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Saturday, March 28, 2020

कॉमिक्स की सुगंध बिखेरते इंटरनेट के कुछ पन्ने

रुद्र राजपूत (नागराज कॉस्प्ले)

इस समय कई पुराने कॉमिक्स प्रशंसक अपना शौक छोड़ जीवन में व्यस्त हो चुके हैं। ऐसे में अगर आपके पास समय कम है और कभी-कभार कॉमिक्स जगत की हलचल के बारे में जानना चाहते हैं या यूं ही कुछ देर के लिए उस दौर की बेफ़िक्र साँसे लेना चाहते हैं, तो यहां कुछ पेज, वेबसाइट के लिंक दे रहा हूं। इंटरनेट के इन छोटे से कोनों पर आपको नई जानकारी और पुरानी यादें दोनों मिलेंगी।

कॉमिक्स बाइट - इस साइट पर नई-पुरानी कॉमिक्स पर कई लेख हैं।

इंडी कॉमिक्स फेस्ट, स्थानीय और सीमित स्तर पर काम कर रहे कॉमिक्स कलाकारों, प्रकाशकों को एक जगह पर लाने और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहा है।

स्ट्रिप-टीज़ मैगज़ीन - नाम पर न जाएं, यह साइट भारत में अंग्रेजी, इंडिपेंडेंट कॉमिक्स रचनाकारों, कॉमिक स्ट्रिप, वेब कॉमिक जैसे विषयों को कवर करती है।

राज कॉमिक्स का ऑफिशियल फेसबुक ग्रुप जहां फैन्स और कलाकार अपना काम, अपडेट और अन्य जानकारी साझा करते हैं।
  
इंडियन कॉमिक्स फैंडम - इस ब्लॉग पर मैं भारतीय कॉमिक्स और भारतीय कॉमिक्स रचनाकारों, प्रशंसकों से जुड़ी ख़बरें, लेख पोस्ट करता हूं। इससे जुड़ी एक मैगज़ीन और सालाना अवार्ड भी आयोजित किए जाते है।

इसी तरह का एक ब्लॉग और फेसबुक ग्रुप यह भी है - ICUFC

कल्चर पॉपकॉर्न - यहां देश-विदेश के सिनेमा, कॉमिक्स और टीवी सीरीज पर लेख मिलेंगे।

कुछ सालों से फैन मेड ऑनलाइन कॉमिक्स भी चल रही हैं। यहां फैन फिक्शन, फैन आर्ट के साथ-साथ प्रशंसकों द्वारा बनाई गईं कॉमिक्स उपलब्ध हैं।

साथ ही, यूट्यूब पर भारतीय कॉमिक्स पर फैन एनिमेशन, मोशन कॉमिक्स बनाने वाले कुछ कलाकार काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। अगर आपके पास ऐसे ही लिंक या जानकारी हो तो कमेंट में साझा करें।
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#ज़हन

Tuesday, January 23, 2018

विजेताओं के विचार (इंडियन कॉमिक्स फैंडम अवार्ड्स 2017)

भारतीय कॉमिक्स जगत के कलाकारों और प्रशंसकों को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2012 से फ्रीलांस टैलेंट्स द्वारा इंडियन कॉमिक्स फैंडम अवार्ड्स का आयोजन किया जाता है। हाल ही में घोषित हुए 2017 संस्करण के कुछ विजेताओं के अनुभव यहाँ साझा कर रहा हूँ। नयी पीढ़ी का जोश देखकर दिलासा मिला कि आगे कॉमिक्स की साँसें चलती रहेंगी।


*) - नितिन स्वरुप (स्वर्ण, सर्वश्रेष्ठ फैन वर्क 2016 और 2017) - इस वर्ष परमाणु पर एनिमेटिड वीडियो ट्रेलर के लिए नितिन को यह सम्मान प्राप्त हुआ। अपने पेशे के साथ संगीत के शौक को ज़िन्दा रखने वाले नितिन बताते हैं कि 3-4 वर्ष पहले तक उन्हें एनिमेशन की कुछ ख़ास जानकारी नहीं थी। एक दिन इन्हें  अपने गाने पर एनीमेटिड वीडियो बनाने का विचार आया। यूट्यूब से सीख कर और अपने अनेकों प्रयोग करते हुए आज काफी दूर आ गये हैं। किसी पढाई, ट्रेनिंग के बिना केवल कला, कहानी के जुनून के सहारे अपनी रचनात्मकता को दुनिया के सामने ला रहे हैं। बचपन और किशोरावस्था में नितिन को कॉमिक्स का बड़ा शौक था पर इंजीनियरिंग की पढाई में कॉमिक्स से नाता टूट गया, ये कॉमिक प्रेम पिछले कुछ समय से वापस जग गया है। पिछले वर्ष इन्होने वीएफएक्स-वेब सीरीज में शुरुआत की और अबतक इनके वीडिओज़ या वे वीडिओज़ जिनमे इनका काम है कुल डेढ़ करोड़ व्यूज़ से अधिक प्राप्त कर चुके हैं। जल्द ही उनके कुछ नये प्रोजेक्ट्स की घोषणा की जायेगी। 

*) - मनीष मिश्रा (रजत, रिव्यूअर-ब्लॉगर श्रेणी 2017) - बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत मनीष मिश्रा खुद को कॉमिक्स का कीड़ा बताते हैं। उनका ध्यान अपना कलेक्शन बनाने के बजाय अधिक से अधिक कॉमिक्स पढ़ने पर और कला के इस रूप का आनंद लेने पर होता है। कॉमिक्स ऑर पैशन कम्युनिटी से जुड़ने के बाद अपने स्तर पर कहानियाँ, समीक्षाएँ लिखनी शुरू कर दी। कॉमिक पत्रिका "अनिक प्लैनेट" में उनके रिव्यूज़ काफी पसंद किये जाते हैं। मनीष ने मन्नू नाम का एक किरदार रचा है और जल्द ही उसपर शार्ट कॉमिक स्ट्रिप शुरू करने का विचार है। 

*) - आदित्य किशोर (स्वर्ण, फैन आर्ट 2017) - पटना निवासी आदित्य किशोर 11वी कक्षा के छात्र हैं। बचपन से ड्राइंग कर रहे आदित्य का कक्षा 10 में कला के प्रति रुझान काफी बढ़ गया। वो मोटिवेशनल स्पीकर संदीप माहेश्वरी को अपना आदर्श मानते हैं। छोटी उम्र से इन्द्रजाल, डायमंड कॉमिक्स, राज कॉमिक्स और मनोज कॉमिक्स पढ़ना शुरू किया और साथ ही किरदारों के आकर्षक पोज़ के आधार पर अभ्यास करना शुरू किया। वो ट्रेडिशनल और डिजिटल दोनों माध्यम में कला करते हैं। आदित्य एक दिन किसी बड़ी गेम कंपनी या कॉमिक प्रकाशन के लिए काम करना चाहते हैं। 

*) - कृष्ण कुमार (रजत, फैन फिक्शन लेखक 2017) - कृष्ण कुमार स्वयं को लेखक से अधिक एक जिज्ञासु भौतिक विज्ञानी मानते हैं। वर्तमान में वो सापेक्षता के सिद्धांत का अध्यन्न कर रहे हैं। अपने काम से बोर होकर लेखन या फैन फिक्शन की गलियों में घूम लेते हैं। लिखने की प्रेरणा इन्हे जापानी एनिमे, मांगा से मिलती है और कृष्ण भी उस ख़ूबसूरती से अपनी हर कहानी गढ़ना चाहते हैं। लेखन की दूसरी वजह विज्ञान है...विज्ञानं के गूढ़ रहस्यों और खोजों की जानकारी अपनी लेखनी के ज़रिये दुनिया के सामने लाना इन्हे पसंद है। 

*) - जंगली कोकई (कांस्य, फैन आर्ट 2017) - 'जंगली' कृतक नाम इस्तेमाल करने वाले अरुणाचल प्रदेश के कलाकार अवलैंग कोकई 16-17 वर्षों से कॉमिक्स पढ़ रहे हैं। मनोज, तुलसी, फोर्ट आदि कॉमिक्स के गुम हो चुके किरदारों पर फैन आर्ट करना इन्हें भाता है। ऑनलाइन कॉमिक कम्युनिटीज़ से जुड़ने के बाद यह शौक और बढ़ गया है। कोकई कुछ ऑनलाइन पत्रिकाओं के लिए कला कर चुके हैं। 

*) - बलबिन्दर सिंह (रजत, फैन वर्क श्रेणी 2017)


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इंडियन कॉमिक्स फैंडम अवार्ड्स 2017 विजेता लिस्ट

