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Friday, March 30, 2018

मैं हैरान था, गिज्मो डक जस्टिस लीग में क्यों नहीं?

शुरुवात करते हैं राज कामिक्स से.. निःसंदेह नागराज और ध्रुव सालों से राज कामिक्स का चेहरा रहे हैं. उसके बाकी चर्चित किरदार, जैसे डोगा परमाणु भोकाल उस चेहरे के पीछे छिपे रहते हैं. अब मसला जब भी नागराज और ध्रुव के बीच अटकता है तो सामान्तः ध्रुव नागराज पर भारी पड़ता है, मगर अगर मसला किसी खलनायक के विरुद्ध जाता है तो लगभग हर जगह नागराज ही नागराज छाया रहता है.. इन बातों से शुरुवात करने का कारण आपको आखिर में मिलेगा.

अब आते हैं जस्टिस लीग पर. हमारी पीढ़ी के वे लोग जो कार्टून के दीवाने रहे हैं वो अब भी उन दिनों को कभी ना कभी जरुर याद करते हैं जब शाम ढले DD Metro पर कार्टून्स आते थे और हम सभी बेसब्री से अपने फेवरेट कार्टून का इन्तजार किया करते थे.. चंद मेरे जैसे लोग भी थे जो लगभग हर कार्टून उतनी ही श्रद्धा से देखते थे.. चाहे बैटमैन हो या सुपरमैन या जस्टिस लीग या ममीज अलाइव या स्पाइडरमैन या एक्समैन या फिर कोई और? और हमारे लिए जस्टिस लीग का मतलब वे किरदार हुआ करते थे जिन्होंने इसकी शुरुवात की थी.. सुपरमैन, बैटमैन, वंडर वुमन, हॉक गर्ल, मार्सियन, फ्लैश और ग्रीन लैटर्न. क्या मैंने साईबोर्ग या एक्वामैन का नाम लिया? नहीं ना! क्यों नहीं लिया? क्योंकि वे इसके पार्ट थे ही नहीं..मैंने इनकी शुरुवाती कामिक्स नहीं पढ़ी, क्योंकि उस समय उन कामिक्स तक पहुँच भी नहीं थी और जो गर पहुंच होती भी तो मेरी जेब की पहुंच से बाहर होती.. मेरी समझ कार्टून देख कर ही बनी.. एक्वामैन का जिक्र जस्टिस लीग कार्टून के चौथे और पांचवे एपिसोड में हुई और वह आगे भी समय-समय पर दिखता रहा, मगर उसे जस्टिस लीग का पार्ट नहीं कह सकते हैं.. और बात साईबोर्ग की तो वह पहले सीजन के ख़त्म होने के बाद कभी दिखा होगा(जी हाँ, दुसरे सीजन से इतने सारे सुपरहीरो का जमघट लगा की तीन-चार किरदार को छोड़ और कोई याद ही नहीं। जैसे ग्रीन एरो, ब्लैक कैनरी, सजाम, इत्यादि).. वह भी तब जब हॉक गर्ल इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दी(क्यों, वह एक अलग कहानी है, फिर कभी).
सिनेमा में बैटमैन ने इस लीग की शुरुवात की, जबकि कार्टून में बैटमैन इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था, क्योंकि बैटमैन ऑलवेज वर्क्स अलोन!

जब कुछ भी दिखाना था तो अपने अंकल स्क्रूच का गिज्मो डक क्या बुरा था, उसे भी हिस्सा बना ही लेते. वह तो फ्लैश से भी बेहतर कामेडी कर लेता है!

सिनेमा में सब कुछ सलीके से चल रहा था, मगर सिर्फ तब तक जब तक की सुपरमैन कि इंट्री नहीं हुई..मैंने किसी कामिक्स या कार्टून में सुपरमैन को यह कहते सुना हूँ की उसे किसी से हारने का डर है तो वह वंडर वुमन और मार्सियन से है. मगर सिनेमा में वंडर वुमन उसके सामने कुछ भी नहीं..कार्टून के किसी एपिसोड में फ्लैश को इतनी तेज गति से भागते हुए लेक्स को हराते देखा है कि डाइमेंशन का फर्क भी ख़त्म होने लगता है, मगर यहाँ सुपरमैन उसकी गति से भी तेज निकला.. बैटमैन को पता है की सुपरमैन क्रिप्टोनियन या फिर बिजली के तेज झटके या जादू के सामने बेबस है, लेकिन वह बिना तैयारी के उससे भिड जाता है.. यार मजाक बना कर रख दिया है बाकि सुपरहीरो का..(मैं साईबोर्ग और एक्वामैन का जिक्र भी जरुरी नहीं समझता)..

एक अच्छे भले सिनेमा का यह हाल कर डाला इन्होने.. मैं DC के किरदार को दिल से पसंद करता हूँ, मगर सिनेमा मुझे मार्वल का पसंद है.. वजह बताने की जरुरत अभी भी है क्या?

PS - हाँ हाँ, मुझे पता है इसे रिलीज हुए महीनों गुजर चुके हैं। मगर मैंने तो हाल ही में देखा है ना!

Sunday, September 8, 2013

निगेटिव्स - परचेजिंग रिव्यू

निगेटिव्स हाथ में आया. ठीक तीस अगस्त को मैंने ऑर्डर किया राज-कामिक्स के वेब साईट से. अभी तक के अच्छे अनुभव रहे हैं राज-कामिक्स के साईट से ऑर्डर करने के, मगर वह अनुभव ही क्या जिसमें खराब कुछ भी ना हो? सो इस बार ख़राब अनुभव मिलकर अनुभव का चक्र पूरा कर दिया राज कामिक्स ने. सिलसिलेवार ढंग से बताता हूँ.

1. तीस अगस्त को ऑर्डर किया, वह भी सबसे महंगे वाले कूरियर सर्विस से. मगर कामिक्स मिली पूरे आठ दिन बाद. शिकायत इस बात की नहीं कि आठ दिन बाद मिली. देरी किसी भी कारण से हो सकती है, सो इस मुआमले में छूट दे दी मैंने. शिकायत तो इस बात की ठहरी की मैं लगातार दो-तीन दिन से इन्हें मेल और फोन के जरिये संपर्क करना चाहा मगर इनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.

2. कामिक्स की बात आगे के नंबरों में, फिलहाल तो अनुपम सिन्हा जी, मनीष गुप्ता जी और संजय गुप्ता जी द्वारा हस्ताक्षरित पन्ने को देख दिल खुश हो गया. मुझे पता है की उन्होंने कई कामिक्स पर बिलकुल यही शब्द अंकित किये होंगे, मगर लिखने के तरीके से यह नहीं लग रहा था की यह बस यूँ ही लिख दिया गया हो. अपनापन झलक रहा था उन शब्दों से... शुभकामनाएं...सप्रेम...आपका... मगर वहीं "युगांधर" कामिक्स पर संजय गुप्ता जी और मनीष गुप्ता जी के हस्ताक्षर देख ऐसा लगा जैसे मात्र खानापूर्ति की गई हो. खैर, उनकी भी अपनी कोई वजह और व्यस्तता रही होगी.

