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Tuesday, November 15, 2016

कलाकार श्री सुरेश डिगवाल

मेरे एक कलाकार-ग्राफ़िक डिज़ाइनर मित्र ने मुझसे शिकायत भरे लहज़े में कहा कि मैं अक्सर भारतीय कॉमिक्स कलाकारों, लेखकों के बारे में कम्युनिटीज़, ब्लॉग्स पर चर्चा करता रहता हूँ पर मैंने कभी सुरेश डिगवाल जी का नाम नहीं लिया। मैंने ही क्या अन्य कहीं भी उसने उनका नाम ना के बरारबर ही देखा होगा। वैसे बात में दम था, अगर एक-दो सीजन का मौसमी कलाकार-लेखक होता तो और बात थी पर सुरेश जी ने डोगा, परमाणु, एंथोनी जैसे किरदारों पर काफी समय तक काम किया। उसके बाद भी कैंपफायर ग्राफ़िक नोवेल्स, पेंगुइन रैंडम हाउस, अन्य कॉमिक्स, बच्चो की किताबों और विडियो गेम्स में उनका काम आता रहा। अब सुरेश जी गुड़गांव में जेनपैक्ट कंपनी में एक कॉर्पोरेट लाइफ जी रहे हैं।
जहाँ तक उनपर होने वाली इतनी कम चर्चा की बात है उसपर मेरी एक अलग थ्योरी है। जिसको तुलनात्मक स्मृति थ्योरी कहा जा सकता है। किसी एक समय में एक क्षेत्र में जनता ज़्यादा से ज़्यादा 4 नाम ही याद रख पाती है (बल्कि कई लोगो को सिर्फ इक्का-दुक्का नाम याद रहते हैं)। उन नामो के अलावा उस क्षेत्र में सक्रीय सभी लोग या तो लम्बे समय तक सक्रीय रहें या फिर उन नामो को नीचे धकेल कर उनकी जगह लें। भाग्य और अन्य कारको से अक्सर कई प्रतिभावान लोग उस स्थान पर नहीं आ पाते जिसके वह हक़दार होते हैं, ओलंपिक्स की तरह दशमलव अंको से छठवे, सातवे स्थान या और नीचे स्थान पर रह जाते है जहाँ आम जनता स्मृति पहुँच नहीं पाती। सुरेश जी का दुर्भाग्य रहा कि एक समय वह इतना सक्रीय रहते हुए भी प्रशंसको के मन में बड़ा प्रभाव नहीं छोड़ पाए। 
उनकी इंकिंग, कलरिंग जोड़ियों पर टिप्पणी नहीं करूँगा पर मुझे उनकी शैली पसंद थी। मुझे लगता है अगर वह कुछ और प्रयोग करते, कुछ भाग्य का साथ मिल जाता तो आज मुझे अलग से उनका नाम याद ना करवाना पड़ता। एक वजह यह है कि बहुत से कलाकारों को अपना प्रोमोशन करना अच्छा नहीं लगता, इन्टरनेट-सोशल मीडिया की दुनिया से दूरी बनाकर वो अपनी कला में तल्लीन रहते हैं। खैर, कॉमिक्स के बाहर एक बहुत बड़ी दुनिया है जहाँ सुरेश डिगवाल जी कला निर्देशन, एनिमेशन, चित्रांकन, विडियो गेम्स, ग्राफ़िक डिजाईन और शिक्षा में अपना योगदान दे रहे हैं। आशा है आगे हम सबको उनका काम निरंतर देखने को मिलता रहेगा।
अधिक जानकारी के लिए इन्टरनेट पर सुरेश जी की ये मुख्य प्रोफाइल्स और पोर्टफोलियो हैं -

- ज़हन

Wednesday, January 27, 2016

"बड़े हो जाओ!" - मोहित शर्मा (ज़हन)

अपनी बच्ची को सनस्क्रीन लोशन लगा कर और उसके हाथ पांव ढक कर भी उसे संतुष्टि नहीं मिली। कहीं कुछ कमी थी...अरे हाँ! हैट तो भूल ही गया। अभी बीमार पड़ जाती बेचारी...गर्दन काली हो जाती सो अलग। उस आदमी को भरी धूप, गलन-कोहरे वाली कड़ी सर्दी या बरसात में भीगना कैसा होता है अच्छी तरह से पता था। ऐसा नहीं था कि वो किसी गरीब या अभागे परिवार में जन्मा था। पर अपने दोस्तों, खेल या कॉमिक्स के चक्कर में वो ऐसे मौसमो में बाहर निकल आता जिनमें वो किसी और बात पर बाहर निकलने की सोचता भी नहीं। ये उसका पागलपन ही था कि जब समाचारपत्र उसके शहर में माइनस डिग्री सेल्सियस पर जमे, कई दशको के न्यूनतम तापमान पर हेडलाइन्स छाप रहे थे, तब बुक स्टाल पर उन्हें अनदेखा करते हुए वह ठिठुरता हुआ उन अखबारों के बीच दबी कॉमिक्स छांट रहा था। या जो भूले बिसरे ही अपनी कॉपी-किताबों पर मुश्किल से कवर चढ़ाता था, वह कुछ ख़ास कॉमिक्स पर ऐसी सावधानी से कवर चढ़ाता था कि दूर से ऐसा लगे की शहर का कोई नामी कलाकार नक्काशी कर रहा हो। या वो जिसे स्कूल में कॉमिक्स का तस्कर, माफिया तक कहा जाता हो। जाने कितने किस्से थे उसके जूनून के, जो औरों को बाहर से देखने पर पागलपन लगता था। "बच्चो वाली चीज़ छोडो, बड़े हो जाओ!" यह वाक्य उसने 11 साल की उम्र में पहली बार सुना। उसने तब खुद को तसल्ली दी की अभी तो वो बच्चा ही है। फिर उसे यह बात अलग-अलग लोगो से सुनने और इसे नज़रअंदाज़ करने की आदत हो गयी। 

समय के साथ जीवन और उसकी प्राथमिकताएं बदली। यकायक व्यवहारिक, वास्तविक दुनिया ने चित्रकथा की स्वप्निल दुनिया को ऐसा धोबी पाट दिया कि कभी जो घर का सबसे ख़ास कोना था वह सबसे उपेक्षित बन गया। उसकी शादी हुयी! पत्नी द्वारा उस कोने की बात करने पर वह कोई ना कोई बहाना बनाकर टाल देता, जैसे वो अबतक अपने घरवालों को टालता आया था। जिसपर अब भी वह ख़ुशी से "बड़े हो जाओ" का ताना सुन लेता था। उसके दिमाग का एक बड़ा हिस्सा व्यवहारिक होकर स्वयं उसे बड़े हो जाने को कह रहा था। जबकि कहीं उसके मन का एक छोटा सा हिस्सा अक्सर नींद से पहले, सपनो में या यूँ ही बचपन, किशोरावस्था में उसके संघर्ष, जूनून की कोई स्मृति ले आता।  वो मन जिसे उसने वर्षो तक इस भुलावे में रखा था कि यही सब कुछ है बाकी दुनिया बाद में। अब मन का छोटा ही सही पर वह हिस्सा ऐसे कैसे हार मान लेता। 


