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Friday, March 30, 2018

मैं हैरान था, गिज्मो डक जस्टिस लीग में क्यों नहीं?

शुरुवात करते हैं राज कामिक्स से.. निःसंदेह नागराज और ध्रुव सालों से राज कामिक्स का चेहरा रहे हैं. उसके बाकी चर्चित किरदार, जैसे डोगा परमाणु भोकाल उस चेहरे के पीछे छिपे रहते हैं. अब मसला जब भी नागराज और ध्रुव के बीच अटकता है तो सामान्तः ध्रुव नागराज पर भारी पड़ता है, मगर अगर मसला किसी खलनायक के विरुद्ध जाता है तो लगभग हर जगह नागराज ही नागराज छाया रहता है.. इन बातों से शुरुवात करने का कारण आपको आखिर में मिलेगा.

अब आते हैं जस्टिस लीग पर. हमारी पीढ़ी के वे लोग जो कार्टून के दीवाने रहे हैं वो अब भी उन दिनों को कभी ना कभी जरुर याद करते हैं जब शाम ढले DD Metro पर कार्टून्स आते थे और हम सभी बेसब्री से अपने फेवरेट कार्टून का इन्तजार किया करते थे.. चंद मेरे जैसे लोग भी थे जो लगभग हर कार्टून उतनी ही श्रद्धा से देखते थे.. चाहे बैटमैन हो या सुपरमैन या जस्टिस लीग या ममीज अलाइव या स्पाइडरमैन या एक्समैन या फिर कोई और? और हमारे लिए जस्टिस लीग का मतलब वे किरदार हुआ करते थे जिन्होंने इसकी शुरुवात की थी.. सुपरमैन, बैटमैन, वंडर वुमन, हॉक गर्ल, मार्सियन, फ्लैश और ग्रीन लैटर्न. क्या मैंने साईबोर्ग या एक्वामैन का नाम लिया? नहीं ना! क्यों नहीं लिया? क्योंकि वे इसके पार्ट थे ही नहीं..मैंने इनकी शुरुवाती कामिक्स नहीं पढ़ी, क्योंकि उस समय उन कामिक्स तक पहुँच भी नहीं थी और जो गर पहुंच होती भी तो मेरी जेब की पहुंच से बाहर होती.. मेरी समझ कार्टून देख कर ही बनी.. एक्वामैन का जिक्र जस्टिस लीग कार्टून के चौथे और पांचवे एपिसोड में हुई और वह आगे भी समय-समय पर दिखता रहा, मगर उसे जस्टिस लीग का पार्ट नहीं कह सकते हैं.. और बात साईबोर्ग की तो वह पहले सीजन के ख़त्म होने के बाद कभी दिखा होगा(जी हाँ, दुसरे सीजन से इतने सारे सुपरहीरो का जमघट लगा की तीन-चार किरदार को छोड़ और कोई याद ही नहीं। जैसे ग्रीन एरो, ब्लैक कैनरी, सजाम, इत्यादि).. वह भी तब जब हॉक गर्ल इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दी(क्यों, वह एक अलग कहानी है, फिर कभी).
सिनेमा में बैटमैन ने इस लीग की शुरुवात की, जबकि कार्टून में बैटमैन इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था, क्योंकि बैटमैन ऑलवेज वर्क्स अलोन!

जब कुछ भी दिखाना था तो अपने अंकल स्क्रूच का गिज्मो डक क्या बुरा था, उसे भी हिस्सा बना ही लेते. वह तो फ्लैश से भी बेहतर कामेडी कर लेता है!

सिनेमा में सब कुछ सलीके से चल रहा था, मगर सिर्फ तब तक जब तक की सुपरमैन कि इंट्री नहीं हुई..मैंने किसी कामिक्स या कार्टून में सुपरमैन को यह कहते सुना हूँ की उसे किसी से हारने का डर है तो वह वंडर वुमन और मार्सियन से है. मगर सिनेमा में वंडर वुमन उसके सामने कुछ भी नहीं..कार्टून के किसी एपिसोड में फ्लैश को इतनी तेज गति से भागते हुए लेक्स को हराते देखा है कि डाइमेंशन का फर्क भी ख़त्म होने लगता है, मगर यहाँ सुपरमैन उसकी गति से भी तेज निकला.. बैटमैन को पता है की सुपरमैन क्रिप्टोनियन या फिर बिजली के तेज झटके या जादू के सामने बेबस है, लेकिन वह बिना तैयारी के उससे भिड जाता है.. यार मजाक बना कर रख दिया है बाकि सुपरहीरो का..(मैं साईबोर्ग और एक्वामैन का जिक्र भी जरुरी नहीं समझता)..

एक अच्छे भले सिनेमा का यह हाल कर डाला इन्होने.. मैं DC के किरदार को दिल से पसंद करता हूँ, मगर सिनेमा मुझे मार्वल का पसंद है.. वजह बताने की जरुरत अभी भी है क्या?

PS - हाँ हाँ, मुझे पता है इसे रिलीज हुए महीनों गुजर चुके हैं। मगर मैंने तो हाल ही में देखा है ना!

Wednesday, January 8, 2014

यादें गुजरे ज़माने की -२

मैंने व्योमा जी से आग्रह किया और उन्होंने इस छोटे से लेख के साथ-साथ इस कामिक्स को स्कैन करके भी भेजा. इस कामिक्स को पढ़ते वक़्त ज़ेहन में जैसे किसी सिनेमा का दृश्य बन आया. कामिक्स के सारे पात्र जैसे जीवंत हो आँखों के सामने नाचने लगे. वह गोली चली और सीधे काऊ-ब्वाय हैट में छेद बनाते हुए निकल गई. वह बूट पॉलिश करने वाला गरीब बच्चा दीवार सिनेमा के अमिताभ बच्चन से कम नहीं लगा जो बूट पॉलिश करते समय डायलोग मारता था, "मैं फेंके हुए पैसे नहीं उठाता." वही स्वाभिमान उसमें तब दिखा जब वह पुलिस से छुपा कर गधे के पैरों में बूट पॉलिश लगा देता है, और कहानी का पटापेक्ष भी उसी घटना से होती है. फिलहाल यह कामिक्स और यह लेख आपके सामने है. शुक्रगुजार हूँ व्योमा जी का..पिछला लेख पढने के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं. अथवा व्योमा मिश्रा के लेवल पर भी चटका लगा सकते हैं.
 
आज फ़िर एक  कॉमिक्स हाथ पड़ी, उसी जूनून, उसी जज़बे से एक ही बैठक  में उसी तरह से पढ़ डाली जिस तरह तब पढ़ी थी जब नई-नई, कोरे काग़ज़ और काली स्याही की गंध के साथ पहली बार मेरे हाथ आई थी, कॉमिक्स का   नाम है 'रेगिस्तानी लुटेरे'

कहानी केंद्रित है एक इससे बूढ़े आदमी पर जो बहुत-बहुत बहुत ही अमीर है, उसकी सोने की खान है 'शैतान की आँत'. इस बूढ़े का नाम है जोसिया रिम्फ़ायर और काम है 'शैतान की आँत' से सोना खोदना, उसे अपनी घोड़ागाड़ी पर लादना और उस सोने को बैंक में 'पटक' आना.

इस बूढ़े का दिन का पता होता 'शैतान की आँत' और शाम का होता 'माँ केसिनो' का जुआघर, जिसकी मालकिन उसकी दोस्त होती है. दिन भर पसीना बहाना और शाम को महँगी सिगार के साथ जमकर शराबनोशी करना और करना जी भर कर जुआखोरी.. 'जो' कि ज़िन्दगी में 'भयावह' मोड़ उस वक़्त आता है जब एक 'अविश्वसनीय' चिट्ठी उसे मिलती है, ये चिट्ठी उसकी एकमात्र रिश्तेदार,युवा भतीजी रोज़ी ने भेजी है. इसमें लिखा होता है कि वह अपना शेष जीवन अपने एकमात्र जीवित रिश्तेदार यानि 'जो' के साथ बिताने आ रही है.

'जो' जिसकी सोच है कि आजकल ( लगभग ३० बरस पहले) की लड़कियाँ  बदतमीज़, बदमिजाज़ और बददिमाग़ होती है और वह अपनी ज़िन्दगी में ऐसी कैसी लड़की को नहीं फ़टकने नहीं देगा, परन्तु मजबूर हो जाता है जब 'माँ'  याद दिलाती है वह रोज़ी को बहुत पहले ही साथ रहने का निमंत्रण दे चुका है।

बहरहाल, रोज़ी की मुलाक़ात रिप किर्बी से होती है जो संयोगवश उसी शहर जा रहा होता है। रोज़ी को हवाईअड्डे से लाने के लिए जो को 'माँ' द्वारा ज़बरदस्ती भेजा जाता है। ज़ुए की जमी बाज़ी से जो को उठाना मज़ाक नहीं। घर आने पर जो रोज़ी के आने पर रात्रिभोज देता है और पाता है कि रोज़ी को एक अत्यधिक अनुशासित, संयमी और मर्यादित लड़की के रूप में।  रोज़ी अपने बाबा को सुधारने में जुट जाती है। इस बॉक्स को पढ़कर  आज वो मुस्कराहट आ गयी जो पहले नहीं  आयी थी जिसमें रोज़ी 'जो' को महँगी सिगार, मँहगी शराब के साथ ही जुए से दूर रखती है और रोज़ी के पीठ फ़ेरते ही 'जो' नॉन-स्टॉप पैग पर पैग चढ़ाता चला जाता है वो समय था जब मैं बच्ची थी और एक पक्के पियक्कड़ की तड़प को महसूस नहीं कर पायी थी. मेरे लिए 'जो' सिर्फ़ डर के कारण चोरी से, छिप-छिप के  शराब पीने वाला बूढ़ा आदमी होता है।  आज तो ये इस बॉक्स पर बेसाख्ता हँसी ही छूट पड़ी जब 'जो' किर्बी और 'माँ' के सामने अपना दुखड़ा बयाँ करता है कि 'मेरी भतीजी मुझे न शराब पीने देती है, न सिगार, न जुआ खेलने देती है, न....' और 'माँ' सलाह देती है 'तुम पोलो क्यों नहीं....?' अगला तीर किर्बी मारता है 'बाग़वानी भी एक अच्छा शौक़ है'.... ख़तरनाक रेगिस्तानी 'चूहा' कितना असहाय हो जाता है. इधर बिल्मि के मन में रोज़ी को ले के कुछ है, वरना आज रात चाँद उसे इतना सुंदर क्यूँ लगता भला?