3. दफ़्तर से घर पहुंचा...कामिक्स हाथ में थी.. तो पहला काम "निगेटिव्स" को ही निपटाने का हुआ. पढ़ा, और सच कहूँ तो पढ़कर मजा नहीं आया. शायद मैंने बहुत अधिक अपेक्षा कर रहा था, जहाँ अधिक अपेक्षा रहती है वहीं हम निराश भी होते हैं. एक पल को तो लगा की शायद मैं अब रेणु, निर्मल वर्मा, एंगल, गैब्रियल मार्केज जैसे लेखकों को पढ़ते-पढ़ते कामिक्स का लुत्फ़ ही उठाना भूल गया था. मगर निगेटिव्स को पढने के बाद जब साथ आये अन्य ध्रुव के कामिक्स को पढ़ा तो लगा कि मैं अभी भी लुत्फ़ उठाता हूँ..मतलब यही की कहीं कुछ कमी थी. शायद मैं कम से कम "नागायण" के टक्कर की उम्मीद तो कर ही रहा था. दरअसल होता यह है की एक बार जब हम किसी भी कला के श्रेष्ठता को देख लेते हैं तो उम्मीदें भी वैसी ही हो जाती है. शायद उतनी अपेक्षा ना होती तो बेहतरीन लगती.

4. आखिर में ग्रीन पेज पढ़ते वक़्त अधिक मजा आया. अनुपम सिन्हा जी द्वारा लिखा गया ग्रीन पेज उनके बिलकुल दिल से निकालता सा लगा. इस कामिक्स के आदि से अंत तक बेहद विस्तार से बताया उन्होंने. क्या-क्या परेशानियाँ आई, और उससे उन्होंने कैसे पार पाया. एक साथ कैसे कई प्रोजेक्ट्स पर काम करते रहे. वगैरह-वगैरह बातों से यह साफ़ झलक रहा था की कितने जुझारू और अपने काम के प्रति कितने कर्तव्यनिष्ठ हैं वह.

5. आखिरी बात...अपने इस कामिक्स ब्लॉग के एक मोडरेटर आलोक शर्मा को ग्रीन पेज में देख उत्साह अपने चरम पर था...वाकई मजा आ गया उन्हें ग्रीन पेज पर देख कर.. :-)

रेटिंग : **** आऊट ऑफ़ फाईव.

आप सोच रहे होंगे की इतनी आलोचना के बाद भी चार रेटिंग कैसे? तो दोस्तों वह इसलिए क्योंकि कामिक्स वाकई शानदार है. चाहे पेज क्वालिटी हो या कहानी या चित्रांकन. बस मुझे उतना पसंद इसलिए नहीं आया क्योंकि मैं बहुत अपेक्षा रख रहा था. आखिर इतने सालों से अनुपम सिन्हा जी इस पर काम कर रहे हैं तो मेहनत रंग क्यों ना लाएगी?

Saturday, April 24, 2010

नागायण - वरणकांड

यह कामिक्स श्रृंखला मेरी नजर में राज कामिक्स का अभी तक के बिक्री का सारा रिकार्ड तोड़ डाले थे.. आज मैं इसके पहले भाग का प्रस्तावना जैसा ही कुछ ले कर आया हूँ, जिसमे इसके प्रमुख पात्रों का जिक्र है..

मैंने जब से ये ब्लॉग शुरू किया है तभी से अपने ही बनाये इस नियम को मानता चला आ रहा हूँ कि मैं कोई भी ऐसा कामिक्स का लिंक यहाँ ना दूँ जो पिछले दो वर्षों मे आया हो या फिर अभी भी उसकी खूब बिक्री हो रही हो.. मैं कुछ भी ऐसी सामग्री यहाँ नहीं डालना चाहता हूँ, जिससे कामिक्स इंडस्ट्री पर कुछ भी बुरा असर ना हो, जिससे भविष्य में और भी कामिक्स पढ़ने को मिले.. :) मगर फिर भी मुझे अफ़सोस के साथ कहना पर रहा है कि लगभग सभी नई-पुरानी कामिक्स इस अंतर्जाल पर कहीं ना कहीं बिखरे पड़े हैं..

फिलहाल तो आप इस कामिक्स के कुछ झलकियाँ देखें..

प्रमुख पृष्ठ :



नागराज :



ध्रुव :



नागपाशा :



नताशा :



विसर्पी :



बाबा गोरखनाथ :


Thursday, April 22, 2010

जब प्रतिशोध लेने कि बात करने वाला पिट गया, मेरा मतलब विलेन :)

सन 1996 कि बात है, उस जमाने में कामिक्स का नशा सर चढ़ कर बोला करता था(वैसे बोलता तो अभी भी वैसे ही है :D).. मगर घर में पापा-मम्मी कामिक्स के धुर-विरोधी हुआ करते थे.. मगर एक दिन "जैसे हर कुत्ते का एक दिन होता है" मेरा भी दिन आया, और पापा जी मुझे बोले कि "जाओ बच्चा तुम्हे सौ रूपये देता हूँ.. इसमें जितना कामिक्स खरीद सकते हो खरीद लो.." उनकी यह वाणी मुझे किसी आकाशवाणी से कम नहीं लगी.. ठीक वैसे ही जैसे महाभारत में देवकी के ब्याह के समय कंस को आकाशवाणी सुनाई दिया था.. (वैसे कभी कभी सोचता हूँ कि महाभारत काल और उसके आस पास के काल मे इत्ते सारे आकाशवाणी क्यों लोगों को सुनाई देता था?? :o ;))

अब एक अंधे को क्या चैये, बस दो ऑंखें.. उस समय मैं बिक्रमगंज नामक शहर में रहता था, जो बिहार के रोहतास(सासाराम) जिले में अवस्थित है.. वहाँ राज कामिक्स मिलता नहीं था और मैं अपने अमूल्य सौ रूपये डायमंड कामिक्स के चाचा चौधरी जैसे कामिक्स पर खर्च करने को तैयार नहीं था.. अब विकट स्थिति जान पड़ी.. करें तो क्या करें.. बस संभाल कर रख लिया वह सौ रूपया, सोचा "केकयी" जैसे ही समय आने पर इसका उपयोग करूँगा और बेचारे पापा मना भी नहीं कर पायेंगे..

