Tuesday, November 18, 2008
Spoof और Parody Comics भारत में
भारत में वैसे भी spoof और parody कॉमिक्स का चलन ना के बराबर रहा है. भारतीय विचार शैली में इस तरह के मज़ाक ज़्यादा पसंद नहीं किए जाने के पीछे का कारण कुछ समाजशास्त्रियों के अनुसार हमें देर से मिली आज़ादी है और कुछ के मुताबिक हमारे sense of humor में इस तरह के मजाकों को गंभीरता से न लिया जाना है, जिसकी वजह से spoof और parody को हमेशा क्रियेटिविटी न मान कर किसी established विषय का माखौल बनाना समझा गया. हिन्दी साहित्य में व्यंग्य को अलबत्ता काफ़ी ऊंचा स्थान प्राप्त है और स्व. परसाई, कृष्ण चन्दर और श्रीलाल शुक्ल जैसी हस्तियों को एक साहित्यकार के तौर पर पूरा सम्मान भी मिलता है. आज भी हास्य व्यंग्य की परचम संभाले लेखक के.पी.सक्सेना (जिन्होंने कभी कभी parody भी की है) को न केवल साहित्य वरन फिल्मी दुनिया में भी एक सम्माननीय स्थान प्राप्त है (के.पी. जी ने आशुतोष गोवारिकर की लगान और जोधा अकबर के संवाद लिखे हैं). मगर एक समाज में जहाँ कॉमिक्स को कभी बच्चों का मन बहलाने के साधन से ऊपर का दर्जा नहीं मिला और एक ऐसा दौर जहाँ बच्चों के लिए फिल्मों की बातें करना या राजनैतिक चर्चा करना दुश्वार हो भला ऐसे में कोई कॉमिक-मैगजीन या कॉमिक पैरोडी और स्पूफ्स को ध्यान में रख कर कैसे बनाई जाए?
पश्चिमी देशों में स्पूफ मैगजीन MAD जहाँ सफलता के नए आयाम गढ़ रही थी हमारे देश में इस विधा की कोई शुरुआत ही होती नहीं नज़र आती थी. हाँ यदा कदा कुछ फिल्मी पत्रिकाओं या सामाजिक मैगजीन जैसे धर्मयुग में कुछ ऐसे कार्टून्स देखने को मिल जाते थे (मेरी पुरानी किताबों की पोथी में कुछ कार्टून्स मिलें तो मैं यहाँ धर्मयुग के कार्टून्स ज़रूर पोस्ट करूँगा).
बहरहाल हम बात कर रहे थे स्पूफ कॉमिक्स की तो सन सत्तर के दशक में एक पत्रिका शुरू हुयी दीवाना जो कि सही मानो में कहा जाए तो Mad का हिन्दी संस्करण कही जा सकती है. Humor के मामले में ये पत्रिका आज के मायनो में काफ़ी outdated लग सकती है मगर एक दौर में जब सही मानो में Humor Based Magazines का अभाव हो, इसे एक अच्छी शुरुआत माना जा सकता है. हाल ही में कॉमिक्स को Dedicated एक शानदार ब्लॉग नज़र आया Comic World जहाँ दीवाना के कुछ मुखपृष्ठ (जो कि दरअसल MAD Magazine के Cover Character - Alfred E. Newman की ही नक़ल थे) मिले, covers के साथ साथ कुछ अन्दर के पन्नों की भी झलकियाँ दिखीं जिनमें देखने को मिले art work को देख कर लगता है हो न हो ये चित्रकार भरत जी हैं, न केवल चित्रों की स्टाइल भरत जी वाली है बल्कि भाषा और चरित्र भी उनका ही काम लग रहे हैं (भरत जी ने किंग कॉमिक्स के लिए हंटर शार्क फोर्स नाम की एक सीरीज़ की थी जो कुछ ख़ास नहीं चली बाद में उन्होंने राज कॉमिक्स की पत्रिका Fang के लिए कुछ काम किया था और Fang करीब करीब दीवाना का एक Upgraded Version कही जा सकती है, इसमें भरत जी ने कुछ कहानियाँ और प्रतियोगिताएं की थी जो काफ़ी spoofy थी, साथ ही भरत जी के आने के बाद राज कॉमिक्स ने तीन पैरोडी कॉमिक्स भी की थीं हम आपके हैं भौं भौं, भाजीघर और छोले सो चित्रशैली लेखनशैली और सोचने के स्टाइल को देखें तो लगता है दीवाना के ये पन्ने शायद भरत जी की ही कलम से निकले थे). भरत जी का नया काम इस समय मेरे साथ नहीं है शीघ्र ही पोस्ट करने की कोशिश करूँगा.