खैर कभी-कभी ये चरित्र बाल-मन में विदेशों सभ्यता के बारे में भी सोचने को मजबूर करते थे. मैं सोचती थी की क्या विदेशों में लड़कियाँ खुले-आम सिगार पीतीं हैं , जब रोज़ी 'जो' के मुहँ से सिगार ले लेती है और 'जो' बड़ी दीदादिलेरी से कहता है "रोज़ी ये क्या? तुम्हें सिगार चाहिए तो माँग लेती मुझसे". उन दिनों बालों में ढेर सारा तेल चुपड़ के फुंदे-वाली दो चोटियाँ बाँधने वाली मेरे जैसी लड़की के लिए इतने बरसों पहले किसी लड़की का सार्वजानिक रूप से सिगार या शराब पीने के बारे में सोचना तक दिल को दहला देता था।

चलिये कहानी पर आते हैं..... 'जो' की दौलत पर निगाह रखनेवाले ड्यूक को अपनी साज़िश को अंजाम देने के लिए रोज़ी एक मोहरे के रूप में नज़र आती है. एक बार जब 'जो' रोज़ी को रेत पर घुड़सवारी के लिए दूर गहरे रेगिस्तान में ले जाता है तब ड्यूक अपने दो साथियों फ्रैंकी और पीटर के साथ उनपर  हमला बोल देता है, ये फ्रैंकी और पीटर वही हैं जो इसी कहानी में 'जो' से मात खा चुके हैं ( पहले पन्ने पर ) पर इस बार 'जो' कुछ नहीं कर पाता क्यूँकि हथियारों की आदत भी 'सुधारने' के चक्कर में रोज़ी उसकी पिस्तौल बिल्मि के हवाले कर आती है, नतीजतन लुटेरे अपने मंसूबों में क़ामयाब हो कर रोज़ी का अपहरण कर लेते हैं  .... ख़तरनाक़ रेगिस्तानी 'चूहा' सचमुच असहाय हो जाता है।

और अब रोल है रिप का जब शुरू होता है दौर फिरौतियों का, रोज़ी के अपराध-बोध का और 'जो' की तड़प का जो अपनी 'सुधारने-वाली' भतीजी को पाने के लिए अपनी सारी दौलत दाँव पर लगाने का माद्दा रखता है। ये वही बूढ़ा रईस है जिसके सामने बैंको के मालिक कहते है 'अगली बार आप इतना सोना और लाये तो हमें ये बैंक ही आपको बेचना पड़ेगा', जिसके बारे में प्रचलित था कि मुसीबत में तेल के मालिक शेख भी 'जो' के पास आते हैं। आज भतीजी के प्रेम में दुनिया का सबसे ग़रीब आदमी बन चुका था।
खैर, जासूस रिप की मदद से रोज़ी मिल जाती है। इस पूरे घटना-क्रम में अहम भूमिका होती है एक बूटपालिश वाले लड़के और एक बूढ़े कुत्ते 'सुल्तान' की।

अंत में दो बड़े नाज़ुक मोड़ आते हैं -
पहला: जब रोज़ी से लिपट के बाबा कहते हैं ' रोज़ी बेटी, तुम जैसा चाहो मुझे सुधार लो।' और रोज़ी "बाबा 'जो' अब मैं ऐसी कोई कोशिश नहीं करूँगी"
दूसरा: जब बूटपॉलिशवाले लड़के टिमोथी को 'जो' पढाई के खर्चे का चेक देते हैं और टिमी कहता है "ओह रिम्फ़ायर साब, कॉलेज में पढ़ने जाना है या उसे खरीदना है ?"

कामिक्स डाउनलोड करने का लिंक

Monday, January 6, 2014

ईमानदारी के नमूने

आजकल खुद को ईमानदारी का सर्टिफिकेट देने कि बाढ़ आई हुई है. तो चलिए देखते हैं ईमानदारी के नमूने. इन चारों फोटो को देखिये, "गृहस्थ वेताल" कामिक्स से निकाला हूँ. इसमें वेताल को शौक चढ़ा कि वह अपराध कि रोकथाम बंद कर एक शरीफ शहरी जीवन जीना शुरू करे. ईमानदारी भरा...

मैं जब भी शत-प्रतिशत ईमानदारी कि बात सुनता हूँ तो मुझे ये चारों पेज याद आते हैं. कभी ये सोचता हूँ कि मान लिया जाए की सभी सरकारी संस्था ईमानदार हो जाए तो? अपने आस-पास ही टटोलना शुरू करता हूँ. मेरे घर के पास जो ठेले पर मशाला डोसा बेचता है और हर रोज 70 रुपये पुलिस को देता है, और पुलिस को गाली भी देता है की वो पैसा लेती है. सबसे पहले उसका ठेला लगना बंद होगा. फिर हम जैसे लोग जो पुलिस को रोज उससे पैसा लेते देखते हैं और पुलिस को गाली देते हैं, हम जैसे लोग जिन्हें कभी खाना बनाने का मन ना हो तो वहां जाकर डोसा खाकर पेट भर लेते हैं, हम जैसे लोग फिर भी पुलिस को गाली देंगे कि उसने ठेला बंद करवा दिया.

ऊपर तो सिर्फ एक छोटा सा उदहारण दिया हूँ. सनद रहे, मैं पुलिस द्वारा लिए जा रहे पैसे का पक्ष लेकर उसे सही नहीं बता रहा हूँ. बस इतना ही कहना चाह रहा हूँ की हमें वैसा ही समाज मिलता है जैसे हम खुद हैं. नेता, पुलिस, सरकारी कर्मचारी, दफ्तर में हमारे सीनियर्स. सभी...

फिलहाल तो इन चार पृष्ठों का लुत्फ़ उठायें..



Wednesday, December 25, 2013

यादें गुजरे लम्हों की

वक़्त गुज़र गया, ज़माने हुए हमें दुनिया के सामने आये हुए. प्रशांत से जब बात हुई तो हमने खोई हुई व्योमा को फ़िर से ढूँढने कि कोशिश की. व्योम… और उसका दुनिया 'वर्ल्ड' से पहला परिचय करवाया पिता ने. उन्होंने मेरे लिए नंदन, चंदामामा, बाल-भारती और इंद्रजाल कॉमिक्स की नियमित बंदी लगवाई थी. इसके अलावा हमारे घर में कादम्बिनी भी आती थी पर मैं दीवानी थी इंद्रजाल कॉमिक्स की. वेताल और मेंड्रेक मेरे हीरो थे. हमारे घर में जो कॉमिक्स देनेवाले अंकल आते थे उनकी आँखे पीली थी, बहुत प्यार करते थे. हर हफ़्ते सोमवार का इंतज़ार रहता था.

जब वो कॉमिक्स ले के आते थे तो मैं जैसे सारी जंज़ीरें तोड़ के भागती थी. किसे फ़िक्र थी फ्रॉक के बटन लगे हैं के नहीं, किसे फ़िक्र थी बाल बँधे हैं कि खुले बस इस हफ्ते वेताल आयेगा या मेंड्रेक दोनों में से कोई भी मिला तो मज़े. गार्थ मिला तो रोना शुरू.. कभी भाग-१ हुआ तो इंतज़ार ज़माने भर का. भाग-२ के मिलते ही अंकल को रोककर सबसे पहले आखरी पन्ना देखती कि भाग-३ तो नहीं? यदि हुआ तो पीली आँखों वाले अंकल पे लात-घूंसे बरसाना शुरू खैर बाक़ी हरक़तें बाद में. एक बार डेढ़ महीने वेताल-मेंड्रेक गायब थे तब फोकस हुआ किर्बी, नोमेड, ब्रूसली, गार्थ और सॉयर से.

बचपन के दिनों की यादें या यूँ कहें जज़बात बाँट रही हूँ. आप भी सुनिये किस्से कॉमिक्स-दीवानी के, तो शुरू करें? एक नंबर है 'भुतहा मकान' दिल के बहुत क़रीब.. पहले तीन बॉक्सेस से ही चार जिज्ञासाएँ निकलीं :
१.' कैरेबियन सी' क्या है?
२. 'गोताखोरी का रेकॉर्ड' मतलब?
३. 'अफ्रीका' कहाँ है?
४. डुप्लीकेट मतलब?
अब इंतज़ार था पापा का आते ही घेर लिया.. ५ मिनिट में जवाब देके छूटे और मैं फ़िर बॉक्स १ से शुरू. फ़िर थोड़ी देर में पापा से, 'पापा, दवाई लेने से भूत दिखतें हैं?' (पापा असमंजस में) और मैं पढ़ती जा रही हूँ। पापा से पूछा मेरे पास भेड़िये की खाल क्यूँ नहीं है (मेरे पापा मुझे अपनी राजकुमारी कहते थे)

'सेंडविच', और 'भूत-पूर्व उड़ाका' का अर्थ जानने के बाद मैं व्यस्त हो गयी थोड़ी देर बाद पूछा 'शून्य-दृष्टता' क्या होती है? फ़िर जानवर क्यूँ पूँछ हिलाता है.. जानवर का चाटना प्यार का सूचक होता है.. ये जाना काँटा निकालने के बाद जंगली जानवर को भी भरोसे से जीता जा सकता है.. सीखा जब वो रेने पर आरोप लगाता है और रेने की आँखों में आँसू (तब मेरी ऑंखें नम हो गयीं थीं फ़र की नरमाहट मैं भी भूल गयी थी ).. बाद मुद्दत के जब पति-पत्नी के संवाद में 'मुझे नहीं देखना हाथ लगाके' कैसा दर्द था.. फ़िर 'मुझे लगता है उस भेड़िये की खाल क्रिस्टी ने ओढ़ रखी है।' घर में,क्रिस्टी पूछती है 'मेरा फ़र कहाँ रखा है?(वो तो सामने की कुर्सी पर ही रखा होता है).. टेलीग्राम के बाद 'मैंने सही कहा था न मैंने भेड़िया देखा था'....'तुम हमेशा सही कहते हो.....'
how sweet......