1) - कार्टूनिस्ट: काक कार्टूनिस्ट / हरीश चंद्र शुक्ला (स्वर्ण), सतीश आचार्य (रजत), ज़ोंग ब्रॉस (कांस्य)
2) - फैन कलाकार: आदित्य किशोर (स्वर्ण), उत्तम चंद (रजत), अवलैंग कोकई और रवि बिरुली (कांस्य) [टाई]
3) - ब्लॉगर-आलोचक: श्रीजिता बिस्वास (स्वर्ण), मनीष मिश्रा (रजत), अभिलाष अशोक मेंडे
4) - फैन वर्क: परमाणु फैन वीडियो ट्रेलर - नितिन स्वरुप (स्वर्ण), गांधीगिरी - कृति कॉमिक्स और फैन मेड कॉमिक्स - बलबिन्दर सिंह टीम [टाई], विज्ञापन वॉर कॉमिक (कांस्य)
5) - फैन फिक्शन लेखक: अंकित निगम (स्वर्ण), कृष्ण कुमार (रजत), दिव्यांशु त्रिपाठी (कांस्य)
6) - वेबकॉमिक: अग्ली स्वेटर - ब्राइस रिचर्ड (स्वर्ण), फ्रीलांस टैलेंट्स कॉमिक्स (रजत), ब्राउन पेपरबैग - शैलेश गोपालन (कांस्य)
7) - रंगकार (कलरिस्ट) - शहाब खान (स्वर्ण), पंकज देवरे (रजत), रुद्राक्ष (कांस्य)
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हॉल ऑफ़ फेम 2017
प्रेम गुप्ता, दिलदीप सिंह, सुप्रतिम साहा, गौरव श्रीवास्तव, सौरभ सक्सेना
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उल्लेखनीय कार्य (Non-Award Categories)

1) - कॉस्प्ले - रूद्र राजपूत (नागराज)
2) - पत्रकारिता - कल्चर पॉपकॉर्न और अनिक प्लेनेट
3) - प्रकाशन - टीबीएस प्लेनेट कॉमिक्स
4) - समुदाय - कॉमिक्स ऑर पैशन (COP), अल्टीमेट फैंस ऑफ़ कॉमिक्स (UFC)

Tuesday, November 15, 2016

कलाकार श्री सुरेश डिगवाल

मेरे एक कलाकार-ग्राफ़िक डिज़ाइनर मित्र ने मुझसे शिकायत भरे लहज़े में कहा कि मैं अक्सर भारतीय कॉमिक्स कलाकारों, लेखकों के बारे में कम्युनिटीज़, ब्लॉग्स पर चर्चा करता रहता हूँ पर मैंने कभी सुरेश डिगवाल जी का नाम नहीं लिया। मैंने ही क्या अन्य कहीं भी उसने उनका नाम ना के बरारबर ही देखा होगा। वैसे बात में दम था, अगर एक-दो सीजन का मौसमी कलाकार-लेखक होता तो और बात थी पर सुरेश जी ने डोगा, परमाणु, एंथोनी जैसे किरदारों पर काफी समय तक काम किया। उसके बाद भी कैंपफायर ग्राफ़िक नोवेल्स, पेंगुइन रैंडम हाउस, अन्य कॉमिक्स, बच्चो की किताबों और विडियो गेम्स में उनका काम आता रहा। अब सुरेश जी गुड़गांव में जेनपैक्ट कंपनी में एक कॉर्पोरेट लाइफ जी रहे हैं।
जहाँ तक उनपर होने वाली इतनी कम चर्चा की बात है उसपर मेरी एक अलग थ्योरी है। जिसको तुलनात्मक स्मृति थ्योरी कहा जा सकता है। किसी एक समय में एक क्षेत्र में जनता ज़्यादा से ज़्यादा 4 नाम ही याद रख पाती है (बल्कि कई लोगो को सिर्फ इक्का-दुक्का नाम याद रहते हैं)। उन नामो के अलावा उस क्षेत्र में सक्रीय सभी लोग या तो लम्बे समय तक सक्रीय रहें या फिर उन नामो को नीचे धकेल कर उनकी जगह लें। भाग्य और अन्य कारको से अक्सर कई प्रतिभावान लोग उस स्थान पर नहीं आ पाते जिसके वह हक़दार होते हैं, ओलंपिक्स की तरह दशमलव अंको से छठवे, सातवे स्थान या और नीचे स्थान पर रह जाते है जहाँ आम जनता स्मृति पहुँच नहीं पाती। सुरेश जी का दुर्भाग्य रहा कि एक समय वह इतना सक्रीय रहते हुए भी प्रशंसको के मन में बड़ा प्रभाव नहीं छोड़ पाए। 
उनकी इंकिंग, कलरिंग जोड़ियों पर टिप्पणी नहीं करूँगा पर मुझे उनकी शैली पसंद थी। मुझे लगता है अगर वह कुछ और प्रयोग करते, कुछ भाग्य का साथ मिल जाता तो आज मुझे अलग से उनका नाम याद ना करवाना पड़ता। एक वजह यह है कि बहुत से कलाकारों को अपना प्रोमोशन करना अच्छा नहीं लगता, इन्टरनेट-सोशल मीडिया की दुनिया से दूरी बनाकर वो अपनी कला में तल्लीन रहते हैं। खैर, कॉमिक्स के बाहर एक बहुत बड़ी दुनिया है जहाँ सुरेश डिगवाल जी कला निर्देशन, एनिमेशन, चित्रांकन, विडियो गेम्स, ग्राफ़िक डिजाईन और शिक्षा में अपना योगदान दे रहे हैं। आशा है आगे हम सबको उनका काम निरंतर देखने को मिलता रहेगा।
अधिक जानकारी के लिए इन्टरनेट पर सुरेश जी की ये मुख्य प्रोफाइल्स और पोर्टफोलियो हैं -

- ज़हन

Wednesday, January 27, 2016

"बड़े हो जाओ!" - मोहित शर्मा (ज़हन)

अपनी बच्ची को सनस्क्रीन लोशन लगा कर और उसके हाथ पांव ढक कर भी उसे संतुष्टि नहीं मिली। कहीं कुछ कमी थी...अरे हाँ! हैट तो भूल ही गया। अभी बीमार पड़ जाती बेचारी...गर्दन काली हो जाती सो अलग। उस आदमी को भरी धूप, गलन-कोहरे वाली कड़ी सर्दी या बरसात में भीगना कैसा होता है अच्छी तरह से पता था। ऐसा नहीं था कि वो किसी गरीब या अभागे परिवार में जन्मा था। पर अपने दोस्तों, खेल या कॉमिक्स के चक्कर में वो ऐसे मौसमो में बाहर निकल आता जिनमें वो किसी और बात पर बाहर निकलने की सोचता भी नहीं। ये उसका पागलपन ही था कि जब समाचारपत्र उसके शहर में माइनस डिग्री सेल्सियस पर जमे, कई दशको के न्यूनतम तापमान पर हेडलाइन्स छाप रहे थे, तब बुक स्टाल पर उन्हें अनदेखा करते हुए वह ठिठुरता हुआ उन अखबारों के बीच दबी कॉमिक्स छांट रहा था। या जो भूले बिसरे ही अपनी कॉपी-किताबों पर मुश्किल से कवर चढ़ाता था, वह कुछ ख़ास कॉमिक्स पर ऐसी सावधानी से कवर चढ़ाता था कि दूर से ऐसा लगे की शहर का कोई नामी कलाकार नक्काशी कर रहा हो। या वो जिसे स्कूल में कॉमिक्स का तस्कर, माफिया तक कहा जाता हो। जाने कितने किस्से थे उसके जूनून के, जो औरों को बाहर से देखने पर पागलपन लगता था। "बच्चो वाली चीज़ छोडो, बड़े हो जाओ!" यह वाक्य उसने 11 साल की उम्र में पहली बार सुना। उसने तब खुद को तसल्ली दी की अभी तो वो बच्चा ही है। फिर उसे यह बात अलग-अलग लोगो से सुनने और इसे नज़रअंदाज़ करने की आदत हो गयी। 

समय के साथ जीवन और उसकी प्राथमिकताएं बदली। यकायक व्यवहारिक, वास्तविक दुनिया ने चित्रकथा की स्वप्निल दुनिया को ऐसा धोबी पाट दिया कि कभी जो घर का सबसे ख़ास कोना था वह सबसे उपेक्षित बन गया। उसकी शादी हुयी! पत्नी द्वारा उस कोने की बात करने पर वह कोई ना कोई बहाना बनाकर टाल देता, जैसे वो अबतक अपने घरवालों को टालता आया था। जिसपर अब भी वह ख़ुशी से "बड़े हो जाओ" का ताना सुन लेता था। उसके दिमाग का एक बड़ा हिस्सा व्यवहारिक होकर स्वयं उसे बड़े हो जाने को कह रहा था। जबकि कहीं उसके मन का एक छोटा सा हिस्सा अक्सर नींद से पहले, सपनो में या यूँ ही बचपन, किशोरावस्था में उसके संघर्ष, जूनून की कोई स्मृति ले आता।  वो मन जिसे उसने वर्षो तक इस भुलावे में रखा था कि यही सब कुछ है बाकी दुनिया बाद में। अब मन का छोटा ही सही पर वह हिस्सा ऐसे कैसे हार मान लेता। 


