Saturday, April 24, 2010

शेर का बच्चा सूरज

इस कहानी का सारा ताना बना बुना गया है सूरज, डोगा, मोनिका, चीता, अदरक चाचा और चंद समाज के बेहिसाब दौलत और ताकत रखने वाले भेड़ियों पर.. डोगा के कम ही कामिक्स में ऐसे गजब की चित्रकारी, डायलॉग, एक्शन, इमोशन और सिक्वेंस एक साथ देखने को मिलेगा.. कुल मिला कर अगर मुझे इस कामिक्स को रेटिंग देने को कहा जाए तो मैं इसे पांच में चार दूँगा(****4/5)..

अब तक सूरज(नए आने वालों के लिए - सूरज ही डोगा है) को पता चल चुका होता है कि उसकी सोनू जो बीहड़ के घने जंगलों से भागते समय नदी कि धारा में बह गई थी वह मोनिका ही है, मगर मोनिका को यह नहीं पता होता है कि सूरज ही डोगा है.. मोनिका डोगा से बेहिसाब नफ़रत करती होती है, क्योंकि उसके हिसाब से डोगा का तरीका सही नहीं है.. उसका यह भी मानना होता है कि अगर सभी डोगा कि ही राह अपना लें तो इस समाज का कोई नाम लेने वाला भी बचा नहीं रहेगा..

मोनिका का भाई चीता को इस बात इल्म हो चुका था कि सूरज ही डोगा है, मगर अभी तक वह भी यह समझ चुका था कि इस समाज को डोगा कि जरूरत है.. घटनाक्रम कुछ ऐसा मोड़ लेती है कि डोगा को भी पता चलता है कि चीता उसका राज जान चुका है, और वह किसी भी कीमत पर अपना राज जानने वाले को जिन्दा नहीं छोड़ सकता है.. इसी जूनून में वह अपनी बन्दूक कि सारी गोली चीता के सीने में उतार देता है और वह भी मोनिका के सामने ही.. बाद में मोनिका को भी पता चल जाता है सूरज ही वह डोगा है जिसने अभी अभी उसके भाई को गोली मारी है.. इसी बीच अदरक चाचा डोगा और चीता-मोनिका के सामने दीवार बन कर सामने आ जाते हैं..

कुल मिला कर इस जबदस्त कामिक्स को पढ़ना ना भूलें.. और कुछ नहीं तो मेरी बात पर भरोसा करें कि "यह कामिक्स जबरदस्त है"..

चलते चलते बताता चलूँ, कि यह मेरे द्वारा स्कैन करके नेट पर अपलोड की जाने वाली पहली कामिक्स थी.. जो डोगा कि नेट पर उपलब्ध पहली ई-कामिक्स भी थी.. :)

डाउनलोड लिंक : शेर का बच्चा
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..




डाउनलोड लिंक : शेर का बच्चा
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..



आगे आने वाले कामिक्स के नाम :
  • खाकी और खद्दर (डोगा)

  • खूनी खानदान (ध्रुव)

  • अतीत (ध्रुव)

  • जिग्सा (ध्रुव)


एक दफ़े ये सभी पोस्ट हो जाने के बाद नागराज के उन कामिक्स को कुरेदा जायेगा जो नागराज कि शुरुवाती कामिक्स थी और अब बाजार में भी उपलब्ध नहीं है.. :)

12 comments:

  1. मुझे सूरज भी बहुत पसन्द था.. :)

    ReplyDelete
  2. मैं तो किसी जमाने में इस कामिक्स को पढ़ने के बाद ध्रुव से अधिक डोगा को पसंद करने लग गया था.. इसके बाद वाला कामिक्स "खाकी और खद्दर" भी बेहद जबरदस्त है.. :)