फिर उसके घर एक नन्ही परी, उसकी लड़की का आगमन हुआ। जिसने बिना शर्त पूरे मन (उस छोटे हिस्से को भी) हाईजैक कर लिया। आखिरकार, उसने अपनी हज़ारों कॉमिक्स निकाली। हर कवर को देख कर उसकी कहानी, वर्ष, रचनाकारों के साथ-साथ उस प्रति को पाने का संघर्ष उसके मन में ताज़ा हो गया। जैसे एक बार कमेंटरी में मोहम्मद अज़हरुद्दीन को डिहाइड्रेशन होने की बात बताये जाने पर उसने ही अपने मित्रों को इस बात का मतलब समझाया था.... क्योंकि एक बार डॉक्टर ने यह उसे तब बताया था जब उसके घरवाले उसे कमज़ोरी, चक्कर आने पर पड़ोस में ले गए थे। उसे चक्कर जून की गर्मी में बाहर किस वजह से रहने से आये होंगे यह बताने की ज़रुरत नहीं। 2 किशोर उसके घर आये जिन्हे उसने अपनी कॉमिक्स के गट्ठर सौंपे। बड़े जोश में उसने अपने किस्से, बातें सुनाने शुरू किये पर उनसे बात करने के थोड़ी ही देर में उसे अंदाज़ा हो गया कि समय कितना बदल गया है और दोनों पार्टीज एक दूसरे की बातों से जुड़ नहीं पा रहें है। अंततः उन किशोरों ने विदा ली और दरवाज़े पर उन्हें छोड़ते हुए, मन का वह छोटा हिस्सा जो अबतक रूठा बैठा था, दबी सी आवाज़ में बोला "ख़्याल रखना इनका।"

कुछ महीनों बाद दिनचर्या बदली, काम और ज़िम्मेदारियाँ बढ़ीं। एक दिन पत्नी ने टोका - "इतने चुप-चुप क्यों रहते हों? क्या सोचते रहते हो? इंसान हो मशीन मत बनो! क्या हमेशा से ही ऐसे थे?" 

अच्छा लगा कि फॉर ए चेंज`व्यवहारिक, वास्तविक दुनिया वाले दिमाग को खरी-खोटी सुनने को मिली। पर फ़िर से जीवन की किसी उधेड़बुन को सोचते हुए उसने कहा - " ...बड़ा हो गया हूँ! यही तो सब चाहते थे।" :) 

समाप्त!

#mohitness #mohit_trendster #trendybaba #freelance_talents

Notes: काल्पनिक कहानी, यहाँ बाकी दुनिया को बेकार नहीं कह रहा, बस एक दुनिया छूट जाने का दर्द लिख रहा हूँ जो अक्सर देखता हूँ मित्रों में। Originally posted on Mohitness Blog - http://mohitness.blogspot.in/ Artworks by Mr. Saket Kumar (Ghulam-e-Hind Teaser)

Sunday, November 22, 2015

नागराज जन्मोत्सव 2015

Pic Credit - Mr. Vishi Sinha

नागराज जन्मोत्सव 2015 का हिस्सा बना, बुराड़ी, दिल्ली में राज कॉमिक्स के बंद हो चुके एनिमेशन स्टूडियो Rtoonz जो अब पाम गार्डन्स में परिवर्तित हो गया है, वहां के प्रांगण में 15 नवंबर 2015 को राज कॉमिक्स द्वारा भव्य आयोजन किया गया। सजावट, तैयारियां बहुत अच्छी थी पर शायद दिवाली के बाद होने के कारण आने वाले फैंस और कलाकारों, लेखकों की संख्या अपेक्षा से काफी कम रही। पर इसका फायदा यह रहा कि कई कलाकारों, प्रशंषको से तस्सल्ली से बात करने का अवसर मिला जो वैसे अधिक भीड़ में नहीं हो पाता। हनीफ अज़हर जी, हरविंदर मांकड़ जी, फैसल मोहम्मद भाई, अंसार अख्तर जी इनमे प्रमुख थे। बाकी राज कॉमिक्स से जुड़े क्रिएटिव्स संजय जी, मनीष जी, अनुपम जी, हेमंत जी, आदिल जी, ललित शर्मा जी, ललित सिंह जी, मंदार भाई, शादाब भाई, क्षितीश जी आदि सम्मानित सदस्य थे ही।

Vinod Kumar ji
मुझे इवेंट में आने में थोड़ा झिझक थी क्योकि बीच में काफी वज़न बढ़ गया है मेरी लापरवाही से और जो पहली छवि थी मेरी उसको बदलना नहीं चाहता था पर फिर कई मित्रों को आने की बात कह चुका था खासकर देवेन जी को जो ख़ास मुंबई से आ रहे थे यहाँ तो मैंने सोचा कि कहीं जन्मोत्सव के बाद ये सब मुझे पीटने ना आ जाएँ इसलिए मैं भी आ गया। अमित अल्बर्ट और हुसैन ज़ामिन जी से नहीं मिल पाने का मलाल रहा। स्टेज पर हो रहे मनोरंजन के साथ-साथ आर सी फ़ोरम्स से लेकर इंडियन कॉमिक्स गैलेक्सी के नए-पुराने मित्रों से बातों का दौर चलता रहा। फिर रात को रूककर विशाल, देवेन भाई, मैड्डी, नरेंद्र भाई, शादाब भाई, जॉन रॉक और इंडियन कॉमिक्स गैलेक्सी के सदस्यों से गप्पे चले। अगली सुबह पहले से काफी बदल चुके राज कॉमिक्स परिसर का भ्रमण किया, पहली बार आये मित्रों ने ऑफिस का अवलोकन किया, बस फिर बुरारी पार कर अगली बार मिलने की बात कर सबसे विदा ली। ओवरआल एक और यादगार इवेंट! 
smile emoticon
अब 29 नवम्बर को दिल्ली में ही अगले इवेंट कॉमिक फैन फेस्ट का इंतज़ार है।
- मोहित शर्मा (ज़हन)

Wednesday, May 6, 2015

सदाबहार परशुराम शर्मा जी से मेरी मुलाक़ात...


जीवन में कई बार छोटी-छोटी बातें आपको चौकाने का दम रखती है, बशर्ते आपकी आदत या किस्मत ऐसी बातों को देख सकने कि हो। भाग्य से कुछ सामान खरीदने बाजार गया और बाइक स्टैंड पर लगाते समय क्रिएटिव कोर्सेज का एक पोस्टर दिखा जिसपर एक नाम को पढ़कर लगा कि यह तो कहीं अच्छी तरह सुना लग रहा है पर उस समय भाग-दौड़ में याद नहीं आ रहा था कि कहाँ। पोस्टर पर एक संजीदा बुज़ुर्ग गिटार पकडे  खड़े थे। खैर, सामान खरीदते समय याद आया की पोस्टर पर लिखा नाम परशुराम शर्मा तो बीते ज़माने के प्रख्यात उपन्यास एवम कॉमिक्स लेखक का भी था। साथ में यह भी याद था कि परशुराम जी का पता मेरठ का बताया जाता था। इतना काफी था इस निष्कर्ष पर आने के लिए कि सामने लेखक-विचारक परशुराम शर्मा जी का ही ऑफिस है। पहले तो मैंने भगवान जी को धन्यवाद दिया कि उन्होंने बाइक जिस एंगल पर स्टैंड करवाई वहां से मुंडी टिल्ट करके थैला उठाने में मुझे सर का पोस्टर दिख गया। थोड़ी झिझक थी पर मैंने सोचा कि अब इतनी पास खड़ा हूँ तो बिना मिले तो नहीं जाऊँगा। उनसे बड़ी सुखद और यादगार भेंट हुई और काफी देर तक बातों का सिलसिला चलता रहा, इस बीच उन्होंने अपने सुन्दर 2 गीत मुझे सुनाये और बातों-बातों में मेरे कुछ आइडियाज पर चर्चा की।


270 से अधिक नोवेल्स और कई कॉमिक्स प्रकाशनों के लिए सौइयों कॉमिक्स लिख चुके 68 वर्षीय परशुराम जी अब मेरठ में अपना क्रिएटिव इंस्टिट्यूट चलाने के साथ-साथ स्थानीय म्यूजिक एलबम्स,  वीडिओज़ बनाते है। बहुमुखी प्रतिभा के धनि परशु जी लेखन के अलावा गायन, निर्देशन, अभिनय में भी हाथ आज़मा चुके है और अब तक उनकी लगन किसी किशोर जैसी है। यह उनके साथ हुयी भेंट, कुछ बातें उनके आग्रह पर हटा ली गयी है। 