मेरे आग्रह पर व्योमा मिश्रा जी ने यह लिख भेजा मुझे और यह कामिक्स भी, जिसे मैं आप दोस्तों के साथ शेयर कर रहा हूँ.
डाउनलोड लिंक के लिए यहाँ क्लिक करें

Sunday, September 8, 2013

निगेटिव्स - परचेजिंग रिव्यू

निगेटिव्स हाथ में आया. ठीक तीस अगस्त को मैंने ऑर्डर किया राज-कामिक्स के वेब साईट से. अभी तक के अच्छे अनुभव रहे हैं राज-कामिक्स के साईट से ऑर्डर करने के, मगर वह अनुभव ही क्या जिसमें खराब कुछ भी ना हो? सो इस बार ख़राब अनुभव मिलकर अनुभव का चक्र पूरा कर दिया राज कामिक्स ने. सिलसिलेवार ढंग से बताता हूँ.

1. तीस अगस्त को ऑर्डर किया, वह भी सबसे महंगे वाले कूरियर सर्विस से. मगर कामिक्स मिली पूरे आठ दिन बाद. शिकायत इस बात की नहीं कि आठ दिन बाद मिली. देरी किसी भी कारण से हो सकती है, सो इस मुआमले में छूट दे दी मैंने. शिकायत तो इस बात की ठहरी की मैं लगातार दो-तीन दिन से इन्हें मेल और फोन के जरिये संपर्क करना चाहा मगर इनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.

2. कामिक्स की बात आगे के नंबरों में, फिलहाल तो अनुपम सिन्हा जी, मनीष गुप्ता जी और संजय गुप्ता जी द्वारा हस्ताक्षरित पन्ने को देख दिल खुश हो गया. मुझे पता है की उन्होंने कई कामिक्स पर बिलकुल यही शब्द अंकित किये होंगे, मगर लिखने के तरीके से यह नहीं लग रहा था की यह बस यूँ ही लिख दिया गया हो. अपनापन झलक रहा था उन शब्दों से... शुभकामनाएं...सप्रेम...आपका... मगर वहीं "युगांधर" कामिक्स पर संजय गुप्ता जी और मनीष गुप्ता जी के हस्ताक्षर देख ऐसा लगा जैसे मात्र खानापूर्ति की गई हो. खैर, उनकी भी अपनी कोई वजह और व्यस्तता रही होगी.

3. दफ़्तर से घर पहुंचा...कामिक्स हाथ में थी.. तो पहला काम "निगेटिव्स" को ही निपटाने का हुआ. पढ़ा, और सच कहूँ तो पढ़कर मजा नहीं आया. शायद मैंने बहुत अधिक अपेक्षा कर रहा था, जहाँ अधिक अपेक्षा रहती है वहीं हम निराश भी होते हैं. एक पल को तो लगा की शायद मैं अब रेणु, निर्मल वर्मा, एंगल, गैब्रियल मार्केज जैसे लेखकों को पढ़ते-पढ़ते कामिक्स का लुत्फ़ ही उठाना भूल गया था. मगर निगेटिव्स को पढने के बाद जब साथ आये अन्य ध्रुव के कामिक्स को पढ़ा तो लगा कि मैं अभी भी लुत्फ़ उठाता हूँ..मतलब यही की कहीं कुछ कमी थी. शायद मैं कम से कम "नागायण" के टक्कर की उम्मीद तो कर ही रहा था. दरअसल होता यह है की एक बार जब हम किसी भी कला के श्रेष्ठता को देख लेते हैं तो उम्मीदें भी वैसी ही हो जाती है. शायद उतनी अपेक्षा ना होती तो बेहतरीन लगती.

4. आखिर में ग्रीन पेज पढ़ते वक़्त अधिक मजा आया. अनुपम सिन्हा जी द्वारा लिखा गया ग्रीन पेज उनके बिलकुल दिल से निकालता सा लगा. इस कामिक्स के आदि से अंत तक बेहद विस्तार से बताया उन्होंने. क्या-क्या परेशानियाँ आई, और उससे उन्होंने कैसे पार पाया. एक साथ कैसे कई प्रोजेक्ट्स पर काम करते रहे. वगैरह-वगैरह बातों से यह साफ़ झलक रहा था की कितने जुझारू और अपने काम के प्रति कितने कर्तव्यनिष्ठ हैं वह.

5. आखिरी बात...अपने इस कामिक्स ब्लॉग के एक मोडरेटर आलोक शर्मा को ग्रीन पेज में देख उत्साह अपने चरम पर था...वाकई मजा आ गया उन्हें ग्रीन पेज पर देख कर.. :-)

रेटिंग : **** आऊट ऑफ़ फाईव.

आप सोच रहे होंगे की इतनी आलोचना के बाद भी चार रेटिंग कैसे? तो दोस्तों वह इसलिए क्योंकि कामिक्स वाकई शानदार है. चाहे पेज क्वालिटी हो या कहानी या चित्रांकन. बस मुझे उतना पसंद इसलिए नहीं आया क्योंकि मैं बहुत अपेक्षा रख रहा था. आखिर इतने सालों से अनुपम सिन्हा जी इस पर काम कर रहे हैं तो मेहनत रंग क्यों ना लाएगी?

Saturday, July 27, 2013

नेगेटिव्स

राज कामिक्स के बहुचर्चित कामिक्स सीरिज "नागायण" के बाद अब फिर से एक आगामी कामिक्स बेहद चर्चे में है, जिसका नाम है "नेगेटिव्स". इस कामिक्स के लेखक "अनुपम सिन्हा" जी का मंतव्य आपके सामने रख रहा हूँ जो वे अक्सर फेसबुक पर अपने दोस्तों से आजकल बांच रहे हैं. इसे उन्होंने तीन भाग में बेहद रोचक अंदाज में लिखा है. मैं सिर्फ यहाँ कॉपी-पेस्ट से काम चला रहा हूँ. फिलहाल तो मुझे इस मल्टीस्टारर विशेषांक का इन्तजार है.


भाग एक :