फिर उसके घर एक नन्ही परी, उसकी लड़की का आगमन हुआ। जिसने बिना शर्त पूरे मन (उस छोटे हिस्से को भी) हाईजैक कर लिया। आखिरकार, उसने अपनी हज़ारों कॉमिक्स निकाली। हर कवर को देख कर उसकी कहानी, वर्ष, रचनाकारों के साथ-साथ उस प्रति को पाने का संघर्ष उसके मन में ताज़ा हो गया। जैसे एक बार कमेंटरी में मोहम्मद अज़हरुद्दीन को डिहाइड्रेशन होने की बात बताये जाने पर उसने ही अपने मित्रों को इस बात का मतलब समझाया था.... क्योंकि एक बार डॉक्टर ने यह उसे तब बताया था जब उसके घरवाले उसे कमज़ोरी, चक्कर आने पर पड़ोस में ले गए थे। उसे चक्कर जून की गर्मी में बाहर किस वजह से रहने से आये होंगे यह बताने की ज़रुरत नहीं। 2 किशोर उसके घर आये जिन्हे उसने अपनी कॉमिक्स के गट्ठर सौंपे। बड़े जोश में उसने अपने किस्से, बातें सुनाने शुरू किये पर उनसे बात करने के थोड़ी ही देर में उसे अंदाज़ा हो गया कि समय कितना बदल गया है और दोनों पार्टीज एक दूसरे की बातों से जुड़ नहीं पा रहें है। अंततः उन किशोरों ने विदा ली और दरवाज़े पर उन्हें छोड़ते हुए, मन का वह छोटा हिस्सा जो अबतक रूठा बैठा था, दबी सी आवाज़ में बोला "ख़्याल रखना इनका।"

कुछ महीनों बाद दिनचर्या बदली, काम और ज़िम्मेदारियाँ बढ़ीं। एक दिन पत्नी ने टोका - "इतने चुप-चुप क्यों रहते हों? क्या सोचते रहते हो? इंसान हो मशीन मत बनो! क्या हमेशा से ही ऐसे थे?" 

अच्छा लगा कि फॉर ए चेंज`व्यवहारिक, वास्तविक दुनिया वाले दिमाग को खरी-खोटी सुनने को मिली। पर फ़िर से जीवन की किसी उधेड़बुन को सोचते हुए उसने कहा - " ...बड़ा हो गया हूँ! यही तो सब चाहते थे।" :) 

समाप्त!

#mohitness #mohit_trendster #trendybaba #freelance_talents

Notes: काल्पनिक कहानी, यहाँ बाकी दुनिया को बेकार नहीं कह रहा, बस एक दुनिया छूट जाने का दर्द लिख रहा हूँ जो अक्सर देखता हूँ मित्रों में। Originally posted on Mohitness Blog - http://mohitness.blogspot.in/ Artworks by Mr. Saket Kumar (Ghulam-e-Hind Teaser)

Sunday, November 22, 2015

नागराज जन्मोत्सव 2015

Pic Credit - Mr. Vishi Sinha

नागराज जन्मोत्सव 2015 का हिस्सा बना, बुराड़ी, दिल्ली में राज कॉमिक्स के बंद हो चुके एनिमेशन स्टूडियो Rtoonz जो अब पाम गार्डन्स में परिवर्तित हो गया है, वहां के प्रांगण में 15 नवंबर 2015 को राज कॉमिक्स द्वारा भव्य आयोजन किया गया। सजावट, तैयारियां बहुत अच्छी थी पर शायद दिवाली के बाद होने के कारण आने वाले फैंस और कलाकारों, लेखकों की संख्या अपेक्षा से काफी कम रही। पर इसका फायदा यह रहा कि कई कलाकारों, प्रशंषको से तस्सल्ली से बात करने का अवसर मिला जो वैसे अधिक भीड़ में नहीं हो पाता। हनीफ अज़हर जी, हरविंदर मांकड़ जी, फैसल मोहम्मद भाई, अंसार अख्तर जी इनमे प्रमुख थे। बाकी राज कॉमिक्स से जुड़े क्रिएटिव्स संजय जी, मनीष जी, अनुपम जी, हेमंत जी, आदिल जी, ललित शर्मा जी, ललित सिंह जी, मंदार भाई, शादाब भाई, क्षितीश जी आदि सम्मानित सदस्य थे ही।

Vinod Kumar ji
मुझे इवेंट में आने में थोड़ा झिझक थी क्योकि बीच में काफी वज़न बढ़ गया है मेरी लापरवाही से और जो पहली छवि थी मेरी उसको बदलना नहीं चाहता था पर फिर कई मित्रों को आने की बात कह चुका था खासकर देवेन जी को जो ख़ास मुंबई से आ रहे थे यहाँ तो मैंने सोचा कि कहीं जन्मोत्सव के बाद ये सब मुझे पीटने ना आ जाएँ इसलिए मैं भी आ गया। अमित अल्बर्ट और हुसैन ज़ामिन जी से नहीं मिल पाने का मलाल रहा। स्टेज पर हो रहे मनोरंजन के साथ-साथ आर सी फ़ोरम्स से लेकर इंडियन कॉमिक्स गैलेक्सी के नए-पुराने मित्रों से बातों का दौर चलता रहा। फिर रात को रूककर विशाल, देवेन भाई, मैड्डी, नरेंद्र भाई, शादाब भाई, जॉन रॉक और इंडियन कॉमिक्स गैलेक्सी के सदस्यों से गप्पे चले। अगली सुबह पहले से काफी बदल चुके राज कॉमिक्स परिसर का भ्रमण किया, पहली बार आये मित्रों ने ऑफिस का अवलोकन किया, बस फिर बुरारी पार कर अगली बार मिलने की बात कर सबसे विदा ली। ओवरआल एक और यादगार इवेंट! 
smile emoticon
अब 29 नवम्बर को दिल्ली में ही अगले इवेंट कॉमिक फैन फेस्ट का इंतज़ार है।
- मोहित शर्मा (ज़हन)

Wednesday, May 6, 2015

सदाबहार परशुराम शर्मा जी से मेरी मुलाक़ात...


जीवन में कई बार छोटी-छोटी बातें आपको चौकाने का दम रखती है, बशर्ते आपकी आदत या किस्मत ऐसी बातों को देख सकने कि हो। भाग्य से कुछ सामान खरीदने बाजार गया और बाइक स्टैंड पर लगाते समय क्रिएटिव कोर्सेज का एक पोस्टर दिखा जिसपर एक नाम को पढ़कर लगा कि यह तो कहीं अच्छी तरह सुना लग रहा है पर उस समय भाग-दौड़ में याद नहीं आ रहा था कि कहाँ। पोस्टर पर एक संजीदा बुज़ुर्ग गिटार पकडे  खड़े थे। खैर, सामान खरीदते समय याद आया की पोस्टर पर लिखा नाम परशुराम शर्मा तो बीते ज़माने के प्रख्यात उपन्यास एवम कॉमिक्स लेखक का भी था। साथ में यह भी याद था कि परशुराम जी का पता मेरठ का बताया जाता था। इतना काफी था इस निष्कर्ष पर आने के लिए कि सामने लेखक-विचारक परशुराम शर्मा जी का ही ऑफिस है। पहले तो मैंने भगवान जी को धन्यवाद दिया कि उन्होंने बाइक जिस एंगल पर स्टैंड करवाई वहां से मुंडी टिल्ट करके थैला उठाने में मुझे सर का पोस्टर दिख गया। थोड़ी झिझक थी पर मैंने सोचा कि अब इतनी पास खड़ा हूँ तो बिना मिले तो नहीं जाऊँगा। उनसे बड़ी सुखद और यादगार भेंट हुई और काफी देर तक बातों का सिलसिला चलता रहा, इस बीच उन्होंने अपने सुन्दर 2 गीत मुझे सुनाये और बातों-बातों में मेरे कुछ आइडियाज पर चर्चा की।


270 से अधिक नोवेल्स और कई कॉमिक्स प्रकाशनों के लिए सौइयों कॉमिक्स लिख चुके 68 वर्षीय परशुराम जी अब मेरठ में अपना क्रिएटिव इंस्टिट्यूट चलाने के साथ-साथ स्थानीय म्यूजिक एलबम्स,  वीडिओज़ बनाते है। बहुमुखी प्रतिभा के धनि परशु जी लेखन के अलावा गायन, निर्देशन, अभिनय में भी हाथ आज़मा चुके है और अब तक उनकी लगन किसी किशोर जैसी है। यह उनके साथ हुयी भेंट, कुछ बातें उनके आग्रह पर हटा ली गयी है। 


