Sunday, November 27, 2011

पौराणिक वर्गीकरण


(Virgin Comics/Liquid Comics: 2006-2007)

भारतीय कॉमिक्स परिदृश्य मे उभरे एक नए विषय पर लिख रहा हूँ. चीज़ों, बातों, जगहों, व्यक्तियों, आदि का वर्गीकरण करना एक बड़ी समस्या है. मैंने गिनती करना छोड़ दिया है जब मैंने किसी व्यक्ति को असल जीवन मे या इंटरनेट पर गलत वर्गीकरण करने पर समझाया हो. यह एक छदम सामाजिक बुराई है जिसपर कम ही का ध्यान जाता है, विडंबना तो यह है की वर्गीकरण हर जगह है.

खैर, मै यह सब इसलिए बोल रहा हूँ की वर्गीकरण हमे कॉमिक्स मे देखने को मिलता है. इस बार मै बाहरी दुनिया (और बाहर का अनुसरण करते कई भारतियों) की भारत के बारे मे धारणा पर आपका ध्यान लाना चाहूँगा. हाल के वर्षो मे भारतीय कलाकारों की माँग दुनिया भर के कॉमिक्स प्रकाशनों मे बढ़ी है. कारण वही पुराना है की यहाँ के फनकार बाहरी कलाकारों की तुलना मे कम दाम पर उसी गुणवक्ता का काम देते है. बेंगलुरु, मुंबई, दिल्ली, आदि बड़े शेहरो से आउटसोर्स होकर वो कला दुनिया भर मे सराही जाती है. अब विश्व के प्रमुख प्रकाशन भारत मे कई जगह उपलब्ध है, जहाँ नहीं है वहां अपडेट और ज्ञान देता इंटरनेट है. साथ ही भारत मे बच्चो और युवा वर्ग के लिए कुछ नये भारतीय कॉमिक प्रकाशक भी आये है जिनकी कॉमिक्स मुख्यतः इंग्लिश मे होती है.

तो मुद्दे की बात ये है की मैंने ऐसे कई भारतीय कलाकारों की कॉमिक्स और नये भारतीय प्रकाशकों (मै नाम नहीं ले रहा हूँ) की कॉमिक्स पढ़ी. उनमे से अधिकतर मे मैंने एक बात देखी की उनमे वो कॉमिक सीरिज़ पौराणिक कथाओं, ग्रंथों, देव गाथाओं, पर आधारित या उनसे मिलते-जुलते परिवेश की काल्पनिक कहानियाँ थी. इतनी सारी कॉमिक्स मे यही बेकड्रॉप, थीम पढ़ कर मन मे सवाल उठा क्या बस यही है भारत? तरह-तरह के लोगो, जगहों, धर्मो, भाषाओँ, वन्य जीवन, विरासतों, किवदंतियों, प्रदेशों, संस्कृतियों और उनके विशाल इतिहास से मिलकर बना भारत? मन ने तुरंत ही जवाब भी दिया, "नहीं!"

भारत मे बहुत कुछ और भी है या था, जो दुनिया भर को और उसकी युवा पीढ़ी को काल्पनिक परिवेश मे लपेट कर दिखाया जा सकता है. जैसे पूर्वोतर भारत के राज्यों की अनगिनत किवदंतियां को बाहरी दुनिया तो क्या उन प्रदेशो के अलावा दूसरे भारतीय राज्यों तक मे लगभग अनसुनी है या जनजातियों की कुछ अचरच मे डाल देने वाली प्रथाएं और उनके पीछे के कारण. पिछले दशको के इतिहास की घटनाओ (जैसे गोधरा काण्ड, मुंबई बम विस्फोट, 1984 मे घटे सिख विरोधी दंगे और भोपाल गैस काण्ड, आदि) को बेस बनाकर उनपर कुछ काल्पनिक कहानियाँ जो न सिर्फ लोगो संदेश दे बल्कि नयी पीढ़ियों को बताये की भारत मे ऐसा भी हुआ था. पर दुर्भाग्यवश ऐसे विषयों पर प्रकाशकों का ध्यान न के बराबर ही जाता है.

अगर कोई कहे की ऐसा संभव नहीं है या अगर ऐसा किया जायेगा तो पाठको को आनंद नहीं आएगा. तो मै यही कहूँगा की कुशल लेखनी मे सब संभव है. मै भी अपने सीमित संसाधनों से ऐसा ही प्रयास कर रहा हूँ अगर सफल हुआ तो आप सबके साथ सबसे पहले बाँटूगा. वैसे आप इस वर्गीकरण के बारे मे क्या सोचते है?

