सच कहूं तो वेताल मेरे जमाने का कामिक हीरो नहीं था.. मगर फिर भी मैंने जितनी कामिक इसकी पढी है वो उस जमाने के भी कई लोग नहीं पढे होंगे.. आभार जाता है मेरी मम्मी के मौसेरे भाईयों को जो चक्रधरपुर में रहते हैं.. चक्रधरपुर झारखंड में स्थित एक अनुमंडल है और छोटा सा शहर भी.. सन् 1992 में पापाजी का तबादला वहां हो गया था.. उस समय बिहार-झारखंड अलग नहीं हुआ था..
मैं कक्षा सात में पढता था.. मेरे विद्यालय से नानी का घर बस 100-200 मीटर की दूरी पर था.. जैसे ही विद्यालय बंद होता था, मैं बस छू मंतर.. निकल भागता था नानी के घर.. दो कारण होते थे.. एक नानी का प्यार और दूसरा वेताल की कामिक्स.. नहीं भी तो कम से कम 400-500 कामिक्स होता था वहां, और मैं बस कामिक्स का बक्सा खोल कर वहां से चूहों द्वारा कुतरे हुये ढेरों कामिक्स पढना चालू..
वेताल के अलावा वहां मुझे मैंड्रेक, ग्रीन एरो, सुपर मैन, बैटमैन, बहादुर और भी ढेरों कामिक्स पढने को मिल जाया करता था.. शायद पापाजी का तबादला वहां नहीं हुआ होता तो मैं इन सारे कामिक कैरेक्टर को पहचानता भी ना होता.. इनका दिवाना होने की बात तो बहुत दूर है..
फिलहाल तो आप सभी इस कामिक्स का आनंद उठायें :)..
Download Link : क्रुद्ध वेताल
Saturday, August 30, 2008
जब पहुंचे Asterix और Obelix भारत
चलिए हम डोगा डोगा चिल्लाना बंद करके आज यादों के एक ऐसे दौर में चलते हैं जब डोगा क्या राज कॉमिक्स का भी जन्म नहीं हुआ था. राज कॉमिक्स तब राजा पॉकेट बुक्स हुआ करती थी और चाचा चौधरी हिंदी कॉमिक जगत के बेताज बादशाह. ये वो दौर था जब बाकी प्रकाशकों के लिए चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकी और कार्टूनिस्ट प्राण द्वारा रचे अन्य चरित्रों का सामना करना मुश्किल हो रहा था और कुछ नक्काल किस्म के प्रकाशक मामा श्री और काका श्री जैसे चरित्र बना कर चाचा चौधरी की सफलता भुनाने की कोशिश में थे.
ऐसे में एक प्रकाशक Goverson (आशा है मैंने spelling सही लिखी है) ने René Goscinny द्वारा लिखित और Albert Uderzo द्वारा चित्रित सुप्रसिद्ध फ्रेंच चरित्र Asterix की कॉमिक्स के rights खरीदे और भारत में Asterix का आगमन हुआ. मुझे ये जानकारी साल २००० में मिली जब मैं एक कार्टूनिस्ट मित्र विवेक गुप्ता से उनके खैरागढ़ निवास पर मिला. उन्होंने मुझे पुरानी किताबें दिखाने (मैं पुरानी किताबें, पत्रिकाएँ और कॉमिक्स इकठ्ठा करता हूँ,) के लिए अपना रद्दी पिटारा खोला जिसमें मैं Asterix & Cleopatra का हिंदी अनुवाद देख कर हतप्रभ रह गया.
हांलाकि उस समय तक मैंने Asterix की कुछ कहानियों की शर्मनाक नक़ल (मैं चरित्र या लेखक का नाम यहाँ बिना उल्लेख किए कहना चाहूँगा कि ये नक़ल मनोज कॉमिक्स के एक सुप्रसिद्ध चरित्र की एक कहानी में हुई थी, जहाँ Asterix The Gladiator की कहानी करीब करीब ज्यों की त्यों उठा ली गई थी) कुछ कहानियों में देखी थी और Asterix की कहानियाँ पढ़ कर मैं Asterix का fan बन चुका था पर ये मुझे भी तभी पता चला कि अस्सी के दशक की शुरुआत में ही Asterix साहब के कदम भारत में पड़ चुके थे. खैर ये मज़ेदार रहस्योद्घाटन और मज़ेदार बन गया जब मैंने पाया कि Asterix की इन कॉमिक्स का हिंदी अनुवाद किया था मेरे प्रिय कार्टूनिस्ट हरीश एम्. सूदन साहब ने.
हरीश जी के लिखने का अंदाज़ मुझे बचपन से ही पसंद है, उनके कार्टून डैडी जी, जोजो और हेडेक मधुमुस्कान- कार्टून पत्रिका / कॉमिक पत्रिका में अब भी देखने को मिलते हैं और बड़े ही मज़ेदार संवाद वाली ये कहानियाँ मैं बचपन में बड़े चाव से पढ़ा करता था. खैर हम बात कर रहे थे Asterix की भारत यात्रा की. तो विवेक के पास रखी ये कॉमिक मैंने तुंरत उनसे मांग ली और अपने विशाल ह्रदय का परिचय देते हुए उन्होंने ज़रा सी नानुकुर करने के बाद मुझे दे भी दी. यकीन मानिए Asterix जैसे चरित्र के संवादों का अनुवाद करना कोई हँसी का खेल नहीं. मगर कुछ इश्वर की इच्छा कहिये या बेहतरीन अनुवादकों का कमाल फ्रेंच से किए अंग्रेज़ी अनुवाद कभी अनुवादित नहीं लगे और शुक्र है हरीश साहब के sense of humor का कि अंग्रेज़ी से किया हिंदी अनुवाद भी इतना natural हुआ कि पढ़ते समय हँसी रोक पाना मुश्किल था.