*) - दशको तक इतना कुछ लिखने के बाद आपके बारे में पाठक बहुत कम जानते है, ऐसा क्यों?
परशुराम शर्मा - बस मुफलिसी का जीवन पसंद है जहाँ मैं अपनी कलाओं में लीन रहूँ। वैसे उस वक़्त अचानक सब छोड़ने का प्लान नहीं था वो हिंदी नोवेल्स, कॉमिक्स का बुरा दौर था इसलिए अपना ध्यान दूसरी बातों पर केंद्रित किया। 

*) - अब आप क्या कर रहे है?
परशुराम शर्मा - अब भी कला में लीन हूँ। बच्चो को संगीत और वाद्य सिखाता हूँ, डिवोशनल, रीजनल एलबम्स-वीडिओज़ बनाता हूँ। कभी कबार स्थानीय फिल्मो में अभिनय करता हूँ। 68 साल का हूँ पर इन कलाओं  सानिध्य में हमेशा जवान  रहूँगा। 

*) - क्या नोवेल्स-कॉमिक्स के ऑफर अब तक आते है आपके पास?
परशुराम शर्मा - कुछ प्रकाशक अब भी मुझसे हिंदी नावेल सीरीज लिखने की बात करते है पर अब इस फील्ड में पैसा बहुत कम हो गया है। युवाकाल जैसी तेज़ी नहीं जो वॉल्यूम बनाकर  मेहनताने भरपाई कर सकूँ। इतना दिमाग लगाने के बाद अगर  पारिश्रमिक ना मिले तो निराशा होती है। अखबार वाले मुझे लेखो के 200-300 रुपये  चैक देते थे और पूछने पर बताते कि लोग तो फ्री में लिखने को तैयार है, हम तो फिर भी आपको कुछ दे रहे है। 

*) - अब किन पुराने साथियों के संपर्क में है?
परशुराम शर्मा - कभी कबार कुछ मित्रों से बातचीत हो जाती है। यहाँ स्थानीय कार्यक्रमों में वेदप्रकाश शर्मा जी, अनिल मोहन आदि उपन्यासकारों से भी मिलना हो जाता है। 

Parshuram ji in T Series Video

*) - क्या अंतर है पहले और अब कि ज़िन्दगी में?
परशुराम शर्मा - पहले जीवन की गति इतनी तीव्र थी कि ठहर कर कुछ सोचना या अवलोकन कर पाना कठिन था। आजकल कुछ आराम है तो वह भागदौड़ में रचनात्मकता किसी सुखद फिल्म सी आँखों के सामने चलती है। 

*) - आपके लिए कुछ सबसे यादगार पल बांटे। 
परशुराम शर्मा - ऐसे बहुत से लम्हे आये जब मुझे विश्वास ही नहीं हुआ अपने भाग्य पर। जो अब याद है उनमे जैकी श्रॉफ का मेरे साथ फोटो खिंचवाने के लिए लाइन में लगना , अमिताभ बच्चन जी का मुझसे मिलने पर यह बताना कि मेरे लेटेस्ट उपन्यास की 5 कॉपीज़ उनके पास रखी है, प्रकाशकों का मेरी कई कृतियों के लिए लड़ना आदि। 

*) - इंटरनेट के आने से क्या बदलाव महसूस किये आपने?
परशुराम शर्मा - ज़्यादा तो मैंने सीखा नहीं पर कुछ वर्ष पहले जिज्ञासावश अपना नाम सर्च किया तो बहुत कम काम था मेरा वहां। मैं कुछ प्रशंषको का धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने जाने कहाँ-कहाँ से खोजकर मेरी कई कॉमिक्स और उपन्यासों की लिस्टस, चित्र आदि इंटरनेट पर अपलोड किये। सच कहूँ तो अब उनमे से काफी काम तो मैं भूल चुका हूँ  कि वो मैंने ही लिखे थे।  
Still from movie "Desi Don"

*) - आपके ऑफिस के बाहर कुछ पोस्टर्स और भी लगे है उनके बारे में बताएं? 
परशुराम शर्मा - एक पोस्टर कुछ समय पहले आई फिल्म "देसी डॉन" का है, कुछ एलबम्स साईं बाबा पर रिलीज़ हुयी पिछले 3 वर्षों में। 

*) - लेखन, संगीत, अभिनय, निर्देशन आदि विभिन्न कलाओं में ऐसी निरंतरता, दक्षता कैसे लाते है आप?
परशुराम शर्मा - इसका उत्त्तर मेरे पास भी नहीं है, शायद इन कलाओं के प्रति मेरा दीवानापन मुझे रचनात्मक कार्य करते रहने को प्रेरित करता है। 

*) - भविष्य कि योजनाओं और प्रोजेक्ट्स से अवगत करायें। 
परशुराम शर्मा - कुछ होनहार बच्चो को संगीत में लगातार शिक्षा दे रहा हूँ, उनमे एक ख़ास हीरा तराशा है जिसका नाम है अंश। उसके साथ साईं बाबा पर डिवोशनल एल्बम अक्टूबर 2014 में लांच की, अब वह कुछ टैलेंट शोज़ के ऑडिशंस दे रहा है। बहुत जल्द आप उसे टीवी पर देखेंगे। नयी पीढ़ी के प्रति  दायित्व निभाने के साथ - साथ जीवन में सोचे ख़ास, चुनिंदा आइडियाज को किस तरह अलग-अलग माध्यमो में  मूर्त रूप दूँ यह सोच रहा हूँ। 

Master Ansh

*) - कॉमिक्स पाठको को क्या संदेश देना चाहेंगे? क्या हम आपका नाम दोबारा कॉमिक्स में देखने की उम्मीद कर सकते है। 
परशुराम शर्मा - मैं उनका आभार प्रकट करूँगा जिन्होंने इस मरती हुयी इंडस्ट्री में जान फूँकी। काल बदलते है, इसलिए चाहे बदले प्रारूपों में ही सही कॉमिक्स का सुनहरा समय फिर से आयेगा। जी हाँ! आगे दोबारा मैं कॉमिक्स लिख सकता हूँ अगर परिस्थिति सही बनी तो। 

इस तरह उनका धन्यवाद करता हुआ, आशीर्वाद लेकर फूल के कुप्पा हुआ मैं उनके ऑफिस से बाहर निकला। जल्द ही उनकी अनुमति लेकर जो गीत उन्होंने मुझे सुनाये थे वो अपलोड करूँगा। 

- मोहित शर्मा (ज़हन) 
#mohitness #mohit_trendster #freelance_talents

Tuesday, December 24, 2013

वो ज़हन मे जिंदगी जीते रहेंगे! - मोहित शर्मा (ज़हन)

नमस्ते!

वैसे तो कुछ साल पहले कि कविता है पर इसमें हास्य भाग ख़ास Comics Fest India 2013 के लिए जोड़ा था। अभिनेता शिवा जी आर्यन ने बस एक-दो बार में इसको याद कर के स्टेज पर अपने एक्ट से पहले बोला।  देखें आप इनमे से कितने अमर किरदारो को पहचान पातें है।

साथ ही जोड़ रहा हूँ अंसार अख्तर जी और हवलदार बहादुर को ट्रिब्यूट देती यह आर्ट जिसको मैंने अथर्व ठाकुर और युधवीर सिंह के साथ तैयार किया है। 



वो ज़हन मे जिंदगी जीते रहेंगे! 

इंसानियत के जज्बे को जागते रहेंगे।
सुनी है रात के अन्धकार मे कुत्तो की गुर्राहट ?
और कब्र पर प्रिंस की कर्कशाहट ?
या दिल्ली की छत के नीचे अपराध की दस्तक ?
महसूस किये है जासूस सर्पो के मानसिक संकेत ?
या सूचना देता कमांडो फोर्स का कैडेट ?
झेला है जंगल मे किसी निर्बल पर अत्याचार ?
या सुनी है किसी अबला की करुण पुकार ?
ली है राजनगर पुलिस हेडक्वाटर से प्रेषित कोई ज़िम्मेदारी ?
या मिला है रोशन सुरक्षा चक्र के पीछे इंतज़ार करता कोई वर्दीधारी?
जब तक अपराध होते रहेंगे,
पन्नो मे कैद ही सही,
ये सभी किरदार इंसानों मे जिंदा होकर इंसानियत के जज्बे को जागते रहेंगे। 

मिली है कभी किसी से अनचाही पुच्ची?
या फटते देखा है किसी के गुस्से से ज्वालामुखी? 
मनाया है क्या किटी पार्टी को मेला?
या पाया है किसी ने दर्जन बच्चो वाला चेला?
खायी है क्या किन्ही चार फ़ुटियों से लातें?
या बड़े ध्यान से सुनी किसी कि छोटी-छोटी मगर मोटी बातें? 
बोले कहीं एक कुपोषित जासूस ने धावे,
या किसी हवलदार के हवालात मे सड़ाने के दावे? 
खुद को जीनियस क्यों समझता एक बुद्धू बच्चा सिंगल पसली?
या साथ रहा कभी आजकल के नेताओ का पूर्वज असली?
और एक बिना बात धर्मार्थ करने वाले क्यूट अंकल जी.… 
जब तक लोग जीवन से बोर होने लगेंगे .... 
पन्नो मे कैद ही सही,
ये किरदार अंतर्मन में जीवित हो हमे गुदगुदाते रहेंगे।

Wednesday, July 10, 2013

आपको ही नहीं, मुझे भी लुभाते हैं ये नकाबपोश

14 जून 2013 को नई दुनिया पत्रिका में प्रकाशित यह लेख आप लोगों के सामने जस का तस रख रख रहा हूँ.