फिर वो दिन भी आया जब पापाजी को किसी मीटिंग में डेहरी-ऑन-सोन जाना था और साथ में हम भी लटक लिए.. पापाजी गए मीटिंग के अंदर और हम उनके बॉडीगार्ड साहब को लेकर पहुँच गए वहाँ के रेलवे स्टेशन.. ध्रुव या नागराज का कोई कामिक्स तो मिल ही जायेगा, इसी उम्मीद में.. और वहाँ से ख़रीदे तीन कामिक्स.. तीनो के तीनो ही ध्रुव के..
  • "स्वर्ग कि तबाही"

  • "दलदल" और

  • "ब्लैक कैट"


जिसमे से स्वर्ग कि तबाही ध्रुव कि एक दूसरी कामिक्स का आखरी भाग था, उसके पहले भाग का नाम आदमखोरों का स्वर्ग था.. इन दोनों कामिक्स को मैं पहले भी आपके सामने ला चुका हूँ जिसका लिंक उन कामिक्स के नाम के साथ दे रहा है मैंने.. Link Deleted on request of Sanjay Gupta Ji..

दूसरी कामिक्स "दलदल" अपने आप में पूरी कामिक्स थी.. आगे पीछे कोई भी रोवनहार नहीं था उस कामिक्स का, मतलब कोई दूसरा भाग नहीं था.. :)

और तीसरी कामिक्स "ब्लैक कैट" के साथ भारी पंगा हो गया.. लेते समय मैंने देखा नहीं और पढ़ने पर पता चला कि यह तो पहला भाग है.. अब दूसरा भाग कहाँ से आये.. भारी लोचा.. अब तो पटना आयें तो यहाँ पता करे उसके दूसरे भाग के बारे में.. डेहरी-ऑन सोन जाए तो फिर वही चक्कर.. पटना के पुस्तक मेला में भी मेरे घूमने कि वजह सिर्फ यही कामिक्स थी(उस जमाने में साहित्य भगोरों में मेरा नाम अव्वल हुआ करता था सो किसी साहित्यिक पुस्तक मैं खरीदने से रहा.. वैसे मेरा मानना है कि कामिक्स भी साहित्य के ही किसी श्रेणी का हिस्सा है :)).. "रोबो का प्रतिशोध" नाम था उसके दूसरे भाग का.. सबसे बड़ी मुसीबत तो यह कि पहले भाग में ध्रुव को बुरी तरह घायल दिखा दिया था.. मन में सवाल यह नहीं था कि वह बचा या नहीं, क्योंकि उसकी नई कामिक्स लगातार आ रही थी(ही ही ही :D).. सवाल यह था कि वह बचा तो कैसे बचा..

खैर एक दिन ब्रह्म देव मुझ पर भी प्रसन्न हुए और मेरी मुह मांगी मुराद पूरी हो गई.. मुझे यह कामिक्स मिली पटना जंक्शन के पास वाले एक बुक स्टोल पर(मीठापुर सब्जी मार्केट के कोर्नर वाला बुक स्टोर).. और पढकर दिल को उतनी ही ठंढक मिली जितनी कि एक बच्चे को कुत्ते कि पूंछ खिंच कर मिलती है(ही ही ही :D)..

फिलहाल तो आप भी इसे पढ़िए.. :)



चूंकि इसमें अपनी कुछ यादें भी जुडी हैं सो सोचता हूँ कि इसे अपने दूसरे ब्लॉग पर भी डाला जाए.. :) शायद तीन-चार दिन बाद..

Sunday, April 18, 2010

बज्ज पर बज-बजाते कामिक्स दीवाने

एक दिन बस यूँ ही गूगल बज्ज पर मैंने एक मैसेज दिया "सुनो बज्ज गांव वालों.. क्या कोई Super Commando Dhruv(SCD) कि कामिक्स पढ़ना चाहता है?? अपना Email ID मुझे दिया जाए.. हर दिन एक कामिक्स उन्हें मेल कि जायेगी.. :D" और देखते ही देखते कामिक्स के दीवाने जुट गए वहाँ.. मैं अपना वादा तो नहीं निभा पाया "मतलब हर दिन ध्रुव कि एक कामिक्स मेल करने कि".. मगर फिर भी जिस किसी ने कोई डिमांड रखी और अगर वह कामिक्स मेरे पास थी तो मैंने उन्हें उसी समय मेल कर दिया..


"प्रतिशोध कि ज्वाला" का पहला पृष्ठ

कुछ दोस्तों कि चुहलबाजी भी शामिल थी वहाँ, तो कुछ लोग ऐसे भी थे जो पहली बार ध्रुव कि कामिक्स ट्राई करना चाह रहे थे.. मैंने पाया है कि पहली बार ध्रुव को ट्राई करने वालों में हमसे एक पीढ़ी पहले के लोग होते हैं.. मैंने अपने एक पोस्ट में लिखा भी था कि "हर पीढी का अपना एक नायक होता है.. जैसे मुझसे 10-15 साल पहले वाली पीढी के लोगों के लिये वेताल और मैंड्रेक नायक हुआ करते थे.. उस समय भारत में इंद्रजाल कामिक्स का प्रभुत्व हुआ करता था.. सो उस पीढी के नायक भी उसी प्रकाशन से छपने वाली कामिक्स की हुआ करती थी.. ठीक वैसे ही मेरी पीढी के लिये नायक ध्रुव और नागराज जैसे हीरोज हैं.."

अब जैसे जैसे लोगों ने रिप्लाई करना शुरू किया, मैंने उन्हें पहली कामिक्स भेजनी भी शुरू कर दी.. वह कामिक्स ध्रुव कि भी पहली कामिक्स थी.. "प्रतिशोध कि ज्वाला" जिसे मैंने पहले भी इस ब्लॉग पर कभी पोस्ट किया था..

सबसे पहले स्तुति जी आई जिन्होंने कामिक्स पाने के बाद तुरत बांकेलाल कि कामिक्स "बांकेलाल और राजसी तलवार" के लिए पेशकश भी कर दी, जिसे मैं ठीक से पढ़े बिना यह समझा कि वह बांकेलाल कि कामिक्स चाह रही हैं.. :)

डा.महेश सिन्हा जी आकर चिढा गए, बोले "बिल कब भेजोगे?" मैंने भी स्पोर्ट स्पिरिट दिखाते हुए उसी मजाक में कह दिया "महेश जी, अभी तो फ्री में बाँट रहे हैं.. एक बार लत लगने दीजिए फिर पैसा कमाएंगे.. :D"



इन सब के बीच स्तुति के कहने पर(बोले तो ऑन डिमांड :D) मैंने "चाचा चौधरी साबू और फुटबाल" सभी को मेल भेजना शुरू किया.. और बाद में "बिल्लू का समोसा" कि भी बारी आई..



