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Wednesday, October 11, 2017

"चाचा चौधरी" और नीली व्हेल!

यक़ीनन, "चाचा चौधरी" का दिमाग़ कंप्यूटर से भी तेज़ चलता था!

"चाचा चौधरी" लाल साफा बांधते थे और उनकी धनुष जैसी मूंछों के छोर तीर की तरह नुकीले थे।

बलिष्ठ "साबू" उनका संगी-साथी था, जिसकी भुजाओं में तो मछलियां मचलतीं, लेकिन जिसकी अक़्ल उसके घुटनों में बसती थी।

"बिल्लू" के बाल उसकी आंखों के सामने लहराते रहते थे। जिस दौर में हमारी नानियां हमें हिदायत देती थीं कि बाल इतने ही बड़े हों कि माथा दिखता रहे, तब "बिल्लू" एक शैतान लड़के का उपयुक्त प्रतीक था।

फ्रॉक पहनने वाली "पिंकी" बॉब-कट बालों में नियमित हेयरक्लिप लगाती थी।

"रमन" तब के मिडिल क्लास वेतनयाफ़्ता व्यक्ति का "प्रोटोटाइप" था। स्कूटर चलाने वाला। टेलीफ़ोन बिल भरने के लिए क़तार में लगने वाला। लौकियों के लिए मोल-भाव करने वाला कोई लिपिक!

ये तमाम चरित्र कार्टूनिस्ट प्राण ने रचे थे।

बाज़ार में अपनी प्रासंगिकता गंवा देने वाले ये चरित्र आज भी अगर हममें से बहुतों को याद हैं, तो इसका कारण यह नहीं है कि वे बहुत विलक्षण थे। वास्तव में, इसके ठीक उलट, इसका कारण यह है कि वे बहुत आमफ़हम थे। मानो चिमटियों की मदद से हमारे आस-पड़ोस से चुने गए चेहरे हों।

कार्टूनिस्ट प्राण से जब एक बार उनके कार्टून-चरित्रों की लोकप्रियता का राज़ पूछा गया तो उन्होंने भी यही कहा था कि "वे इसलिए लोकप्रिय हैं, क्योंकि वे बहुत मामूली हैं। और बहुत विनम्र।"

अख़बारों में कार्टूनिस्ट के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले प्राण कुमार शर्मा ने वर्ष 1969 में जब पहली बार "लोटपोट" के लिए चाचा चौधरी का किरदार रचा, तब हिंदी के पास अपना कोई लोकप्रिय "कार्टून स्ट्रिप" नहीं था।

अख़बारों में "फैंटम" और "सुपरमैन" जैसे अतिमानवीय कॉमिक-स्ट्रिप छाए रहते थे। तब छपने वाली कॉमिक्सें भी विदेशी कॉमिक्सों का अनुवाद भर होती थीं। इन मायनों में प्राण को उचित ही भारतीय कॉमिक्स जगत का पितामह कहा जा सकता है। मॉरिस हॉर्न ने उन्हें अकारण ही "भारत के वॉल्ट डिज्नी" के खिताब से नहीं नवाज़ा था।

1980 के दशक का वह दौर था, जब दूरदर्शन पर बुधवार को "चित्रहार" आता था और रोज़ शाम ठीक 7 बजकर 20 मिनट पर वेद प्रकाश या सलमा सुल्तान "समाचार" सुनाते थे, तब गर्मियों की छुट्टियों में "सितौलिये", "बैठक-चांदी" या "लंगड़ी-पव्वे" से ऊबे बच्चे कॉमिक्सों से मन बहलाया करते थे।

महज़ आठ आने में (डाइजेस्ट हों तो एक रुपया) में ये कॉमिक्सें चौबीस घंटों के लिए किराये पर मिल जाती थीं। तब गली, मोहल्लों, नुक्कड़ों पर जूट की रस्स‍ियों पर औंधे मुंह टंगी इन कॉमिक्सों का दृश्य आम था। आज वह मंज़र खो गया है।

"सुपर कमांडो ध्रुव", "नागराज", "डोगा", "हवलदार बहादुर", "बांकेलाल", "फ़ाइटर टोड्स", "भेड़िया" इत्यादि तब बच्चों की कल्पनाओं में रचे-बसे होते थे, लेकिन सबसे लोकप्रिय थे कार्टूनिस्ट प्राण द्वारा रचे गए "चाचा चौधरी" और "साबू"।

पुलक और प्रमोद के इस सहज-रंजक माध्यम से बच्चे पढ़ने में दिलचस्पी लेना सीखते, चित्र-भाषा के रहस्यलोक में विचरने के सुख से पहले-पहल परिचित होते और यथार्थ व फ़ंतासी के द्वैत को बड़े मासूम तरीक़े से बूझते।

शायद उस पीढ़ी के बच्चे "पथेर पांचाली" के दुर्गा और अपु के अंतिम वंशज थे, जिनके लिए कांस के सफ़ेद फूलों की लहर के बीच काला धुंआ छोड़कर गुज़र रही रेलगाड़ी दुनिया का सबसे बड़ा विस्मय थी!