नागायण...और फिर नेगेटिव्स! ये 'न' से शुरू होने वाली कॉमिक्स काफी फैल कर बैठना पसंद करती हैं। ये जो चित्र साथ में अपलोडेड हैं ये पोस्ट की खूबसूरती बढाने के लिए नहीं है। इसमें एक ख़ास बात है। ...तो 'अवशेष' सीरीज के बाद हम लोग एक नए शाहकार की तलाश में थे। ये आईडिया संजय गुप्ता जी का था कि इस बार 10,000 के बजाए 1 लाख वाली लड़ी छुटाई जाए। 55 पेजों के तीन कॉमिक की सीरीज बनाने के बजाए क्यों न एक ही 160 पृष्ठों क़ी कॉमिक बनाई जाए। संजय जी का तो आग्रह ही मेरे लिए आदेश होता है, और आईडिया तो नवीनता से परिपूर्ण था ही, इसीलिए मैंने भी लम्बी सांस बाद में ली और हाँ पहले किया। न कांसेप्ट था उस वक़्त तक, न कांसेप्ट का अता-पता! नाम का तो पूछो ही मत! बस ये तय था कि कॉमिक मल्टी-स्टारर होगी। नागराज, ध्रुव और डोगा के साथ और कौन से ब्रह्माण्ड-रक्षक होंगे, इसका जिम्मा भी मेरे कन्धों पर डाल दिया संजय जी ने! फिर भी मैंने उनकी व्यक्तिगत पसंद जानने को जोर डाला तो उन्होंने कहा कि हो सके तो तिरंगा को इसमें शामिल कर लें। तो तिरंगा शामिल हो गया....और क्या शामिल हुआ!!
भाग दो :
तिरंगा तो नेगेटिव्स में शामिल हो गया था पर दूसरे हीरोज को चुनना अभी बाकी था | कल किसी ने ज़िक्र किया था कि संजय जी अगर बांकेलाल का नाम लेते तो ? तो ये विचार मुझे आया था और संजय जी ने कहा था कि जैसा ठीक समझें, कर लें | परन्तु बांकेलाल का समय-काल काफी दिक्क़तें पेश कर रहा था | काफी सोचा, पर बांकेलाल की गडबड करने की प्रवृत्ति इस कहानी तक को प्रभावित कर रही थी | हार कर मैंने बांकेलाल जी को हाथ जोड़ लिए कि आप को किसी और कॉमिक में पूजूँगा | आखिरकार ब्रह्माण्ड-रक्षकों की लाइन तय हो गयी कि इसमें नागराज, ध्रुव, डोगा, परमाणु और, ज़ाहिर है, तिरंगा शिरकत करेंगे | तो ईटें, सीमेंट आ चुकी थीं पर मकान का नक्शा और प्लाट यानि भूखंड का अता-पता तक नहीं था | दरअसल 160 पेजों की एक कहानी लिखने और 55-55 पेजों के तीन खंड की कहानी लिखने में थोड़ा फर्क होता है | ज़ाहिर है कि 160 पेजों की कहानी एक बार में पढी जाएगी तो उसमे फ्लो यानि सततता का होना अति-आवश्यक है | साथ ही विलेन कोई नया और महाशक्तिशाली होना चाहिए ताकि कॉमिक में इतने दिग्गजों की उपस्थिति को उचित ठहराया जा सके | उस विलेन का उद्देश्य भी दुनिया को हिला देने वाला होना चाहिए | अबतक मैं ब्रह्माण्ड-रक्षकों की हर कॉमिक में यही सोच अपनाता आया हूँ, पर 160 पेजों तक आपको बिना रस्सी के कुर्सी या बेड से बाँधे रखने के लिए रोमांच की मजबूत डोर तो चाहिए न? जो आईडिया सोचो तो लगता था की अरे, ये तो हम यूज कर चुके, ...ओह, ये तो उस कॉमिक से मिलता-जुलता आईडिया है! बिना 100% आश्वस्त हुए मैं कोई कॉमिक शुरू नहीं करता चाहे संजय जी कितना ही डाट लें! पर वो आईडिया आएगा कहाँ से जो 160 पेजों की महागाथा की गरिमा के अनुरूप हो? मेरे दिमाग में काम करते वक्त जो भी आईडिया आता है उसको मैं या तो लिख लेता हूँ, या उसका रफ स्केच बना लेता हूँ या अगर बहुत खुश हो गया तो फाईनल ड्राईग बना कर भी रख लेता हूँ | ये मेरा आईडिया-बैंक है और जब मैं सब तरफ से हार जाता हूँ तो इसी की शरण लेता हूँ ! मैंने जब अपने आईडिया-बैंक को खंगालना शुरू किया तो पहले तो कुछ खास नहीं मिला , लेकिन फिर मिला एक चित्र ! जब मैंने इसका फाईनल स्केच बनाया था तो इसके लायक कोई कहानी मेरे दिमाग में नहीं थी | पर अब ये मेरी सोच पर ऐसा फिट बैठ रहा था जैसे कि पैरों में मोजा! इस चित्र को देखते ही पूरा प्लाट अपने आप दिमाग में खटाखट बैठने लगा! जिस काम के लिए हफ्ते लगा दिए थे वो मिनटों में हो गया ! चित्र यही वाला था जो मैंने आप के अवलोकन के लिए लगाया है | पर इसमें रहस्य क्या है? रहस्य तो Sanjay जी भी आज आप लोगों के साथ ही जानेंगे ! अभी तक मैंने उनको भी नहीं बताया है कि ये टाइटल/एड डिज़ाइन मैंने 2008 के पूर्वार्ध में बना कर छोडा हुआ था ! तब से ये 160 पृष्ठों की नेगेटिव्स बनने की राह देख रहा था! तो सब तैयार था लेकिन अभी तो पहाड़ को सिर्फ चुना गया था | उस पर चढने की शुरुआत अभी होनी थी | और यकीन मानिए, अगर पहले से पता हो कि 160 ऊंची-ऊंची सीढियां एक सांस में चढनी हैं तो सांस पहले से ही फूलने लग जाती है ! पर आप सब के लिए ये पहाड़ तो मुझे चढना ही था!
भाग तीन :
लोग कहते हैं की हर कहानी की एक आत्मा होती है! मैं मानता हूँ | पर हर कहानी की एक जन्मपत्री भी होती है और उस जन्मपत्री में ग्रहों यानि पात्रों को उनके घरों में यानि स्थितियों में सही जगह पर बैठाना होता है | तभी उनका सही भाग्यफल दृष्टिगोचर होता है | ये जन्मपत्री कहानी शुरू करने से पहले बनानी ज़रूरी है, खासकर के तब, जब आप किसी बड़ी कहानी पर हाथ आजमा रहे हों | नेगेटिव्स जैसी कहानी ! तिरंगा को मैंने बहुत दिनों से हैंडल नहीं किया था | उसको इस कहानी में एक महत्त्वपूर्ण रोल देना एक चुनौती थी |अभी किसी ने पिछली पोस्ट पर (भाग २) ये कमेन्ट किया था कि कुछ मल्टी-स्टारर को छोड कर हर कॉमिक में, हीरोज की क्षमता के साथ अन्याय होता है | मैं इस बात से कतई इत्तेफाक नहीं रखता | मेरी कहानी में हीरोज को उनकी प्रसिद्धि के आधार पर नहीं बल्कि उस खास कॉमिक में उनके रोल के अनुसार जगह दी जाती है | और हर हीरो को वही काम दिया जाता है जिसे कि सिर्फ वो ही कर सके | नेगेटिव्स में डोगा का सीक्वेंस अगर नागराज पर फिट करने कि कोशिश की जाए तो नागराज बहुत ज्यादा ड्रामेटिक और विश्वास से परे लगेगा| मेरी हर मल्टी-स्टारर में किसी दूसरे हीरो को किसी और के रोल में फिट नहीं किया जा सकता | हर हीरो अपनी क्षमता के अनुरूप एक महत्वपूर्ण कार्य करता है | फिलहाल तो, नेगेटिव्स पर आगे चर्चा करते हैं | ग्रहों की यानि मुख्या पात्रों की जगह तय हो जाने के बाद बारी आती है नक्षत्रों की, यानि सहायक पात्रों की, जो समय समय में कहानी में आकर कहानी को गति और दिशा प्रदान करते हैं| इनका चुनाव सबसे मुश्किल कार्य होता है, क्योंकि ध्यान रखना पड़ता है की कहीं ये सहायक इतने महत्वपूर्ण न हो जाएँ कि मुख्य पात्रो पर हावी होने लगें | ये दरअसल वे छोटे छोटे सीक्वेंस करते हैं जो मुख्य पात्रों के सीक्वेंस को आपस में जोड़ते हैं | जब इनका चुनाव भी हो गया तो असली काम शुरू हुआ; कहानी की शुरुआत ! अभी सिर्फ इतना ही बता सकता हूँ कि कहानी शुरू करने का अवसर तिरंगा को दिया गया है | उसकी सोच और उसकी शक्तियों (?) को नवीनता दी गई है | वैसे किसी बहुत बड़े बदलाव कि अपेक्षा न करें , तिरंगा शत प्रतिशत वही है जैसा कि आप देखते आए हैं, बस उसके तेवर ज़रा बदले मिलेंगे आपको ! कहानी की शुरुआत एक जटिल निर्णय होता है | कई कहानियाँ तो सिर्फ इस कारण से लटकी पड़ी रहती हैं क्योंकि लेखक उसकी शुरुआत नहीं ढूंढ पाता | हम हर बार भाग्यशाली साबित हुए हैं और इस बार भी हुए! कहानी एक बार जो शुरू हो गई तो रूकती नहीं! बस कहीं कहीं पर अटकती ज़रूर है १ नेगेटिव्स भी अटकी लेकिन हमने हर बार जोर लगाकर गाडी पार लगा ही दी ! जब तक मैं कहानी से संतुष्ट नहीं होता तक तक मैं उसको आप तक नहीं पहुंचाता | क्योंकि मेरा मानना है कि मेरा दिमाग आप सब के दिमागों से जुड़ा हुआ है ; ‘कॉमिक-वेव्स’ की अदृश्य डोर से ! अगर मैं संतुष्ट नहीं तो आप भी नहीं होंगे! नेगेटिव्स लिखने और बनाने के बाद मैं महासंतुष्ट हूँ! बताना तो बहुत कुछ है पर हर बात ‘घर का भेदी’ साबित हो रही है ! रहस्यों को पहले से ही खोलने कि धमकी दे रही है ! तो और ज्यादा नहीं बताऊँगा | हिन्दुस्तान में कॉमिक्स ने कई दौर देखे हैं | सबसे सफल दौर 1990 से लेकर 2005 तक के वर्ष रहे हैं | आज भी आप में से कई पाठक उस दौर को आवाज़ लगाते रहते हैं | नेगेटिव्स वही दौर वापस ले कर आया है! कम से कम प्रयास तो यही है ! ! भरपूर कहानी, ठसाठस भरे धमाकेदार डाएलॉग्स और एक्शन से सराबोर चित्र ! लाइन-आर्ट में बने चित्रों में सिर्फ बुनियादी कलर-इफेक्ट ! बस, एक शिकायत मत करना, दोस्तों, कि 160 पृष्ठ कम पड गए! वैसे नेगेटिव्स पर एक अगला लेख भी लिखूंगा | जब आप सब इसे पढ़ लेंगे, उसके बाद! वह होगी नेगेटिव्स बनाने की पूरी यानि सम्पूर्ण कहानी ! अब आपके लेखो यानि रिव्यूज़ का इन्तज़ार रहेगा !

तो दोस्तों, इसका आखिरी अंक अनुपम जी द्वारा लिखते ही मैं इसे उस चौथे अंक के साथ अपडेट कर दूंगा. तब तक के लिए अलविदा |

Wednesday, July 10, 2013

आपको ही नहीं, मुझे भी लुभाते हैं ये नकाबपोश

14 जून 2013 को नई दुनिया पत्रिका में प्रकाशित यह लेख आप लोगों के सामने जस का तस रख रख रहा हूँ.


Friday, December 28, 2012

आर्ची, ये तूने क्या किया!