*) - दशको तक इतना कुछ लिखने के बाद आपके बारे में पाठक बहुत कम जानते है, ऐसा क्यों?
परशुराम शर्मा - बस मुफलिसी का जीवन पसंद है जहाँ मैं अपनी कलाओं में लीन रहूँ। वैसे उस वक़्त अचानक सब छोड़ने का प्लान नहीं था वो हिंदी नोवेल्स, कॉमिक्स का बुरा दौर था इसलिए अपना ध्यान दूसरी बातों पर केंद्रित किया। 

*) - अब आप क्या कर रहे है?
परशुराम शर्मा - अब भी कला में लीन हूँ। बच्चो को संगीत और वाद्य सिखाता हूँ, डिवोशनल, रीजनल एलबम्स-वीडिओज़ बनाता हूँ। कभी कबार स्थानीय फिल्मो में अभिनय करता हूँ। 68 साल का हूँ पर इन कलाओं  सानिध्य में हमेशा जवान  रहूँगा। 

*) - क्या नोवेल्स-कॉमिक्स के ऑफर अब तक आते है आपके पास?
परशुराम शर्मा - कुछ प्रकाशक अब भी मुझसे हिंदी नावेल सीरीज लिखने की बात करते है पर अब इस फील्ड में पैसा बहुत कम हो गया है। युवाकाल जैसी तेज़ी नहीं जो वॉल्यूम बनाकर  मेहनताने भरपाई कर सकूँ। इतना दिमाग लगाने के बाद अगर  पारिश्रमिक ना मिले तो निराशा होती है। अखबार वाले मुझे लेखो के 200-300 रुपये  चैक देते थे और पूछने पर बताते कि लोग तो फ्री में लिखने को तैयार है, हम तो फिर भी आपको कुछ दे रहे है। 

*) - अब किन पुराने साथियों के संपर्क में है?
परशुराम शर्मा - कभी कबार कुछ मित्रों से बातचीत हो जाती है। यहाँ स्थानीय कार्यक्रमों में वेदप्रकाश शर्मा जी, अनिल मोहन आदि उपन्यासकारों से भी मिलना हो जाता है। 

Parshuram ji in T Series Video

*) - क्या अंतर है पहले और अब कि ज़िन्दगी में?
परशुराम शर्मा - पहले जीवन की गति इतनी तीव्र थी कि ठहर कर कुछ सोचना या अवलोकन कर पाना कठिन था। आजकल कुछ आराम है तो वह भागदौड़ में रचनात्मकता किसी सुखद फिल्म सी आँखों के सामने चलती है। 

*) - आपके लिए कुछ सबसे यादगार पल बांटे। 
परशुराम शर्मा - ऐसे बहुत से लम्हे आये जब मुझे विश्वास ही नहीं हुआ अपने भाग्य पर। जो अब याद है उनमे जैकी श्रॉफ का मेरे साथ फोटो खिंचवाने के लिए लाइन में लगना , अमिताभ बच्चन जी का मुझसे मिलने पर यह बताना कि मेरे लेटेस्ट उपन्यास की 5 कॉपीज़ उनके पास रखी है, प्रकाशकों का मेरी कई कृतियों के लिए लड़ना आदि। 

*) - इंटरनेट के आने से क्या बदलाव महसूस किये आपने?
परशुराम शर्मा - ज़्यादा तो मैंने सीखा नहीं पर कुछ वर्ष पहले जिज्ञासावश अपना नाम सर्च किया तो बहुत कम काम था मेरा वहां। मैं कुछ प्रशंषको का धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने जाने कहाँ-कहाँ से खोजकर मेरी कई कॉमिक्स और उपन्यासों की लिस्टस, चित्र आदि इंटरनेट पर अपलोड किये। सच कहूँ तो अब उनमे से काफी काम तो मैं भूल चुका हूँ  कि वो मैंने ही लिखे थे।  
Still from movie "Desi Don"

*) - आपके ऑफिस के बाहर कुछ पोस्टर्स और भी लगे है उनके बारे में बताएं? 
परशुराम शर्मा - एक पोस्टर कुछ समय पहले आई फिल्म "देसी डॉन" का है, कुछ एलबम्स साईं बाबा पर रिलीज़ हुयी पिछले 3 वर्षों में। 

*) - लेखन, संगीत, अभिनय, निर्देशन आदि विभिन्न कलाओं में ऐसी निरंतरता, दक्षता कैसे लाते है आप?
परशुराम शर्मा - इसका उत्त्तर मेरे पास भी नहीं है, शायद इन कलाओं के प्रति मेरा दीवानापन मुझे रचनात्मक कार्य करते रहने को प्रेरित करता है। 

*) - भविष्य कि योजनाओं और प्रोजेक्ट्स से अवगत करायें। 
परशुराम शर्मा - कुछ होनहार बच्चो को संगीत में लगातार शिक्षा दे रहा हूँ, उनमे एक ख़ास हीरा तराशा है जिसका नाम है अंश। उसके साथ साईं बाबा पर डिवोशनल एल्बम अक्टूबर 2014 में लांच की, अब वह कुछ टैलेंट शोज़ के ऑडिशंस दे रहा है। बहुत जल्द आप उसे टीवी पर देखेंगे। नयी पीढ़ी के प्रति  दायित्व निभाने के साथ - साथ जीवन में सोचे ख़ास, चुनिंदा आइडियाज को किस तरह अलग-अलग माध्यमो में  मूर्त रूप दूँ यह सोच रहा हूँ। 

Master Ansh

*) - कॉमिक्स पाठको को क्या संदेश देना चाहेंगे? क्या हम आपका नाम दोबारा कॉमिक्स में देखने की उम्मीद कर सकते है। 
परशुराम शर्मा - मैं उनका आभार प्रकट करूँगा जिन्होंने इस मरती हुयी इंडस्ट्री में जान फूँकी। काल बदलते है, इसलिए चाहे बदले प्रारूपों में ही सही कॉमिक्स का सुनहरा समय फिर से आयेगा। जी हाँ! आगे दोबारा मैं कॉमिक्स लिख सकता हूँ अगर परिस्थिति सही बनी तो। 

इस तरह उनका धन्यवाद करता हुआ, आशीर्वाद लेकर फूल के कुप्पा हुआ मैं उनके ऑफिस से बाहर निकला। जल्द ही उनकी अनुमति लेकर जो गीत उन्होंने मुझे सुनाये थे वो अपलोड करूँगा। 

- मोहित शर्मा (ज़हन) 
#mohitness #mohit_trendster #freelance_talents

Wednesday, March 25, 2015

कार्टूनिस्ट नीरद जी


"बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि कार्टूनिस्ट नीरद का पूरा नाम नीलकमल वर्मा 'नीरद' है। भारतीय कॉमिक जगत के सफल और लोकप्रिय कार्टूनिस्ट नीरद जी का जन्म १५ अगस्त १९६७ को हुआ। १०-११ साल की उम्र से ही इन्होंने कार्टूनिंग की शुरुआत कर दी थी और तब से अब तक देश भर की शीर्ष पत्र-पत्रिकाओं के लिए कॉमिक स्ट्रिप और कार्टून्स तो बनाये ही, साथ ही डायमंड कॉमिक्स के तमाम लोकप्रिय चरित्रों (जैसे ताऊ जी, चाचा-भतीजा, लम्बू मोटू, राजन इक़बाल आदि) के ढेरों कॉमिक बुक्स के लिए रेखांकन भी किया।" 

अब नीरद जी के कार्टून्स लोकप्रिय पत्रिका नन्हे सम्राट के साथ-साथ विभिन्न स्थानीय समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में प्रकाशित होते है। 