    ReplyDelete
  3. कॉमिक पेश करने का उम्दा तरीका.बदकिस्मती से राज कॉमिक्स से मेरा नाता उनके शुरूआती दिनों तक ही चला जब तक ध्रुव और नागराज की कॉमिक्स में कहानी पर ज्यादा अहमियत दी जाती थी बनिस्बत कॉमिक के पन्नो और कलरिंग आदि को निखारने-उभारने के.जब से ध्रुव भुत-प्रेतों,देवी-देवताओ आदि शक्तियों से मुठभेड़ करने लगा मेरी रूचि उसमे धीरे-धीरे ख़त्म होती गई.
    कमोबेश यही हाल डोगा की कॉमिक्स के साथ भी रहा क्योकि आरंभिक डोगा कॉमिक्स की कहानी,चित्रकारी बड़ी ज़ोरदार थी,खासकर से जब तक मनु जी डोगा बनाते रहे,पर धीरे-धीरे डोगा की देशभक्ति और संवाद अति पार करने लगे और एक समय आया जब ये सिर्फ एक हवाई ल्फ्फाबाज़ी से ज़्यादा कुछ नहीं रहे.
    बहरहाल,डोगा की ये आरंभिक कॉमिक्स सच में ज़ोरदार है जिन्हें आपने रोचक प्रस्तुतिकरण के ज़रिये और भी मोहक बना दिया है.

    ReplyDelete
  4. बहुत खूब प्रशांत भाई , आपने बचपन की यादें ताज़ा कर दी. मैं राज कॉमिक्स का शुरू से फ़ैन रहा हूँ. नई कॉमिक्स खरीदने और पढ़ने के लिए बचपन में कई पपद बेले हैं. ८०-९० के दशक में हम बच्चों के लिए कॉमिक्स होल सम एंटरटेनमेंट हुआ करतीं थी खैर राज कॉमिक्स के इन हीरोज़ जितनी ही इनकी थ्रिल हॉरर सस्पेनस सिरीज़ पसंद की गयी हैं . भंजा , तहलका , ख़तरा , एक कटोरा खून , तेरहवीं मंज़िल और खिड़की जैसे रोंगटे खड़े कर देने वाले कॉमिक्स खूब बिके. एक कटोरा खून तो शायद इस सिरीज़ की सबसे सफल कॉमिक्स थी.

    ReplyDelete
  5. @ Comic World - सबसे पहले तो धन्यवाद दूँगा इसे पसंद करने के लिए.. :)
    मैं भी आपसे सहमत हूँ.. जब से ध्रुव के साथ भूत प्रेत जुड़ा है तब से ध्रुव में वो बात नहीं दिखती है.. बाद में तो उन्होंने डोगा और एंथोनी के कामिक्स साथ निकाल कर पता नहीं क्या बताना चाह रहे थे यही समझ के परे था.. और मनु जी कि बात ही कुछ और थी.. मनु जी के बाद मुझे डोगा के कहानी लेखकों में तरुण कुमार वही जी बेहद पसंद रहे हैं.. अगर ध्रुव कि बात करें तो जब तक अनुपम सिन्हा के साथ जौली सिन्हा का नाम नहीं जुड़ा था तभी तक ध्रुव कि कहानी में कुछ नया दिखता रहा, उसके बाद मामला बिगड गया..

    ReplyDelete
  6. @ Chinmay - सच में हमारा वह दसक, जब केबल और वीडियो गेम हमारे नसों में नहीं घुसा था तब सिर्फ और सिर्फ कामिक्स ही हमारे लिए काफी हुआ करते थे.. थ्रिल-होरर कामिक्स शायद ही कभी खरीद कर पढ़ी होगी मैंने, कारण यह था कि पापा-मम्मी ध्रुव-डोगा को सहन कर भी लें मगर उसे सहन नहीं करते थे.. :)
    वैसे मुझे "एक कटोरा खून" का ज़माना अभी तक याद है.. क्या सिहरन हुआ करती थी उस सीरीज को पढ़ कर.. :D

    ReplyDelete
  7. @ Comic World - वैसे भाई, आप डोगा का नया सीरीज "खून का जन्मा" पढ़ रहे हैं?? अगर नहीं तो जरूर पढ़े, कुछ नया मिलेगा आपको.. ग्राफिक्स के साथ साथ कहानी भी पहले से बढ़िया है..

    ReplyDelete
  8. मुझे याद है कि जब शेर का बच्चा आयी थी तब एक बुखार की तरह जेहन पर चढ़ी थी..फिर खाकी और खद्दर और भी ग़जब थी...खासकर डाय्लाग्स..यहाँ फिर से देखना सुखद रहा..

