Tuesday, July 6, 2010
आइये, कॉमिक्स से नयी पीढ़ी का विकास करें!
कॉमिक्स काफ़ी सारी विविधता और किरदारों के साथ आती है. साथ ही कॉमिक्स का सबसे बड़ा फायदा किसी बच्चे (खासकर slow learners or differently abled) के विकास मे होता है. सिर्फ बच्चे ही क्यों बड़ो को भी समान रूप से कॉमिक्स पढने का फायदा होगा. पर ज्यादातर अभिभावक कॉमिक्स को समय, पैसे, आदि की बर्बादी समझते है. जैसा की वो अब तक सुनते आ रहे है. उन्होंने कभी कॉमिक्स को खुद नहीं परखा जो सुन लिया वो मान बैठे. ये बहस तो लम्बी है की कॉमिक्स को सिर्फ बच्चो के लिए क्यों समझा जाता है पर यहाँ मै आप सबका ध्यान कॉमिक्स से होने वाले एक बड़े फायदे की ओर करना चाहता हूँ. विकसित होते और निरंतर कुछ न कुछ सीखते मस्तिक्ष को कॉमिक्स किस तरह विकास मे मदद करती है.
कॉमिक्स एकलौता ऐसा multimedia का साधन है जिसमे लगभग हर कोई आराम से अपनी सुविधा अनुसार चित्रों और कहानी को relate कर सकता है और उनमे हो रहे frame wise changes को समझ सकता है. ये खासियत बच्चो के दिमाग के विकास मे मदद करती है. क्या और किसी मनोरंजन के साधन मे है ये खूबी? अभिभावक अगर कॉमिक्स का सही तरीके और सोच से इस्तेमाल करें तो उनके बच्चो का बहुत बढ़िया विकास हो सकता है. साथ ही उनकी creativity और logical approach भी विकसित होता है. बस कॉमिक्स चुनते वक्त उसके मैटर पर एक बार उपरी नज़र डाल कर उसे देख लें. कुछ बढ़िया कॉमिक सीरीज़ आपके बच्चे को बहुत अच्छी सीख दे सकती है. यहाँ भी मै कहूँगा की अपने हिसाब से खुद कॉमिक्स चुनिये...हर बार की तरह सिर्फ दूसरो की मत सुनिये. कई अभिभावक और आलोचक शिकायत करते है की कुछ कॉमिक्स मे व्यसक दृश्य, बातें, खून-खराबा बहुत होता है. मेरा कहना ये है की सारी कॉमिक्स ऐसी नहीं होती, मनोरंजन के बाकी साधन जैसे टी.वी., इंटरनेट, पत्रिकाएँ यहाँ तक की अख़बार आदि भी इस मामले मे कॉमिक्स से कहीं ज्यादा आगे निकल गये है.....और कम से कम कॉमिक्स मे अंत मे अच्छाई की बुराई पर जीत तो होती है.....है ना?
अब तक तो हाल ये है की साहित्यिक गलियारों मे बच्चो की चीज़ कहकर नकार दी जाने वाली कॉमिक्स को बाल साहित्य की श्रेणी तक मे जगह नहीं मिलती. तो क्यों ना नयी पीढ़ी से एक नयी शुरुआत की जाये जहाँ कॉमिक्स को भी साहित्य जैसा सम्मान मिले (क्योकि कॉमिक्स के पीछे भी कई प्रतिभाएं दिन-रात मेहनत करती है).
Monday, July 5, 2010
रे संजय ताऊ! इधर भी देख लो! (Haryanvi Flavor)
भारतीय कॉमिक्स के सिमटते संसार से दुखी एक हरियाणा निवासी कॉमिक प्रशंषक की भारतीय कॉमिक्स के इक्का दुक्का बचे स्तंभों मे से एक राज कॉमिक्स के प्रमुख श्री संजय गुप्ता जी से काल्पनिक फ़रियाद. भाषा का मकसद किसी को आहत करना नहीं बल्कि सिर्फ मनोरंजन करना है.
"भई, म्हारा नाम जाट मोहित से! सब लोगन को म्हारा प्रणाम. मन्ने राज कॉमिक्स बड़ी चोखी लागये से. सारा गाँव दीदे काढ़े करे मारे पे फिर भी यो राज कॉमिक्स ना छोड़ के दी गयी. सारे कहवें की अच्छे चंगे जाट को तो कॉमिक्स ने खा गेरा. छोरियां कहवें से से की घना चीकना छोरा किंगे को डल्ले मार रिया है. पर मै अख्यन्न मे पंजे डाल के किसी की ना सुनु.....बस घनी बिमला सी विसर्पी के सपने बुनू सु. सब से कहूँ के घने दीदे मत ना काढो मै कौन सा पानी को पापा कह रिया हूँ....म्हारा तो यो ही फंडा है के "राज कॉमिक्स से म्हारा जनून".
इब बस संजय ताऊ से यो ही बिनती से के राज कॉमिक्स मे हरयाणवी बोली भी संग नु कल लो. यहाँ घने पंखे बैठे है संजय ताऊ जी और वा की कॉमिक्स के. रे अगर हरयाणवी मे राज कॉमिक्स आ जावे तो म्हारा तो घी सा गल जावे. और सारे ताऊ जियो को लग रिया हो के यो हरयाणवी मे छापने से चिडिया ना उड़न वाली तो झाग मत ना बिलोवो बस इतना सुन लो के थारी हिंदी कॉमिक्स मे थोडा 'हरयाणवी Flavor' भी पेल दिया करियो. इतता तो ढेडे के बीज भी कल लेंगे. मै किसी भासा का नास का ना फोड़ रहा मै तो यो ही चाहूँ के बंगाली, भोजपुरी, गुजराती, सिन्धी, तमिल, उर्दू, और निरे भारत की भासाओ का फ्लेवर राज कॉमिक्स अपनी कॉमिक्स मे देती रहवये. केवल "साडा की होऊ...., etc" की पीपणी ना बजाती फिरे. अच्छा तो जी.....अब इस blog पर ज्यादा थूक के पकोडे मत ना तारो.
नमस्कार!!"
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