एक डाल से तू है लटका,
दूजे पे मैं बैठ गया..
तू चमगादड़ मैं हूं उल्लू,
गायें कोई गीत नया..
घाट-घाट का पानी पीकर,
ऐसा हुआ खराब गला//
जियो हजारों साल कहा पर,
जियो शाम तक ही निकला..
ये कवि आहत कैसे लगे मुझे जरूर बताईयेगा.. मैं ना जाने कितनी ही बार बालहंस की प्रतिक्षा बस कवि आहत को पढने के लिये करता था.. अनंत कुशवाहा जी द्वारा संपादित ये कविताऐं बेहद जबरदस्त हुआ करती थी.. मैं समय समय पर इनकी कार्टून स्ट्रीप आपलोगों के सामने लाता रहूंगा.. :)