Wednesday, December 25, 2013

यादें गुजरे लम्हों की

वक़्त गुज़र गया, ज़माने हुए हमें दुनिया के सामने आये हुए. प्रशांत से जब बात हुई तो हमने खोई हुई व्योमा को फ़िर से ढूँढने कि कोशिश की. व्योम… और उसका दुनिया 'वर्ल्ड' से पहला परिचय करवाया पिता ने. उन्होंने मेरे लिए नंदन, चंदामामा, बाल-भारती और इंद्रजाल कॉमिक्स की नियमित बंदी लगवाई थी. इसके अलावा हमारे घर में कादम्बिनी भी आती थी पर मैं दीवानी थी इंद्रजाल कॉमिक्स की. वेताल और मेंड्रेक मेरे हीरो थे. हमारे घर में जो कॉमिक्स देनेवाले अंकल आते थे उनकी आँखे पीली थी, बहुत प्यार करते थे. हर हफ़्ते सोमवार का इंतज़ार रहता था.

जब वो कॉमिक्स ले के आते थे तो मैं जैसे सारी जंज़ीरें तोड़ के भागती थी. किसे फ़िक्र थी फ्रॉक के बटन लगे हैं के नहीं, किसे फ़िक्र थी बाल बँधे हैं कि खुले बस इस हफ्ते वेताल आयेगा या मेंड्रेक दोनों में से कोई भी मिला तो मज़े. गार्थ मिला तो रोना शुरू.. कभी भाग-१ हुआ तो इंतज़ार ज़माने भर का. भाग-२ के मिलते ही अंकल को रोककर सबसे पहले आखरी पन्ना देखती कि भाग-३ तो नहीं? यदि हुआ तो पीली आँखों वाले अंकल पे लात-घूंसे बरसाना शुरू खैर बाक़ी हरक़तें बाद में. एक बार डेढ़ महीने वेताल-मेंड्रेक गायब थे तब फोकस हुआ किर्बी, नोमेड, ब्रूसली, गार्थ और सॉयर से.

बचपन के दिनों की यादें या यूँ कहें जज़बात बाँट रही हूँ. आप भी सुनिये किस्से कॉमिक्स-दीवानी के, तो शुरू करें? एक नंबर है 'भुतहा मकान' दिल के बहुत क़रीब.. पहले तीन बॉक्सेस से ही चार जिज्ञासाएँ निकलीं :
१.' कैरेबियन सी' क्या है?
२. 'गोताखोरी का रेकॉर्ड' मतलब?
३. 'अफ्रीका' कहाँ है?
४. डुप्लीकेट मतलब?
अब इंतज़ार था पापा का आते ही घेर लिया.. ५ मिनिट में जवाब देके छूटे और मैं फ़िर बॉक्स १ से शुरू. फ़िर थोड़ी देर में पापा से, 'पापा, दवाई लेने से भूत दिखतें हैं?' (पापा असमंजस में) और मैं पढ़ती जा रही हूँ। पापा से पूछा मेरे पास भेड़िये की खाल क्यूँ नहीं है (मेरे पापा मुझे अपनी राजकुमारी कहते थे)

'सेंडविच', और 'भूत-पूर्व उड़ाका' का अर्थ जानने के बाद मैं व्यस्त हो गयी थोड़ी देर बाद पूछा 'शून्य-दृष्टता' क्या होती है? फ़िर जानवर क्यूँ पूँछ हिलाता है.. जानवर का चाटना प्यार का सूचक होता है.. ये जाना काँटा निकालने के बाद जंगली जानवर को भी भरोसे से जीता जा सकता है.. सीखा जब वो रेने पर आरोप लगाता है और रेने की आँखों में आँसू (तब मेरी ऑंखें नम हो गयीं थीं फ़र की नरमाहट मैं भी भूल गयी थी ).. बाद मुद्दत के जब पति-पत्नी के संवाद में 'मुझे नहीं देखना हाथ लगाके' कैसा दर्द था.. फ़िर 'मुझे लगता है उस भेड़िये की खाल क्रिस्टी ने ओढ़ रखी है।' घर में,क्रिस्टी पूछती है 'मेरा फ़र कहाँ रखा है?(वो तो सामने की कुर्सी पर ही रखा होता है).. टेलीग्राम के बाद 'मैंने सही कहा था न मैंने भेड़िया देखा था'....'तुम हमेशा सही कहते हो.....'
how sweet......


मेरे आग्रह पर व्योमा मिश्रा जी ने यह लिख भेजा मुझे और यह कामिक्स भी, जिसे मैं आप दोस्तों के साथ शेयर कर रहा हूँ.
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Tuesday, December 24, 2013

वो ज़हन मे जिंदगी जीते रहेंगे! - मोहित शर्मा (ज़हन)

नमस्ते!

वैसे तो कुछ साल पहले कि कविता है पर इसमें हास्य भाग ख़ास Comics Fest India 2013 के लिए जोड़ा था। अभिनेता शिवा जी आर्यन ने बस एक-दो बार में इसको याद कर के स्टेज पर अपने एक्ट से पहले बोला।  देखें आप इनमे से कितने अमर किरदारो को पहचान पातें है।

साथ ही जोड़ रहा हूँ अंसार अख्तर जी और हवलदार बहादुर को ट्रिब्यूट देती यह आर्ट जिसको मैंने अथर्व ठाकुर और युधवीर सिंह के साथ तैयार किया है। 



वो ज़हन मे जिंदगी जीते रहेंगे! 

इंसानियत के जज्बे को जागते रहेंगे।
सुनी है रात के अन्धकार मे कुत्तो की गुर्राहट ?
और कब्र पर प्रिंस की कर्कशाहट ?
या दिल्ली की छत के नीचे अपराध की दस्तक ?
महसूस किये है जासूस सर्पो के मानसिक संकेत ?
या सूचना देता कमांडो फोर्स का कैडेट ?
झेला है जंगल मे किसी निर्बल पर अत्याचार ?
या सुनी है किसी अबला की करुण पुकार ?
ली है राजनगर पुलिस हेडक्वाटर से प्रेषित कोई ज़िम्मेदारी ?
या मिला है रोशन सुरक्षा चक्र के पीछे इंतज़ार करता कोई वर्दीधारी?
जब तक अपराध होते रहेंगे,
पन्नो मे कैद ही सही,
ये सभी किरदार इंसानों मे जिंदा होकर इंसानियत के जज्बे को जागते रहेंगे। 

मिली है कभी किसी से अनचाही पुच्ची?
या फटते देखा है किसी के गुस्से से ज्वालामुखी? 
मनाया है क्या किटी पार्टी को मेला?
या पाया है किसी ने दर्जन बच्चो वाला चेला?
खायी है क्या किन्ही चार फ़ुटियों से लातें?
या बड़े ध्यान से सुनी किसी कि छोटी-छोटी मगर मोटी बातें? 
बोले कहीं एक कुपोषित जासूस ने धावे,
या किसी हवलदार के हवालात मे सड़ाने के दावे? 
खुद को जीनियस क्यों समझता एक बुद्धू बच्चा सिंगल पसली?
या साथ रहा कभी आजकल के नेताओ का पूर्वज असली?
और एक बिना बात धर्मार्थ करने वाले क्यूट अंकल जी.… 
जब तक लोग जीवन से बोर होने लगेंगे .... 
पन्नो मे कैद ही सही,
ये किरदार अंतर्मन में जीवित हो हमे गुदगुदाते रहेंगे।