अनुवाद करना बड़ा कठिन काम है, खासतौर पर humor का क्योंकि हर देश हर परिवेश का Humor अपने आप में अनोखा होता है और उसको किसी दूसरे देश या भाषा में अनुवादित करना करीब करीब असंभव है. मगर हरीश जी के अनुवाद में जब Cleopatra का सेवक दही भल्ले खाने भागता है या ओबेलिक्स से मार खा कर रोमन सैनिक पंजाबी बोलते हुए भागते हैं तो लगता ही नहीं हम एक फ्रेंच कॉमिक का हिंदी अनुवाद पढ़ रहे हैं. साथ में creative freedom लेते हुए हरीश जी ने कुछ चरित्रों के नामों का भी हिंदीकरण कर दिया जैसे Getafix बन गए वैद्यनाथिक्स और Vitalstatistix का नाम हो गया मोटूमिलिक्स, Dogmatix का हिंदी नामकरण हुआ भौंकिक्स. प्रमुख चरित्र एस्ट्रिक्स और ओबेलिक्स के नामों के साथ किसी किस्म का बदलाव नहीं हुआ.
एस्ट्रिक्स को अपनी भाषा में पढने का अनुभव अपने आप में एक था. काश कि सारे एस्ट्रिक्स टाइटल मुझे मिल पाते. बहरहाल जो टाइटल मिला था वह भी अब मेरे पास नहीं है. जल्द ही सूदन जी से मुलाक़ात का प्लान है शायद उनसे कुछ अंक मिल जाएँ. यदि ऐसा हुआ तो हिंदी एस्ट्रिक्स के कारनामे इस ब्लॉग पर ज़रूर पोस्ट करूँगा.
अगली पोस्ट में फिर मुलाक़ात होगी.
ऐसे में एक प्रकाशक Goverson (आशा है मैंने spelling सही लिखी है) ने René Goscinny द्वारा लिखित और Albert Uderzo द्वारा चित्रित सुप्रसिद्ध फ्रेंच चरित्र Asterix की कॉमिक्स के rights खरीदे और भारत में Asterix का आगमन हुआ. मुझे ये जानकारी साल २००० में मिली जब मैं एक कार्टूनिस्ट मित्र विवेक गुप्ता से उनके खैरागढ़ निवास पर मिला. उन्होंने मुझे पुरानी किताबें दिखाने (मैं पुरानी किताबें, पत्रिकाएँ और कॉमिक्स इकठ्ठा करता हूँ,) के लिए अपना रद्दी पिटारा खोला जिसमें मैं Asterix & Cleopatra का हिंदी अनुवाद देख कर हतप्रभ रह गया.
हांलाकि उस समय तक मैंने Asterix की कुछ कहानियों की शर्मनाक नक़ल (मैं चरित्र या लेखक का नाम यहाँ बिना उल्लेख किए कहना चाहूँगा कि ये नक़ल मनोज कॉमिक्स के एक सुप्रसिद्ध चरित्र की एक कहानी में हुई थी, जहाँ Asterix The Gladiator की कहानी करीब करीब ज्यों की त्यों उठा ली गई थी) कुछ कहानियों में देखी थी और Asterix की कहानियाँ पढ़ कर मैं Asterix का fan बन चुका था पर ये मुझे भी तभी पता चला कि अस्सी के दशक की शुरुआत में ही Asterix साहब के कदम भारत में पड़ चुके थे. खैर ये मज़ेदार रहस्योद्घाटन और मज़ेदार बन गया जब मैंने पाया कि Asterix की इन कॉमिक्स का हिंदी अनुवाद किया था मेरे प्रिय कार्टूनिस्ट हरीश एम्. सूदन साहब ने.
हरीश जी के लिखने का अंदाज़ मुझे बचपन से ही पसंद है, उनके कार्टून डैडी जी, जोजो और हेडेक मधुमुस्कान- कार्टून पत्रिका / कॉमिक पत्रिका में अब भी देखने को मिलते हैं और बड़े ही मज़ेदार संवाद वाली ये कहानियाँ मैं बचपन में बड़े चाव से पढ़ा करता था. खैर हम बात कर रहे थे Asterix की भारत यात्रा की. तो विवेक के पास रखी ये कॉमिक मैंने तुंरत उनसे मांग ली और अपने विशाल ह्रदय का परिचय देते हुए उन्होंने ज़रा सी नानुकुर करने के बाद मुझे दे भी दी. यकीन मानिए Asterix जैसे चरित्र के संवादों का अनुवाद करना कोई हँसी का खेल नहीं. मगर कुछ इश्वर की इच्छा कहिये या बेहतरीन अनुवादकों का कमाल फ्रेंच से किए अंग्रेज़ी अनुवाद कभी अनुवादित नहीं लगे और शुक्र है हरीश साहब के sense of humor का कि अंग्रेज़ी से किया हिंदी अनुवाद भी इतना natural हुआ कि पढ़ते समय हँसी रोक पाना मुश्किल था.