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आर्ची तो मुझे आज भी पसंद है. उन्मुक्त जी को भी यह पसंद है. आपको पसंद है या नहीं? कुछ अरसा पहले आर्ची के हिंदी में आने की खबर सुनी थी तो बड़ी उत्सुकता बनी हुई थी.
परंतु उस खबर के बाद लंबे समय हिंदी आर्ची तक आस-पास के न्यूज-स्टैंड पर दिखाई नहीं दिया और न ही इसके किसी ऑनलाइन खरीदी-बिक्री का लिंक मिला तो यह फिर दिमाग से एक तरह से उतर ही गया था.
अभी कुछ दिनों पूर्व पुस्तक मेले में एक स्टाल पर यह दिख गया. उत्सुकतावश इसके भाग 5 के कुल 7 अंकों में से तीन खरीद लिए.
परंतु हिंदी-आर्ची ने मुझे पूरी तरह निराश कर दिया. एक तरह से पूरा पैसा बरबाद!
अब आपको कुछेक कारण तो गिनाने ही होंगे.
लीजिए -
  • अनुवाद - अनुवाद और भाषा सामान्य है. अनुवाद का स्तर और भाषा प्रवाह थोड़ा सा और युवा केंद्रित और बेहतर हो सकता था.
  • एक अंक की कीमत है तीस रुपए. जो बहुत ही ज्यादा है. 30 रुपए और वह भी ज्यादा? जी हाँ. तीस रुपए में आपको मिलते हैं सिर्फ 2 - 3 छोटी छोटी कहानियाँ. छोटे-छोटे 11 पन्ने (22 पृष्ठ) की कीमत 30 रुपए! यह तो सरासर लूट है. और, शायद इसीलिए, कहानी के किसी भी पन्ने पर पृष्ठ संख्या नहीं लिखी है. और शायद इसीलिए एक अंक में पृष्ठ उलटे पुलटे लग गए हैं!
  • आधे अधूरे अंक - आप तीस रुपए का कोई एक अंक खरीदते हैं, और अपने प्रिय आर्ची की कोई कहानी पढ़ते पढ़ते पाते हैं आखिरी पन्ने में क्रमश: लिखा मिलता है - यानी कहानी अधूरी रह गई, और उस पूरी कहानी को पढ़ने के लिए आपको उसका अगला अंक खरीदना होगा. वह भी पूरे 30 रुपए में, ऊपर से, भाग्य से यदि मिल जाए तो. हद है!
  • किताब का आकार - मूल आर्ची कॉमिक्स का आकार पॉकेट बुक साइज का होता है और वो आमतौर पर रीसाइकल पेपर में प्रिंट होता है. हिंदी आर्ची का आकार एकदम बेहूदा किस्म का है. न तो वो पत्रिका के आकार का है, न वो अपने मूल आकार में है. एकदम बेसुरे, आकार में है. ऊपर से गिनती के दस पन्ने! लगता है कोई विज्ञापन पैम्प्लेट पढ़ रहे हों.
  • आज के जमाने में फ़िजूल-खर्ची? ना ना! पर हिंदी आर्ची तो फिज़ूलखर्च है. दोनों ही इनर कवर कोरे हैं. इनमें में न तो कोई आर्टवर्क है और न ही कोई कार्टून स्ट्रिप. जब पत्रिका इतनी पतली सी है तो खाली स्थान का भरपूर उपयोग भी तो होना चाहिए था - वह भी नहीं!
कुल मिलाकर, आर्ची को हिंदी में लाने में प्रोफ़ेशनल टच कहीं नहीं दिखा. पूरा चलताऊ एटीट्यूड ही नजर आया जिससे इसका फ्लॉप होना तय है. मैंने तीन अंक खरीदे थे - नब्बे रुपए देकर. वह शायद मेरी पहली और आखिरी खरीद थी.
रवि रतलामी जी के ब्लॉग से साभार. यह रवि जी की कलम से ही है.

Wednesday, January 19, 2011

उफ्फ़ ये डोगा का सिनेमा भी ना..


यह ना तो फिल्मी गॉसिप है और ना ही भारतीय कामिक्स प्रेमियों के लिए सनसनी.. यह तो मात्र एक ऐसे कामिक्स प्रेमी की व्यथा है जो भारतीय कामिक्स कैरेक्टर को सिल्वर स्क्रीन पर देखना चाहता है..

पिछले लगभग दो सालों से सुन रहा हूँ कि अनुराग कश्यप जी डोगा को सिल्वर स्क्रीन पर उतारना चाहते हैं.. जब मैंने यह पहली दफे सुना था तब मन में सबसे पहला सवाल यही उठा था की कौन सा भारतीय अभिनेता शारीरिक तौर से इतना फिट है, फिर पता चला कि कुनाल कपूर को इसके लिए चुना गया है और वह जीतोड मेहनत भी कर रहे हैं ऐसा उनके ही किसी Interview में पढ़ा भी.. कई अन्य सवालों में से एक प्रमुख सवाल मेरे मन में आया था, वह यह कि मोनिका का रोल कौन करेगी? क्या मुंबई के गटर के भीतर सच में इतनी जगह होती है क्या जिसमें से डोगा आराम से आ-जा सके? और यक़ीनन जब अनुराग कश्यप सिनेमा बनाएंगे तो सूरज और मोनिका को पेड़ों के इर्द-गिर्द नाचते-गाते तो नहीं ही दिखाएँगे..

खैर यह सब भी होता ही रहेगा, और अनुराग जी पर इतना भरोसा तो जरूर है कि वह जब भी बनाएंगे तो वह एक क्लासिक चीज ही होगी.. मगर सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर दो साल से सुनते-सुनते अभी तक कहीं यह चर्चा क्यों नहीं सुना कि यह फ़िल्म बन रही है? हर जगह यही क्यों पढ़ने को मिलता है कि फ़िल्म बनेगी?

मैंने इस बाबत कुछ छानबीन की और पता चला कि अनुराग जी पूरे मन से इसे बनाने को तैयार हैं, मगर डोगा के कापीराईट को खरीदने के लिए पैसे को लेकर मामला अटक गया है.. और अभी गेंद राजा पाकेट बुक्स के पाले में है.. अब अंदर कि खबर क्या होगी यह तो अनुराग जी और संजय गुप्ता जी ही बताएँगे.. मगर मेरी समझ यही कहती है कि अगर इस पर सिनेमा बनती है और वह थोड़ी भी चर्चा पाती है तो इसका सीधा फायदा राजा पाकेट बुक्स को ही मिलेगा, क्योंकि मेरी जानकारी में राज कामिक्स(सनद रहे, राज कामिक्स राजा पाकेट बुक्स का ही एक हिस्सा है) का मुनाफा दिन-ब-दिन कम होता जा रहा है, और अगर यह सिनेमा सिल्वर स्क्रीन पर आती है तो यह हित रहे या फ्लॉप मगर इसका सीधा फायदा डोगा की कामिक्स की बिक्री को होगा.. और यक़ीनन उसकी बिक्री पहले से अधिक भी होगी..

खैर, मैं भी आप पाठकों की ही तरह इन्तजार में हूँ कि कब हमें यह सिनेमा सिल्वर स्क्रीन पर देखने को मिलता है..


आज के इस पोस्ट के साथ मैं यह भी बताना चाहता हूँ कि संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर अब से इस ब्लॉग पर वैसा कोई भी कामिक्स आपको पढ़ने को नहीं मिलेगा जो फिलहाल बाजार में उपलब्ध है.. अभी जिस किसी पोस्ट में ऐसे लिंक उपलब्ध हैं उसके लिंक धीरे-धीरे Deactivate किया जा रहा है.. धन्यवाद..

Wednesday, May 12, 2010

Recess, क्या आपने सुना है इसके बारे में?

आज फिलहाल इसका यह वीडियो देखिये, जिसमे बच्चों ने कैसे अर्थशास्त्र के फंडे पढाया है.. हर पूंजीवादी व्यवस्था कुछ-कुछ ऐसी ही होती है, जैसा कि इसमे दिखाया गया है.. अगली बार इस कार्टून के बारे में विस्तार से बताता हूँ.. फिलहाल सिर्फ इतना बताता जाता हूँ कि मुझे डिस्नी के बनाए सभी कार्टूनों में से सबसे बढ़िया अभी तक यही लगा है और इसे देखने के लिए मैं कई बार रात के ढाई बजे तक जगता था(उन दिनों यह उसी समय आता था).. :)


Sunday, April 25, 2010

"खाकी और खद्दर" राजनीति का अपराधीकरण के बाद

मुझे राज कामिक्स कि सबसे बड़ी खूबी यह दिखती है कि अक्सर यह हमारे आस पास होने वाली ही किसी घटना को उठाकर कहानी का जाल बुनती है.. खासतौर से अगर डोगा या फिर इसके थ्रिल होरर कामिक्स कि बात करें तो आप यह जरूर पायेंगे.. जिस कारण से इसकी कहानियां अपने आस पास कि ही कोई कहानी कहती सी लगती है..

अभी कुछ दिन पहले मैंने Raj Comics पर एक होरर कामिक्स पढ़ी जिसका नाम था रोतडी.. इसमे हरियाणा और उसके आस पास के पंचायतो द्वारा ढाने वाले जुल्मो को लेकर कहानी आगे बढ़ाई गई थी और बाद में उसमे शन्नो चुड़ैल को जोड़ कर उस अन्याय के विरूद्ध खड़ा कर दिया गया था.. कुल मिलकर अगर कहूँ तो अक्सर यह महसूस होने लगता है कि काश असल जिंदगी में भी कोई डोगा या फिर अप्राकृतिक शक्ति आकर ऐसे ही हमें उन सामाजिक जुल्मो के विरोध में खड़ा होना सिखाए जो इन कामिक्स के नायक/नायिका करते हैं..

खैर, आज मैं यहाँ बताने आया हूँ खाकी और खद्दर के बारे में.. यह कामिक्स जिस समय आई थी उन दिनों गुजरात में हुए फर्जी एनकाउंटर को लेकर देश भर में बवाल मचा हुआ था.. पुलिस, मीडिया और राजनीतिज्ञ, सभी जगह सिर्फ वही मुद्दा छाया हुआ था.. इस कामिक्स कि शुरुवात भी होती है एक फर्जी एनकाउंटर से जो मुंबई के किसी हिस्से में हुई है और वह एक ऐसे पुलिस वाले कि करतूत थी जो अपने अन्डरवर्ल्ड के आकाओं को बचाने के लिए झूठी इन्फार्मेशन देकर वह फर्जी एनकाउंटर करवाता है.. बाद में जब वह पकड़ा जाता है तब वह राजनीति में घुस कर क़ानून को अपने इशारों पर नाचना शुरू कर देता है..