9 comments:

  1. मोहित भाई जिन कॉमिक प्रकाशनों की तरफ आपका इशारा है वे सभी विदेशी प्रिंट एवं फ़िल्म मीडिया द्वारा चस्पा की गई भारत की इमेज से दिशानिर्देश हासिल करते हैं बनिस्बत विशुद्ध भारतीयता से |
    चूँकि यह विदेशी मिडिया भारत की एक ऐसे धर्मभीरु राष्ट्र की तरह इमेज पोरट्रे करता हैं जहाँ धर्म के नाम पर कुछ भी कैसा भी महंगे दामों में बिकता है अत: तुरत-फुरत फायदे के लिए इन्हें पौराणिक आधार पर आधुनिकता के मुलम्मे में लिपटी कॉमिक्सों के अलावा दूसरा विकल्प नज़र नहीं आता |
    इनके इस खामोख्याल को इस प्रकार की खबरे भी बल देती है की जेम्स कैमरून अपनी आगामी फ़िल्म महाभारत/रामायण पर बनाने वाले हैं जिससे इन्हें लगता है की भारतीय पौराणिक कथाओं के लिए यूरोपियन देशों में बड़ा क्रेज़ है,और चूँकि इन अंग्रेज़ी कॉमिक प्रकाशनों का मुख्य टार्गेट विदेशी भारतीय या अंग्रेज़ी भारतीय तबका ही रहता है इसलिए यह प्रदेशों की लोक कथाओं एवं सामायिक घटनाओं जैसे विषयों को छोड़कर भारतीय पौराणिक कथाओं जैसे 'फास्ट फ़ूड' पर ज़्यादा तवज्जो देते हैं |
    अगर इन्होने थोड़ी भी रिसर्च की होती तो यह अमर चित्र कथा की ऐतिहासिक सफ़लता से यह सबक लेते जिसने सिर्फ़ और सिर्फ़ विशुद्ध भारतीय सागर मथ कर अमूल्य नगीने निकाले |

    ReplyDelete
  2. मोहित भाई जिन कॉमिक प्रकाशनों की तरफ आपका इशारा है वे सभी विदेशी प्रिंट एवं फ़िल्म मीडिया द्वारा चस्पा की गई भारत की इमेज से दिशानिर्देश हासिल करते हैं बनिस्बत विशुद्ध भारतीयता से |

    चूँकि यह विदेशी मिडिया भारत की एक ऐसे धर्मभीरु राष्ट्र की तरह इमेज पोरट्रे करता हैं जहाँ धर्म के नाम पर कुछ भी कैसा भी महंगे दामों में बिकता है अत: तुरत-फुरत फायदे के लिए इन्हें पौराणिक आधार पर आधुनिकता के मुलम्मे में लिपटी कॉमिक्सों के अलावा दूसरा विकल्प नज़र नहीं आता |

    इनके इस खामोख्याल को इस प्रकार की खबरे भी बल देती है की जेम्स कैमरून अपनी आगामी फ़िल्म महाभारत/रामायण पर बनाने वाले हैं जिससे इन्हें लगता है की भारतीय पौराणिक कथाओं के लिए यूरोपियन देशों में बड़ा क्रेज़ है,और चूँकि इन अंग्रेज़ी कॉमिक प्रकाशनों का मुख्य टार्गेट विदेशी भारतीय या अंग्रेज़ी भारतीय तबका ही रहता है इसलिए यह प्रदेशों की लोक कथाओं एवं सामायिक घटनाओं जैसे विषयों को छोड़कर भारतीय पौराणिक कथाओं जैसे 'फास्ट फ़ूड' पर ज़्यादा तवज्जो देते हैं |

    अगर इन्होने थोड़ी भी रिसर्च की होती तो यह अमर चित्र कथा की ऐतिहासिक सफ़लता से यह सबक लेते जिसने सिर्फ़ और सिर्फ़ विशुद्ध भारतीय सागर मथ कर अमूल्य नगीने निकाले |