अनुवाद करना बड़ा कठिन काम है, खासतौर पर humor का क्योंकि हर देश हर परिवेश का Humor अपने आप में अनोखा होता है और उसको किसी दूसरे देश या भाषा में अनुवादित करना करीब करीब असंभव है. मगर हरीश जी के अनुवाद में जब Cleopatra का सेवक दही भल्ले खाने भागता है या ओबेलिक्स से मार खा कर रोमन सैनिक पंजाबी बोलते हुए भागते हैं तो लगता ही नहीं हम एक फ्रेंच कॉमिक का हिंदी अनुवाद पढ़ रहे हैं. साथ में creative freedom लेते हुए हरीश जी ने कुछ चरित्रों के नामों का भी हिंदीकरण कर दिया जैसे Getafix बन गए वैद्यनाथिक्स और Vitalstatistix का नाम हो गया मोटूमिलिक्स, Dogmatix का हिंदी नामकरण हुआ भौंकिक्स. प्रमुख चरित्र एस्ट्रिक्स और ओबेलिक्स के नामों के साथ किसी किस्म का बदलाव नहीं हुआ.
एस्ट्रिक्स को अपनी भाषा में पढने का अनुभव अपने आप में एक था. काश कि सारे एस्ट्रिक्स टाइटल मुझे मिल पाते. बहरहाल जो टाइटल मिला था वह भी अब मेरे पास नहीं है. जल्द ही सूदन जी से मुलाक़ात का प्लान है शायद उनसे कुछ अंक मिल जाएँ. यदि ऐसा हुआ तो हिंदी एस्ट्रिक्स के कारनामे इस ब्लॉग पर ज़रूर पोस्ट करूँगा.
अगली पोस्ट में फिर मुलाक़ात होगी.
Labels:
Asterix,
French Comics,
Goverson,
Harish M. Soodan,
आलोक
बेसी डोगा-डोगा मत चिल्लाईये
हम आपके कामिक मित्र हैं आलोक भैया। हम तो बस आपके लिये एक तोहफा लेकर आयें हैं। डोगा की शुरूवाती तीनों कामिक्स का कवर, जिससे आप डोगा के उपर और भी बढिया पोस्ट लिख सकें, और जैसा चाहें वैसा पोस्ट कामिक्स के उपर ठेलते रहें। आप अपने पहले ही पोस्ट से डोगा-डोगा चिल्लाये हुये हैं। अब बेसी मत चिल्लाईये। प्रताप मुलीक जी की मौलिक तस्वीर के साथ। वैसे आपकी जानकारी के लिये हम आपको बताते जाते हैं की डोगा के बहुते बड़े पंखा हमउ रह चुके हैं.. :)
पहली कामिक्स - कर्फ़्यू
दूसरी कामिक्स - ये है डोगा
तीसरी कामिक्स - मैं हूं डोगा
पहली कामिक्स - कर्फ़्यू
दूसरी कामिक्स - ये है डोगा
तीसरी कामिक्स - मैं हूं डोगा
Thursday, August 28, 2008
Brilliant Doga Covers by Manu
Some Beautiful Doga Covers, that I tried to upload with yesterday's post but was unable to do so, I am trying again to upload them here. I know it's not a Doga Fan Blog, so wont be flooding it with more Doga Stuff. Will be writing something on unknown or long forgotten Indian Comic Books Characters soon. Till then enjoy these covers by Manu.
Wednesday, August 27, 2008
अनुराग कश्यप बनायेंगे डोगा पर फ़िल्म
इससे पहले कि मैं असल ख़बर पर आऊं, चाहूँगा कि दो लाइनें अपने और अपने पहले प्यार के बारे मे भी बता दूँ..
बचपन से ही कॉमिक्स का भूत मेरे सर चढ़ कर बोलता है और पढ़ पाने की उम्र से पहले ही रंगबिरंगे चित्रों से साजो कॉमिक बुक्स से मुझे प्यार हो गया। इंद्रजाल कॉमिक्स का शौकीन तो रहा मगर पढने लायक उम्र होने से पहले ही उनका प्रकाशन बंद हो गया (इसका मतलब ये नहीं कि इंद्रजाल पढ़ी नहीं, मामा जी के पास करीब ५०० इंद्रजाल कॉमिक्स थे और समय के साथ हमने हर कहानी कम से कम २-३ बार ज़रूर पढ़ी है)। होश सँभालते ही चाचा चौधरी से परिचय हुआ और हर रविवार पापा जी से एक अमर चित्रकथा की रिश्वत लिए बिना रविवार की सुबह का नाश्ता गले के नीचे नहीं उतरता था।
मैं शायद क्लास ४थी का विद्यार्थी था जब मेरा परिचय राज कॉमिक्स से हुआ। ये किरदार और इनकी कहानियाँ मेरे पसंदीदा चाचा चौधरी से कहीं ज़्यादा complicated थे। शुरू शुरू में मुझे ये इतने पसंद नहीं आए मगर एक वक्त के बाद नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव मेरे फेवरेट हो गए और इस तरह शुरू हुआ मेरा राज कॉमिक्स प्रेम का सफर।
राज कॉमिक्स धीरे धीरे सफलता की और बढ़ रही थी और उनके प्रतिभाशाली लेखक और आर्टिस्ट्स की टीम नित नए सुपर-हीरोज़ गढ़ रही थी। साल जहाँ तक मुझे याद है १९९१ या ९२ रहा होगा जब राज कॉमिक्स ने हीरोज़ की नई तिकडी मैदान में एक साथ उतारी, ये हीरो थे डोगा, अश्वराज और गोजो । तरुण कुमार वाही की कलम से निकले इन सभी महानायकों ने हम बच्चो की वाह-वाही लूटी। गोजो ज़्यादा दिनों तक सफल नही रह सका हाँलाकि अश्वराज को आंशिक सफलता ज़रूर मिली। जो किरदार इन सबके साथ आया ज़रूर मगर बाद में लम्बी रेस का घोड़ा साबित हुआ वो था कुत्ते की शक्ल वाला ज़बरदस्त हीरो डोगा।