Sunday, May 5, 2013

एक नज़र, फेनिल कॉमिक्स का अब तक का सफ़र

2011 में अस्तित्व मे आयी फेनिल कॉमिक्स, भारतीय कॉमिक्स के एक बहुत बड़े प्रशंषक और सूरत, गुजरात के व्यवसायी श्री फेनिल शेरडीवाला के निरंतर प्रयासों की देन है। फेनिल कॉमिक्स 2012 कॉमिक कॉन में भाग लेकर पाठको को अपनी प्रतिबद्धता भी दिखायी। हालाँकि, अभी तक फेनिल कॉमिक्स की 4 कॉमिक्स बाज़ार मे उपलब्ध है पर जल्द ही इनका अगला सेट प्रकाशित हो रहा है साथ ही फेनिल कॉमिक्स द्वारा कुछ ऑनलाइन कॉमिक्स समय-समय पर आ रही है।

जासूस बलराम "दस का दम" से फेनिल कॉमिक्स नए लेखकों एवं कलाकारों को मौके देने का बीड़ा उठाया है जिसकी पहली कॉमिक 'नादान' (जासूस बलराम के सर्वश्रेष्ठ कारनामे - 1) अप्रैल 2013 मे प्रकाशित की गयी।  ऑनलाइन कॉमिक्स मे फ्रीलांस टेलेंटस ग्रुप के साथ मिलकर फेनिल कॉमिक्स मे अब तक 3 काव्य कॉमिक्स भी आयी है जिनमे कहानी की जगह कविताओं के साथ कला का समागम कर कॉमिक्स बनायीं गयी है। वैसे फेनिल जी ने लगभग 3 दर्जन किरदारों और सीरिज़ सोच रखी है पर निकट भविष्य में आगामी कॉमिक्स मुख्यतः फौलाद, ओम, बजरंगी, क्राइमफाइटर और स्टंटगर्ल की होंगी।

कॉमिक्स के अलावा इनका अगला पड़ाव एक ऐसी कंपनी का निर्माण है जो अलग-अलग मनोरंजन के साधनों पर आना है जिसके तहत जासूस बलराम के टी.वी. सीरीयल और फौलाद के एनीमेशन पर कार्य जारी है। वैसे अभी मुख्यधारा के स्तर के हिसाब से फेनिल कॉमिक्स को चित्रांकन और कहानियों में काफी मेहनत करनी है, यह भी सलाह दूंगा कि एक समय मे सीमित प्रबंधन कि वजह से कम काम उठाना चाहिये। पर अभी तक प्रयास संतोषजनक रहे है और आगे बेहतर परिणाम आने की उम्मीद है।



मेरी शुभकामनायें फेनिल कॉमिक्स के साथ है। 

Sunday, November 27, 2011

पौराणिक वर्गीकरण


(Virgin Comics/Liquid Comics: 2006-2007)

भारतीय कॉमिक्स परिदृश्य मे उभरे एक नए विषय पर लिख रहा हूँ. चीज़ों, बातों, जगहों, व्यक्तियों, आदि का वर्गीकरण करना एक बड़ी समस्या है. मैंने गिनती करना छोड़ दिया है जब मैंने किसी व्यक्ति को असल जीवन मे या इंटरनेट पर गलत वर्गीकरण करने पर समझाया हो. यह एक छदम सामाजिक बुराई है जिसपर कम ही का ध्यान जाता है, विडंबना तो यह है की वर्गीकरण हर जगह है.

खैर, मै यह सब इसलिए बोल रहा हूँ की वर्गीकरण हमे कॉमिक्स मे देखने को मिलता है. इस बार मै बाहरी दुनिया (और बाहर का अनुसरण करते कई भारतियों) की भारत के बारे मे धारणा पर आपका ध्यान लाना चाहूँगा. हाल के वर्षो मे भारतीय कलाकारों की माँग दुनिया भर के कॉमिक्स प्रकाशनों मे बढ़ी है. कारण वही पुराना है की यहाँ के फनकार बाहरी कलाकारों की तुलना मे कम दाम पर उसी गुणवक्ता का काम देते है. बेंगलुरु, मुंबई, दिल्ली, आदि बड़े शेहरो से आउटसोर्स होकर वो कला दुनिया भर मे सराही जाती है. अब विश्व के प्रमुख प्रकाशन भारत मे कई जगह उपलब्ध है, जहाँ नहीं है वहां अपडेट और ज्ञान देता इंटरनेट है. साथ ही भारत मे बच्चो और युवा वर्ग के लिए कुछ नये भारतीय कॉमिक प्रकाशक भी आये है जिनकी कॉमिक्स मुख्यतः इंग्लिश मे होती है.

तो मुद्दे की बात ये है की मैंने ऐसे कई भारतीय कलाकारों की कॉमिक्स और नये भारतीय प्रकाशकों (मै नाम नहीं ले रहा हूँ) की कॉमिक्स पढ़ी. उनमे से अधिकतर मे मैंने एक बात देखी की उनमे वो कॉमिक सीरिज़ पौराणिक कथाओं, ग्रंथों, देव गाथाओं, पर आधारित या उनसे मिलते-जुलते परिवेश की काल्पनिक कहानियाँ थी. इतनी सारी कॉमिक्स मे यही बेकड्रॉप, थीम पढ़ कर मन मे सवाल उठा क्या बस यही है भारत? तरह-तरह के लोगो, जगहों, धर्मो, भाषाओँ, वन्य जीवन, विरासतों, किवदंतियों, प्रदेशों, संस्कृतियों और उनके विशाल इतिहास से मिलकर बना भारत? मन ने तुरंत ही जवाब भी दिया, "नहीं!"

भारत मे बहुत कुछ और भी है या था, जो दुनिया भर को और उसकी युवा पीढ़ी को काल्पनिक परिवेश मे लपेट कर दिखाया जा सकता है. जैसे पूर्वोतर भारत के राज्यों की अनगिनत किवदंतियां को बाहरी दुनिया तो क्या उन प्रदेशो के अलावा दूसरे भारतीय राज्यों तक मे लगभग अनसुनी है या जनजातियों की कुछ अचरच मे डाल देने वाली प्रथाएं और उनके पीछे के कारण. पिछले दशको के इतिहास की घटनाओ (जैसे गोधरा काण्ड, मुंबई बम विस्फोट, 1984 मे घटे सिख विरोधी दंगे और भोपाल गैस काण्ड, आदि) को बेस बनाकर उनपर कुछ काल्पनिक कहानियाँ जो न सिर्फ लोगो संदेश दे बल्कि नयी पीढ़ियों को बताये की भारत मे ऐसा भी हुआ था. पर दुर्भाग्यवश ऐसे विषयों पर प्रकाशकों का ध्यान न के बराबर ही जाता है.

अगर कोई कहे की ऐसा संभव नहीं है या अगर ऐसा किया जायेगा तो पाठको को आनंद नहीं आएगा. तो मै यही कहूँगा की कुशल लेखनी मे सब संभव है. मै भी अपने सीमित संसाधनों से ऐसा ही प्रयास कर रहा हूँ अगर सफल हुआ तो आप सबके साथ सबसे पहले बाँटूगा. वैसे आप इस वर्गीकरण के बारे मे क्या सोचते है?

