पर था...वाकई मजा आ गया उन्हें ग्रीन पेज पर देख कर.. :-)
रेटिंग : **** आऊट ऑफ़ फाईव.
आप सोच रहे होंगे की इतनी आलोचना के बाद भी चार रेटिंग कैसे? तो दोस्तों वह इसलिए क्योंकि कामिक्स वाकई शानदार है. चाहे पेज क्वालिटी हो या कहानी या चित्रांकन. बस मुझे उतना पसंद इसलिए नहीं आया क्योंकि मैं बहुत अपेक्षा रख रहा था. आखिर इतने सालों से अनुपम सिन्हा जी इस पर काम कर रहे हैं तो मेहनत रंग क्यों ना लाएगी?