तो पूरी बात का लब्बोलुआब यह हुआ कि इस एक पोस्ट में आपके सामने लेकर आया हूँ मैं चार कामिक्स :) जिसमे से एक मैं पहले भी यहाँ ला चुका हूँ, मतलब तीन नए कामिक्स.. फिलहाल तो आप इस पोस्ट में दिए लिंकों का चक्कर लगा कर तीनों कामिक्स ढूंढें और मजे लें.. मैं जान बूझ कर सभी लिंक इकट्ठे नहीं दे रहा हूँ, कुछ मेहनत आप भी तो करें.. ही ही ही.. :D

Wednesday, February 17, 2010

पहला प्यार और नताशा


मुझे वह अच्छी लगाती थी, और मैं उसे कभी-कभी नताशा कह कर बुलाता था.. वह मुझसे पूछती थी कि ये नताशा कौन है, मैं बस कहता कि ऐसे ही.. अब उससे कौन कहे कि मेरा पहला प्यार का नाम नताशा ही है.. मैं दिल ही दिल में खुदा को शुक्रिया अदा करता था कि वह कामिक्स नहीं पढ़ती थी.. कुल मिलकर कुछ ऐसा ही नशा हुआ करता था उस कामिक कैरेक्टर का..

पिछले पोस्ट में गौतम जी ने मुझे भी मेरा पहला प्यार याद दिला दिया.. मेरा शुरू से ये मानना रहा है कि हर पीढ़ी का अपना अलग हीरो होता है.. जैसे मुझ से ४-५ साल पहले कि पीढ़ी का वेताल हुआ करता था कमोबेश वैसा ही मेरे उम्र के लोग अपना हीरो ध्रुव और नागराज जैसे कैरेक्टर में ढूँढते रहे.. फिर कब जवान हुए और कब प्यार हुआ कुछ पता ही नहीं चला.. मेरी कई मित्र भी हैं जिसे अपना पहला प्यार ध्रुव या डोगा में दिखता रहा है, वहीँ कईयों को नागराज भी खूब भाता रहा है..

नताशा का पहला परिचय ग्रैंड मास्टर रोबो में कराया गया था.. मैंने बहुत पहले कभी ग्रैंड मास्टर रोबो नामक कामिक्स पोस्ट भी की थी जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं.. नताशा का पिता रोबो जो अपराध की दुनिया का बादशाह हुआ करता था, जब तक की वह ध्रुव से नहीं टकराया था.. नताशा उसके रोबो ट्रूप्स की कमांडर हुआ करती थी.. फिर जब वह चंडिका उर्फ श्वेता को जान पर खेल कर उसकी जान बचाते देखती है तो अपराध की दुनिया छोड़ देती है.. वैसे पूरी कहानी पढ़ने के लिए आप ग्रैंड मास्टर रोबो वाले लिंक से उस कामिक्स को डाउनलोड कर सकते हैं..

अब बढते हैं अगले प्रेम की ओर.. ऋचा.. वह भी ध्रुव के कामिक्स की ही कैरेक्टर है.. जो छद्म वेश रखकर ब्लैक कैट भी बनती है और अपराधियों से भी लड़ती है.. खाली समय में वह जिमनास्ट है, वही साथ में एक सुपर कम्प्युटर जीनियस भी.. आप फिलहाल ब्लैक कैट की पहली कामिक्स पढ़े, बाकी अगले पोस्ट में अपने एक और प्यार के साथ लौटता हूँ.. वैसे भी यह कामिक्स दो भागों में बनती हुई है.. सो मुझे जल्द ही आना है दूसरा भाग पोस्ट करने के लिए.. :)

"ब्लैक कैट" कामिक्स का डाउनलोड लिंक


आप कामिक्स डाउनलोड करने के लिए ब्लैक कैट कामिक्स की तस्वीर पर भी क्लिक कर सकते हैं..

Wednesday, January 20, 2010

सज़ा-ए-मौत - सुपर कमांडो ध्रुव (Saja-e-maut - Super Commando Dhruv)

शायद सन् 1998-99 के आस पास इस कामिक्स को पढ़ा था.. और पढ़ते ही दिवाना हो गया था.. तब से लेकर अभी तक ना जाने कितनी ही बार इस कहानी को पढ़ चुका हूं..

इस कामिक्स कि कहानी शुरू होती है बार्को नामक एक माफिया किंग के अड्डे से, जो ग्रैंड मास्टर रोबो के लिये काम करता है.. किसी कारण से वह सुपर कमांडो ध्रुव को अपने रास्ते से हटाना चाह रहा था(इसके पीछे कि कहानी जानने के लिये हमें "कमांडर नताशा" कामिक्स में झांकना पड़ेगा, वह फिर कभी).. साथ ही वह यह भी जानता था कि धुव को मारना लगभग असंभव सा काम है.. बार्को यूरोप के अपराध संघटन से एक हत्यारे को मंगाता है जिसके लिये उसने खूब पैसा खर्च किये हैं.. बार्को इस उम्मीद में बैठा था कि शायद कोई बेहतरीन खूनी हत्यारा अत्याधुनिक हथियारों के साथ राजनगर, भारत आयेगा.. मगर वह यह देख कर आश्चर्यचकित रह जाता है कि एक ऐसा व्यक्ति आया है जो अपना नाम "स्किमो" बता रहा है और उसके पास एक ब्लेड तक नहीं है जिससे किसी इंसान कि हत्या की जा सके..

इस कामिक में "स्किमो" नामक कैरेक्टर बेहतरीन गढ़ा गया है.. उसके पूरे शरीर पर कट्टम-कुट्टा वाले खेल के निशान बने हुये हैं, और जो भी उसके लिये काम करता है उनके हाथों पर भी वैसे ही निशान बने रहते हैं.. मुझे समझ में नहीं आता है कि कहानियों और सिनेमा में ऐसे विलेन किरदार क्यों बनाये जाते हैं जिनके गिरोह के सभी सदस्य के शरीर के किसी ना किसी हिस्से में ऐसे निशान बने होते हैं.. मुझे मैन्ड्रेक के कामिक्स का "अष्टांक" नामक किरदार याद आ रहा है.. वहां भी कुछ वैसा ही लोचा था..

खैर स्किमो पर वापस आते हैं.. स्किमो बार्को को समझाता है कि अगर किसी हथियार से ध्रुव को मारा जा सकता तो ध्रुव कभी का इस दुनिया से उठ गया होता.. क्योंकि वह अपना भेष बदल कर या मुखौटा लगा कर सुपर हिरोगिरी नहीं करता है.. उसके सभी पहचान भी खुले हुये हैं, और उसके अनगिनत दुश्मन भी हैं.. अपने नाम के ही अनुसार स्किमो स्कीम बना कर मारता है.. और उसने स्कीम कुछ ऐसा बनाया है जिससे कि ध्रुव को कानून ही "सज़ा-ए-मौत" कि सजा सुना दे तो ध्रुव कानून के खिलाफ कभी नहीं जायेगा..

अब आगे कि कहानी को जानने के लिये आपको यह कामिक्स पढनी होगी, इस कामिक्स को पढ़ने के इच्छुक व्यक्ति इस लिंक से जाकर कामिक्स खरीद सकते हैं..



मेरा रेटिंग - **** (4/5)


संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..

