Saturday, January 17, 2009

राज कामिक्स मेरा जूनून

मैं मेरठ से दिल्ली 8 मार्च को 3 बजे दिन मे पहूंचा और रिगल, कनाट प्लेस के पास चला गया क्योंकि वहां मुझसे मिलने वंदना आ रही थी.. लगभग आधे घंटे बाद वो आई और उसके साथ मैं लगभग 4:45 तक रहा.. फिर वहां से हम दोनों ही पैदल ही टहलते हुये नई दिल्ली रेल्वे स्टेशन की तरफ बढ चले.. मेरा अपना अनुमान था की रीगल से स्टेशन तक जाने में लगभग 20 मिनट लगना चाहिये और मेरी ट्रेन 5:20 पर थी.. मतलब मेरे पास 15 मिनट बच रहा था अपनी ट्रेन पकड़ने के लिये..

मेरा अनुमान ट्रैफिक ने गलत साबित कर दिया और जब मैं स्टेशन पहूंचा तो 5:10 हो रहे थे.. अब मैंने वंदना को कहा की अब आप यहीं से वापस जाओ क्योंकि अगर मैं आपके लिये प्लेटफार्म टिकट लिया तो मुझे मेरी ट्रेन छोड़नी परेगी.. फिर उससे विदा लेकर प्लेटफार्म के अंदर घुस गया.. मैं पहाड़गंज के तरफ से अंदर गया था और पिछली बार जब मैंने संपूर्णक्रांती पकड़ी थी तो वह 9 या 10 नंबर से रवाना होती थी.. सो मुझे पता था की मेरे पास ज्यादा समय नहीं है.. इस बार तो वह 12 से जाने वाली थी..

मैं लगभग भागते हुये 12 नंबर पहूंचा.. समय देखा तो 4 मिनट बचे हुये थे.. सामने देखा तो S1 डब्बा था और मुझे B3 में जाना था.. मैंने कुली से पूछा की B3 कहां है तो पता चला की S1 से S10, फिर एक पैंट्री कार है और उसके बाद B1, B2 फिर जाकर B3 है.. मैंने फिर से भागना शुरू किया मगर मन में ये तसल्ली थी की ट्रेन अब नहीं छूटने वाली है..

बचपन से ही हम बच्चों के लिये ट्रेन से सफर करने का मतलब कोई कामिक या कहानी की किताब और ढेर कुछ ना कुछ खाते जाना होता था.. अब भैया दीदी तो सुधर गये हैं मगर मैं अपने घर का बच्चा होने का कर्तव्य अभी भी निभा रहा हूं.. :D जब मैं अपने डब्बे की तरफ भाग रहा था तभी मुझे एक किताब की दुकान पर कामिक दिख गई.. अब तो मैं सोचा चाहे दौड़कर ही मुझे ट्रेन पकड़नी परे मगर मैं पहले कामिक तो जरूर खरीदूंगा.. मैं अभी तक कामिक पढने का शौकीन हूं मगर चेन्नई में मुझे हिंदी कामिक नागराज, ध्रुव, डोगा वाली नहीं मिलती है.. मगर मैं भी पीछे नहीं हूं.. नेट से राज कामिक के साईट पर जाकर खरीदता हूं.. सो अधिकतर कामिक मेरी पढी होती है.. मैंने उसके पास जितनी कामिक थी वो सारी जल्दी-जल्दी में पलट डाली और 4 कामिक निकाल कर उसे दिया और कहा, "कितने का हुआ भैया, जल्दी बताओ.." वो हक्का बक्का होकर मेरा चेहरा देख रहा था.. सोच रहा होगा की इतना बड़ा होकर भी बच्चों वाला शौक.. :) मगर मुझे जो अच्छा लगता है मैं बस वही करता हूं.. आज तक दुनिया की कभी परवाह नहीं कि की दुनिया क्या सोचती है.. उसने मुझे बताया 120 की हुई.. मैंने बिना दाम जोड़े ही उसे 120 पकड़ाये और फिर दौड़ पड़ा अपने डब्बे की तरफ.. डब्बे पर अपना नाम चेक किया और डब्बे में चढ गया.. जब तक मैं अपनी सीट तक पहूंचता तब-तक ट्रेन खुल गई.. बाद में मैंने दाम जोड़े तो बिलकुल सही पाया.. :)



राज कामिक्स मेरा जूनून आजकल राज कामिक्स का पंच लाईन बना हुआ है जिसे मैंने शीर्षक के रूप में प्रयोग किया है..:) अभी कुछ दिन पहले नागराज के ऊपर सिनेमा बनाने के लिये एक अमेरिकन स्टूडियो ने राज कामिक्स के साथ करार भी किया है.. उम्मीद है अगले साल तक वो सिनेमा हमारे बीच भी होगी..

मैंने यह लेख बहुत पहले 29 मार्च सन 2008 को अपने ब्लौग छोटी सी दुनिया के लिये लिखा था जिसे आज मैं यहां भी पोस्ट कर रहा हूं और यही वह पोस्ट है जिसने मुझे यह ब्लौग बनाने की प्रेरणा दी थी.. ध्रुव कि अगली कामिक्स मैंने मारा ध्रुव को और हत्यारा कौन मैं अगले पोस्ट में लेकर आता हूं..
धन्यवाद..

9 comments:

  1. man gaye dost.. mujhe laga ki meri aap biti samne rakh di.. kuch kuch mai bhi aisa he hoo.. apne comics ka junon ab tak barkar rakha hai aur kya kya no suna is ke liye..

    your sprit is simply gteat..

    Kuldeep

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  2. अगर ट्रेन छोटी होती तो यह पोस्ट यादगार अवश्य बनती ! पर अभी भी ठीक है !

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  3. सोच रहा होगा की इतना बड़ा होकर भी बच्चों वाला शौक..मैं भी सोच रही हूं....मै अपने एक बुजुर्ग शिक्षक को भी हमेशा चंपक पढते देखा करती थी।

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  4. सुंदर प्रस्तुती प्रशांत जी...
    कामिक्स की ये दीवानगी तो हाय रे ए ए ए ए

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  5. Great Description.....Excellent..Keep Writing..Keep It Up!!

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  6. kisko pasand nahi hogi raj comics mere mitr. apni banayi hui Desi comic characters ke saath kahani bane ne ki sarvshestr, sirf raj comics ko hi mil sakta hai.

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  7. @ Sushma ji - और मेरा पहला प्यार नताशा.. :)

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  8. अच्छा लगा की आपका कॉमिक्स के प्रति जनून अभी भी आपके बचपन जैसा है...दुनिया की चिंता किये बगैर अपने जनून को बढ़ाते रहिये.

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