उसके घर की गोल्ड फिश कैसे पानी में ही तड़प-तड़प कर मर गई थी.. उसे जहां तक पता था उसके मुताबिक मछली को पानी से बाहर निकालने पर ही मरती है, क्योंकि वह पानी के बाहर सांस नहीं ले पाती है.. मगर यह तो पानी के अंदर ही मर गई.. ऐसा कैसे संभव है? जरूर इसके पीछे भी विज्ञान का ही कोई सिद्धांत काम कर रहा होगा जिसके बारे में किसी को पता नहीं.. और अगर वह इसकी खोज करता है तो संभव है कि उसे नोबल पुरस्कार भी मिल ही जाये..
आईये, आगे जानने से पहले मैं अपना और अपनी बुद्धु बहन डीडी का परिचय दे देता हूं..
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मैं डेक्सटर छः साल का एक बच्चा हूं जिसका दिमाग किसी वैज्ञानिक से कम नहीं है और मैं हमेशा अपनी सीक्रेट लैबोरेटरी में ही काम करता रहता हूं.. मैंने यह लैब अपने घर के नीचे बना रखा है जिसके बारे में मेरे घर में मेरे अलावा सिर्फ डीडी को ही पता है.. और वह बुद्धु डीडी हमेशा यहां आकर मेरा समय बरबाद करती रहती है..
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डीडी!! हां, यही नाम है उस बुद्धु लड़की का जो मेरी बहन भी है वो आठ साल की है.. उसे कुछ नहीं आता है.. वो हमेशा मेरे लैब में घुसकर मुझे परेशान करती रहती है.. जितना स्कूल में पढ़ाई होती है बस उतना ही पढ़ती है, और बाकी समय वह बस खेल-कूद, नाच-गाने में ही लगी रहती है..
हां तो मैं फिर आता हूं अपने उस गोल्ड फिश की कहानी पर.. यूं तो मैं हमेशा साईंस के बारे में ही सोचता हूं और कहानियों की बाते नहीं करता हूं, मगर क्या करूं वह रात थी ही अजीब.. कल रात जब हमारे गोल्ड फिश की मौत हुई तो मैं और डीडी बहुत दुखी हुये.. हमारे मम्मी-डैडी भी बहुत दुखी थे.. खैर रात हो चुकी थी और वे दोनों सोने चले गये थे.. उनके जाने से पहले मैंने उनसे पूछा कि इस गोल्ड फिश की लाश का क्या किया जाये? डैडी ने कहा, "कुछ नहीं डेक्सटर, बस इसे फ्लश कर दो..
मैंने मछली को उठाया और रेस्टरूम की ओर बढ़ चला.. मैंने देखा डीडी भी मेरे पीछे-पीछे चली आ रही थी.. उसे भी मछली के मरने का बहुत दुख हुआ था..
क्रमशः...
पढ़ते हैं यह कहानी भी।
ReplyDeleteहूं! लिखते रहो..............
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