Friday, March 6, 2015

स्पेशल ऑडियो मैगज़ीन - इंडियन कॉमिक्स फैंडम (Vol. 8)


कॉमिक्स से जुड़े विभिन्न विषयों, यादों पर मेरे द्वारा रिकॉर्ड की गयी 8 हिंदी पॉडकास्ट्स, रिकॉर्डिंग्स इस ऑडियो मैगज़ीन में है। आशा है आपको यह प्रयास भी पसंद आयेगा। मैगज़ीन कवर पर है प्रसिद्द कॉमिक कलेक्टर एवम अनुसंधानकर्ता श्री अरुण प्रसाद जी। - मोहित शर्मा (ज़हन) #trendster 


Wednesday, August 6, 2014

कार्टूनिस्ट प्राण जी को पीढ़ियों के बचपन की काव्य श्रद्धांजलि - मोहित शर्मा (ज़हन)



जिस राह कोई चला नहीं,
उस पर कदम बढ़ाये,
आम लोगो के बीच से ख़ास किरदार उठाये,
फैंटम-मैंड्रेक और फैंटसी की लथ छुड़वाई,
कितनी ही किवदंती याद करवाई,
जाने कैसे सहजता से कथाओं में अपना देसीपन भर लाये। 

दशको तक चाचा क्या पिंकी ऊँगली पकड़ चलाये,
भाषा की बंदिश को तोडा,
तरह-तरह बंदो को जोड़ा,
झूठी मिथको को झकझोरा,
बूढे, बच्चो और गृहणियों को पकड़ सुपरहीरो से करतब करवायें। 

आपका उदाहरण दें विस्मित किशोर आज तक कला में भविष्य बनायें,
मनोरंजन से जनचेतना की पूरी हुयी उनकी आशा,
ढाई साल के बच्चे से लेकर अर्द्धचेतन अधेड़ तक समझे उनकी भाषा। 
अरसो यूँ गुदगुदा कर आँखें नम करवायें,
लाखो चित्र, करोड़ों प्रशंषक,
आसमान को देखें एकटक,
चाचा जी के पापा को वापस बुलायें,
ताकि फिर से वो अपना एक स्वप्निल जगत बनाये,
और फिर से कितनी पीढ़ियों के बचपन में प्राण फूँक जायें। 

आज हमारे बीच प्रख्यात कलाकार, कथाकार, कार्टूनिस्ट और जनसेवक श्री प्राण कुमार शर्मा जी नहीं रहे। अनेको देसी-विदेशी सम्मानों (जिनमे प्रमुख है इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्टस द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट (2001), कॉमिक कॉन इंडिया का लाइफ टाइम अचीवमेंट, लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स के पीपल ऑफ़ दी ईयर सूची में सम्मिलित (1995), उनकी कॉमिक 'हम एक है' (रमन) का तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा राष्ट्रीय विमोचन (1983), अमेरिका के इंटरनेशनल म्यूज़ियम ऑफ़ कार्टून आर्ट में उनकी कला का स्थाई प्रदर्शन) के अलावा उनकी सबसे बढ़ी उपलब्धि है 1960 के दशक से लेकर अब तक कई पीढ़ियों पर एक सकारात्मक असर डालना और मुझे विश्वास है आगे भी उनका अमर काम ऐसा करता रहेगा। रोज़मर्रा के जीवन से ऐसे किरदार उठा लाये जिन्होंने आयातित विदेशी मनोरंजन के बाज़ार मे एक बड़ा हिस्सा ले लिया। उनकी आत्मा को शांति मिले और उनके काम से यूँ ही लोग प्रेरित होते रहे। प्राण जी को मेरा शत-शत नमन!

- मोहित शर्मा (ज़हन)

Tuesday, December 24, 2013

वो ज़हन मे जिंदगी जीते रहेंगे! - मोहित शर्मा (ज़हन)

नमस्ते!

वैसे तो कुछ साल पहले कि कविता है पर इसमें हास्य भाग ख़ास Comics Fest India 2013 के लिए जोड़ा था। अभिनेता शिवा जी आर्यन ने बस एक-दो बार में इसको याद कर के स्टेज पर अपने एक्ट से पहले बोला।  देखें आप इनमे से कितने अमर किरदारो को पहचान पातें है।

साथ ही जोड़ रहा हूँ अंसार अख्तर जी और हवलदार बहादुर को ट्रिब्यूट देती यह आर्ट जिसको मैंने अथर्व ठाकुर और युधवीर सिंह के साथ तैयार किया है। 



वो ज़हन मे जिंदगी जीते रहेंगे! 

इंसानियत के जज्बे को जागते रहेंगे।
सुनी है रात के अन्धकार मे कुत्तो की गुर्राहट ?
और कब्र पर प्रिंस की कर्कशाहट ?
या दिल्ली की छत के नीचे अपराध की दस्तक ?
महसूस किये है जासूस सर्पो के मानसिक संकेत ?
या सूचना देता कमांडो फोर्स का कैडेट ?
झेला है जंगल मे किसी निर्बल पर अत्याचार ?
या सुनी है किसी अबला की करुण पुकार ?
ली है राजनगर पुलिस हेडक्वाटर से प्रेषित कोई ज़िम्मेदारी ?
या मिला है रोशन सुरक्षा चक्र के पीछे इंतज़ार करता कोई वर्दीधारी?
जब तक अपराध होते रहेंगे,
पन्नो मे कैद ही सही,
ये सभी किरदार इंसानों मे जिंदा होकर इंसानियत के जज्बे को जागते रहेंगे। 

मिली है कभी किसी से अनचाही पुच्ची?
या फटते देखा है किसी के गुस्से से ज्वालामुखी? 
मनाया है क्या किटी पार्टी को मेला?
या पाया है किसी ने दर्जन बच्चो वाला चेला?
खायी है क्या किन्ही चार फ़ुटियों से लातें?
या बड़े ध्यान से सुनी किसी कि छोटी-छोटी मगर मोटी बातें? 
बोले कहीं एक कुपोषित जासूस ने धावे,
या किसी हवलदार के हवालात मे सड़ाने के दावे? 
खुद को जीनियस क्यों समझता एक बुद्धू बच्चा सिंगल पसली?
या साथ रहा कभी आजकल के नेताओ का पूर्वज असली?
और एक बिना बात धर्मार्थ करने वाले क्यूट अंकल जी.… 
जब तक लोग जीवन से बोर होने लगेंगे .... 
पन्नो मे कैद ही सही,
ये किरदार अंतर्मन में जीवित हो हमे गुदगुदाते रहेंगे।

Monday, November 25, 2013

कॉमिक्स फेस्ट इंडिया 2013




पहले कॉमिक्स फेस्ट इंडिया का आयोजन को दिल्ली में होने जा रहा है। पिछले वर्ष तक राज कॉमिक्स में "नागराज जन्मोत्सव" नाम से प्रख्यात आयोजन को इस बार और बड़ा रूप दिया गया है जिसमे देश भर से हिंदी-अंग्रेजी के कई विख्यात कॉमिक्स एवम बाल साहित्य के प्रकाशक हिस्सा ले रहे है। साथ ही नामी कलाकार और लेखक इवेंट में शिरकत करेंगे। 30 नवंबर और 1 दिसंबर चलने वाले इवेंट के मुख्य आकर्षण है। 




*) - राज कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स, कैंपफायर-कल्याणी प्रकाशन, फेनिल कॉमिक्स, होली काऊ एंटरटेनमेंट,  पुस्तक महल, लोट-पोट, नेशनल बुक ट्रस्ट आदि बहुत से प्रकाशनों का एक जगह जमावड़ा।