Sunday, February 8, 2009

कैसे एक कामिक्स ने बदल दी जिंदगी.. "चुंबा का चक्रव्यूह"

जैसा मैंने पहले कहा था की मैं आने वाले पांच कामिक्स के साथ गुजारे हुये अपने जीवन के कुछ हसीन पल भी आप लोगों के साथ बाटूंगा और वैसा कुछ ही मैं इस कामिक्स के साथ भी करने के इरादे में था.. मगर मैं यह पोस्ट लिखता उससे पहले ही मुझे इस कामिक्स से संबंधित एक बहुत ही जबरदस्त कहानी आरकुट के एक कम्यूनिटी में मिल गई.. तो आज मैं आप लोगों के सामने ए.पी.दुबे जी की कहानी पेश कर रहा हूं.. मगर उससे पहले मैं आप लोगों के सामने इनका कुछ परिचय भी देता चलूं(जैसा मुझे इनके आरकुट प्रोफ़ाईल से मिला है)..

कामिक्स के बहुत बड़े पंखे(फैन) हैं यह महाशय.. बचपन से ही कामिक्स के दिवाने, खासकर के सुपर कमांडो ध्रुव के.. इन्होंने तो अपने होने वाले संतानों के नाम तक सोच लिया है(उसकी भी एक अलग कहानी है जो फिर कभी).. अगर लड़का हुआ तो ध्रुव और यदी लड़की हुई तो श्वेता(मेरे इस चिट्ठे को पढ़ने वाले कई पाठ्क ध्रुव के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानते हैं, सो उनके लिये यह जानकारी - ध्रुव की छोटी बहन का नाम श्वेता है).. यह अभी हाल फिलहाल में एक साईट भी शुरू किये हैं जिस पर आप यहां क्लिक करके पहूंच सकते हैं.. तो चलिये आज सुनते हैं इनकी दिलचस्प कहानी जो ध्रुव के कामिक्स चुंबा का चक्रव्यूह के साथ जुड़ी हुई है.. यह कहते हैं -



यह कहानी है तड़ित चालक के बारे में, जो मैंने ध्रुव के किसी कामिक्स में पढ़ा था.. ठीक-ठीक याद नहीं मगर शायद मैं आठवीं या नवमीं कक्षा में था जिस समय की यह घटना है.. हमारी शिक्षिका तडित चालक के बारे में हमें पढ़ा रही थे और उन्होंने कक्षा से पूछा, "कोई तडित चालक के बारे में जानता है?" मेरे और मेरे ही एक सहपाठी के अलावा और किसी ने हाथ नहीं उठाया..

हमारी शिक्षिका ने सबसे पहले मुझसे ही पूछा और मैंने उन्हें विस्तार पूर्वक बताया.. मेरे उत्तर से पूर्णतः संतुष्ट होने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा की कहां से तुम्हें यह जानकारी मिली? मैंने बताया कि पिछले साल मैंने एक कामिक्स में इसके बारे में विस्तार से जाना था और उन्हें मेरी बातों पर भरोसा नहीं हुआ.. तब मेरे एक सहपाठि ने मेरी बातों का समर्थन किया जो अभी का मेरा सबसे अच्छा मित्र है.. और हमने कहा कि हम आपको कल यह सारी बात कामिक्स में भी दिखा देंगे..

अगले दिन मेरा मित्र उस कामिक्स के साथ विद्यालय आया लेकीन गणित के शिक्षक को एक लड़के ने बता दिया कि मेरा मित्र अपने स्कूल बैग में कामिक्स लेकर आया है.. हमारे गणित के शिक्षक ने हमें इसकी सजा देनी चाही मगर हम दोनों ही इसके लिये तैयार नहीं थे, क्योंकि हम दोनों की ही नजर में हमारी कोई गलती नहीं थी जो हम सजा भुगतते.. हमने कहा कि कृप्या हमारी विज्ञान की शिक्षिका को बुलाया जाये..

हमारे गणित के शिक्षक ने हमारी विज्ञान की शिक्षिका के साथ-साथ हमारे प्रधानाध्यापक को भी बुला लिया.. और उन सबके सामने हमने बताया कि हमने कहां से तडित चालक के बारे में पढ़ा था.. हमारी विज्ञान की शिक्षिका ने ना सिर्फ हमे शाबासी दी वरन् हमें पूरी कक्षा के सामने हीरो जसा बना दिया और वह भी प्रधानाध्यापक के सामने..

इन सब चीजों के परे, मुझे इस घटना से मेरा सबसे अच्छा मित्र मिल गया.. :)

आप इस कामिक्स को पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाकर कामिक्स ऑर्डर कर सकते हैं..

आप भी तडित चालक के बारे में जानने के लिये पढ़ सकते हैं चुंबा का चक्रव्यूह, पृष्ठ नंबर 34.. :)

Wednesday, January 21, 2009

सुपर कमांडो ध्रुव और मुक्ता

कल मैं अपनी एक मित्र मुक्ता से फोन पर बात कर रहा था जो कुछ मजेदार सा था.. उसी का एक अंश मैं यहां लिख रहा हूं..

मैं : "उस दिन मैं पूरे दिन भर तुम्हारा इंतजार करता रहा और तू नहीं आयी.. अबे अगर नहीं आना था तो फोन कर देती या मैसेज दे देती.."

मुक्ता : "अरे यार मैं बोली थी ना की मैं उस दिन आफिस चली गयी थी.."

मैं : "नहीं तू बोली थी की तू उससे एक दिन पहले सैटरडे को आफिस गयी थी.. अब मैं घर से खाने का सामान लाया हूं तो लालची की तरह मेरे घर आना चाह रही है.."

मुक्ता : "अच्छा गलती हो गई.. अब डांटो मत.."

मैं : "ठीक है नहीं डाटूंगा मिल तो पिटाई करता हूं.."

मुक्ता : "पिटाई तो मैं करूंगी तेरा.."

मैं : "क्यों?"

मुक्ता : "बस ऐसे ही मन कर रहा है.."

मैं : "अब तो तू मेरे हाथ से पिटने के लिये तैयार रहो.."

मुक्ता : "तू लड़की पर हाथ उठायेगा?"

मैं : "हां.."

मुक्ता : "तू ऐसा नहीं कर सकता है.. मुझे मालूम है तू लड़की पर हाथ नहीं उठाएगा.."

मैं : "कभी बचपन में कामिक्स पढी है सुपर कमांडो ध्रुव का?"

मुक्ता : "हां.. पर क्यों पूछ रहा है?"

मैं : "वो लड़की पर हाथ नहीं उठाता था.. तू क्या मेरे को सुपर कमांडो ध्रुव समझ रखी है? मैं लड़कीयों पर हाथ के साथ-साथ पैर भी उठा सकता हूं.."

मुक्ता : "अबे तू वही है सुपर कमांडो ध्रुव, लेकीन मुझे ना मारना.. समझा? तू भी क्या याद दिला दिया.. सुपर कमांडो ध्रुव.."

