Saturday, July 27, 2013

नेगेटिव्स

राज कामिक्स के बहुचर्चित कामिक्स सीरिज "नागायण" के बाद अब फिर से एक आगामी कामिक्स बेहद चर्चे में है, जिसका नाम है "नेगेटिव्स". इस कामिक्स के लेखक "अनुपम सिन्हा" जी का मंतव्य आपके सामने रख रहा हूँ जो वे अक्सर फेसबुक पर अपने दोस्तों से आजकल बांच रहे हैं. इसे उन्होंने तीन भाग में बेहद रोचक अंदाज में लिखा है. मैं सिर्फ यहाँ कॉपी-पेस्ट से काम चला रहा हूँ. फिलहाल तो मुझे इस मल्टीस्टारर विशेषांक का इन्तजार है.


भाग एक :

नागायण...और फिर नेगेटिव्स! ये 'न' से शुरू होने वाली कॉमिक्स काफी फैल कर बैठना पसंद करती हैं। ये जो चित्र साथ में अपलोडेड हैं ये पोस्ट की खूबसूरती बढाने के लिए नहीं है। इसमें एक ख़ास बात है। ...तो 'अवशेष' सीरीज के बाद हम लोग एक नए शाहकार की तलाश में थे। ये आईडिया संजय गुप्ता जी का था कि इस बार 10,000 के बजाए 1 लाख वाली लड़ी छुटाई जाए। 55 पेजों के तीन कॉमिक की सीरीज बनाने के बजाए क्यों न एक ही 160 पृष्ठों क़ी कॉमिक बनाई जाए। संजय जी का तो आग्रह ही मेरे लिए आदेश होता है, और आईडिया तो नवीनता से परिपूर्ण था ही, इसीलिए मैंने भी लम्बी सांस बाद में ली और हाँ पहले किया। न कांसेप्ट था उस वक़्त तक, न कांसेप्ट का अता-पता! नाम का तो पूछो ही मत! बस ये तय था कि कॉमिक मल्टी-स्टारर होगी। नागराज, ध्रुव और डोगा के साथ और कौन से ब्रह्माण्ड-रक्षक होंगे, इसका जिम्मा भी मेरे कन्धों पर डाल दिया संजय जी ने! फिर भी मैंने उनकी व्यक्तिगत पसंद जानने को जोर डाला तो उन्होंने कहा कि हो सके तो तिरंगा को इसमें शामिल कर लें। तो तिरंगा शामिल हो गया....और क्या शामिल हुआ!!
भाग दो :
तिरंगा तो नेगेटिव्स में शामिल हो गया था पर दूसरे हीरोज को चुनना अभी बाकी था | कल किसी ने ज़िक्र किया था कि संजय जी अगर बांकेलाल का नाम लेते तो ? तो ये विचार मुझे आया था और संजय जी ने कहा था कि जैसा ठीक समझें, कर लें | परन्तु बांकेलाल का समय-काल काफी दिक्क़तें पेश कर रहा था | काफी सोचा, पर बांकेलाल की गडबड करने की प्रवृत्ति इस कहानी तक को प्रभावित कर रही थी | हार कर मैंने बांकेलाल जी को हाथ जोड़ लिए कि आप को किसी और कॉमिक में पूजूँगा | आखिरकार ब्रह्माण्ड-रक्षकों की लाइन तय हो गयी कि इसमें नागराज, ध्रुव, डोगा, परमाणु और, ज़ाहिर है, तिरंगा शिरकत करेंगे | तो ईटें, सीमेंट आ चुकी थीं पर मकान का नक्शा और प्लाट यानि भूखंड का अता-पता तक नहीं था | दरअसल 160 पेजों की एक कहानी लिखने और 55-55 पेजों के तीन खंड की कहानी लिखने में थोड़ा फर्क होता है | ज़ाहिर है कि 160 पेजों की कहानी एक बार में पढी जाएगी तो उसमे फ्लो यानि सततता का होना अति-आवश्यक है | साथ ही विलेन कोई नया और महाशक्तिशाली होना चाहिए ताकि कॉमिक में इतने दिग्गजों की उपस्थिति को उचित ठहराया जा सके | उस विलेन का उद्देश्य भी दुनिया को हिला देने वाला होना चाहिए | अबतक मैं ब्रह्माण्ड-रक्षकों की हर कॉमिक में यही सोच अपनाता आया हूँ, पर 160 पेजों तक आपको बिना रस्सी के कुर्सी या बेड से बाँधे रखने के लिए रोमांच की मजबूत डोर तो चाहिए न? जो आईडिया सोचो तो लगता था की अरे, ये तो हम यूज कर चुके, ...