डोगा की प्रथम कॉमिक कर्फ्यू, मुझे अच्छी तरह याद है सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक विडियो विलेन के सेट में रिलीज़ हुयी थी और सीमित पॉकेट मनी होने की वजह से मैं कभी क्रमशः (आधी कहानियों) वाली कॉमिक्स नहीं खरीदता था (कौन जाने अगला भाग कब रिलीज़ हो और क्या पता उसको खरीदने के पैसे जेब में हो न हो)। कर्फ्यू एक ऐसी ही कहानी का पहला भाग थी सो दुविधा में न पड़ते हुए हमने अपने Tried & Tested Superhero ध्रुव की कॉमिक पर ही पैसे लगना उचित समझा। और बाद में जब हमें पता चला डोगा की कहानी एक या दो नही बल्कि तीन भागो में पूरी की जायेगी तो मैं मन ही मन अपने इस निर्णय पर खुश भी बहुत हुआ।
खैर जब गर्मी की छुट्टियों में डोगा की तीनो कॉमिक्स कर्फ्यू , ये है डोगा और मैं हूँ डोगा पढ़ी तो बस पढ़ते ही चला गया। तरुण कुमार वाही और संजय गुप्ता की कहानियों पर मनु की चित्रकारी हर तरह से अब तक की आई सभी भारतीय कॉमिक्स पर भारी पड़ती नज़र आई। इसके बाद तो हम डोगा के अंधभक्त हो गए, बीच में जब कुछ कहानियों में मनु की जगह विनोद जी से चित्रकारी करवाई गई (चोर सिपाही और २ अन्य कहानियों में) तो मुझे बिल्कुल पसंद नही आया मगर मनु की डोगा पर अबकी जो वापसी हुयी वह कम से कम साल २००० तक बेरोक टोक चली ।
डोगा की कहानियाँ हमेशा एक हकीक़त और dark touch लिए होती थी और मनु के शानदार चित्र उन्हें और भी बेजोड़ बना देते थे। भारतीय कॉमिक्स में इस तरह का एंटी हीरो मिलना नामुमकिन ही होगा। मैं डोगा की कोई भी कहानी कितनी भी बार पढ़ सकता हूँ बशर्ते वे तरुण जी की कलम और मनु की ब्रश के संगम से निकली हो । कई कहानियाँ तो अच्छी अच्छी फिल्मों को मात दे सकती हैं, भले ही कुछ कहानियों की प्रेरणा कुछ विदेशी कॉमिक्स से आई हो पर तरुण जी उनको हिन्दुस्तानी रंग देने में माहिर थे।
इन कहानियों में सलीम जावेद के रचे एंग्री यंगमैन की जो फिल्मी छाप थी वह शायद ही किसी और किरदार की किसी कहानी में देखने को मिलेगी।
जब मैंने गोथम कॉमिक्स में काम शुरू किया तो भारतीय कॉमिक्स बनाम विदेशी कॉमिक्स के वाद विवाद में डोगा और मनु की चित्रकारी मेरे लिए तुरुप के इक्के का काम करते रहे। (बाद में गोथम कॉमिक्स का नाम वर्जिन कॉमिक्स हो गया और मनु ने बंगलोर आ कर वर्जिन के लिए काम शुरू कर दिया , ये एक अलग कहानी है किसी अन्य पोस्ट में चर्चा करेंगे ; यदि आपने चाहा तो) ।
जब भी किसी ने मुझसे पूछा की किस एक इंडियन हीरो पर तुम फ़िल्म देखना/बनाना पसंद करोगे तो मेरा जवाब हमेशा डोगा ही रहा (ध्रुव की जगह कब डोगा ने ले ली पता भी नहीं चला)।
कुछ दिन पहले मैं फ़िल्म The Dark Knight देखने के बाद अपने मित्र सौमिन से बात कर रहा था कि डोगा पर भी एक डार्क और ज़बरदस्त फ़िल्म बन सकती है शायद वो रात मुरादोंवाली रात थी। अगली सुबह ही समाचार मिला अनुराग कश्यप ने डोगा पर फ़िल्म बनाने कि घोषणा कि है। विस्तृत समाचार के लिए क्लिक करें यहाँ ।
अनुराग स्वयं बड़े कॉमिक प्रेमी हैं, उनसे मैं मुंबई स्थित लैंडमार्क के कॉमिक्स/ग्राफिक नॉवेल सेक्शन में कई बार टकराया हूँ और कॉमिक्स पर छोटी मोटी चर्चाएं भी की हैं। एक बात तो तय है कि अनुराग के हाथों में डोगा सुरक्षित है और उनकी फिल्मों (ब्लैक फ्राईडे और नो स्मोकिंग) के डार्क ट्रीटमेंट को देखें तो लगता है डोगा के डार्क कथानक के साथ भी अनुराग सही न्याय कर पाएंगे। बस एक ही बात है जो मुझे हज़म नहीं हो पा रही वो है डोगा के रोल के लिए कुनाल कपूर का चयन। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है शायद कुनाल इस रोल के साथ न्याय न कर पाएं। खैर पसंद अपनी अपनी।
आप सभी साथियों से मैं जानना चाहूँगा कि इस पर आपकी क्या राय है? आपको क्या लगता है? क्या आप मुझसे सहमत हैं? यदि हाँ तो वो कौन सा भारतीय फ़िल्म कलाकार है जो डोगा/सूरज के किरदारों के साथ सही न्याय कर पायेगा? और डोगा कि कहानी के बाकी किरदारों के लिए आपके पसंदीदा कलाकार कौन होंगे?
साथ ही हम चर्चा कर सकते हैं कि और कौन से वो भारतीय हीरोज़ हैं, जिनपर आप फिल्म देखना पसंद करेंगे?