Thursday, September 22, 2011

चित्रकथा दस मिनट का रफ प्रीव्यू

चित्रकथा का करीब दस मिनट का रफ प्रीव्यू, ख़ास आप सभी कॉमिक्स दीवानों के लिए:

Tuesday, June 22, 2010

कॉमिक्स की दुनिया मे अमर जोड़ियाँ




ये जोड़ियाँ कुछ हटकर है क्योकि ये आम जोड़ियों की तरह नहीं है बल्कि ये साथ आई है अपराध का नाश करने के लिए. और सिर्फ अपराध का नाश ही क्यों ये जोड़ियाँ तो खुद मे सम्पूर्ण है चाहे वो अपने साथी के लिए दबी भावनायें हो या समय-समय पर हास्य. हालाकि, कॉमिक्स और मनोरंजन के बाकी साधनों मे एकल नायको का वर्चस्व है पर फिर भी भारतीय कॉमिकस मे एक से ज्यादा मुख्य किरदार वाली कॉमिक सीरिज की कमी नहीं है. किसी बड़ी समस्या के सामने अकेले नायक के विचार और दो मुख्य किरदारों की सोच बड़ी अलग होती है. कई बार तो विचारो का टकराव या मतभेद बहुत रोमांचक स्थितियां पैदा करते है. 2 मेन लीड किरदार होने से उनसे जुड़े सहायक किरदारों की संख्या भी अमूमन एकल हीरो की सीरिज की तुलना मे बढ़ जाती है. वैसे ऐसी भी सीरिज है जहाँ कोई सहायक किरदार मुख्य किरदार की तरह लगातार बड़ी भूमिकायें निभाता है पर फिर भी हीरो तो हीरो ही रहता है और साइड हीरो को अक्सर "साइड" मे कर दिया जाता है. आशा है पाठको को और विस्तृत और हटकर मनोरंजन के लिए ऐसी जोड़ियाँ आती रहेंगी.


(1) - राज कॉमिक्स -

कोबी - भेड़िया,

फाइटर टोड्स,

हंटर शार्क फोर्स (किंग कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित जो राज कॉमिक्स की एक इकाई थी).

(2) - मनोज कॉमिक्स -

राम - रहीम,

अमर - अकबर,

अकडू जी - झगडू जी,

अमर - रहीम - टिंगू,

मशीनी लाल - अफीमी लाल,

मनकू - झनकू,

सागर - सलीम,

विनोद - हामिद .


(3) - पवन कॉमिक्स -

राम - बलराम.

(4) - राधा कॉमिक्स -

राजा - जानी,

शंकर -अली,

विनोद - हनीफ.

(5) - डाइमंड कॉमिक्स -

चाचा - भतीजा,

मोटू - पतलू,

मोटू - छोटू,

छोटू - लम्बू,

अग्निपुत्र - अभय,

लम्बू - मोटू,

अंडेराम - डंडेराम,

आल्तुराम - फाल्तुराम,

मंगलू मदारी - बंदर बिहारी,

मामा - भांजा,

राजन - इकबाल.

Wednesday, January 14, 2009

"किरीगी का कहर" बचपन के सफर में

ध्रुव कि कौन सी कामिक्स आप पढना चाहते हैं नामक पोल का अंततः वोट देने का समय ख़त्म हुआ.. कुल जमा २८ वोट पड़े.. आप इस चित्र में पढ़ सकते हैं कि किस कामिक्स को सबसे ज्यादा वोट मिले.. अगर इन पांचों कामिक्स को नए और पुराने ढर्रों में बांटा जाये तो पुराने कामिक्स पूर्ण बहुमत से यह चुनाव जीत गए हैं.. हो भी क्यों ना? किस्सागोई में ध्रुव के पुराने कामिक्स किसी भी हालत में नए कामिक्स से बीस ही आते हैं.. सबसे ज्यादा 13 वोट किरीगी का कहर को मिला है.. जिसे आज मैं आपके सामने लेकर आ रहा हूँ..


मेरे घर में कहानी कि किताबें खरीदना मना तो नहीं था मगर कामिक्स पर सख्त पाबंदी थी.. हमारे लिये कहानी कि किताबों का मतलब चंपक, नंदन, नन्हे सम्राट और बालहंस हुआ करते थे.. जब कभी वह अपने किसी मित्र के पास जब वह ढ़ेर सारी कामिक्स देखता था तो मैं सोचता था कि जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो ढ़ेर सारी कामिक्स खरीद कर पढ़ूंगा.. ये कुछ-कुछ वैसा ही था जैसा छुटपन में जब किसी चीज को खरीदने से मना किया जाता है तो हम सोचने लगते हैं कि बड़े होकर वह खूब खरीदेंगे और मौज करेंगे.. मानो बड़े होने पर पैसे अपने-आप ही आ जाते हैं..

खैर, और किसी चीज से बचपना भले ही खत्म हो चुका हो मगर कामिक्स को लेकर यह बचपना अभी भी वैसा ही है.. जहां कहीं भी अपने पसंद की कोई कामिक्स दिखती है, बस टूट पड़ता हूं वहां..

किरिगी का कहर सर्वप्रथम मैंने अपने स्कूल में अपने एक मित्र के पास देखी थी और जब उससे पढ़ने को मांगा तो उसका कहना था कि पहले कोई और डाईजेस्ट कामिक्स या फिर पतली वाली दो कामिक्स लाकर दो फिर मैं यह पढ़ने के लिये दूंगा.. उस समय मेरे पास चाचा चौधरी कि एक कामिक्स और एक नटवरलाल कि कामिक्स थी.. मैंने उसे हामी तो भर दी मगर जिस दिन कामिक्स लाना तय हुआ था उस दिन मैं किसी कारण से नहीं ला सका, मगर वह लड़का अपनी कामिक्स लाना नहीं भूला था.. संयोग से उस दिन किसी बच्चे के पास से एक कामिक्स निकल आयी और फिर पूरे क्लास कि तलाशी शुरू हो गई.. इस तलाशी में उसकी किरिगी का कहर भी पकड़ा गया.. फिर क्या था, ये कामिक्स भी गई हाथ से.. मगर मैंने उसे धोखा नहीं दिया, और मुझे भले ही वो कामिक्स पढ़ने को नहीं मिली मगर मैंने उसे अपनी वो दोनों कामिक्स पढ़ने को दे दी.. :)

इस घटना के लगभग 4-5 साल के बाद जब मैं सपरिवार पटना शिफ्ट हो गया तब मेरे मकान मालिक के बेटे के पास यह कामिक्स थी और मुझे तब यह पढ़ने को मिला..


किरीगी का कहर एक ऐसी कामिक्स है जिसमें कुछ पौराणिक कथानायकों कि किस्सागोई भी मिलेगी और साथ ही साथ कुछ नये वैज्ञानिक तथ्य भी समायोजित हैं.. इस कामिक्स में ध्रुव के कई महानायक एक साथ दिखे हैं, जैसे किरीगी, जिंगालू और धनंजय.. साथ में राक्षसराज चंडकाल को पहली बार इसी कामिक्स में लाया गया था.. ऐक्सन से भरपूर यह एक ऐसी कामिक्स है जिसे मैं ध्रुव के कहानियों के पतन के लिये भी जिम्मेवार मानता हूं.. क्योंकि यह ध्रुव की पहली डाईजेस्ट कामिक्स थी जिसमे वैज्ञानिक तथ्यों से परे हटकर जादू-मंतर और टोने-टोटकों का सहारा लिया गया था.. वैसे इससे पहले ध्रुव कि वू-डू भी आ चुकी थी जिसमें जादू-टोना दिखाया गया था, मगर वह कहीं से भी अविश्वनीय नहीं लगा था..

अब आगे कि कहानी जानने के लिये आप खुद ही पढ़ लें किरिगी का कहर..

कामिक्स डाऊनलोड का लिंक

इस कामिक्स को डाऊनलोड करने के लिये आप फोटो पर भी क्लिक कर सकते हैं..


संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..

मार्वल की दुनिया मे ओबामा


लीजिये पिछली पोस्ट मे जहाँ स्पाईडी का समाचार था कि उसे अपनी सीक्रेट सबके सामने खोलनी पड़ गई वहीँ आज मार्वल की ऑफिशियल घोषणा है कि स्पाईडी की लेटेस्ट कॉमिक में उनके साथ नज़र आयेंगे...अमेरिका के नए नवेले राष्ट्रपति बैरक ओबामा... जी हाँ ये कोई गप्प नहीं हकीक़त है। मार्वल के एडिटर इन चीफ - जो कुसाडा कहते हैं - "राष्ट्रपति ओबामा स्पाईडी की कॉमिक्स संग्रह करते हैं और जब हमें इसका पता चला, तो हमने सोचा क्यों न इन दो ऐतेहासिक व्यक्तित्वों की मुलाक़ात करवा ही दी जाए...तो मार्वल यूनिवर्स जो कि असल यूनिवर्स से काफ़ी मिलता जुलता है, में एक नई कथा रची गई। स्पाईडर मैन का एक फैन आज व्हाइट हाउस में शपथ ग्रहण करेगा जो हम सभी के लिए गर्व की बात होगी और इस क्षण को और भी यादगार बना देगी ये कॉमिक। "