ओह, ये तो उस कॉमिक से मिलता-जुलता आईडिया है! बिना 100% आश्वस्त हुए मैं कोई कॉमिक शुरू नहीं करता चाहे संजय जी कितना ही डाट लें! पर वो आईडिया आएगा कहाँ से जो 160 पेजों की महागाथा की गरिमा के अनुरूप हो? मेरे दिमाग में काम करते वक्त जो भी आईडिया आता है उसको मैं या तो लिख लेता हूँ, या उसका रफ स्केच बना लेता हूँ या अगर बहुत खुश हो गया तो फाईनल ड्राईग बना कर भी रख लेता हूँ | ये मेरा आईडिया-बैंक है और जब मैं सब तरफ से हार जाता हूँ तो इसी की शरण लेता हूँ ! मैंने जब अपने आईडिया-बैंक को खंगालना शुरू किया तो पहले तो कुछ खास नहीं मिला , लेकिन फिर मिला एक चित्र ! जब मैंने इसका फाईनल स्केच बनाया था तो इसके लायक कोई कहानी मेरे दिमाग में नहीं थी | पर अब ये मेरी सोच पर ऐसा फिट बैठ रहा था जैसे कि पैरों में मोजा! इस चित्र को देखते ही पूरा प्लाट अपने आप दिमाग में खटाखट बैठने लगा! जिस काम के लिए हफ्ते लगा दिए थे वो मिनटों में हो गया ! चित्र यही वाला था जो मैंने आप के अवलोकन के लिए लगाया है | पर इसमें रहस्य क्या है? रहस्य तो Sanjay जी भी आज आप लोगों के साथ ही जानेंगे ! अभी तक मैंने उनको भी नहीं बताया है कि ये टाइटल/एड डिज़ाइन मैंने 2008 के पूर्वार्ध में बना कर छोडा हुआ था ! तब से ये 160 पृष्ठों की नेगेटिव्स बनने की राह देख रहा था! तो सब तैयार था लेकिन अभी तो पहाड़ को सिर्फ चुना गया था | उस पर चढने की शुरुआत अभी होनी थी | और यकीन मानिए, अगर पहले से पता हो कि 160 ऊंची-ऊंची सीढियां एक सांस में चढनी हैं तो सांस पहले से ही फूलने लग जाती है ! पर आप सब के लिए ये पहाड़ तो मुझे चढना ही था!
भाग तीन :
लोग कहते हैं की हर कहानी की एक आत्मा होती है! मैं मानता हूँ | पर हर कहानी की एक जन्मपत्री भी होती है और उस जन्मपत्री में ग्रहों यानि पात्रों को उनके घरों में यानि स्थितियों में सही जगह पर बैठाना होता है | तभी उनका सही भाग्यफल दृष्टिगोचर होता है | ये जन्मपत्री कहानी शुरू करने से पहले बनानी ज़रूरी है, खासकर के तब, जब आप किसी बड़ी कहानी पर हाथ आजमा रहे हों | नेगेटिव्स जैसी कहानी ! तिरंगा को मैंने बहुत दिनों से हैंडल नहीं किया था | उसको इस कहानी में एक महत्त्वपूर्ण रोल देना एक चुनौती थी |अभी किसी ने पिछली पोस्ट पर (भाग २) ये कमेन्ट किया था कि कुछ मल्टी-स्टारर को छोड कर हर कॉमिक में, हीरोज की क्षमता के साथ अन्याय होता है | मैं इस बात से कतई इत्तेफाक नहीं रखता | मेरी कहानी में हीरोज को उनकी प्रसिद्धि के आधार पर नहीं बल्कि उस खास कॉमिक में उनके रोल के अनुसार जगह दी जाती है | और हर हीरो को वही काम दिया जाता है जिसे कि सिर्फ वो ही कर सके | नेगेटिव्स में डोगा का सीक्वेंस अगर नागराज पर फिट करने कि कोशिश की जाए तो नागराज बहुत ज्यादा ड्रामेटिक और विश्वास से परे लगेगा| मेरी हर मल्टी-स्टारर में किसी दूसरे हीरो को किसी और के रोल में फिट नहीं किया जा सकता | हर हीरो अपनी क्षमता के अनुरूप एक महत्वपूर्ण कार्य करता है | फिलहाल तो, नेगेटिव्स पर आगे चर्चा करते हैं | ग्रहों की यानि मुख्या पात्रों की जगह तय हो जाने के बाद