इंद्रजाल के बहादुर (जिसकी रचना आबिद सुरती जी ने की थी और चित्र गोविन्द ब्राह्मनिया जी के होते थे) पर भी एक फिल्म की घोषणा हुयी थी मगर बात घोषणा से आगे बढती अब तक नज़र नहीं आई है।
(तमाम कोशिशों के बाद भी मैं इस पोस्ट पर कोई चित्र अपलोड नहीं कर पा रहा, यदि किसी सहृदय सदस्य के पास मनु की बनाई डोगा की कुछ अच्छी तसवीरें हो, कृपया अपलोड करेंगे। धन्यवाद।)
=====================================
लिजिये, मैंने डोगा की एक तस्वीर अपलोड कर दी है.. मेरे पास डोगा कि शुरू की तीनों कामिक्स है.. मैं कोशिश करूंगा की जल्द से जल्द उसे इंटरनेट पर अपलोड करके यहां पोस्ट कर सकूं.. :)
धन्यवाद आलोक जी..
बचपन से ही कॉमिक्स का भूत मेरे सर चढ़ कर बोलता है और पढ़ पाने की उम्र से पहले ही रंगबिरंगे चित्रों से साजो कॉमिक बुक्स से मुझे प्यार हो गया। इंद्रजाल कॉमिक्स का शौकीन तो रहा मगर पढने लायक उम्र होने से पहले ही उनका प्रकाशन बंद हो गया (इसका मतलब ये नहीं कि इंद्रजाल पढ़ी नहीं, मामा जी के पास करीब ५०० इंद्रजाल कॉमिक्स थे और समय के साथ हमने हर कहानी कम से कम २-३ बार ज़रूर पढ़ी है)। होश सँभालते ही चाचा चौधरी से परिचय हुआ और हर रविवार पापा जी से एक अमर चित्रकथा की रिश्वत लिए बिना रविवार की सुबह का नाश्ता गले के नीचे नहीं उतरता था।
मैं शायद क्लास ४थी का विद्यार्थी था जब मेरा परिचय राज कॉमिक्स से हुआ। ये किरदार और इनकी कहानियाँ मेरे पसंदीदा चाचा चौधरी से कहीं ज़्यादा complicated थे। शुरू शुरू में मुझे ये इतने पसंद नहीं आए मगर एक वक्त के बाद नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव मेरे फेवरेट हो गए और इस तरह शुरू हुआ मेरा राज कॉमिक्स प्रेम का सफर।
राज कॉमिक्स धीरे धीरे सफलता की और बढ़ रही थी और उनके प्रतिभाशाली लेखक और आर्टिस्ट्स की टीम नित नए सुपर-हीरोज़ गढ़ रही थी। साल जहाँ तक मुझे याद है १९९१ या ९२ रहा होगा जब राज कॉमिक्स ने हीरोज़ की नई तिकडी मैदान में एक साथ उतारी, ये हीरो थे डोगा, अश्वराज और गोजो । तरुण कुमार वाही की कलम से निकले इन सभी महानायकों ने हम बच्चो की वाह-वाही लूटी। गोजो ज़्यादा दिनों तक सफल नही रह सका हाँलाकि अश्वराज को आंशिक सफलता ज़रूर मिली। जो किरदार इन सबके साथ आया ज़रूर मगर बाद में लम्बी रेस का घोड़ा साबित हुआ वो था कुत्ते की शक्ल वाला ज़बरदस्त हीरो डोगा।
डोगा की प्रथम कॉमिक कर्फ्यू, मुझे अच्छी तरह याद है सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक विडियो विलेन के सेट में रिलीज़ हुयी थी और सीमित पॉकेट मनी होने की वजह से मैं कभी क्रमशः (आधी कहानियों) वाली कॉमिक्स नहीं खरीदता था (कौन जाने अगला भाग कब रिलीज़ हो और क्या पता उसको खरीदने के पैसे जेब में हो न हो)। कर्फ्यू एक ऐसी ही कहानी का पहला भाग थी सो दुविधा में न पड़ते हुए हमने अपने Tried & Tested Superhero ध्रुव की कॉमिक पर ही पैसे लगना उचित समझा। और बाद में जब हमें पता चला डोगा की कहानी एक या दो नही बल्कि तीन भागो में पूरी की जायेगी तो मैं मन ही मन अपने इस निर्णय पर खुश भी बहुत हुआ।
खैर जब गर्मी की छुट्टियों में डोगा की तीनो कॉमिक्स कर्फ्यू , ये है डोगा और मैं हूँ डोगा पढ़ी तो बस पढ़ते ही चला गया। तरुण कुमार वाही और संजय गुप्ता की कहानियों पर मनु की चित्रकारी हर तरह से अब तक की आई सभी भारतीय कॉमिक्स पर भारी पड़ती नज़र आई। इसके बाद तो हम डोगा के अंधभक्त हो गए, बीच में जब कुछ कहानियों में मनु की जगह विनोद जी से चित्रकारी करवाई गई (चोर सिपाही और २ अन्य कहानियों में) तो मुझे बिल्कुल पसंद नही आया मगर मनु की डोगा पर अबकी जो वापसी हुयी वह कम से कम साल २००० तक बेरोक टोक चली ।
डोगा की कहानियाँ हमेशा एक हकीक़त और dark touch लिए होती थी और मनु के शानदार चित्र उन्हें और भी बेजोड़ बना देते थे। भारतीय कॉमिक्स में इस तरह का एंटी हीरो मिलना नामुमकिन ही होगा। मैं डोगा की कोई भी कहानी कितनी भी बार पढ़ सकता हूँ बशर्ते वे तरुण जी की कलम और मनु की ब्रश के संगम से निकली हो । कई कहानियाँ तो अच्छी अच्छी फिल्मों को मात दे सकती हैं, भले ही कुछ कहानियों की प्रेरणा कुछ विदेशी कॉमिक्स से आई हो पर तरुण जी उनको हिन्दुस्तानी रंग देने में माहिर थे।