    ReplyDelete
  3. बेहद ही अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  4. मोहित भाई जिन कॉमिक प्रकाशनों की तरफ आपका इशारा है वे सभी विदेशी प्रिंट एवं फ़िल्म मीडिया द्वारा चस्पा की गई भारत की इमेज से दिशानिर्देश हासिल करते हैं बनिस्बत विशुद्ध भारतीयता से |
    चूँकि यह विदेशी मिडिया भारत की एक ऐसे धर्मभीरु राष्ट्र की तरह इमेज पोरट्रे करता हैं जहाँ धर्म के नाम पर कुछ भी कैसा भी महंगे दामों में बिकता है अत: तुरत-फुरत फायदे के लिए इन्हें पौराणिक आधार पर आधुनिकता के मुलम्मे में लिपटी कॉमिक्सों के अलावा दूसरा विकल्प नज़र नहीं आता |
    इनके इस खामोख्याल को इस प्रकार की खबरे भी बल देती है की जेम्स कैमरून अपनी आगामी फ़िल्म महाभारत/रामायण पर बनाने वाले हैं जिससे इन्हें लगता है की भारतीय पौराणिक कथाओं के लिए यूरोपियन देशों में बड़ा क्रेज़ है,और चूँकि इन अंग्रेज़ी कॉमिक प्रकाशनों का मुख्य टार्गेट विदेशी भारतीय या अंग्रेज़ी भारतीय तबका ही रहता है इसलिए यह प्रदेशों की लोक कथाओं एवं सामायिक घटनाओं जैसे विषयों को छोड़कर भारतीय पौराणिक कथाओं जैसे 'फास्ट फ़ूड' पर ज़्यादा तवज्जो देते हैं |
    अगर इन्होने थोड़ी भी रिसर्च की होती तो यह अमर चित्र कथा की ऐतिहासिक सफ़लता से यह सबक लेते जिसने सिर्फ़ और सिर्फ़ विशुद्ध भारतीय सागर मथ कर अमूल्य नगीने निकाले |

    ReplyDelete
  5. मोहित भाई जिन कॉमिक प्रकाशनों की तरफ आपका इशारा है वे सभी विदेशी प्रिंट एवं फ़िल्म मीडिया द्वारा चस्पा की गई भारत की इमेज से दिशानिर्देश हासिल करते हैं बनिस्बत विशुद्ध भारतीयता से |
    चूँकि यह विदेशी मिडिया भारत की एक ऐसे धर्मभीरु राष्ट्र की तरह इमेज पोरट्रे करता हैं जहाँ धर्म के नाम पर कुछ भी कैसा भी महंगे दामों में बिकता है अत: तुरत-फुरत फायदे के लिए इन्हें पौराणिक आधार पर आधुनिकता के मुलम्मे में लिपटी कॉमिक्सों के अलावा दूसरा विकल्प नज़र नहीं आता |
    इनके इस खामोख्याल को इस प्रकार की खबरे भी बल देती है की जेम्स कैमरून अपनी आगामी फ़िल्म महाभारत/रामायण पर बनाने वाले हैं जिससे इन्हें लगता है की भारतीय पौराणिक कथाओं के लिए यूरोपियन देशों में बड़ा क्रेज़ है,और चूँकि इन अंग्रेज़ी कॉमिक प्रकाशनों का मुख्य टार्गेट विदेशी भारतीय या अंग्रेज़ी भारतीय तबका ही रहता है इसलिए यह प्रदेशों की लोक कथाओं एवं सामायिक घटनाओं जैसे विषयों को छोड़कर भारतीय पौराणिक कथाओं जैसे 'फास्ट फ़ूड' पर ज़्यादा तवज्जो देते हैं |

    अगर इन्होने थोड़ी भी रिसर्च की होती तो यह अमर चित्र कथा की ऐतिहासिक सफ़लता से यह सबक लेते जिसने सिर्फ़ और सिर्फ़ विशुद्ध भारतीय सागर मथ कर अमूल्य नगीने निकाले |

    ReplyDelete
  6. बचपन में पढ़ी किसी बाल पत्रिका के बारे में सोचता हूँ तो मुझे सबसे अधिक "बालहंस" नॉस्टैल्जिक करता है. कारण मात्र यही की उसमें राजस्थानी लोक कथाओं की प्रस्तुति गजब कि हुआ करती थी. ऐसी कहानियां जिन्हें मैंने पहले कभी नहीं सुनी थी, और उसमें एक दफ़े पढ़ने के बाद कभी भूला नहीं..

    मेरे ख्याल से आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा. :-)

    ReplyDelete
  7. मोहित भाई जिन कॉमिक प्रकाशनों की तरफ आपका इशारा है वे सभी विदेशी प्रिंट एवं फ़िल्म मीडिया द्वारा चस्पा की गई भारत की इमेज से दिशानिर्देश हासिल करते हैं बनिस्बत विशुद्ध भारतीयता से |

    चूँकि यह विदेशी मिडिया भारत की एक ऐसे धर्मभीरु राष्ट्र की तरह इमेज पोरट्रे करता हैं जहाँ धर्म के नाम पर कुछ भी कैसा भी महंगे दामों में बिकता है अत: तुरत-फुरत फायदे के लिए इन्हें पौराणिक आधार पर आधुनिकता के मुलम्मे में लिपटी कॉमिक्सों के अलावा दूसरा विकल्प नज़र नहीं आता |