बारी आती है नक्षत्रों की, यानि सहायक पात्रों की, जो समय समय में कहानी में आकर कहानी को गति और दिशा प्रदान करते हैं| इनका चुनाव सबसे मुश्किल कार्य होता है, क्योंकि ध्यान रखना पड़ता है की कहीं ये सहायक इतने महत्वपूर्ण न हो जाएँ कि मुख्य पात्रो पर हावी होने लगें | ये दरअसल वे छोटे छोटे सीक्वेंस करते हैं जो मुख्य पात्रों के सीक्वेंस को आपस में जोड़ते हैं | जब इनका चुनाव भी हो गया तो असली काम शुरू हुआ; कहानी की शुरुआत ! अभी सिर्फ इतना ही बता सकता हूँ कि कहानी शुरू करने का अवसर तिरंगा को दिया गया है | उसकी सोच और उसकी शक्तियों (?) को नवीनता दी गई है | वैसे किसी बहुत बड़े बदलाव कि अपेक्षा न करें , तिरंगा शत प्रतिशत वही है जैसा कि आप देखते आए हैं, बस उसके तेवर ज़रा बदले मिलेंगे आपको ! कहानी की शुरुआत एक जटिल निर्णय होता है | कई कहानियाँ तो सिर्फ इस कारण से लटकी पड़ी रहती हैं क्योंकि लेखक उसकी शुरुआत नहीं ढूंढ पाता | हम हर बार भाग्यशाली साबित हुए हैं और इस बार भी हुए! कहानी एक बार जो शुरू हो गई तो रूकती नहीं! बस कहीं कहीं पर अटकती ज़रूर है १ नेगेटिव्स भी अटकी लेकिन हमने हर बार जोर लगाकर गाडी पार लगा ही दी ! जब तक मैं कहानी से संतुष्ट नहीं होता तक तक मैं उसको आप तक नहीं पहुंचाता | क्योंकि मेरा मानना है कि मेरा दिमाग आप सब के दिमागों से जुड़ा हुआ है ; ‘कॉमिक-वेव्स’ की अदृश्य डोर से ! अगर मैं संतुष्ट नहीं तो आप भी नहीं होंगे! नेगेटिव्स लिखने और बनाने के बाद मैं महासंतुष्ट हूँ! बताना तो बहुत कुछ है पर हर बात ‘घर का भेदी’ साबित हो रही है ! रहस्यों को पहले से ही खोलने कि धमकी दे रही है ! तो और ज्यादा नहीं बताऊँगा | हिन्दुस्तान में कॉमिक्स ने कई दौर देखे हैं | सबसे सफल दौर 1990 से लेकर 2005 तक के वर्ष रहे हैं | आज भी आप में से कई पाठक उस दौर को आवाज़ लगाते रहते हैं | नेगेटिव्स वही दौर वापस ले कर आया है! कम से कम प्रयास तो यही है ! ! भरपूर कहानी, ठसाठस भरे धमाकेदार डाएलॉग्स और एक्शन से सराबोर चित्र ! लाइन-आर्ट में बने चित्रों में सिर्फ बुनियादी कलर-इफेक्ट ! बस, एक शिकायत मत करना, दोस्तों, कि 160 पृष्ठ कम पड गए! वैसे नेगेटिव्स पर एक अगला लेख भी लिखूंगा | जब आप सब इसे पढ़ लेंगे, उसके बाद! वह होगी नेगेटिव्स बनाने की पूरी यानि सम्पूर्ण कहानी ! अब आपके लेखो यानि रिव्यूज़ का इन्तज़ार रहेगा !

तो दोस्तों, इसका आखिरी अंक अनुपम जी द्वारा लिखते ही मैं इसे उस चौथे अंक के साथ अपडेट कर दूंगा. तब तक के लिए अलविदा |

4 comments:

  1. नगेटिव्स कॉमिक्श कब तक मार्केट मेँ आ रही है

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    1. अभी तक कोई दिन तय नहीं हुआ है.

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  2. are ye kab aaya market main? bhai order karna to batana...hum bhi phad lenge...

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    1. झाजी, कामिक्स आ गया है. जब पढने का मन हो घर आ जाना. इसी बहाने मेरे गरीबखाने पर आपकी दस्तक तो होगी.. :P

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