इन कहानियों में सलीम जावेद के रचे एंग्री यंगमैन की जो फिल्मी छाप थी वह शायद ही किसी और किरदार की किसी कहानी में देखने को मिलेगी।
जब मैंने गोथम कॉमिक्स में काम शुरू किया तो भारतीय कॉमिक्स बनाम विदेशी कॉमिक्स के वाद विवाद में डोगा और मनु की चित्रकारी मेरे लिए तुरुप के इक्के का काम करते रहे। (बाद में गोथम कॉमिक्स का नाम वर्जिन कॉमिक्स हो गया और मनु ने बंगलोर आ कर वर्जिन के लिए काम शुरू कर दिया , ये एक अलग कहानी है किसी अन्य पोस्ट में चर्चा करेंगे ; यदि आपने चाहा तो) ।
जब भी किसी ने मुझसे पूछा की किस एक इंडियन हीरो पर तुम फ़िल्म देखना/बनाना पसंद करोगे तो मेरा जवाब हमेशा डोगा ही रहा (ध्रुव की जगह कब डोगा ने ले ली पता भी नहीं चला)।
कुछ दिन पहले मैं फ़िल्म The Dark Knight देखने के बाद अपने मित्र सौमिन से बात कर रहा था कि डोगा पर भी एक डार्क और ज़बरदस्त फ़िल्म बन सकती है शायद वो रात मुरादोंवाली रात थी। अगली सुबह ही समाचार मिला अनुराग कश्यप ने डोगा पर फ़िल्म बनाने कि घोषणा कि है। विस्तृत समाचार के लिए क्लिक करें यहाँ ।
अनुराग स्वयं बड़े कॉमिक प्रेमी हैं, उनसे मैं मुंबई स्थित लैंडमार्क के कॉमिक्स/ग्राफिक नॉवेल सेक्शन में कई बार टकराया हूँ और कॉमिक्स पर छोटी मोटी चर्चाएं भी की हैं। एक बात तो तय है कि अनुराग के हाथों में डोगा सुरक्षित है और उनकी फिल्मों (ब्लैक फ्राईडे और नो स्मोकिंग) के डार्क ट्रीटमेंट को देखें तो लगता है डोगा के डार्क कथानक के साथ भी अनुराग सही न्याय कर पाएंगे। बस एक ही बात है जो मुझे हज़म नहीं हो पा रही वो है डोगा के रोल के लिए कुनाल कपूर का चयन। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है शायद कुनाल इस रोल के साथ न्याय न कर पाएं। खैर पसंद अपनी अपनी।
आप सभी साथियों से मैं जानना चाहूँगा कि इस पर आपकी क्या राय है? आपको क्या लगता है? क्या आप मुझसे सहमत हैं? यदि हाँ तो वो कौन सा भारतीय फ़िल्म कलाकार है जो डोगा/सूरज के किरदारों के साथ सही न्याय कर पायेगा? और डोगा कि कहानी के बाकी किरदारों के लिए आपके पसंदीदा कलाकार कौन होंगे?
साथ ही हम चर्चा कर सकते हैं कि और कौन से वो भारतीय हीरोज़ हैं, जिनपर आप फिल्म देखना पसंद करेंगे?
इंद्रजाल के बहादुर (जिसकी रचना आबिद सुरती जी ने की थी और चित्र गोविन्द ब्राह्मनिया जी के होते थे) पर भी एक फिल्म की घोषणा हुयी थी मगर बात घोषणा से आगे बढती अब तक नज़र नहीं आई है।
(तमाम कोशिशों के बाद भी मैं इस पोस्ट पर कोई चित्र अपलोड नहीं कर पा रहा, यदि किसी सहृदय सदस्य के पास मनु की बनाई डोगा की कुछ अच्छी तसवीरें हो, कृपया अपलोड करेंगे। धन्यवाद।)
=====================================
लिजिये, मैंने डोगा की एक तस्वीर अपलोड कर दी है.. मेरे पास डोगा कि शुरू की तीनों कामिक्स है.. मैं कोशिश करूंगा की जल्द से जल्द उसे इंटरनेट पर अपलोड करके यहां पोस्ट कर सकूं.. :)
धन्यवाद आलोक जी..
Saturday, August 23, 2008
मिट्टी की खुश्बू लिये एक लोककथा
Friday, August 22, 2008
मिलिये हमारे कवि गुरू से
सबसे पहले गुरू देव के सम्मान में उनकी कुछ कविताऐं -
एक डाल से तू है लटका,
दूजे पे मैं बैठ गया..
तू चमगादड़ मैं हूं उल्लू,
गायें कोई गीत नया..
घाट-घाट का पानी पीकर,
ऐसा हुआ खराब गला//
जियो हजारों साल कहा पर,
जियो शाम तक ही निकला..
ये कवि आहत कैसे लगे मुझे जरूर बताईयेगा.. मैं ना जाने कितनी ही बार बालहंस की प्रतिक्षा बस कवि आहत को पढने के लिये करता था.. अनंत कुशवाहा जी द्वारा संपादित ये कविताऐं बेहद जबरदस्त हुआ करती थी.. मैं समय समय पर इनकी कार्टून स्ट्रीप आपलोगों के सामने लाता रहूंगा.. :)
एक डाल से तू है लटका,
दूजे पे मैं बैठ गया..
तू चमगादड़ मैं हूं उल्लू,
गायें कोई गीत नया..