*) - कॉमिक्स, एनिमेशन से जुडी बड़ी हस्तियों उपस्थिति और वर्कशॉपस, सेमिनार्स। हर दिल अज़ीज़ अभिनेता श्री मुकेश खन्ना जी कि इवेंट मे शिरकत। 

*) - मशहूर जादूगर खरबंदा बंधुओ का मैजिक-मिरैकल शो। 

*) - प्रकाशको द्वारा आयोजन के लिए तैयार ख़ास कॉमिक्स, किताबें, कलेक्टर्स एडिशन वस्तुएँ।

*) - कलाकारों को सम्मान देने के लिए विभिन्न कैटगिरीज़ जैसे चित्रांकन, पटकथा, वेबकॉमिक, इंकिंग, रंगसज्जा आदि में कल्पना लोक अवार्ड्स। 

*) - अभिनेता श्री शिवा जी आर्यन के प्ले, स्किट्स एवम स्टेज परफॉरमेंस। 

*) - शाम को श्री रजत मिश्रा और बैंड का एक रॉक शो कॉन्सर्ट। 

*) - पश्चिम बंगाल के मूर्तिकार श्री मिहिर वैद द्वारा रचित आदमकद मूर्तियाँ ।  

*) - मनोरंजन के लिए करैक्टर डॉल्स, विशालकाय डोगा झूला आदि।  

*) - कॉमिक क्विज, रचनात्मक लेखन, कॉसप्ले, मिमीक्री, ऑनलाइन  आदि बहुत सी प्रतियोगिताएँ। 

*) - सुपर कमांडो ध्रुव पर आधारित गेम का प्रीव्यू।

*) - साथ ही कॉमिक्स, एनिमेशन से जुड़े बहुत से आयोजन।

तो दिल्ली हाट में इस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बनकर भारत में दोबारा जाग रहे कॉमिक्स कल्चर को बढ़ावा दें, और उन सैंकडो मेहनती-प्रतिभावान कलाकारो, प्रकाशको को इन दो दिन बस अपनी उपस्थिति से प्रोत्साहित करें।  

सेलिब्रेटिंग कॉमिक्स!








*एंट्री का कोई चार्ज नहीं है और वेबसाइट पर  रेजिस्ट्रशन करने पर आप पा सकते है आकर्षक गिफ्ट्स, बाहर से आने वाले फैंस के लिए रुकने कि व्यवस्था भी है। 

आपके इंतज़ार में....


*आर्यन क्रिएशनज़ के कलाकारो द्वारा कॉमिक्स फेस्ट के प्रोमोशन में बनायीं गयी स्ट्रिप, इसमें आप अप्रकाशित बाली और धुरंदर पाण्डेय के बाल रूप को देख सकते है. 

Monday, July 15, 2013

इंडियन कॉमिक्स फैंडम (Indian Comics Fandom Magazine)



इंडियन कॉमिक्स फैंडम (Indian Comics Fandom) एक पत्रिका के रूप में प्रयास है भारतीय कॉमिक परिदृश्य को दिखाने का कॉमिक्स से जुडी ख़बरों, साक्षात्कारो,  कहानियों, चित्रों, आयोजनों, रिपोर्ट्स, लेखों, विश्लेषण आदि द्वारा। वैसे तो काफी पहले से इसको प्रकाशित करने की इच्छा थी पर बात टलती रही। 2010  मे "कॉमिक्स स्टोलोन" नाम से एक पत्रिका का एक अंश आया पर फिर वो भी ठंडे बसते मे गयी। अंततः अक्टूबर 2012 में यह पत्रिका शुरू की और अब तक इसके 6 वॉल्यूम प्रकाशित हो चुके है।

इसका आगामी  सातवा अंश स्थानीय कॉमिक्स स्पेशल है जिसमे भारत की स्थानीय भाषाओँ की कॉमिक्स या अनुवादित कॉमिक्स को कवर किया जायेगा। इस से पहले ऐसे थीम बेस्ड दो वॉल्यूम आये एक इंडिपेंडेन्ट कॉमिक्स कम्पनीज केन्द्रित और एक व्यस्क कॉमिक्स केन्द्रित। अंग्रेजी-हिंदी (और कभी-कभी स्थानीय) भाषाओँ के लेख रहते है इस पत्रिका मे।




Indian Comics Fandom FB Page जहाँ आपको इस फ्री ऑनलाइन पत्रिका से जुडी साड़ी जानकारियाँ और लिंक्स मिल जायेंगे। 

Sunday, May 5, 2013

एक नज़र, फेनिल कॉमिक्स का अब तक का सफ़र

2011 में अस्तित्व मे आयी फेनिल कॉमिक्स, भारतीय कॉमिक्स के एक बहुत बड़े प्रशंषक और सूरत, गुजरात के व्यवसायी श्री फेनिल शेरडीवाला के निरंतर प्रयासों की देन है। फेनिल कॉमिक्स 2012 कॉमिक कॉन में भाग लेकर पाठको को अपनी प्रतिबद्धता भी दिखायी। हालाँकि, अभी तक फेनिल कॉमिक्स की 4 कॉमिक्स बाज़ार मे उपलब्ध है पर जल्द ही इनका अगला सेट प्रकाशित हो रहा है साथ ही फेनिल कॉमिक्स द्वारा कुछ ऑनलाइन कॉमिक्स समय-समय पर आ रही है।

जासूस बलराम "दस का दम" से फेनिल कॉमिक्स नए लेखकों एवं कलाकारों को मौके देने का बीड़ा उठाया है जिसकी पहली कॉमिक 'नादान' (जासूस बलराम के सर्वश्रेष्ठ कारनामे - 1) अप्रैल 2013 मे प्रकाशित की गयी।  ऑनलाइन कॉमिक्स मे फ्रीलांस टेलेंटस ग्रुप के साथ मिलकर फेनिल कॉमिक्स मे अब तक 3 काव्य कॉमिक्स भी आयी है जिनमे कहानी की जगह कविताओं के साथ कला का समागम कर कॉमिक्स बनायीं गयी है। वैसे फेनिल जी ने लगभग 3 दर्जन किरदारों और सीरिज़ सोच रखी है पर निकट भविष्य में आगामी कॉमिक्स मुख्यतः फौलाद, ओम, बजरंगी, क्राइमफाइटर और स्टंटगर्ल की होंगी।

कॉमिक्स के अलावा इनका अगला पड़ाव एक ऐसी कंपनी का निर्माण है जो अलग-अलग मनोरंजन के साधनों पर आना है जिसके तहत जासूस बलराम के टी.वी. सीरीयल और फौलाद के एनीमेशन पर कार्य जारी है। वैसे अभी मुख्यधारा के स्तर के हिसाब से फेनिल कॉमिक्स को चित्रांकन और कहानियों में काफी मेहनत करनी है, यह भी सलाह दूंगा कि एक समय मे सीमित प्रबंधन कि वजह से कम काम उठाना चाहिये। पर अभी तक प्रयास संतोषजनक रहे है और आगे बेहतर परिणाम आने की उम्मीद है।



मेरी शुभकामनायें फेनिल कॉमिक्स के साथ है। 

Monday, June 18, 2012

ट्रेंडी बाबा अपडेट्स






नमस्ते!
ट्रेंडी बाबा कौन है और इनकी कहानी क्या है ये कभी आराम से बताऊंगा आज तो कुछ अपडेट्स देने आया हूँ.... 84 Tears को मिले ज़बरदस्त रेस्पोंस के बाद मैंने कुछ और इंडीपेनडेंट कॉमिक्स और कहानियाँ प्रकाशित करने की ठानी. हालाकि, मुझे भी अंदाज़ा है की अगर मैंने 84 Tears (ई-बुक) को मुफ्त न रखा होता यह तो काफी कम लोगो तक पहुँचती (पेपरबेक का तो उन चेनल्स के हिसाब से मूल्य है जो ज्यादा नहीं बिकी..ही ही..). ये बात इसलिए कह रहा हूँ क्योकि के 84 Tears साथ मैंने "देसी-पन!" (Desi-Pun!) नाम का अपनी  इंग्लिश कहानियों का संग्रह भी प्रकाशित किया था जिसको 84 Tears से कम पाठक मिले. पर मै कम से कम अभी तो पैसो के लिए नहीं लिख रहा. 