माफ़ कीजियेगा जब भी मैं कॉमिक्स की बात करता हूँ ज़रा carried away हो जाता हूँ और मुख्य टॉपिक से हट कर यहाँ वहाँ की बात करने लगता हूँ क्या करुँ कॉमिक्स की दुनिया है ही ऐसी निराली. खैर दीवाना को वह सफलता हासिल नहीं हुयी जो पश्चिम में MAD को मिली है. कारण बहुत सारे हो सकते हैं मगर उनका ज़िक्र यहाँ करना ज़रूरी नहीं. दीवाना भले ही सफल न रही हो पर पैरोडी और स्पूफ कॉमिक्स के लिए एक रास्ता ज़रूर खोल गई. इन पत्रिकाओं में लोटपोट का ज़िक्र न हो ऐसा नहीं हो सकता (लोटपोट के पन्नों पर ही सबसे पहले अवतरित हुए थे चाचा चौधरी और मोटू-पतलू). आनेवाले समय में मधुमुस्कान और नन्हेसम्राट (जो कि सन १९८५ में शुरू हुयी और इसमें पहला ब्रेक मिला था भारतीय कॉमिक्स के सबसे सफल चित्रकथाकार - अनुपम सिन्हा को) जैसी हिन्दी पत्रिकाएँ निकली. जिनमें मधुमुस्कान ने हास्य के लिए स्पूफ और पैरोडी का भरपूर इस्तेमाल किया. मधुमुस्कान के चरित्र न केवल बार बार फ़िल्म इंडस्ट्री के उदाहरण दिया करते थे बल्कि एक चरित्र फिल्मी रिपोर्टर कलम दास तो ख़ुद फ़िल्म स्टार्स से मिल कर उनके interview लेने की कोशिश करता था (ये बात और है कि वह कभी इसमें सफल न हो पाया और हमेशा मालिक साहब के गुस्से का शिकार होता रहा). कलम दास की रचना की थी प्रख्यात कॉमिक बुक आर्टिस्ट हुसेन जामीन ने, जिनको फिल्मी कलाकारों के caricatures करने में बड़ा मज़ा आता था, उनका एक और चरित्र नन्हा जासूस बबलू जहाँ फ़िल्म कलाकार सचिन का caricature था वहीँ युवा जासूस बबलू आधारित था युवा सनी देओल पर. मनोज कॉमिक्स में उनके बनाये पत्र सागर सलीम क्रमशः धर्मेन्द्र और विनोद खन्ना की तरह नज़र आते थे. हुसेन जामीन पर कभी और लम्बी पोस्ट लिखने का विचार है. फिलहाल आपके लिए प्रस्तुत हैं हुसेन साहब की कलम से निकली कलम दास की एक दर्द भरी कहानी यहाँ :
साभार : Comic World
नब्बे के दशक में राज कॉमिक्स ने भी Spoofs और Parodies में अपना हाथ आजमाया अपनी ब्लैक एंड व्हाइट कॉमिक्स बिलवाले धमकियां दे जायेंगे, हम आपके हैं भौं भौं, छोले और अपनी कॉमिक पत्रिका FANG के साथ.
इसी दशक के अन्तिम वर्षों में आई पत्रिका Definitely Insane, बेहतरीन लेखन और शानदार Illustrations से सजी यह मैगजीन अपने शुरूआती दौर में खासी सफल रही मगर MAD से काफ़ी मिलते जुलते format की वजह से इसे कुछ कानूनी दिक्कतों का सामना करना पड़ा और कुछ समय में यह पत्रिका बंद हो गई. मगर अब तक भारतीय जनमानस ने स्पूफ और पैरोडी को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था और ऐसे कई पैरोडी वाले नियमित स्तम्भ फिल्मी पत्रिकाओं में शुरू हो चुके थे (Stardust में आलिफ सुरती के कार्टून स्पूफ्स काफ़ी चर्चित रहे, आलिफ मशहूर कार्टूनिस्ट आबिद सुरती जी के सुपुत्र हैं). टीवी पर भी अब ऐसे कई shows नज़र आने लगे हैं जिनकी theme पूरी तरह Spoof Based होती हैं.