यह कामिक्स "शेर का बच्चा" का ही सिक्वेल है.. तो जाहिर सी बात है कि सूरज अब डोगा नहीं बनने कि राह पर निकल चुका है..(जानने के लिए पढ़े "शेर का बच्चा".. सूरज भी मोनिका और अन्य आम जनता कि तरह ही इस गुंडागर्दी का तमाशा देखना शुरू कर देता है.. सूरज फिर से डोगा क्यों और कैसे बना, यह आपको इस कामिक्स के जरिये जानने को मिलेगा..

अगर मेरी राय पूछे तो यह कामिक्स डायलोग और कहानी के नाम पर बेहद उम्दा है, हाँ मगर इसमे डोगा के एक्शन कि कमी जरूर खलेगी.. मेरी राय में इसकी रेटिंग चार है पांच में(****4/5)..

डाउनलोड लिंक - खाकी और खद्दर (भाग २)
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..


डाउनलोड लिंक - शेर का बच्चा (भाग १)
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..




डाउनलोड लिंक - खाकी और खद्दर (भाग २)
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..


डाउनलोड लिंक - शेर का बच्चा (भाग १)
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..


वैसे जब आप इस कामिक्स को डाउनलोड करके पढ़ना शुरू करेंगे तो पहले दो-तीन पृष्ठों पर पायेंगे कि मेरा नाम लिखा हुआ है, और कहीं "प्रशान्त डोगा" लिखा हुआ है.. असल में "शेर का बच्चा" और "खाकी और खद्दर" आने के बाद मैं डोगा का इतना बड़ा फैन हो गया था कि दीदी मुझे डोगा ही कह कर बुलाने लगी थी.. और वह हैंडराइटिंग भी मेरी दीदी कि ही है.. :)


Doga related posts and Doga's Comics for free download

Saturday, April 24, 2010

शेर का बच्चा सूरज

इस कहानी का सारा ताना बना बुना गया है सूरज, डोगा, मोनिका, चीता, अदरक चाचा और चंद समाज के बेहिसाब दौलत और ताकत रखने वाले भेड़ियों पर.. डोगा के कम ही कामिक्स में ऐसे गजब की चित्रकारी, डायलॉग, एक्शन, इमोशन और सिक्वेंस एक साथ देखने को मिलेगा.. कुल मिला कर अगर मुझे इस कामिक्स को रेटिंग देने को कहा जाए तो मैं इसे पांच में चार दूँगा(****4/5)..

अब तक सूरज(नए आने वालों के लिए - सूरज ही डोगा है) को पता चल चुका होता है कि उसकी सोनू जो बीहड़ के घने जंगलों से भागते समय नदी कि धारा में बह गई थी वह मोनिका ही है, मगर मोनिका को यह नहीं पता होता है कि सूरज ही डोगा है.. मोनिका डोगा से बेहिसाब नफ़रत करती होती है, क्योंकि उसके हिसाब से डोगा का तरीका सही नहीं है.. उसका यह भी मानना होता है कि अगर सभी डोगा कि ही राह अपना लें तो इस समाज का कोई नाम लेने वाला भी बचा नहीं रहेगा..

मोनिका का भाई चीता को इस बात इल्म हो चुका था कि सूरज ही डोगा है, मगर अभी तक वह भी यह समझ चुका था कि इस समाज को डोगा कि जरूरत है.. घटनाक्रम कुछ ऐसा मोड़ लेती है कि डोगा को भी पता चलता है कि चीता उसका राज जान चुका है, और वह किसी भी कीमत पर अपना राज जानने वाले को जिन्दा नहीं छोड़ सकता है.. इसी जूनून में वह अपनी बन्दूक कि सारी गोली चीता के सीने में उतार देता है और वह भी मोनिका के सामने ही.. बाद में मोनिका को भी पता चल जाता है सूरज ही वह डोगा है जिसने अभी अभी उसके भाई को गोली मारी है.. इसी बीच अदरक चाचा डोगा और चीता-मोनिका के सामने दीवार बन कर सामने आ जाते हैं..

कुल मिला कर इस जबदस्त कामिक्स को पढ़ना ना भूलें.. और कुछ नहीं तो मेरी बात पर भरोसा करें कि "यह कामिक्स जबरदस्त है"..

चलते चलते बताता चलूँ, कि यह मेरे द्वारा स्कैन करके नेट पर अपलोड की जाने वाली पहली कामिक्स थी.. जो डोगा कि नेट पर उपलब्ध पहली ई-कामिक्स भी थी.. :)

डाउनलोड लिंक : शेर का बच्चा
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..




डाउनलोड लिंक : शेर का बच्चा
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..



आगे आने वाले कामिक्स के नाम :
  • खाकी और खद्दर (डोगा)

  • खूनी खानदान (ध्रुव)

  • अतीत (ध्रुव)

  • जिग्सा (ध्रुव)


एक दफ़े ये सभी पोस्ट हो जाने के बाद नागराज के उन कामिक्स को कुरेदा जायेगा जो नागराज कि शुरुवाती कामिक्स थी और अब बाजार में भी उपलब्ध नहीं है.. :)

नागायण - वरणकांड

यह कामिक्स श्रृंखला मेरी नजर में राज कामिक्स का अभी तक के बिक्री का सारा रिकार्ड तोड़ डाले थे.. आज मैं इसके पहले भाग का प्रस्तावना जैसा ही कुछ ले कर आया हूँ, जिसमे इसके प्रमुख पात्रों का जिक्र है..

मैंने जब से ये ब्लॉग शुरू किया है तभी से अपने ही बनाये इस नियम को मानता चला आ रहा हूँ कि मैं कोई भी ऐसा कामिक्स का लिंक यहाँ ना दूँ जो पिछले दो वर्षों मे आया हो या फिर अभी भी उसकी खूब बिक्री हो रही हो.. मैं कुछ भी ऐसी सामग्री यहाँ नहीं डालना चाहता हूँ, जिससे कामिक्स इंडस्ट्री पर कुछ भी बुरा असर ना हो, जिससे भविष्य में और भी कामिक्स पढ़ने को मिले.. :) मगर फिर भी मुझे अफ़सोस के साथ कहना पर रहा है कि लगभग सभी नई-पुरानी कामिक्स इस अंतर्जाल पर कहीं ना कहीं बिखरे पड़े हैं..

फिलहाल तो आप इस कामिक्स के कुछ झलकियाँ देखें..

प्रमुख पृष्ठ :



नागराज :



ध्रुव :



नागपाशा :



नताशा :



विसर्पी :



बाबा गोरखनाथ :


Thursday, April 22, 2010

जब प्रतिशोध लेने कि बात करने वाला पिट गया, मेरा मतलब विलेन :)

सन 1996 कि बात है, उस जमाने में कामिक्स का नशा सर चढ़ कर बोला करता था(वैसे बोलता तो अभी भी वैसे ही है :D).. मगर घर में पापा-मम्मी कामिक्स के धुर-विरोधी हुआ करते थे.. मगर एक दिन "जैसे हर कुत्ते का एक दिन होता है" मेरा भी दिन आया, और पापा जी मुझे बोले कि "जाओ बच्चा तुम्हे सौ रूपये देता हूँ.. इसमें जितना कामिक्स खरीद सकते हो खरीद लो.." उनकी यह वाणी मुझे किसी आकाशवाणी से कम नहीं लगी.. ठीक वैसे ही जैसे महाभारत में देवकी के ब्याह के समय कंस को आकाशवाणी सुनाई दिया था.. (वैसे कभी कभी सोचता हूँ कि महाभारत काल और उसके आस पास के काल मे इत्ते सारे आकाशवाणी क्यों लोगों को सुनाई देता था?? :o ;))

अब एक अंधे को क्या चैये, बस दो ऑंखें.. उस समय मैं बिक्रमगंज नामक शहर में रहता था, जो बिहार के रोहतास(सासाराम) जिले में अवस्थित है.. वहाँ राज कामिक्स मिलता नहीं था और मैं अपने अमूल्य सौ रूपये डायमंड कामिक्स के चाचा चौधरी जैसे कामिक्स पर खर्च करने को तैयार नहीं था.. अब विकट स्थिति जान पड़ी.. करें तो क्या करें.. बस संभाल कर रख लिया वह सौ रूपया, सोचा "केकयी" जैसे ही समय आने पर इसका उपयोग करूँगा और बेचारे पापा मना भी नहीं कर पायेंगे..

फिर वो दिन भी आया जब पापाजी को किसी मीटिंग में डेहरी-ऑन-सोन जाना था और साथ में हम भी लटक लिए.. पापाजी गए मीटिंग के अंदर और हम उनके बॉडीगार्ड साहब को लेकर पहुँच गए वहाँ के रेलवे स्टेशन.. ध्रुव या नागराज का कोई कामिक्स तो मिल ही जायेगा, इसी उम्मीद में.. और वहाँ से ख़रीदे तीन कामिक्स.. तीनो के तीनो ही ध्रुव के..
  • "स्वर्ग कि तबाही"

  • "दलदल" और

  • "ब्लैक कैट"


जिसमे से स्वर्ग कि तबाही ध्रुव कि एक दूसरी कामिक्स का आखरी भाग था, उसके पहले भाग का नाम आदमखोरों का स्वर्ग था.. इन दोनों कामिक्स को मैं पहले भी आपके सामने ला चुका हूँ जिसका लिंक उन कामिक्स के नाम के साथ दे रहा है मैंने.. Link Deleted on request of Sanjay Gupta Ji..