कभी-कभी सवाल आता है की आप किसी बड़े प्रकाशन से क्यों नहीं जुड़ते. मै उनसे जुड़ा हूँ और गाहे-बगाहे कोई आईडिया या छोटी स्क्रिप्ट दे देता हूँ. पर उनके कुछ नियम है और उनके दिए कामो की डेडलाइनस होती है जो मै अपने जीवन के दूसरे कामो की वजह से फोलो नहीं कर सकता. साथ ही अभी तक जो काम मै अलग से कर रहा हूँ वो पूरी तरह कामर्शियल श्रेणी मे नहीं आते...उन्हें प्रकाशक एक्सपेरिमेंटल कहते है और सही भी है इसपर दांव लगाना एक जुआ ही कहा जायेगा. 



भारतीय परिदृश्य की कुछ सीमायें है जो मैंने समझी है और आगे अपने लेखन मे इन सीमाओं को ध्यान मे रखूँगा. हाँ, कुछ 84 Tears जैसे प्रोजेक्ट्स रहेंगे जिनमे मै चाहूँगा की वो ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुँचे और भाग्य से मै अभी ऐसे 2 प्रोजेक्ट्स "माँ का मोनोलोग" और "लोंग लिव इंकिलाब" (कॉमिक) पर काम कर रहा हूँ....और भी कुछ कांसेप्टस है मन मे, आगे कोशिश करूँगा की कुछ कॉमिक प्रकाशनों से परमानेंट जुड़ सकूँ. 

मेरी कॉमिक्स, ई-बुक्स और प्रकाशित लेख, कहानियों, कविताओं के लिए मैंने फेसबुक पर  Mohitness {मोहितपन}
नाम से अपना पेज बनाया है. 


Wednesday, November 30, 2011

काव्य कॉमिक

कॉमिक्स की विशेषता यह होती है की वो कला के दो माध्यमो (चित्रकला और कहानी) का संगम होती है और पाठक को दोनों का रस देती है. एक छुटभईये लेखक और कवी होने की वजह से मेरे मन के किसी कोने मे कविता और चित्रों के मेल की बात उठी जो मैंने कहीं पढ़ा नहीं. पर अपने अनुभव से बता रहा हूँ और मुझे पक्का पता है की दुनिया इतनी विशाल है की ऐसे प्रयास भी पहले हो चुके होंगे. कभी-कभी किसी कहानी की परिकल्पना मैंने अपने मन मे सहेज रखी होती है, पता चलता है की वो किसी फिल्म, नाटक, किताब मे पहले ही दिखाई जा चुकी है.

यहाँ मैंने एक प्रतिभावान कलाकार (जिनका नाम आपको कॉमिक्स आने पर ही
पता चलेगा) के साथ मिलकर एक 'काव्य कॉमिक' बनायीं है जो सन 1984 मे घटी दो दुखद घटनाओ भोपाल गैस काण्ड और सिख विरोधी दंगो के दर्द को कल्पना मे पिरो रही है. थोडा काम अभी बचा है. इस काव्य कॉमिक से 3 दृश्य यहाँ बाँट रहा हूँ. बहुत कम होता है की मेरा मन किसी काम मे लगता है. आशीर्वाद दीजियेगा. 





Sunday, November 27, 2011

पौराणिक वर्गीकरण


(Virgin Comics/Liquid Comics: 2006-2007)

भारतीय कॉमिक्स परिदृश्य मे उभरे एक नए विषय पर लिख रहा हूँ. चीज़ों, बातों, जगहों, व्यक्तियों, आदि का वर्गीकरण करना एक बड़ी समस्या है. मैंने गिनती करना छोड़ दिया है जब मैंने किसी व्यक्ति को असल जीवन मे या इंटरनेट पर गलत वर्गीकरण करने पर समझाया हो. यह एक छदम सामाजिक बुराई है जिसपर कम ही का ध्यान जाता है, विडंबना तो यह है की वर्गीकरण हर जगह है.

खैर, मै यह सब इसलिए बोल रहा हूँ की वर्गीकरण हमे कॉमिक्स मे देखने को मिलता है. इस बार मै बाहरी दुनिया (और बाहर का अनुसरण करते कई भारतियों) की भारत के बारे मे धारणा पर आपका ध्यान लाना चाहूँगा. हाल के वर्षो मे भारतीय कलाकारों की माँग दुनिया भर के कॉमिक्स प्रकाशनों मे बढ़ी है. कारण वही पुराना है की यहाँ के फनकार बाहरी कलाकारों की तुलना मे कम दाम पर उसी गुणवक्ता का काम देते है. बेंगलुरु, मुंबई, दिल्ली, आदि बड़े शेहरो से आउटसोर्स होकर वो कला दुनिया भर मे सराही जाती है. अब विश्व के प्रमुख प्रकाशन भारत मे कई जगह उपलब्ध है, जहाँ नहीं है वहां अपडेट और ज्ञान देता इंटरनेट है. साथ ही भारत मे बच्चो और युवा वर्ग के लिए कुछ नये भारतीय कॉमिक प्रकाशक भी आये है जिनकी कॉमिक्स मुख्यतः इंग्लिश मे होती है.

तो मुद्दे की बात ये है की मैंने ऐसे कई भारतीय कलाकारों की कॉमिक्स और नये भारतीय प्रकाशकों (मै नाम नहीं ले रहा हूँ) की कॉमिक्स पढ़ी. उनमे से अधिकतर मे मैंने एक बात देखी की उनमे वो कॉमिक सीरिज़ पौराणिक कथाओं, ग्रंथों, देव गाथाओं, पर आधारित या उनसे मिलते-जुलते परिवेश की काल्पनिक कहानियाँ थी. इतनी सारी कॉमिक्स मे यही बेकड्रॉप, थीम पढ़ कर मन मे सवाल उठा क्या बस यही है भारत? तरह-तरह के लोगो, जगहों, धर्मो, भाषाओँ, वन्य जीवन, विरासतों, किवदंतियों, प्रदेशों, संस्कृतियों और उनके विशाल इतिहास से मिलकर बना भारत? मन ने तुरंत ही जवाब भी दिया, "नहीं!"

भारत मे बहुत कुछ और भी है या था, जो दुनिया भर को और उसकी युवा पीढ़ी को काल्पनिक परिवेश मे लपेट कर दिखाया जा सकता है. जैसे पूर्वोतर भारत के राज्यों की अनगिनत किवदंतियां को बाहरी दुनिया तो क्या उन प्रदेशो के अलावा दूसरे भारतीय राज्यों तक मे लगभग अनसुनी है या जनजातियों की कुछ अचरच मे डाल देने वाली प्रथाएं और उनके पीछे के कारण. पिछले दशको के इतिहास की घटनाओ (जैसे गोधरा काण्ड, मुंबई बम विस्फोट, 1984 मे घटे सिख विरोधी दंगे और भोपाल गैस काण्ड, आदि) को बेस बनाकर उनपर कुछ काल्पनिक कहानियाँ जो न सिर्फ लोगो संदेश दे बल्कि नयी पीढ़ियों को बताये की भारत मे ऐसा भी हुआ था. पर दुर्भाग्यवश ऐसे विषयों पर प्रकाशकों का ध्यान न के बराबर ही जाता है.