    इनके इस खामोख्याल को इस प्रकार की खबरे भी बल देती है की जेम्स कैमरून अपनी आगामी फ़िल्म महाभारत/रामायण पर बनाने वाले हैं जिससे इन्हें लगता है की भारतीय पौराणिक कथाओं के लिए यूरोपियन देशों में बड़ा क्रेज़ है,और चूँकि इन अंग्रेज़ी कॉमिक प्रकाशनों का मुख्य टार्गेट विदेशी भारतीय या अंग्रेज़ी भारतीय तबका ही रहता है इसलिए यह प्रदेशों की लोक कथाओं एवं सामायिक घटनाओं जैसे विषयों को छोड़कर भारतीय पौराणिक कथाओं जैसे 'फास्ट फ़ूड' पर ज़्यादा तवज्जो देते हैं |

    अगर इन्होने थोड़ी भी रिसर्च की होती तो यह अमर चित्र कथा की ऐतिहासिक सफ़लता से यह सबक लेते जिसने सिर्फ़ और सिर्फ़ विशुद्ध भारतीय सागर मथ कर अमूल्य नगीने निकाले |

    ReplyDelete
  8. मोहित भाई जिन कॉमिक प्रकाशनों की तरफ आपका इशारा है वे सभी विदेशी प्रिंट एवं फ़िल्म मीडिया द्वारा चस्पा की गई भारत की इमेज से दिशानिर्देश हासिल करते हैं बनिस्बत विशुद्ध भारतीयता से | चूँकि यह विदेशी मिडिया भारत की एक ऐसे धर्मभीरु राष्ट्र की तरह इमेज पोरट्रे करता हैं जहाँ धर्म के नाम पर कुछ भी कैसा भी महंगे दामों में बिकता है अत: तुरत-फुरत फायदे के लिए इन्हें पौराणिक आधार पर आधुनिकता के मुलम्मे में लिपटी कॉमिक्सों के अलावा दूसरा विकल्प नज़र नहीं आता | इनके इस खामोख्याल को इस प्रकार की खबरे भी बल देती है की जेम्स कैमरून अपनी आगामी फ़िल्म महाभारत/रामायण पर बनाने वाले हैं जिससे इन्हें लगता है की भारतीय पौराणिक कथाओं के लिए यूरोपियन देशों में बड़ा क्रेज़ है,और चूँकि इन अंग्रेज़ी कॉमिक प्रकाशनों का मुख्य टार्गेट विदेशी भारतीय या अंग्रेज़ी भारतीय तबका ही रहता है इसलिए यह प्रदेशों की लोक कथाओं एवं सामायिक घटनाओं जैसे विषयों को छोड़कर भारतीय पौराणिक कथाओं जैसे 'फास्ट फ़ूड' पर ज़्यादा तवज्जो देते हैं |
    अगर इन्होने थोड़ी भी रिसर्च की होती तो यह अमर चित्र कथा की ऐतिहासिक सफ़लता से यह सबक लेते जिसने सिर्फ़ और सिर्फ़ विशुद्ध भारतीय सागर मथ कर अमूल्य नगीने निकाले |

    ReplyDelete
  9. मोहित भाई जिन कॉमिक प्रकाशनों की तरफ आपका इशारा है वे सभी विदेशी प्रिंट एवं फ़िल्म मीडिया द्वारा चस्पा की गई भारत की इमेज से दिशानिर्देश हासिल करते हैं बनिस्बत विशुद्ध भारतीयता से | चूँकि यह विदेशी मिडिया भारत की एक ऐसे धर्मभीरु राष्ट्र की तरह इमेज पोरट्रे करता हैं जहाँ धर्म के नाम पर कुछ भी कैसा भी महंगे दामों में बिकता है अत: तुरत-फुरत फायदे के लिए इन्हें पौराणिक आधार पर आधुनिकता के मुलम्मे में लिपटी कॉमिक्सों के अलावा दूसरा विकल्प नज़र नहीं आता | इनके इस खामोख्याल को इस प्रकार की खबरे भी बल देती है की जेम्स कैमरून अपनी आगामी फ़िल्म महाभारत/रामायण पर बनाने वाले हैं जिससे इन्हें लगता है की भारतीय पौराणिक कथाओं के लिए यूरोपियन देशों में बड़ा क्रेज़ है,और चूँकि इन अंग्रेज़ी कॉमिक प्रकाशनों का मुख्य टार्गेट विदेशी भारतीय या अंग्रेज़ी भारतीय तबका ही रहता है इसलिए यह प्रदेशों की लोक कथाओं एवं सामायिक घटनाओं जैसे विषयों को छोड़कर भारतीय पौराणिक कथाओं जैसे 'फास्ट फ़ूड' पर ज़्यादा तवज्जो देते हैं |
    अगर इन्होने थोड़ी भी रिसर्च की होती तो यह अमर चित्र कथा की ऐतिहासिक सफ़लता से यह सबक लेते जिसने सिर्फ़ और सिर्फ़ विशुद्ध भारतीय सागर मथ कर अमूल्य नगीने निकाले |

    ReplyDelete