घाट-घाट का पानी पीकर,
ऐसा हुआ खराब गला//
जियो हजारों साल कहा पर,
जियो शाम तक ही निकला..
ये कवि आहत कैसे लगे मुझे जरूर बताईयेगा.. मैं ना जाने कितनी ही बार बालहंस की प्रतिक्षा बस कवि आहत को पढने के लिये करता था.. अनंत कुशवाहा जी द्वारा संपादित ये कविताऐं बेहद जबरदस्त हुआ करती थी.. मैं समय समय पर इनकी कार्टून स्ट्रीप आपलोगों के सामने लाता रहूंगा.. :)
Sunday, August 17, 2008
स्वर्ग की तबाही(भाग - 2)
पिछली कामिक्स में आपने पढा होगा की ऐन वक्त पर एक अजनबी मददगार ध्रुव की मदद के लिये आ जाता है.. कौन है वो मददगार.. ये चंडिका कौन है? ये सभी रहस्य इस कामिक्स में खुलती है.. चंडिका का रहस्य बस पाठकों के लिये ही खुलता है.. ध्रुव तो अपनी पूरी जिंदगी इस रहस्य को सुलझाने के लिये जूझता रहता है.. ध्रुव को ये शक हमेशा ही रहता है की चंडिका उसकी छोटी और प्यारी बहन श्वेता ही है मगर कभी भी वो इसे साबित नहीं कर पाता है..
अभी कुछ दिनों पहले दुनिया भर के सभी कामिक सुपर हीरो का रेटिंग निकाला गया था, उसमें ध्रुव की रैंकिंग बस इसी कारण खराब बतायी गई थी क्योंकि वो कभी श्वेता और चंडिका का रहस्य सुलझा नहीं पाया..
खैर आप सभी इन सभी झंझावतों से बाहर निकल कर इस कामिक्स का मजा उठायें.. मुझे बस इतना याद है की जब मैं इसे अपने बचपन में पहली बार पढा था ट्तब कई दिनों तक मेरे मन में ये कामिक्स हावी था.. मैं आज भी कभी कभी ये कामिक्स निकालकर पढने बैठ जाता हूं.. मुझे याद भी नहीं की मैंने कितनी बार इसे पढा है.. इसके सारे डायलॉग मुझे लगभग याद हैं.. वैसे सही कहूं तो मुझे ध्रुव के लगभग सारे कामिक्स के डायलॉग ही याद हैं.. :)
फिलहाल तो आप इस कामिक्स का मजा उठायें..
स्वर्ग की तबाही पढने के लिये आप यहां क्लिक करें..
इसे पढने के लिये इस साफ्टवेयर का प्रयोग करें..
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..
अभी कुछ दिनों पहले दुनिया भर के सभी कामिक सुपर हीरो का रेटिंग निकाला गया था, उसमें ध्रुव की रैंकिंग बस इसी कारण खराब बतायी गई थी क्योंकि वो कभी श्वेता और चंडिका का रहस्य सुलझा नहीं पाया..
खैर आप सभी इन सभी झंझावतों से बाहर निकल कर इस कामिक्स का मजा उठायें.. मुझे बस इतना याद है की जब मैं इसे अपने बचपन में पहली बार पढा था ट्तब कई दिनों तक मेरे मन में ये कामिक्स हावी था.. मैं आज भी कभी कभी ये कामिक्स निकालकर पढने बैठ जाता हूं.. मुझे याद भी नहीं की मैंने कितनी बार इसे पढा है.. इसके सारे डायलॉग मुझे लगभग याद हैं.. वैसे सही कहूं तो मुझे ध्रुव के लगभग सारे कामिक्स के डायलॉग ही याद हैं.. :)
फिलहाल तो आप इस कामिक्स का मजा उठायें..
स्वर्ग की तबाही पढने के लिये आप यहां क्लिक करें..
इसे पढने के लिये इस साफ्टवेयर का प्रयोग करें..
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..
आदमखोरों का स्वर्ग
आज बहुत दिनों के बाद थोड़े चैन और सकून के साथ बैठा नेट से खेल रहा था तो सोचा क्यों ना आप सभी को अपनी मनपसंद कामिकों में से एक पढा दूं.. ये कामिक सुपर कमांडो ध्रुव की तीसरी कामिक्स थी, जिसमें कल्पनाओं की उड़ान काफी ऊंची भरी गई थी.. एक जर्मन वैज्ञानिक कैसे अपने आविष्कार को पूरा करके आत्महत्या कर लेता है और फिर उसके 50 सालों के बाद वो गलत हाथों में चला जाता है..
आगे की कहानी पढने के लिये आप इस लिंक पर अपने माउस के बटन को क्लिक करें..
इसे पढने के लिये इस साफ्टवेयर का प्रयोग करें..
वैसे ये कामिक्स दो भागों में बंटा हुआ है जिसके लिये आपको इंतजार करना परेगा.. आज रात तक का.. मैं उसे आज रात सोने से पहले पोस्ट करता जाऊंगा.. :)
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..
आगे की कहानी पढने के लिये आप इस लिंक पर अपने माउस के बटन को क्लिक करें..
इसे पढने के लिये इस साफ्टवेयर का प्रयोग करें..
वैसे ये कामिक्स दो भागों में बंटा हुआ है जिसके लिये आपको इंतजार करना परेगा.. आज रात तक का.. मैं उसे आज रात सोने से पहले पोस्ट करता जाऊंगा.. :)
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..