अगर कोई कहे की ऐसा संभव नहीं है या अगर ऐसा किया जायेगा तो पाठको को आनंद नहीं आएगा. तो मै यही कहूँगा की कुशल लेखनी मे सब संभव है. मै भी अपने सीमित संसाधनों से ऐसा ही प्रयास कर रहा हूँ अगर सफल हुआ तो आप सबके साथ सबसे पहले बाँटूगा. वैसे आप इस वर्गीकरण के बारे मे क्या सोचते है?

Tuesday, July 6, 2010

आइये, कॉमिक्स से नयी पीढ़ी का विकास करें!


कॉमिक्स काफ़ी सारी विविधता और किरदारों के साथ आती है. साथ ही कॉमिक्स का सबसे बड़ा फायदा किसी बच्चे (खासकर slow learners or differently abled) के विकास मे होता है. सिर्फ बच्चे ही क्यों बड़ो को भी समान रूप से कॉमिक्स पढने का फायदा होगा. पर ज्यादातर अभिभावक कॉमिक्स को समय, पैसे, आदि की बर्बादी समझते है. जैसा की वो अब तक सुनते आ रहे है. उन्होंने कभी कॉमिक्स को खुद नहीं परखा जो सुन लिया वो मान बैठे. ये बहस तो लम्बी है की कॉमिक्स को सिर्फ बच्चो के लिए क्यों समझा जाता है पर यहाँ मै आप सबका ध्यान कॉमिक्स से होने वाले एक बड़े फायदे की ओर करना चाहता हूँ. विकसित होते और निरंतर कुछ न कुछ सीखते मस्तिक्ष को कॉमिक्स किस तरह विकास मे मदद करती है.


कॉमिक्स एकलौता ऐसा multimedia का साधन है जिसमे लगभग हर कोई आराम से अपनी सुविधा अनुसार चित्रों और कहानी को relate कर सकता है और उनमे हो रहे frame wise changes को समझ सकता है. ये खासियत बच्चो के दिमाग के विकास मे मदद करती है. क्या और किसी मनोरंजन के साधन मे है ये खूबी? अभिभावक अगर कॉमिक्स का सही तरीके और सोच से इस्तेमाल करें तो उनके बच्चो का बहुत बढ़िया विकास हो सकता है. साथ ही उनकी creativity और logical approach भी विकसित होता है. बस कॉमिक्स चुनते वक्त उसके मैटर पर एक बार उपरी नज़र डाल कर उसे देख लें. कुछ बढ़िया कॉमिक सीरीज़ आपके बच्चे को बहुत अच्छी सीख दे सकती है. यहाँ भी मै कहूँगा की अपने हिसाब से खुद कॉमिक्स चुनिये...हर बार की तरह सिर्फ दूसरो की मत सुनिये. कई अभिभावक और आलोचक शिकायत करते है की कुछ कॉमिक्स मे व्यसक दृश्य, बातें, खून-खराबा बहुत होता है. मेरा कहना ये है की सारी कॉमिक्स ऐसी नहीं होती, मनोरंजन के बाकी साधन जैसे टी.वी., इंटरनेट, पत्रिकाएँ यहाँ तक की अख़बार आदि भी इस मामले मे कॉमिक्स से कहीं ज्यादा आगे निकल गये है.....और कम से कम कॉमिक्स मे अंत मे अच्छाई की बुराई पर जीत तो होती है.....है ना?

अब तक तो हाल ये है की साहित्यिक गलियारों मे बच्चो की चीज़ कहकर नकार दी जाने वाली कॉमिक्स को बाल साहित्य की श्रेणी तक मे जगह नहीं मिलती. तो क्यों ना नयी पीढ़ी से एक नयी शुरुआत की जाये जहाँ कॉमिक्स को भी साहित्य जैसा सम्मान मिले (क्योकि कॉमिक्स के पीछे भी कई प्रतिभाएं दिन-रात मेहनत करती है).

Monday, July 5, 2010

रे संजय ताऊ! इधर भी देख लो! (Haryanvi Flavor)


भारतीय कॉमिक्स के सिमटते संसार से दुखी एक हरियाणा निवासी कॉमिक प्रशंषक की भारतीय कॉमिक्स के इक्का दुक्का बचे स्तंभों मे से एक राज कॉमिक्स के प्रमुख श्री संजय गुप्ता जी से काल्पनिक फ़रियाद. भाषा का मकसद किसी को आहत करना नहीं बल्कि सिर्फ मनोरंजन करना है.



"भई, म्हारा नाम जाट मोहित से! सब लोगन को म्हारा प्रणाम. मन्ने राज कॉमिक्स बड़ी चोखी लागये से. सारा गाँव दीदे काढ़े करे मारे पे फिर भी यो राज कॉमिक्स ना छोड़ के दी गयी. सारे कहवें की अच्छे चंगे जाट को तो कॉमिक्स ने खा गेरा. छोरियां कहवें से से की घना चीकना छोरा किंगे को डल्ले मार रिया है. पर मै अख्यन्न मे पंजे डाल के किसी की ना सुनु.....बस घनी बिमला सी विसर्पी के सपने बुनू सु. सब से कहूँ के घने दीदे मत ना काढो मै कौन सा पानी को पापा कह रिया हूँ....म्हारा तो यो ही फंडा है के "राज कॉमिक्स से म्हारा जनून".

इब बस संजय ताऊ से यो ही बिनती से के राज कॉमिक्स मे हरयाणवी बोली भी संग नु कल लो. यहाँ घने पंखे बैठे है संजय ताऊ जी और वा की कॉमिक्स के. रे अगर हरयाणवी मे राज कॉमिक्स आ जावे तो म्हारा तो घी सा गल जावे. और सारे ताऊ जियो को लग रिया हो के यो हरयाणवी मे छापने से चिडिया ना उड़न वाली तो झाग मत ना बिलोवो बस इतना सुन लो के थारी हिंदी कॉमिक्स मे थोडा 'हरयाणवी Flavor' भी पेल दिया करियो. इतता तो ढेडे के बीज भी कल लेंगे. मै किसी भासा का नास का ना फोड़ रहा मै तो यो ही चाहूँ के बंगाली, भोजपुरी, गुजराती, सिन्धी, तमिल, उर्दू, और निरे भारत की भासाओ का फ्लेवर राज कॉमिक्स अपनी कॉमिक्स मे देती रहवये. केवल "साडा की होऊ...., etc" की पीपणी ना बजाती फिरे. अच्छा तो जी.....अब इस blog पर ज्यादा थूक के पकोडे मत ना तारो.

नमस्कार!!"

Tuesday, June 22, 2010

कॉमिक्स की दुनिया मे अमर जोड़ियाँ




ये जोड़ियाँ कुछ हटकर है क्योकि ये आम जोड़ियों की तरह नहीं है बल्कि ये साथ आई है अपराध का नाश करने के लिए. और सिर्फ अपराध का नाश ही क्यों ये जोड़ियाँ तो खुद मे सम्पूर्ण है चाहे वो अपने साथी के लिए दबी भावनायें हो या समय-समय पर हास्य. हालाकि, कॉमिक्स और मनोरंजन के बाकी साधनों मे एकल नायको का वर्चस्व है पर फिर भी भारतीय कॉमिकस मे एक से ज्यादा मुख्य किरदार वाली कॉमिक सीरिज की कमी नहीं है. किसी बड़ी समस्या के सामने अकेले नायक के विचार और दो मुख्य किरदारों की सोच बड़ी अलग होती है. कई बार तो विचारो का टकराव या मतभेद बहुत रोमांचक स्थितियां पैदा करते है. 2 मेन लीड किरदार होने से उनसे जुड़े सहायक किरदारों की संख्या भी अमूमन एकल हीरो की सीरिज की तुलना मे बढ़ जाती है. वैसे ऐसी भी सीरिज है जहाँ कोई सहायक किरदार मुख्य किरदार की तरह लगातार बड़ी भूमिकायें निभाता है पर फिर भी हीरो तो हीरो ही रहता है और साइड हीरो को अक्सर "साइड" मे कर दिया जाता है. आशा है पाठको को और विस्तृत और हटकर मनोरंजन के लिए ऐसी जोड़ियाँ आती रहेंगी.