दो अलग अलग समाचारों में इस स्टोरी में दो अलग अलग विलेन बताये गए हैं - Vulture और Chameleon. मार्वल की ओर से अब तक विलेन की पुष्टि हालांकि नहीं हुयी है। Amazing Spiderman Issue # 583 आज से अमेरिका के तमाम स्टोर्स में उपलब्ध है , तो शीघ्र ही इसकी जानकारी भी मिल ही जायेगी।वैसे ये प्रथम बार नहीं है कि किसी अमेरिकी राष्ट्रपति को कॉमिक्स के पन्नों पर आने का सौभाग्य मिला हो। फ्रैंक मिलर की ग्राफिकनॉवल The Dark Knight Returns में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन भी नज़र आए थे किंतु वहाँ उनका रोल ज़रा अलग किस्म का था, इस कहानी में वे सुपरमैन को बैटमैन से बात करके उसे समझाने के लिए दबाव डालते हैं. इसके अलावा १९६३ की एक्शन कॉमिक्स # ३०९ में राष्ट्रपति जॉन ऍफ़ कैनेडी ने क्लार्क केंट का रूप धरा था ताकि दुनिया के सामने सुपरमैन की सीक्रेट न खुले। देखें भारत में कॉमिक्स को इस तरह सम्मान की नज़रों से कब देखा जायेगा ।

-आलोक

Sunday, January 11, 2009

Tin-Tin के जन्मदिन पर बेतुका हंगामा

आज टिन-टिन का ८०वाँ जन्मदिन है और आज ही मैंने यह खबर पढ़ी कि टिन-टिन Gay है.. एक ब्रिटेन के कार्टूनिस्ट Parris ने यह नया विवाद शुरू किया है और उनका कहना है कि टिन-टिन Gay है.. उन्होंने यह निष्कर्ष इस बात से निकला कि अब तक के ८० सालों के टिन-टिन कि कहानियो में लगभग ३५० कैरेक्टर का समावेश हुआ है और जिनमे से अधिकतर पुरुष पात्र ही थे.. उनकी बातों में मुझे भी कुछ तर्क तो दीखता है मगर मेरा यह मानना है कि टिन-टिन एक साधारण सा मनोरंजन करने वाला कार्टून कैरेक्टर है जिसने आठ दशको तक लोगों के दिलो पर राज किया है और इस तरह कि बेतुकी बाते कहकर उनके प्रशंसको का दिल दुखाना कहीं से भी उचित नहीं है.. यह भी संभव है कि श्रीमान सस्ती लोकप्रियता पाने के चक्कर में यह कुछ कह गए होंगे जो उन्हें मिला भी.. मगर साथ ही टिन-टिन के प्रशंसको का विरोध भी झेलना पर रहा है.. Belgium में जन्मा यह कामिक कैरेक्टर अपने प्यारे कुत्ते स्नोवी के साथ पिछले ८० सालों से हजारो अखबारों में अपने जासूसी के जलवे दिखाता आ रहा है और लगभग हर भाषा और देश में बेहद पसंद भी किया गया है..

१० जनवरी सन १९२९ में पहली बार Tin-Tin नामक कामिक कैरेक्टर का जन्म हुआ था.. इसे पहली बार फ्रेंच में प्रकाशित किया गया था.. इसे बनाने वाले बेल्जियम के कलाकार का नाम Georges Remi (1907–1983) है.. टिन-टिन के प्रमुख पात्रों के नाम इसका कुत्ता स्नोवी, प्रोफेसर कैलकुलस और कैप्टन हैडोक हैं.. यह अब तक ५० भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है और अब तक इसके लगभग ३०० मिलियन से भी ज्यादा प्रतियाँ विश्व भर में बेची जा चुकी है..

अगर अपनी बात करूँ तो सबसे पहले मैंने टिन-टिन को तब जाना जब मैं ६-७ साल का था.. एक चित्रकारी करने वाली पुस्तक खरीद कर लाया था और उसी में टिन-टिन कि तस्वीर थी.. उस तस्वीर में मैंने ना जाने कितनी ही बार पेन्सिल रंग से रंग भर कर मिटाया था.. यह सन १९८७-८८ कि बात है.. :)



अंत में, बगल साइडबार में दिखाने वाले वोट में हिस्सा लेना ना भूलें.. जो कामिक वोटिंग में जीतेगी, उसे मैं आपके पास लेकर आऊंगा.. और साथ में होगी अपने बचपन कि एक बढ़िया सी कहानी भी जो उस कामिक्स के साथ जुडी हुई हैं.. :) साथ में आपको याद दिलाता चलूँ कि कल वोटिंग कि आखिरी तारीख है..

मैंने इसे कल लिखा था मगर किसी कारणवश कल इसे पोस्ट नहीं कर सका था.. टिन-टिन का जन्मदिन कल १० जनवरी को था..

Saturday, January 3, 2009

डोगा का एनकाऊंटर

आज मैं लेकर आया हूं डोगा का एनकाऊंटर नामक कामिक्स.. यह कामिक्स 2007 के मध्य में आया था और मैंने इसे हावड़ा जंक्शन से खरीदा था.. मेरी नजर में यह डोगा के सबसे अच्छे कामिक्स में से एक है.. आज नेट पर घूमते हुये इसकी ई-कामिक्स मुझे मिल गई तो मैंने सोचा कि क्यों ना इसे आपलोगों से बांट लिया जाये.. आज इस कामिक्स के बारे में मैं ज्यादा नहीं बताऊंगा मगर एक बात जरूर कहूंगा कि डोगा कि कामिक्स में हमेशा से ही हाल-फिलहाल में घटी घटनाओं से संबंधित कहानी ही आपको मिलेगी.. ठीक जैसे इसमें एनकाऊंटर के मुद्दे को लेकर कहानी का ताना बाना बुना है तरूण कुमार वाही जी ने.. मुझे याद आता है कि डोगा कि एक कामिक्स खाकी और खद्दर में भी एनकाऊंटर को लेकर ही कहानी कि शुरूवात की गई थी.. और मुझे खुशी है कि सबसे पहले मैंने ही डोगा कि उस कामिक्स को नेट पर अपलोड किया था.. आज से लगभग 3-4 साल पहले.. जहां मैंने अपलोड किया था वह लिंक तो अब हट गया है मगर मेरे द्वारा अपलोड कामिक्स का लिंक मुझे कई दूसरे जगहों पर दिखी है.. :)

इसे RFN(राज कामिक्स फैन नेशन) नामक और्कुट कम्यूनिटी के सदस्यों ने नेट पर अपलोड किया था, जिसमें मैंने कुछ और छेड़छाड़ की और इसका साईज घटाया जिससे पाठकों को डाऊनलोड करने में कोई परेशानी ना हो, मगर क्वालिटी के साथ कोई समझौता नहीं किया है मैंने.. मैंने छेड़-छाड़ तो की मगर RFN Club के सदस्यों का नाम नहीं हटाया, जिससे मेरे नियमित पाठकों को भी उनके बारे में जानकारी मिले.. :)



इस कामिक्स को डाऊनलोड करने के लिये आप इस चित्र पर क्लिक करें या फिर यहां क्लिक करें..

इसे पढ़ने के लिये CDisplay नामक साफ्टवेयर की आवश्यकता होगी जिसे आप यहां से डाऊनलोड कर सकते हैं.. इस कामिक्स फारमेट के बारे में ज्यादा जानने के लिये आप इस पोस्ट को पढ़ें..

अब चलिये कुछ बातें करते हैं पिछले पोस्ट के बारे में.. संजय बेंगाणी जी हमेशा कि तरह आये और हमारा उत्साह बढ़ा गये.. इस बार चिट्ठाजगत के नाम भी एक कमेंट रहा.. और अंत में हमारे आलोक जी कह गये कि-
वाह.. ये विडियो राज कामिक्स कि साईट पर कुछ समय पहले देखा.. अब तक के भरतीय 3-डी एनिमेशन से इनका स्टार काफी अच्छा है.. ध्रुव के कैरेक्टर के बालों पर अभी काम कुछ बाकी लगा.. मैं खुद इस विषय पर लिखने कि सोच रहा था मगर आप तो गुरू निकले..
हमारा उनसे कहना है कि आलोक जी, आप तो लिख ही डालिये इस पर एक पोस्ट.. आपका लिखा पढ़ने में एक अलग ही आनंद है.. हर बात तथ्यपरक होती है आपकी.. :)


Note - All download links are removed

Sunday, September 14, 2008

ग्रैंड मास्टर रोबो

हर सुपर हीरो का अपना एक सुनिश्चित सुपर विलेन भी होता है.. जैसे स्पाईडर मैन का ग्रीन गॉबलिन.. बैटमैन का जोकर.. कुछ ऐसा ही ध्रुव के भी कुछ सुपर विलेन सुनिश्चित हैं.. और इनमें प्रमुख हैं ग्रैंड मास्टर रोबो, चुम्बा, बौना वामन इत्यादी..