सम्मीलित हंसी.. "हा हा हा हा...."


मैंने यह पोस्ट 21 मार्च सन् 2008 को अपने चिट्ठे मेरी छोटी सी दुनिया पर पोस्ट किया था.. चूंकी यह पोस्ट कामिक्स से जुड़ी मेरी जिंदगी का एक हिस्सा ही है सो आज मैं इसे यहां भी पोस्ट कर रहा हूं.. मेरे अगले पोस्ट में आप चुंबा का चक्रव्यूह पढ़ सकते हैं.. और हां भूले नहीं, साथ में होगी इस कामिक्स से जुड़ी मेरे बचपन की एक कहानी भी.. :)

Sunday, January 18, 2009

डबल धमाका! "मैंने मारा ध्रुव" को और "हत्यारा कौन"

आप ध्रुव कि कौन सी कामिक्स पढ़ना चाहते हैं वाले पॉल में दूसरे स्थान पर यही दोनों कामिक्स आयी थी जिसे मैंने इस पोस्ट का शीर्षक बनाया है.. और अपने उस पोस्ट में किये वादे के मुताबिक चलते-चलते आपको इससे जुड़ी बचपन कि कहानी भी सुनाते चलना है..

बात सन् 1994 की है.. मैं उस समय 13 साल का था और चक्रधरपुर(जो अब झारखंढ में है) में रहता था.. उसी समय मेरे छोटे चाचाजी कि शादी तय हुयी थी और इंगेजमेंट के लिये मुझे और मेरे पापाजी को पटना से होते हुये दरभंगा जाना था.. हमें पटना के लिये ट्रेन पकड़ने के लिये पहले चक्रधरपुर से जमशेदपुर जाना था और वहां से पटना के लिये ट्रेन पकड़नी थी.. हम इस्पात एक्सप्रेस से घंटे भर में समय से जमशेदपुर पहूंच गये.. हमारे पास अभी भी 1 घंटे का समय था.. जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूं कि बचपन में हम बच्चों को कामिक्स खरीदने कि सख्त मनाही थी, मगर हमें ट्रेन में कामिक्स खरीदते समय मना नहीं किया जाता था.. सो इस मौके को मैं गवाना नहीं चाहता था और पहूंच गया कामिक्स के स्टॉल पर..

वहां नयी-नयी कामिक्स "मैंने मारा ध्रुव को" स्टॉल पर टंगी हुई थी.. मैंने आव ना देखा ताव और झट से कामिक्स खरीद ली.. ये भी नहीं देखा कि इसका कोई अगला भाग तो नहीं है? ये भी नहीं सोचा कि अगर इसका अगला भाग भी होगा तो वो कभी पढ़ने को मिलेगा या नहीं.. मैं उचक कर ट्रेन में अपने जगह पर बैठकर कामिक्स पढ़ने लगा, और जब तीन कहानी खत्म हो गयी फिर जाकर पता चला कि ये तो आधी ही है.. और फिर उदास हो गया.. ये उदासी ज्यादे देर तक नहीं रही क्योंकि अपने चाचाजी की इंगेजमेंट में जो जा रहा था..

"हत्यारा कौन" कामिक्स मुझे पटना आने के बाद शायद सन् 1997 में पढ़ने को मिली.. मगर इसका रोमांच तब तक कम नहीं हुआ था.. :)






चलते-चलते कुछ इन कामिक्स की भी बात कर ली जाये.. मेरी नजर में यह दोनों ही कामिक्स ध्रुव के कामिक्स का मील का पत्थर कहा जा सकता है, जिसमें रोमांच अंत तक बना रहता है.. शुरूवात होते ही एक बड़ा झटका लगता है कि ध्रुव मर कैसे गया, मगर मन में यह बात भी रहती है कि नायक कभी मरता नहीं, और एक विश्वास भी मन में होता है कि वो अंत में वापस जरूर आयेगा.. इन दोनों कामिक्स का प्रमुख किरदार "कंकालतंत्र" ही-मैन के कामिक्स का "स्केलेटन" का नकल भर ही है जिसके पास काफी कुछ उसी के जैसी शक्तियां भी है.. मगर फिर भी कहानी काफी चुस्त है.. दो कामिक्स में छः कहानियों को पढ़ने का अनुभव भी अलग ही है.. इसमें ध्रुव के लगभग सारे खलनायकों को एक जगह इकट्ठा किया गया है जिसमें वैज्ञानिकों के साथ-साथ तंत्र-मंत्र सम्राट चंडकाल भी है.. फिलहाल पूरी कहानी जानने के लिये आप यह कामिक्स डाऊनलोड करके पढ़िये.. :)

लिंक
मैंने मारा ध्रुव को का डाऊनलोड लिंक
हत्यारा कौन का डाऊनलोड लिंक

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संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..

Saturday, January 17, 2009

राज कामिक्स मेरा जूनून

मैं मेरठ से दिल्ली 8 मार्च को 3 बजे दिन मे पहूंचा और रिगल, कनाट प्लेस के पास चला गया क्योंकि वहां मुझसे मिलने वंदना आ रही थी.. लगभग आधे घंटे बाद वो आई और उसके साथ मैं लगभग 4:45 तक रहा.. फिर वहां से हम दोनों ही पैदल ही टहलते हुये नई दिल्ली रेल्वे स्टेशन की तरफ बढ चले.. मेरा अपना अनुमान था की रीगल से स्टेशन तक जाने में लगभग 20 मिनट लगना चाहिये और मेरी ट्रेन 5:20 पर थी.. मतलब मेरे पास 15 मिनट बच रहा था अपनी ट्रेन पकड़ने के लिये..

मेरा अनुमान ट्रैफिक ने गलत साबित कर दिया और जब मैं स्टेशन पहूंचा तो 5:10 हो रहे थे.. अब मैंने वंदना को कहा की अब आप यहीं से वापस जाओ क्योंकि अगर मैं आपके लिये प्लेटफार्म टिकट लिया तो मुझे मेरी ट्रेन छोड़नी परेगी.. फिर उससे विदा लेकर प्लेटफार्म के अंदर घुस गया.. मैं पहाड़गंज के तरफ से अंदर गया था और पिछली बार जब मैंने संपूर्णक्रांती पकड़ी थी तो वह 9 या 10 नंबर से रवाना होती थी.. सो मुझे पता था की मेरे पास ज्यादा समय नहीं है.. इस बार तो वह 12 से जाने वाली थी..

मैं लगभग भागते हुये 12 नंबर पहूंचा.. समय देखा तो 4 मिनट बचे हुये थे.. सामने देखा तो S1 डब्बा था और मुझे B3 में जाना था.. मैंने कुली से पूछा की B3 कहां है तो पता चला की S1 से S10, फिर एक पैंट्री कार है और उसके बाद B1, B2 फिर जाकर B3 है.. मैंने फिर से भागना शुरू किया मगर मन में ये तसल्ली थी की ट्रेन अब नहीं छूटने वाली है..