(1) - राज कॉमिक्स -

कोबी - भेड़िया,

फाइटर टोड्स,

हंटर शार्क फोर्स (किंग कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित जो राज कॉमिक्स की एक इकाई थी).

(2) - मनोज कॉमिक्स -

राम - रहीम,

अमर - अकबर,

अकडू जी - झगडू जी,

अमर - रहीम - टिंगू,

मशीनी लाल - अफीमी लाल,

मनकू - झनकू,

सागर - सलीम,

विनोद - हामिद .


(3) - पवन कॉमिक्स -

राम - बलराम.

(4) - राधा कॉमिक्स -

राजा - जानी,

शंकर -अली,

विनोद - हनीफ.

(5) - डाइमंड कॉमिक्स -

चाचा - भतीजा,

मोटू - पतलू,

मोटू - छोटू,

छोटू - लम्बू,

अग्निपुत्र - अभय,

लम्बू - मोटू,

अंडेराम - डंडेराम,

आल्तुराम - फाल्तुराम,

मंगलू मदारी - बंदर बिहारी,

मामा - भांजा,

राजन - इकबाल.

Wednesday, June 16, 2010

Social Comics यानी सामाजिक चित्रकथायें





किसी भी सफल और बड़े व्यवसाय मे सबसे बड़ा हाथ उस जनता का होता है जिसको वो व्यवसाय किसी भी तरह का फायदा देता है और बदले मे लोग उस उद्योग को सफल बनाते है. वैसे तो अब अधिकतर कॉमिक्स प्रकाशन बंद हो चुके है पर डायमंड कॉमिक्स, राज कॉमिक्स और अभी हाल ही मे दोबारा शुरू हुई अमर चित्र कथा भी ऐसे सफल और प्रगतिशील प्रकाशन है. वैसे तो ये कॉमिक प्रकाशन अपना काम बखूबी निभा रही है पर फिर भी समाज के प्रति उसकी कुछ जिम्मेदारियां और ऋण बनते है. मै चाहता हूँ की राज कॉमिक्स, आदि को अपने ये ऋण "Social Comics" या "सामाजिक चित्रकथा" नामक सीरीज़ प्रकाशित करके उतारना चाहिए. अगर कुछ कॉमिक्स का ये प्रयास सफल होता है तो इसे आगे भी जारी रखा जा सकता है. हालाकि, "World Comics India" नामक संस्था सामाजिक विषयों पर कॉमिक्स प्रकाशित करती है पर उसका स्तर और पहुँच अभी सीमित है.


वैसे राज कॉमिक्स सामाजिक विषयो को आधार बना कर अपने किरदारों पर कॉमिक्स छापती रही है. इन किरदारों मे प्रमुख है डोगा, गमराज, तिरंगा, शक्ति, आदि. पर किसी किरदार के साथ ऐसे सामाजिक विषयो का प्रकाशन ठीक नहीं क्योकि उस किरदार की कहानी ही उस सामाजिक विषय और उस से जुडी बातों पर हावी हो जाती है. जिस वजह से ऐसी बातों पर पाठको का ध्यान नहीं जाता और लेखको, कलाकारों के प्रयास व्यर्थ हो जाते है.

इसलिए मुझे लगता है की "अन्य सीरीज़" की तरह ऐसे विषयों को लेकर अलग से एक सीरीज़ बननी चाहिए जिसमे हर कॉमिक मे किसी नए मुद्दे को उठाया जाये. जहाँ तक ऐसे विषयो की बात है तो उनकी कमी नहीं है... सामाजिक भेद-भाव, ग्रामीण कुरीतियाँ, दहेज़ उत्पीडन, घरेलु हिंसा, गरीबी, भुखमरी, यहाँ तक की प्रमुख रूप से शहरो मे होने वाली Ragging, Eve Teasing जैसी समस्याओ को भी शामिल किया जा सकता है. सिर्फ इन समस्याओं को दिखाना ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए बल्कि इनके हो सकने वाले प्रमुख संभावित समाधान और पाठको को सीख भी मिलनी चाहिए. इन कॉमिक्स का सबसे बड़ा फायदा ये होगा की आम लोगो का कॉमिक्स के प्रति सुना सुनाया नजरिया बदलेगा की कॉमिक्स केवल बच्चो के लिए होती है.

राज कॉमिक्स की वेबसाइट पर मैंने 'eve teasing' पर "बड़ी देर हो गयी!" नामक परिकल्पना भी पोस्ट की है. जिसका वेबलिंक ये है. -

http://www.rajcomics.com/index.php?option=com_content&view=article&catid=17%3Astory-plots&id=1915%3ABadi-Dair-ho-Gayi&Itemid=246&lang=en

आप लोग Social Comics/सामाजिक चित्रकथा के बारे मे क्या सोचते है?

तुलसी कॉमिक्स





1980 के दशक और 1990 की शुरुआत मे तुलसी कॉमिक्स काफ़ी लोकप्रिय थी. लेकिन राज कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स और मनोज कॉमिक्स से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा और ज्यादातर साधारण कहानियो और कला वाली कॉमिक्स के कारण तुलसी कॉमिक्स आख़िरकार बंद हो गई. इस प्रकाशन के प्रमुख किरदार थे अंगारा, तौसी, जम्बू, बाज़, योशो, योगा, आदि. इनके अलावा तुलसी कॉमिक्स नई और जनरल कहानियो पर कॉमिक्स प्रकाशित करती थी जो भूत - प्रेत, राजा - रानी, पौराणिक, जादू - टोना, तिलिस्म, आदि पर आधारित होती थी. तत्कालीन प्रतिस्पर्धा मे बाकी कॉमिक प्रकाशन मुख्य किरदारों को जोड़ियों मे निकालने का फार्मूला लाये थे जैसे मनोज कॉमिक्स ने राम-रहीम, अमर-अकबर, सागर-सलीम, आदि सीरीज प्रकाशित की, डायमंड कॉमिक्स ने चाचा-भतीजा, मोटू-पतलू, राजन-इकबाल, आल्तुराम-फाल्तुराम, आदि सीरीज निकाली. पर तुलसी कॉमिक्स ने ऐसी कोशिशे नहीं की.


साथ ही तुलसी कॉमिक्स की कोई 'self contained' (यानी एक कॉमिक मे पूरी होने वाली कहानी की) कॉमिक कम ही छपती थी. ऊपर से उनकी ज्यादातर कहानियो मे नयापन नही होता था. उनकी बहुत सी कॉमिक्स फिल्म्स, विदेशी उपन्यासों की कॉपी होती थी. तुलसी पॉकेट बुक्स से जुड़े कुछ उपन्यासकारों ने भी तुलसी कॉमिक्स के लिए कहानियाँ भी लिखी है जिनमे सबसे प्रमुख है मेरठ के जाने माने लेखक श्री वेद प्रकाश शर्मा. उन्होंने मुख्यतः जम्बू सीरीज के लिए काम किया. जो भी हो तुलसी कॉमिक्स के रूप मे भारतीय कॉमिक उद्योग के एक स्तंभ का दुखद अंत हुआ. आशा है की आगे ऐसे कई कॉमिक प्रकाशनों के साथ कॉमिक्स का स्वर्णिम युग ज़रूर लौटकर आएगा.


नमस्ते! इस ब्लॉग परिवार के सभी सदस्यों और इसके पाठको को. मेरा नाम मोहित शर्मा है और मै लखनऊ, उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ. मै इक्कीस वर्षीय परास्नातक छात्र हूँ. बाकी जानकारी आगे देता रहूँगा.