    ReplyDelete
  9. @ अपूर्व - फिर तो यह भी याद होगा ही कि "शेर का बच्चा" और "खाकी और खद्दर" के बीच में डोगा और एंथोनी कि एक कामिक्स का आना कितना खला था.. :)

    शायद उस कामिक्स का नाम "जिन्दा मुर्दा" या "ठंढी आग" था..

    ReplyDelete
  10. PD: जी हाँ,सही कहा,तरुण कुमार वाही जी भी काफी अच्छा काम कर रहे है पर डोगा की कॉमिक्स में देशभक्ति लिप्त संवादों की अतिरंजना सी लगती है,ज़्यादा भावनात्मकता भी नाटकीय प्रभाव पैदा अगर करती है अगर दोहराई जाती रहे तो.
    आपके द्वारा उल्लेखित डोगा की कॉमिक्स से दो-चार होने का मौका तो नहीं मिला है अब तक,कोशिश करूँगा इनको आज़माने का.कुछ महीनो पहले नागराज की आतंक-हर्ता सिरीज़ की दो-एक कॉमिक्स खरीद लाया था पर कुछ खास असर नहीं छोड़ पाई वो,ऐसा लगा की किसी तेज़ रफ़्तार हॉलीवुड फ़िल्म की कहानी को पन्नो पर उतार दिया हो.
    नागराज की आरंभिक कॉमिक्स अपने आप में बेजोड़ थी,याद कीजिये 'नागराज और प्रलयंकारी मणि,शंकर शहंशाह,खूनी कबीला' सरीखी कॉमिक्स को जिनमे कहानी थ्रिल और सस्पेंस की संतुलित मात्रा से गूंथ कर लिखी गई थी.

    ReplyDelete
  11. @ Comic World - हाँ, यह देशभक्ति से संबंधित कुछ अधिक ही डायलोग रहने लगे थे बीच के डोगा के कामिक्स में..

    पता है मित्र, मेरी समझ में हमने जो भी कामिक्स बचपन में पढ़ी थी वो उस समय जैसा असर छोडती थी वैसा अब नहीं छोड़ पाती है.. जैसे अब हमारे एक्सपेकटेशन भी बढ़ी होती है और हम एक वयस्क दिमाग के साथ कोई भी कामिक्स पढते हैं सो वह वैसा तिलिस्म सा असर नहीं करता है जैसा बचपन में करता था..

    चलिए मैं आप सभी को अगले तीन कामिक्स ध्रुव के पेश करने के बाद 'नागराज और प्रलयंकारी मणि,शंकर शहंशाह,खूनी कबीला' लेकर आता हूँ.. :)

    ReplyDelete
  12. PD: बिलकुल,आपकी इस बात से मैं इत्तेफाक रखता हूँ की बचपन में पढ़ी गई कॉमिक्स का असर बड़े होने पर अक्सर वही रोमांच जागृत करने में असफल साबित होता है क्योकि बड़े होने पर हमारी सोच ज्यादा फ़ैलाव लिए हुए होती है जिससे हमें बचकानी चीज़ों में फर्क करने की तमीज़ आ जाती है.पर एक अच्छी एवं क्लासिक कॉमिक वही होती है जो 6 से 60 साठ साल तक के पाठकों पर समान रूप से प्रभाव छोड़े,और इस कसौटी पर अगर कोई कॉमिक खरी उतरती है तो वो है इंद्रजाल कॉमिक द्वारा प्रकाशित फैंटम/मैन्ड्रेक की कहानियां जो किसी समय या उम्र की सीमा की मोहताज नहीं हैं.बचपन में सात-आठ साल की उम्र में पढ़ी गई इंद्रजाल कॉमिक्स आज भी वही जादू बल्कि उससे भी कही ज़्यादा लुत्फ़ देती है अनेको दफ़ा पढ़े जाने के बावजूद भी.शायद ये आज की पीढ़ी की बदकिस्मती ही कही जाएगी की वो इन कालजयी कॉमिक्स का मज़ा लेने से वंचित रह गई.
    नागराज/ध्रुव/डोगा की कई सारी आरंभिक कॉमिक्स मेरे संग्रह में हैं जो मैं अवसर मिलने पर पढता रहता हूँ,फिर भी आपकी तरफ से इन कॉमिक्स का इंतज़ार रहेगा.

    ReplyDelete