यह तो हुआ चिटठा Spoof /Parody Based कॉमिक्स पर. ब्लोगिस्तान में भटकते हुए मुझे मिला यह ब्लॉग - Books ans Comics जिसपर पोस्ट है Asterix की हिन्दी कॉमिक्स. पढिये और आनंद लीजिये.
- आलोक
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Wrote this post long back, had to re-edit it and add couple of images too but the Blog started giving troubles and error messages so had to post it as it is...Extremely sorry
ReplyDeleteदीवाना बचपन में मेरी पसंददीदा पत्रिका हुआ करती थी. जब लोटपोट से कृपाशंकर कार्टूनिस्ट इसमें आगये थे तब इसके कहने ही क्या थे. मुझे इसका बन्द होना बहुत अखरता रहा.
ReplyDeleteबाद में मैड ने दीवाना की कमी दूर कर दी. मैड के पुराने सैकड़ों अंको का संग्रह मेरे पास है लेकिन मैं आज भी दीवाना के पुराने अंक काफी समय से खोज रहा हूं.
बहुत अच्छा लगा आपकी ये पोस्ट पढ़कर.
I m also desperately searching for Deewana back issues.I m so glad to see you r so enthusiastic about humour n satire content.
DeletePlz if u could help me with soft copy of Mad back issues..or Deewana
duddyx@gmail.com
Nie post on Indian comics,specially Deewana.In my knowledge main writor-illustrator responsible for most of Deewana article was Kripa Shankar Bhardwaj,who later on joined with Lotpot and later on wrote/drew many comic stories for various comics such as Manoj comics,Raj comics,diamond comics,Yahoo etc.
ReplyDeleteAfter Deewana only Madhumuskan was able to reach to a quite decent popularity level,mainly because of writer/illustrator Jagdish,Harish M.Sudan and combo of H.I.Pasha and Hussain Zamin.But after departure of Jagdish from Madhumuskan its decline came soon.
After Madhumuskan not a single comedy comic gained such popularity as Deewana and Madhumuskan enjoyed.
Me too a Deewana fan and collects any Deewana copy whenever i come across any such opportunity.
Comic lover specially Deewana lover are most welcome to share their view/thoughts over it.
Dear monsieur
DeleteHow glad I m to see a truly comic n humor loving enthusuast!Trust me I m no less crazy about Deewana.I'd feel so grateful to u if u could help me with soft copies of Deewana
duddyx@gmail.com
Fantastic.
ReplyDeletecomics
ReplyDeletesim786.blogspot.com
'silbil-pilpil', 'adim-yug' were few strips in Deewana which were really awesome..comic world righy said that madhu muskan, deewana , lotpot were only few names as far comedy strip is in account.
ReplyDeleteother thant the picture comic there were lots of stories in this books which are still un-forgetable..
one thing i am curious to ask with all comic lovers.. whats your opinion about ' bal pocket books'
i am sure you remember manoj pocket books , rajeev pocket books, s.c. bedi rajan iqbal, vichitra katha etc..
do share your opinion on these as well.
i am first timer on ur blog today and reading it from first post great great work claps to you loved the work u done simply amazing i wanna tell one parody comic i read long time back uska naam tha " kissa ek crore ka " and it was the funniest comic i ever read it might published in raj or parampara comic
ReplyDelete( parampara was started by manoj comics likewise raj started kings comics where there character gamraz come
Is it possible for someone to get us old copies of deewana for our college project? We will scan them and can make a soft copy too. It's a way of teaching our undergraduate students some aspects of comic culture
ReplyDeleteHi dear Shweta,I too m so crazy about Deewana.Like u I intend to have back#s of Deewana.Softcopies would do enough to my need
Deleteduddyx@gmail.com
Hi, I would like to buy Indian Diwana comics. Can anybody help me? (madmagazine@gmx.com)
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