आज मैं आपके सामने लेकर आया हूं ग्रैंड मास्टर रोबो वाली ध्रुव की पहली कॉमिक.. ये एक फुल एक्सन पैड कामिक है.. बस लगातार पढते जाईये, ज्यादा सोचने का मौका नहीं मिलेगा.. एक के बाद एक लगातार नये एक्सन सीन बनते जायेंगे.. इस कॉमिक्स में ध्रुव के एक नये मित्र से भी परिचय कराया गया था, जो अभी तक उसकी कॉमिक्सों में आता है.. जब कभी भी ध्रुव मुसीबत में होता है तब उसका ये मित्र उसकी सहायता करने जरूर पहूंचता है.. इसका नाम धनंजय है.. अब यदी सारा कुछ मैं यहीं बता दूंगा तो आप क्या पढेंगे? सो बेहतर है की आप इस कॉमिक्स का मजा उठायें.. :)

इस कामिक्स का डाऊनलोड लिंक लिंक यहां है.. वैसे आप इसके चित्र पर भी क्लिक करके डाऊनलोड कर सकते हैं.. 

इसके लेखकों और चित्र बनाने वाले कलाकारों की जानकारी मुझे नहीं है.. अगर आपको हो तो मुझे जरूर बताईयेगा..

















संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..

Friday, September 5, 2008

चरित्र जाने अनजाने भाग १ (इंद्रजाल कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित अनजान चरित्र)

डोगा वाली पोस्ट में मैंने कहा था कि कुछ अनजाने चरित्रों के बारे में बात करूँगा मगर समय के अभाव में लिखना संभव न हो पाया. बीच में एक बार लिखने का मूड भी बना तो एस्टरिक्स के विषय में पोस्ट दे मारी ऐसे में हमारे अनजाने चरित्र बेचारे फिर से उपेक्षित रह गए. चलिए देर आयद दुरुस्त आयद आज उनकी बातें करें जो बेचारे कॉमिक्स की दुनिया में चुप चाप आए और खामोशी की चादर ओढे गुमनामी की गर्त में खो गए, कभी इस असफलता के पीछे कहानियों का अभाव रहा कभी mainstream सुपरहीरोज़ के दीवाने पाठकों की बेरुखी. कारण जो भी हो मगर बड़ा बुरा लगता है कि ब्लॉग की दुनिया में भी इन बेचारों का ज़िक्र कभी कभार भूले भटके ही देखने को मिलता है.
इससे पहले कि इन किरदारों की बातें शुरू करुँ सोचता हूँ ज़रा सा परिचय भारतीय कॉमिक बुक इतिहास से भी कराता चलूँ.
भारत में कॉमिक्स का आगमन वैसे Illustrated Weekly Of India के साथ हुआ (यदि यह information ग़लत है तो सुधि पाठक कृपया मुझे सुधारेंगे) जिसमें साप्ताहिक कॉमिक स्ट्रिप्स छपा करती थी. मगर सही मानो में कॉमिक्स की शुरुआत हुयी टाईम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप की इंद्रजाल कॉमिक्स के साथ, जिसमें एक लंबे समय तक फैंटम, मेंड्रेक और फ्लैश जैसे विदेशी सुपर हीरोज़ छाये रहे. मगर वक्त के साथ भारतीय नायकों की कमी महसूस की जाने लगी ऐसे में १९७६ में आबिद सुरती (जिन्होंने भारत की प्रथम कॉमिक स्ट्रिप बटुक जी की रचना की थी) ने रचना की बहादुर की और गोविन्द ब्राह्मणिया (जो कि उन दिनों इंद्रजाल कॉमिक्स के कवर बनाया करते थे) के चित्रों से सजे बहादुर बेला के कारनामे लोगो के दिल को बहलाने लगे.
बहादुर की सफलता से प्रभावित हो कर प्रकाशकों ने कुछ और भारतीय चरित्रों की कॉमिक्स निकलने का प्लान बनाया और प्रदीप साठे द्वारा रचित 'आदित्य - अनजान लोक का मसीहा' की कहानियाँ १९८७ से इंद्रजाल में प्रकाशित होने लगी (आदित्य की कहानियाँ किसने लिखी हैं यह अज्ञात है).
आदित्य की कहानी शुरू होती है जब एक दिव्य शक्तियों वाला भिक्षुक सन्यासी आदित्य हिमालय की तराई में बसे किसी गाँव आ पहुँचता है. अपने origin के विषय में आदित्य ख़ुद भी कुछ नहीं जानता. बहरहाल आदित्य की कहानियाँ बड़ी जल्दी बंद हो गई और साथ ही उसका रहस्य भी रहस्य ही रह गया. १९८८ में इंद्रजाल ने प्रकाशित करनी शुरू की दारा सीरीज़. दारा की कहानियाँ कामिनी उप्पल की थी और चित्र प्रदीप साठे के.
(लेखिका कामिनी उप्पल की जानकारी और उपरोक्त चित्र साभार इस ब्लॉग से) दारा का किरदार काफ़ी कुछ ऐसा था कि अब सोच कर लगता है कि वह ब्रूस वेन और James Bond का मिला जुला रूप था. दारा ब्रूस की तरह काफ़ी मालदार हीरो था, जहाँ ब्रूस की संपत्ति खानदानी है वहीँ दारा दरअसल काश्मीर के एक राजघराने का इकलौता वारिस है और उसका असली नाम है राणा विक्रम वीर सिंह, रियासत के लोग उसे राजा साहब कह कर बुलाते हैं. इंटेलिजेंस विंग के मुखिया मि. राव और कुछ ख़ास लोगो के अलावा कोई भी दारा की असली पहचान नहीं जानता. इंटेलिजेंस विंग के Spy के रूप में दारा अपना मिशन पूरा करके अपनी रियासत कब पहुँच जाता है ये कामिनी उप्पल और प्रदीप साठे के अलावा कोई नहीं जानता. मैंने दारा की कुछ कॉमिक्स बचपन में पढ़ी हैं पर दारा का प्रकाशन कब बंद हुआ इस विषय में मैं अनभिज्ञ हूँ. इन्टरनेट पर काफ़ी खोजने पर सिर्फ़ यह ब्लॉग हाथ लगा जिसके मुताबिक दारा की कुल आठ कहानियाँ प्रकाशित हुयी हैं और अप्रैल १९९० में इंद्रजाल का प्रकाशन बंद होते ही दारा की कॉमिक्स बंद हो गई.

(अनजाने चरित्रों की फेहरिस्त काफ़ी लम्बी है और उनकी कहानियाँ भी यदि यह पोस्ट आपको पसंद आयीं हो तो अपनी कमेंट्स देंगे और मैं भाग २ लिख कर पोस्ट कर दूँगा, इच्छा है कि कुछ शेरबाज़, अनोखा चोर रुस्तम, अंगूठे लाल, सागर सलीम, जौहर, राजा और पिद्दी पहलवान पर भी लिखूं ये सारे चरित्र मनोज कॉमिक्स और राज कॉमिक्स पर समय समय पर प्रकाशित हुए और वक्त के साथ गुमनामी के अंधेरों में खो गए, इनके अलावा मानसपुत्र और डिटेक्टिव कपिल पर भी लिखने की इच्छा है जो कि अनुपम सिन्हा कि कलम से तब निकले थे जब सुपर कमांडो ध्रुव का जन्म भी नहीं हुआ था.)

- आलोक

पुनःश्च : काफ़ी माथापच्ची के बाद भी आदित्य की कोई इमेज इन्टरनेट पर नहीं मिल पायी।

Saturday, August 30, 2008

बेसी डोगा-डोगा मत चिल्लाईये

हम आपके कामिक मित्र हैं आलोक भैया। हम तो बस आपके लिये एक तोहफा लेकर आयें हैं। डोगा की शुरूवाती तीनों कामिक्स का कवर, जिससे आप डोगा के उपर और भी बढिया पोस्ट लिख सकें, और जैसा चाहें वैसा पोस्ट कामिक्स के उपर ठेलते रहें। आप अपने पहले ही पोस्ट से डोगा-डोगा चिल्लाये हुये हैं। अब बेसी मत चिल्लाईये। प्रताप मुलीक जी की मौलिक तस्वीर के साथ। वैसे आपकी जानकारी के लिये हम आपको बताते जाते हैं की डोगा के बहुते बड़े पंखा हमउ रह चुके हैं.. :)


पहली कामिक्स - कर्फ़्यू


दूसरी कामिक्स - ये है डोगा


तीसरी कामिक्स - मैं हूं डोगा

Saturday, August 23, 2008

मिट्टी की खुश्बू लिये एक लोककथा

एक गुणे चार

राजस्थानी लोककथाओं में विविधता है, रोचकता है.. ना जाने कब से कही सुनी जाती रही है, कही सुनी जाती रहेंगी.. लोक कथायें कुछ बड़ी होती है कुछ छोटी.. जैसे यह छोटी लोककथा.. एक गुणे चार..