दूसरी कामिक्स "दलदल" अपने आप में पूरी कामिक्स थी.. आगे पीछे कोई भी रोवनहार नहीं था उस कामिक्स का, मतलब कोई दूसरा भाग नहीं था.. :)

और तीसरी कामिक्स "ब्लैक कैट" के साथ भारी पंगा हो गया.. लेते समय मैंने देखा नहीं और पढ़ने पर पता चला कि यह तो पहला भाग है.. अब दूसरा भाग कहाँ से आये.. भारी लोचा.. अब तो पटना आयें तो यहाँ पता करे उसके दूसरे भाग के बारे में.. डेहरी-ऑन सोन जाए तो फिर वही चक्कर.. पटना के पुस्तक मेला में भी मेरे घूमने कि वजह सिर्फ यही कामिक्स थी(उस जमाने में साहित्य भगोरों में मेरा नाम अव्वल हुआ करता था सो किसी साहित्यिक पुस्तक मैं खरीदने से रहा.. वैसे मेरा मानना है कि कामिक्स भी साहित्य के ही किसी श्रेणी का हिस्सा है :)).. "रोबो का प्रतिशोध" नाम था उसके दूसरे भाग का.. सबसे बड़ी मुसीबत तो यह कि पहले भाग में ध्रुव को बुरी तरह घायल दिखा दिया था.. मन में सवाल यह नहीं था कि वह बचा या नहीं, क्योंकि उसकी नई कामिक्स लगातार आ रही थी(ही ही ही :D).. सवाल यह था कि वह बचा तो कैसे बचा..

खैर एक दिन ब्रह्म देव मुझ पर भी प्रसन्न हुए और मेरी मुह मांगी मुराद पूरी हो गई.. मुझे यह कामिक्स मिली पटना जंक्शन के पास वाले एक बुक स्टोल पर(मीठापुर सब्जी मार्केट के कोर्नर वाला बुक स्टोर).. और पढकर दिल को उतनी ही ठंढक मिली जितनी कि एक बच्चे को कुत्ते कि पूंछ खिंच कर मिलती है(ही ही ही :D)..

फिलहाल तो आप भी इसे पढ़िए.. :)



चूंकि इसमें अपनी कुछ यादें भी जुडी हैं सो सोचता हूँ कि इसे अपने दूसरे ब्लॉग पर भी डाला जाए.. :) शायद तीन-चार दिन बाद..

Sunday, April 18, 2010

बज्ज पर बज-बजाते कामिक्स दीवाने

एक दिन बस यूँ ही गूगल बज्ज पर मैंने एक मैसेज दिया "सुनो बज्ज गांव वालों.. क्या कोई Super Commando Dhruv(SCD) कि कामिक्स पढ़ना चाहता है?? अपना Email ID मुझे दिया जाए.. हर दिन एक कामिक्स उन्हें मेल कि जायेगी.. :D" और देखते ही देखते कामिक्स के दीवाने जुट गए वहाँ.. मैं अपना वादा तो नहीं निभा पाया "मतलब हर दिन ध्रुव कि एक कामिक्स मेल करने कि".. मगर फिर भी जिस किसी ने कोई डिमांड रखी और अगर वह कामिक्स मेरे पास थी तो मैंने उन्हें उसी समय मेल कर दिया..


"प्रतिशोध कि ज्वाला" का पहला पृष्ठ

कुछ दोस्तों कि चुहलबाजी भी शामिल थी वहाँ, तो कुछ लोग ऐसे भी थे जो पहली बार ध्रुव कि कामिक्स ट्राई करना चाह रहे थे.. मैंने पाया है कि पहली बार ध्रुव को ट्राई करने वालों में हमसे एक पीढ़ी पहले के लोग होते हैं.. मैंने अपने एक पोस्ट में लिखा भी था कि "हर पीढी का अपना एक नायक होता है.. जैसे मुझसे 10-15 साल पहले वाली पीढी के लोगों के लिये वेताल और मैंड्रेक नायक हुआ करते थे.. उस समय भारत में इंद्रजाल कामिक्स का प्रभुत्व हुआ करता था.. सो उस पीढी के नायक भी उसी प्रकाशन से छपने वाली कामिक्स की हुआ करती थी.. ठीक वैसे ही मेरी पीढी के लिये नायक ध्रुव और नागराज जैसे हीरोज हैं.."

अब जैसे जैसे लोगों ने रिप्लाई करना शुरू किया, मैंने उन्हें पहली कामिक्स भेजनी भी शुरू कर दी.. वह कामिक्स ध्रुव कि भी पहली कामिक्स थी.. "प्रतिशोध कि ज्वाला" जिसे मैंने पहले भी इस ब्लॉग पर कभी पोस्ट किया था..

सबसे पहले स्तुति जी आई जिन्होंने कामिक्स पाने के बाद तुरत बांकेलाल कि कामिक्स "बांकेलाल और राजसी तलवार" के लिए पेशकश भी कर दी, जिसे मैं ठीक से पढ़े बिना यह समझा कि वह बांकेलाल कि कामिक्स चाह रही हैं.. :)

डा.महेश सिन्हा जी आकर चिढा गए, बोले "बिल कब भेजोगे?" मैंने भी स्पोर्ट स्पिरिट दिखाते हुए उसी मजाक में कह दिया "महेश जी, अभी तो फ्री में बाँट रहे हैं.. एक बार लत लगने दीजिए फिर पैसा कमाएंगे.. :D"



इन सब के बीच स्तुति के कहने पर(बोले तो ऑन डिमांड :D) मैंने "चाचा चौधरी साबू और फुटबाल" सभी को मेल भेजना शुरू किया.. और बाद में "बिल्लू का समोसा" कि भी बारी आई..



तो पूरी बात का लब्बोलुआब यह हुआ कि इस एक पोस्ट में आपके सामने लेकर आया हूँ मैं चार कामिक्स :) जिसमे से एक मैं पहले भी यहाँ ला चुका हूँ, मतलब तीन नए कामिक्स.. फिलहाल तो आप इस पोस्ट में दिए लिंकों का चक्कर लगा कर तीनों कामिक्स ढूंढें और मजे लें.. मैं जान बूझ कर सभी लिंक इकट्ठे नहीं दे रहा हूँ, कुछ मेहनत आप भी तो करें.. ही ही ही.. :D

Wednesday, February 17, 2010

पहला प्यार और नताशा


मुझे वह अच्छी लगाती थी, और मैं उसे कभी-कभी नताशा कह कर बुलाता था.. वह मुझसे पूछती थी कि ये नताशा कौन है, मैं बस कहता कि ऐसे ही.. अब उससे कौन कहे कि मेरा पहला प्यार का नाम नताशा ही है.. मैं दिल ही दिल में खुदा को शुक्रिया अदा करता था कि वह कामिक्स नहीं पढ़ती थी.. कुल मिलकर कुछ ऐसा ही नशा हुआ करता था उस कामिक कैरेक्टर का..

पिछले पोस्ट में गौतम जी ने मुझे भी मेरा पहला प्यार याद दिला दिया.. मेरा शुरू से ये मानना रहा है कि हर पीढ़ी का अपना अलग हीरो होता है.. जैसे मुझ से ४-५ साल पहले कि पीढ़ी का वेताल हुआ करता था कमोबेश वैसा ही मेरे उम्र के लोग अपना हीरो ध्रुव और नागराज जैसे कैरेक्टर में ढूँढते रहे.. फिर कब जवान हुए और कब प्यार हुआ कुछ पता ही नहीं चला.. मेरी कई मित्र भी हैं जिसे अपना पहला प्यार ध्रुव या डोगा में दिखता रहा है, वहीँ कईयों को नागराज भी खूब भाता रहा है..

नताशा का पहला परिचय ग्रैंड मास्टर रोबो में कराया गया था.. मैंने बहुत पहले कभी ग्रैंड मास्टर रोबो नामक कामिक्स पोस्ट भी की थी जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं.. नताशा का पिता रोबो जो अपराध की दुनिया का बादशाह हुआ करता था, जब तक की वह ध्रुव से नहीं टकराया था.. नताशा उसके रोबो ट्रूप्स की कमांडर हुआ करती थी.. फिर जब वह चंडिका उर्फ श्वेता को जान पर खेल कर उसकी जान बचाते देखती है तो अपराध की दुनिया छोड़ देती है.. वैसे पूरी कहानी पढ़ने के लिए आप ग्रैंड मास्टर रोबो वाले लिंक से उस कामिक्स को डाउनलोड कर सकते हैं..

अब बढते हैं अगले प्रेम की ओर.. ऋचा.. वह भी ध्रुव के कामिक्स की ही कैरेक्टर है.. जो छद्म वेश रखकर ब्लैक कैट भी बनती है और अपराधियों से भी लड़ती है.. खाली समय में वह जिमनास्ट है, वही साथ में एक सुपर कम्प्युटर जीनियस भी.. आप फिलहाल ब्लैक कैट की पहली कामिक्स पढ़े, बाकी अगले पोस्ट में अपने एक और प्यार के साथ लौटता हूँ.. वैसे भी यह कामिक्स दो भागों में बनती हुई है.. सो मुझे जल्द ही आना है दूसरा भाग पोस्ट करने के लिए.. :)

"ब्लैक कैट" कामिक्स का डाउनलोड लिंक


आप कामिक्स डाउनलोड करने के लिए ब्लैक कैट कामिक्स की तस्वीर पर भी क्लिक कर सकते हैं..

Wednesday, January 20, 2010

सज़ा-ए-मौत - सुपर कमांडो ध्रुव (Saja-e-maut - Super Commando Dhruv)

शायद सन् 1998-99 के आस पास इस कामिक्स को पढ़ा था.. और पढ़ते ही दिवाना हो गया था.. तब से लेकर अभी तक ना जाने कितनी ही बार इस कहानी को पढ़ चुका हूं..