बचपन से ही हम बच्चों के लिये ट्रेन से सफर करने का मतलब कोई कामिक या कहानी की किताब और ढेर कुछ ना कुछ खाते जाना होता था.. अब भैया दीदी तो सुधर गये हैं मगर मैं अपने घर का बच्चा होने का कर्तव्य अभी भी निभा रहा हूं.. :D जब मैं अपने डब्बे की तरफ भाग रहा था तभी मुझे एक किताब की दुकान पर कामिक दिख गई.. अब तो मैं सोचा चाहे दौड़कर ही मुझे ट्रेन पकड़नी परे मगर मैं पहले कामिक तो जरूर खरीदूंगा.. मैं अभी तक कामिक पढने का शौकीन हूं मगर चेन्नई में मुझे हिंदी कामिक नागराज, ध्रुव, डोगा वाली नहीं मिलती है.. मगर मैं भी पीछे नहीं हूं.. नेट से राज कामिक के साईट पर जाकर खरीदता हूं.. सो अधिकतर कामिक मेरी पढी होती है.. मैंने उसके पास जितनी कामिक थी वो सारी जल्दी-जल्दी में पलट डाली और 4 कामिक निकाल कर उसे दिया और कहा, "कितने का हुआ भैया, जल्दी बताओ.." वो हक्का बक्का होकर मेरा चेहरा देख रहा था.. सोच रहा होगा की इतना बड़ा होकर भी बच्चों वाला शौक.. :) मगर मुझे जो अच्छा लगता है मैं बस वही करता हूं.. आज तक दुनिया की कभी परवाह नहीं कि की दुनिया क्या सोचती है.. उसने मुझे बताया 120 की हुई.. मैंने बिना दाम जोड़े ही उसे 120 पकड़ाये और फिर दौड़ पड़ा अपने डब्बे की तरफ.. डब्बे पर अपना नाम चेक किया और डब्बे में चढ गया.. जब तक मैं अपनी सीट तक पहूंचता तब-तक ट्रेन खुल गई.. बाद में मैंने दाम जोड़े तो बिलकुल सही पाया.. :)



राज कामिक्स मेरा जूनून आजकल राज कामिक्स का पंच लाईन बना हुआ है जिसे मैंने शीर्षक के रूप में प्रयोग किया है..:) अभी कुछ दिन पहले नागराज के ऊपर सिनेमा बनाने के लिये एक अमेरिकन स्टूडियो ने राज कामिक्स के साथ करार भी किया है.. उम्मीद है अगले साल तक वो सिनेमा हमारे बीच भी होगी..

मैंने यह लेख बहुत पहले 29 मार्च सन 2008 को अपने ब्लौग छोटी सी दुनिया के लिये लिखा था जिसे आज मैं यहां भी पोस्ट कर रहा हूं और यही वह पोस्ट है जिसने मुझे यह ब्लौग बनाने की प्रेरणा दी थी.. ध्रुव कि अगली कामिक्स मैंने मारा ध्रुव को और हत्यारा कौन मैं अगले पोस्ट में लेकर आता हूं..
धन्यवाद..

Wednesday, January 14, 2009

"किरीगी का कहर" बचपन के सफर में

ध्रुव कि कौन सी कामिक्स आप पढना चाहते हैं नामक पोल का अंततः वोट देने का समय ख़त्म हुआ.. कुल जमा २८ वोट पड़े.. आप इस चित्र में पढ़ सकते हैं कि किस कामिक्स को सबसे ज्यादा वोट मिले.. अगर इन पांचों कामिक्स को नए और पुराने ढर्रों में बांटा जाये तो पुराने कामिक्स पूर्ण बहुमत से यह चुनाव जीत गए हैं.. हो भी क्यों ना? किस्सागोई में ध्रुव के पुराने कामिक्स किसी भी हालत में नए कामिक्स से बीस ही आते हैं.. सबसे ज्यादा 13 वोट किरीगी का कहर को मिला है.. जिसे आज मैं आपके सामने लेकर आ रहा हूँ..


मेरे घर में कहानी कि किताबें खरीदना मना तो नहीं था मगर कामिक्स पर सख्त पाबंदी थी.. हमारे लिये कहानी कि किताबों का मतलब चंपक, नंदन, नन्हे सम्राट और बालहंस हुआ करते थे.. जब कभी वह अपने किसी मित्र के पास जब वह ढ़ेर सारी कामिक्स देखता था तो मैं सोचता था कि जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो ढ़ेर सारी कामिक्स खरीद कर पढ़ूंगा.. ये कुछ-कुछ वैसा ही था जैसा छुटपन में जब किसी चीज को खरीदने से मना किया जाता है तो हम सोचने लगते हैं कि बड़े होकर वह खूब खरीदेंगे और मौज करेंगे.. मानो बड़े होने पर पैसे अपने-आप ही आ जाते हैं..

खैर, और किसी चीज से बचपना भले ही खत्म हो चुका हो मगर कामिक्स को लेकर यह बचपना अभी भी वैसा ही है.. जहां कहीं भी अपने पसंद की कोई कामिक्स दिखती है, बस टूट पड़ता हूं वहां..

किरिगी का कहर सर्वप्रथम मैंने अपने स्कूल में अपने एक मित्र के पास देखी थी और जब उससे पढ़ने को मांगा तो उसका कहना था कि पहले कोई और डाईजेस्ट कामिक्स या फिर पतली वाली दो कामिक्स लाकर दो फिर मैं यह पढ़ने के लिये दूंगा.. उस समय मेरे पास चाचा चौधरी कि एक कामिक्स और एक नटवरलाल कि कामिक्स थी.. मैंने उसे हामी तो भर दी मगर जिस दिन कामिक्स लाना तय हुआ था उस दिन मैं किसी कारण से नहीं ला सका, मगर वह लड़का अपनी कामिक्स लाना नहीं भूला था.. संयोग से उस दिन किसी बच्चे के पास से एक कामिक्स निकल आयी और फिर पूरे क्लास कि तलाशी शुरू हो गई.. इस तलाशी में उसकी किरिगी का कहर भी पकड़ा गया.. फिर क्या था, ये कामिक्स भी गई हाथ से.. मगर मैंने उसे धोखा नहीं दिया, और मुझे भले ही वो कामिक्स पढ़ने को नहीं मिली मगर मैंने उसे अपनी वो दोनों कामिक्स पढ़ने को दे दी.. :)

इस घटना के लगभग 4-5 साल के बाद जब मैं सपरिवार पटना शिफ्ट हो गया तब मेरे मकान मालिक के बेटे के पास यह कामिक्स थी और मुझे तब यह पढ़ने को मिला..