बाद इसके, फिर भूमंडलीकरण की सर्वग्रासी सुनामी ने जिस चीज़ पर सबसे पहले मर्मांतक प्रहार किया, वह बच्चों का अबोध विस्मय ही था। कार्टूनिस्ट प्राण के मामूली और मध्यवर्गीय किरदारों को तो ऐसे में अप्रासंगिक और यहां तक कि "हास्यास्पद" भी हो ही जाना था।

उस पीढ़ी की जगह अब एक उद्धत, उत्सुक, अस्थिर और सूचना-व्याकुल पीढ़ी चली आई है। हद है कि अब तो आत्मसंहार भी गूगल के एप स्टोर से डाउनलोड किया जा सकने वाला "गेम" बनकर रह गया है, गोयाकि जवान होकर मर जाना महज़ एक अफ़साना हो, अफ़वाह हो, जिसके साथ हम अपने अंगूठों की जुम्बिश से खेलते हुए अपनी ऊबी हुई दोपहरों को भर सकते हैं, जैसे किसी ख़ाली सूटकेस में रद्दी अखबारों को ठूंसा जाता है!

शायद, एक अबोध पीढ़ी के बदले में चतुर-चपल और सूचनाओं से लैस पीढ़ी अंतत: एक उपयोगी सौदा हो, लेकिन शायद यह एक महंगा सौदा है!

यक़ीनन, "चाचा चौधरी" का दिमाग़ कंप्यूटर से भी तेज़ चलता था! या शायद, आख़िरकार यह पूरी तरह सच नहीं ही हो।

भूमंडलीकरण की कुशाग्रताओं के साथ ढाई दशक में "अढ़ाई कोस" चलने के बाद अंतत: शायद हमें समझ आए कि "चाचा चौधरी" उस कंप्यूटर से अधिक मेधावी नहीं हो सकते थे, जो युद्धों को एक खेल में तब्दील कर सकता है और आत्मनाश को नीली मछलियों के भुलावों में!

फिर भी, ज़िंदगी के कई पहलू ऐसे होते हैं, जिनमें वक़्त से पिछड़ जाना ही बेहतर होता है। और यह बात इतनी साफ़-सरल है कि "साबू" भी इसे बड़ी आसानी से समझ सकता है, जिसकी अक़ल उसके घुटनों में बसती थी!

Wednesday, August 6, 2014

कार्टूनिस्ट प्राण जी को पीढ़ियों के बचपन की काव्य श्रद्धांजलि - मोहित शर्मा (ज़हन)



जिस राह कोई चला नहीं,
उस पर कदम बढ़ाये,
आम लोगो के बीच से ख़ास किरदार उठाये,
फैंटम-मैंड्रेक और फैंटसी की लथ छुड़वाई,
कितनी ही किवदंती याद करवाई,
जाने कैसे सहजता से कथाओं में अपना देसीपन भर लाये। 

दशको तक चाचा क्या पिंकी ऊँगली पकड़ चलाये,
भाषा की बंदिश को तोडा,
तरह-तरह बंदो को जोड़ा,
झूठी मिथको को झकझोरा,
बूढे, बच्चो और गृहणियों को पकड़ सुपरहीरो से करतब करवायें। 

आपका उदाहरण दें विस्मित किशोर आज तक कला में भविष्य बनायें,
मनोरंजन से जनचेतना की पूरी हुयी उनकी आशा,
ढाई साल के बच्चे से लेकर अर्द्धचेतन अधेड़ तक समझे उनकी भाषा। 
अरसो यूँ गुदगुदा कर आँखें नम करवायें,
लाखो चित्र, करोड़ों प्रशंषक,
आसमान को देखें एकटक,
चाचा जी के पापा को वापस बुलायें,
ताकि फिर से वो अपना एक स्वप्निल जगत बनाये,
और फिर से कितनी पीढ़ियों के बचपन में प्राण फूँक जायें। 

आज हमारे बीच प्रख्यात कलाकार, कथाकार, कार्टूनिस्ट और जनसेवक श्री प्राण कुमार शर्मा जी नहीं रहे। अनेको देसी-विदेशी सम्मानों (जिनमे प्रमुख है इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्टस द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट (2001), कॉमिक कॉन इंडिया का लाइफ टाइम अचीवमेंट, लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स के पीपल ऑफ़ दी ईयर सूची में सम्मिलित (1995), उनकी कॉमिक 'हम एक है' (रमन) का तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा राष्ट्रीय विमोचन (1983), अमेरिका के इंटरनेशनल म्यूज़ियम ऑफ़ कार्टून आर्ट में उनकी कला का स्थाई प्रदर्शन) के अलावा उनकी सबसे बढ़ी उपलब्धि है 1960 के दशक से लेकर अब तक कई पीढ़ियों पर एक सकारात्मक असर डालना और मुझे विश्वास है आगे भी उनका अमर काम ऐसा करता रहेगा। रोज़मर्रा के जीवन से ऐसे किरदार उठा लाये जिन्होंने आयातित विदेशी मनोरंजन के बाज़ार मे एक बड़ा हिस्सा ले लिया। उनकी आत्मा को शांति मिले और उनके काम से यूँ ही लोग प्रेरित होते रहे। प्राण जी को मेरा शत-शत नमन!

- मोहित शर्मा (ज़हन)

Thursday, September 22, 2011

चित्रकथा दस मिनट का रफ प्रीव्यू

चित्रकथा का करीब दस मिनट का रफ प्रीव्यू, ख़ास आप सभी कॉमिक्स दीवानों के लिए:

Tuesday, March 29, 2011

चित्रकथा के वीडियो टीज़र्स ख़ास आपके लिए

प्रिय मित्रों यदि आप फेसबुक पर हमारे चित्रकथा पेज के सदस्य हैं तो आपको पता ही होगा  कि हमने चित्रकथा  के वीडियो टीज़र्स वहाँ रिलीज़ करने शुरू किये हैं... यहाँ प्रस्तुत हैं हमारे दो टीज़र्स ख़ास आपके लिए...आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा - आलोक शर्मा (चित्रकथा