इस कामिक्स कि कहानी शुरू होती है बार्को नामक एक माफिया किंग के अड्डे से, जो ग्रैंड मास्टर रोबो के लिये काम करता है.. किसी कारण से वह सुपर कमांडो ध्रुव को अपने रास्ते से हटाना चाह रहा था(इसके पीछे कि कहानी जानने के लिये हमें "कमांडर नताशा" कामिक्स में झांकना पड़ेगा, वह फिर कभी).. साथ ही वह यह भी जानता था कि धुव को मारना लगभग असंभव सा काम है.. बार्को यूरोप के अपराध संघटन से एक हत्यारे को मंगाता है जिसके लिये उसने खूब पैसा खर्च किये हैं.. बार्को इस उम्मीद में बैठा था कि शायद कोई बेहतरीन खूनी हत्यारा अत्याधुनिक हथियारों के साथ राजनगर, भारत आयेगा.. मगर वह यह देख कर आश्चर्यचकित रह जाता है कि एक ऐसा व्यक्ति आया है जो अपना नाम "स्किमो" बता रहा है और उसके पास एक ब्लेड तक नहीं है जिससे किसी इंसान कि हत्या की जा सके..

इस कामिक में "स्किमो" नामक कैरेक्टर बेहतरीन गढ़ा गया है.. उसके पूरे शरीर पर कट्टम-कुट्टा वाले खेल के निशान बने हुये हैं, और जो भी उसके लिये काम करता है उनके हाथों पर भी वैसे ही निशान बने रहते हैं.. मुझे समझ में नहीं आता है कि कहानियों और सिनेमा में ऐसे विलेन किरदार क्यों बनाये जाते हैं जिनके गिरोह के सभी सदस्य के शरीर के किसी ना किसी हिस्से में ऐसे निशान बने होते हैं.. मुझे मैन्ड्रेक के कामिक्स का "अष्टांक" नामक किरदार याद आ रहा है.. वहां भी कुछ वैसा ही लोचा था..

खैर स्किमो पर वापस आते हैं.. स्किमो बार्को को समझाता है कि अगर किसी हथियार से ध्रुव को मारा जा सकता तो ध्रुव कभी का इस दुनिया से उठ गया होता.. क्योंकि वह अपना भेष बदल कर या मुखौटा लगा कर सुपर हिरोगिरी नहीं करता है.. उसके सभी पहचान भी खुले हुये हैं, और उसके अनगिनत दुश्मन भी हैं.. अपने नाम के ही अनुसार स्किमो स्कीम बना कर मारता है.. और उसने स्कीम कुछ ऐसा बनाया है जिससे कि ध्रुव को कानून ही "सज़ा-ए-मौत" कि सजा सुना दे तो ध्रुव कानून के खिलाफ कभी नहीं जायेगा..

अब आगे कि कहानी को जानने के लिये आपको यह कामिक्स पढनी होगी, इस कामिक्स को पढ़ने के इच्छुक व्यक्ति इस लिंक से जाकर कामिक्स खरीद सकते हैं..



मेरा रेटिंग - **** (4/5)


संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..

Tuesday, December 29, 2009

दूरदर्शन से पहले का शक्तिमान मधु-मुस्कान में

जो भी कामिक्स के शौकीन रह चुके हैं वे अच्छे से जानते हैं कि दूरदर्शन पर आने वाले "शक्तिमान" धारावाहिक से कई साल पहले मधु-मुस्कान में शक्तिमान नामक एक चरित्र प्रकाशित हुआ करता था.. एक झलक आप उसके एक पन्ने पर देखें..



इस मधु-मुस्कान के पृष्ठ के लिये मैं इस ब्लौग को धन्यवाद देता हूं और चलते-चलते बताता चलता हूं कि आप इस ब्लौग पर कई अतीत के बिखरे हुये कामिक्स का खजाना भी मिलेगा..

मधु-मुस्कान को पूरा पढ़ने के लिये आप उसी ब्लौग से डाऊनलोड भी कर सकते हैं..

Monday, August 31, 2009

डेक्सटर की रहस्यमयी दुनिया---डेक्सटर्स लैबोरेटरी

रात का समय.. घनघोर अंधेरा.. डेक्सटर अपने बिस्तर पर बैठा डर से कांप रहा है.. खिड़की के बाहर बिजलियां कड़क रही है.. किसी अनहोनी की आशंका से डेक्सटर का जी घबराया हुआ है.. वह थोड़ी देर पहले हुई उस भयानक घटना के बारे में सोच रहा था जो उसके और उसकी बड़ी बहन डीडी के साथ घटा था..

उसके घर की गोल्ड फिश कैसे पानी में ही तड़प-तड़प कर मर गई थी.. उसे जहां तक पता था उसके मुताबिक मछली को पानी से बाहर निकालने पर ही मरती है, क्योंकि वह पानी के बाहर सांस नहीं ले पाती है.. मगर यह तो पानी के अंदर ही मर गई.. ऐसा कैसे संभव है? जरूर इसके पीछे भी विज्ञान का ही कोई सिद्धांत काम कर रहा होगा जिसके बारे में किसी को पता नहीं.. और अगर वह इसकी खोज करता है तो संभव है कि उसे नोबल पुरस्कार भी मिल ही जाये..

आईये, आगे जानने से पहले मैं अपना और अपनी बुद्धु बहन डीडी का परिचय दे देता हूं..

मैं डेक्सटर छः साल का एक बच्चा हूं जिसका दिमाग किसी वैज्ञानिक से कम नहीं है और मैं हमेशा अपनी सीक्रेट लैबोरेटरी में ही काम करता रहता हूं.. मैंने यह लैब अपने घर के नीचे बना रखा है जिसके बारे में मेरे घर में मेरे अलावा सिर्फ डीडी को ही पता है.. और वह बुद्धु डीडी हमेशा यहां आकर मेरा समय बरबाद करती रहती है..


डीडी!! हां, यही नाम है उस बुद्धु लड़की का जो मेरी बहन भी है वो आठ साल की है.. उसे कुछ नहीं आता है.. वो हमेशा मेरे लैब में घुसकर मुझे परेशान करती रहती है.. जितना स्कूल में पढ़ाई होती है बस उतना ही पढ़ती है, और बाकी समय वह बस खेल-कूद, नाच-गाने में ही लगी रहती है..


हां तो मैं फिर आता हूं अपने उस गोल्ड फिश की कहानी पर.. यूं तो मैं हमेशा साईंस के बारे में ही सोचता हूं और कहानियों की बाते नहीं करता हूं, मगर क्या करूं वह रात थी ही अजीब.. कल रात जब हमारे गोल्ड फिश की मौत हुई तो मैं और डीडी बहुत दुखी हुये.. हमारे मम्मी-डैडी भी बहुत दुखी थे.. खैर रात हो चुकी थी और वे दोनों सोने चले गये थे.. उनके जाने से पहले मैंने उनसे पूछा कि इस गोल्ड फिश की लाश का क्या किया जाये? डैडी ने कहा, "कुछ नहीं डेक्सटर, बस इसे फ्लश कर दो..

मैंने मछली को उठाया और रेस्टरूम की ओर बढ़ चला.. मैंने देखा डीडी भी मेरे पीछे-पीछे चली आ रही थी.. उसे भी मछली के मरने का बहुत दुख हुआ था..

क्रमशः...

Friday, August 28, 2009

अनुराग कश्यप और छः फिल्मी सितारे डोगा के रोल के लिये रेस में

क्या आपको पता है, डोगा के ऊपर बनने वाले सिनेमा जिसे अनुराग कश्यप डायरेक्ट कर रहे हैं, अनुराग कश्यप जी ने शुरूवात में छः फिल्मी सितारों में से किसी एक का चुनाव करने के बारे में सोचा.. मगर अंत में बात बनी कुनाल कपूर को लेकर.. कुनाल कपूर को लेकर अनुराग कश्यप इसलिये सहमत हुये क्योंकि वह अभी तक किसी भी ऐसे रोल में बंधे नहीं है जिसकी छवी डोगा के ऊपर हावी हो सके..

आज ही किसी साईट पर मैं पढ़ रहा था कि कुनाल इसके लिये आजकल अपना शरीर बनाने को लेकर खूब मेहनत भी किये जा रहे हैं.. दुर्भाग्य वश वह लिंक मुझसे खो गया और मैं उस खबर की लिंक यहां नहीं लगा पा रहा हूं..

अभी फिलहाल आप यह पांच उन फिल्मी सितारों का डोगा के ऊपर बना कार्टून देखें जिसे मैंने इस लिंक से लिया है.. आप इस लिंक पर जाकर इस बारे में कुछ मशालेदार खबर भी पढ़ सकते हैं..



शाहरूक खान डोगा के रूप में



सनी देओल डोगा के रूप में.. मुझे सबसे ज्यादा हंसी इस कार्टून को लेकर आयी, क्योंकि सनी देओल के पापा यानी धरम पा जी का ही एक डायलॉग बहुत प्रसिद्ध है, "कुत्ते-कमीने, मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगा.." और डोगा को कुत्तों से बहुत प्यार जो है.. ;)



आमिर खान डोगा के रूप में.. वैसे आमिर खान का गजनी रूप भी बढ़िया लगा.. :D



अक्षय कुमार डोगा के रूप में.. ये बेचारे तो डोगा बन कर भी थम्स अप के पीछे ही भागते रहेंगे.. :D



अभिषेक बच्चन डोगा के रूप में.. और अभिषेक बच्चन का द्रोणावतार के बारे में आप क्या कहते हैं? :)


आज बहुत दिनों बाद इस ब्लौग पर लिखने बैठा हूं.. इस चिट्ठे को मैं लगभग भूल सा ही गया था, मगर पिछले दो-तीन दिनों से देखा कि इसके ट्रैफिक में अचानक से कुछ तेजी आई.. स्टैट काऊंटर पर जाकर पता किया तो पता चला यहां ढ़ेर सारे नये लोग राज-कामिक्स के साईट से आ रहे हैं.. उस लिंक पर जाने पर पता चला कि वहां मेरे इस ब्लौग के चर्चे हो रहे हैं जिसे मैंने लगभग चार महिनों से अपडेट भी नहीं किया है.. मगर अब से मेरी कोशिश यही रहेगी कि मैं लगातार इस पर भी अपने एक अन्य ब्लौग कि तरह ही बना रहूं..

अगर आप मेरे दूसरे बलौग को पढ़ना चाहते हैं तो आप इस लिंक पर जा सकते हैं..