किरीगी का कहर एक ऐसी कामिक्स है जिसमें कुछ पौराणिक कथानायकों कि किस्सागोई भी मिलेगी और साथ ही साथ कुछ नये वैज्ञानिक तथ्य भी समायोजित हैं.. इस कामिक्स में ध्रुव के कई महानायक एक साथ दिखे हैं, जैसे किरीगी, जिंगालू और धनंजय.. साथ में राक्षसराज चंडकाल को पहली बार इसी कामिक्स में लाया गया था.. ऐक्सन से भरपूर यह एक ऐसी कामिक्स है जिसे मैं ध्रुव के कहानियों के पतन के लिये भी जिम्मेवार मानता हूं.. क्योंकि यह ध्रुव की पहली डाईजेस्ट कामिक्स थी जिसमे वैज्ञानिक तथ्यों से परे हटकर जादू-मंतर और टोने-टोटकों का सहारा लिया गया था.. वैसे इससे पहले ध्रुव कि वू-डू भी आ चुकी थी जिसमें जादू-टोना दिखाया गया था, मगर वह कहीं से भी अविश्वनीय नहीं लगा था..

अब आगे कि कहानी जानने के लिये आप खुद ही पढ़ लें किरिगी का कहर..

कामिक्स डाऊनलोड का लिंक

इस कामिक्स को डाऊनलोड करने के लिये आप फोटो पर भी क्लिक कर सकते हैं..


संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..

Monday, January 5, 2009

आप ध्रुव कि कौन सी कामिक्स पढना चाहते हैं?

आज मैं लेकर आया हूँ आपके पास आपकी पसंद कि ध्रुव कि बेहतरीन कामिक्स पढ़ने का मौका लेकर.. आज आप ही मुझे बताएं कि आप इनमे से कौन सी ध्रुव कि कामिक्स पढ़ना चाहते हैं? इस पोस्ट के बगल में एक पॉल भी लगा हुआ है, वहां अपना कीमती वोट देना ना भूलें.. वैसे तो मैं इन पांचो कामिक्स को एक एक करके आपके पास लेकर आऊंगा, मगर जिसे सबसे ज्यादा वोट मिलेगा उसे सबसे पहले यहाँ डालूँगा.. :)

"मैंने मारा ध्रुव को" और "हत्यारा कौन"






चुम्बा का चक्रव्यूह



किरीगी का कहर



सजा-ए-मौत



मैं आपको कामिक्स भी पढ़ने को दूंगा और उस कामिक्स से सम्बंधित अपने बचपन कि कहानिया भी सुनाऊंगा.. अब सब कुछ आपके हाथ में है कि आप कौन सी कामिक्स और कौन सी कहानी सुनना चाहते हैं.. :)

Sunday, September 28, 2008

रोमण हत्यारा - सुपर कमांडो ध्रुव


ये कहानी है कुछ ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों कि जो पद और पैसे के लालच में कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं और बन जाते हैं रोमण हत्यारा..

ये कामिक्स सुपर कमांडो ध्रुव के शुरूवाती दिनों के कामिक्स में से आती है.. शायद ध्रुव की दूसरी कामिक्स.. उन दिनों कामिक्स बाजार में इंद्रजाल कामिक्स, मनोज कामिक्स, डायमंड कामिक्स और तुलसी कामिक्स चला करते थे.. राज कामिक्स भी बाजार में अपनी पहचान नागराज के कामिक्स के द्वारा बना रहे थे.. ऐसे समय में राज कामिक्स ने ध्रुव नाम के एक नये कैरेक्टर को जन्म दिया और धीरे-धीरे पूरे बाजार पर छा गये.. अगर आज विशुद्ध भारतीय कामिक्स सुपर हीरोज की बात की जाये तो ध्रुव और नागराज ही सबसे पहले दिमाग में आते हैं.. मनीष गुप्ता जी और संजय गुप्ता जी को मैं तहेदिल से धन्यवाद देना चाहूंगा ऐसे चरित्रों का निर्माण करने के लिये.. आज भारतीय बाजार से मनोज कामिक्स, इंद्रजाल कामिक्स और तुलसी कामिक्स पूरी तरह से बंद हो चुके हैं(मेरी जानकारी मे, अगर मैं गलत हूं तो सही करें)..

मेरी नजर में शुरूवाती दिनों में आने वाली ध्रुव के कामिक्स कि बात ही कुछ और हुआ करती थी.. स्टोरी लाईन बिलकुल कसी हुई.. कहानी में तेजी और कुछ भी ऐसा नहीं जिसे आप यह कह सकें कि ये संभव नहीं है या फिर यह कि ये बस कहानियों या कामिक्स में ही हो सकते हैं.. आजकल उसके आने वाले कामिक्सो में वह बात नहीं रही.. मगर फिर भी मैं उम्मीद करता हूं कि वो स्वर्णिम दिन फिर से लौट कर आयेंगे..

आप फिलहाल यह कामिक्स पढें.. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ये आपको जबरदस्त लगेगी..

डाऊनलोड लिंक - XXXXXXXXXXXXX
इसे डाऊनलोड करने के लिये आप इस चित्र पर भी क्लिक कर सकते हैं..


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Sunday, August 17, 2008

स्वर्ग की तबाही(भाग - 2)

पिछली कामिक्स में आपने पढा होगा की ऐन वक्त पर एक अजनबी मददगार ध्रुव की मदद के लिये आ जाता है.. कौन है वो मददगार.. ये चंडिका कौन है? ये सभी रहस्य इस कामिक्स में खुलती है.. चंडिका का रहस्य बस पाठकों के लिये ही खुलता है.. ध्रुव तो अपनी पूरी जिंदगी इस रहस्य को सुलझाने के लिये जूझता रहता है.. ध्रुव को ये शक हमेशा ही रहता है की चंडिका उसकी छोटी और प्यारी बहन श्वेता ही है मगर कभी भी वो इसे साबित नहीं कर पाता है..

अभी कुछ दिनों पहले दुनिया भर के सभी कामिक सुपर हीरो का रेटिंग निकाला गया था, उसमें ध्रुव की रैंकिंग बस इसी कारण खराब बतायी गई थी क्योंकि वो कभी श्वेता और चंडिका का रहस्य सुलझा नहीं पाया..

खैर आप सभी इन सभी झंझावतों से बाहर निकल कर इस कामिक्स का मजा उठायें.. मुझे बस इतना याद है की जब मैं इसे अपने बचपन में पहली बार पढा था ट्तब कई दिनों तक मेरे मन में ये कामिक्स हावी था.. मैं आज भी कभी कभी ये कामिक्स निकालकर पढने बैठ जाता हूं.. मुझे याद भी नहीं की मैंने कितनी बार इसे पढा है.. इसके सारे डायलॉग मुझे लगभग याद हैं.. वैसे सही कहूं तो मुझे ध्रुव के लगभग सारे कामिक्स के डायलॉग ही याद हैं.. :)

फिलहाल तो आप इस कामिक्स का मजा उठायें.. 
स्वर्ग की तबाही पढने के लिये आप यहां क्लिक करें..
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