Saturday, August 2, 2008
प्रतिशोध की ज्वाला
हर पीढी का अपना एक नायक होता है.. जैसे मुझसे 10-15 साल पहले वाली पीढी के लोगों के लिये वेताल और मैंड्रेक नायक हुआ करते थे.. उस समय भारत में इंद्रजाल कामिक्स का प्रभुत्व हुआ करता था.. सो उस पीढी के नायक भी उसी प्रकाशन से छपने वाली कामिक्स की हुआ करती थी.. ठीक वैसे ही मेरी पीढी के लिये नायक ध्रुव और नागराज जैसे हीरोज हैं.. जब पढना अच्छे से सीख गया था उसी समय ये सभी नायक राज कामिक्स नामक प्रकाशन से छपना शुरू हुये थे जो अभी तक प्रकाशित हो रहे हैं..
आज मैं आपके सामने लेकर आया हूं सुपर कमांडो ध्रुव की पहली कामिक्स "प्रतिशोध की ज्वाला" इस कामिक्स में बताया गया है कि कैसे एक लड़का सर्कस के कलाबाजी दिखाते दिखाते क्राईम फाईटर बना जिसके भीतर कुछ असाधारण गुण थे.. इसकी पहली कामिक्स में बस एक चरित्र निर्माण जैसी बाते ही की गई हैं मगर जब मैं आपके सामने एक एक करके इसकी कामिक्स लेकर आऊंगा तब मेरा दावा है कि आप सभी इसके दिवाने हो जायेंगे.. आप इसे पढें और अपनी राय दें की कैसी लगी आपको मेरी पहली पोस्ट की हुई कामिक्स?
Download Link : प्रतिशोध की ज्वाला
इसे पढने के लिये इस साफ्टवेयर का प्रयोग करें..
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..
आज मैं आपके सामने लेकर आया हूं सुपर कमांडो ध्रुव की पहली कामिक्स "प्रतिशोध की ज्वाला" इस कामिक्स में बताया गया है कि कैसे एक लड़का सर्कस के कलाबाजी दिखाते दिखाते क्राईम फाईटर बना जिसके भीतर कुछ असाधारण गुण थे.. इसकी पहली कामिक्स में बस एक चरित्र निर्माण जैसी बाते ही की गई हैं मगर जब मैं आपके सामने एक एक करके इसकी कामिक्स लेकर आऊंगा तब मेरा दावा है कि आप सभी इसके दिवाने हो जायेंगे.. आप इसे पढें और अपनी राय दें की कैसी लगी आपको मेरी पहली पोस्ट की हुई कामिक्स?
Download Link : प्रतिशोध की ज्वाला
इसे पढने के लिये इस साफ्टवेयर का प्रयोग करें..
संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..
इंटरनेट पर उपलब्ध कामिक्स के विभिन्न फॉरमेट
साधारनतया ई-किताब के रूप में जो भी कामिक्स उपलब्ध हैं वे ज्यादातर PDF, CBR या CBZ एक्सटेंसन वाले फाईलों के रूप में हैं.. अभी मैं यही मान कर चल रहा हूं की आप सभी PDF के बारे में भली भांती जानते हैं.. फिर भी अगर किसी को कुछ परेशानी होगी तब मैं उसके बारे में विस्तार पूर्वक लिखूंगा.. आज बात करते हैं CBR और CBZ के बारे में..
CBR या फिर CBZ फॉरमेट वाले कामिक्स को पढने के लिये आप यहां से कामिक बुक रीडर नामक साफ्टवेयर डाउनलोड कर सकते हैं.. अगले किसी अंक में मैं आपको बताऊंगा की कैसे आप CBR या CBZ नामक एक्सटेंशन वाली फाईलें कैसे बना सकते हैं..
CBR या फिर CBZ फॉरमेट वाले कामिक्स को पढने के लिये आप यहां से कामिक बुक रीडर नामक साफ्टवेयर डाउनलोड कर सकते हैं.. अगले किसी अंक में मैं आपको बताऊंगा की कैसे आप CBR या CBZ नामक एक्सटेंशन वाली फाईलें कैसे बना सकते हैं..
Friday, August 1, 2008
बचपन के वे जादुई दिन
बचपन!! हर दिन कुछ जादू जैसा होता था.. पेड़ पर पके हुये अमरूद देखो तो लगता था जैसे जादू है.. किसी के पास गुलेल देखो तो जादू.. भड़ी दोपहरी में दिन भर धूप में खेलना भी एक जादू.. कोई नया सिनेमा देखो तो जादू.. रेडियो, विविध भारती पर नये सिनेमा के गीत भी एक जादू.. और जहां किस्सो कहानियों की बात आती थी तो वो खुद ही एक जादू सा लगता था.. कभी दादी-नानी की कहानियां, तो कभी किसी दोस्त से सुनी हुई कहानी, जो वो अपने दादी-नानी से सुन कर सुनाते थे..
हंसते खेलते कब ठीक से पढना और समझना शुरू किया कुछ याद नहीं.. मगर जब से ऐसा हुआ तब से किस्सो और कहानियों की किताबें भी उसी जादू का एक अंग बन गये थे.. चंपक से चाचा चुधरी, नंदन से नागराज, पलाश से फैंटम(वेताल), मैंड्रेक, सुपर कमांडो ध्रुव, बालहंस, चंदामामा, सुमन सौरभ, ग्रीन एरो, सुपरमैन, बैटमैन, बांकेलाल, तौसी, अमर चित्र कथायें, बहादुर, और भी ना जाने क्या-क्या..
चित्र कथायें अपनी ओर अलग ही ध्यान खींचते थे और मनस पटल पर कुछ ऐसी छाप छोड़ जाते थे जो अभी तक नहीं मिटे हैं.. विभिन्न बाल पत्रिकाओं में छपने वाले चित्र कथाओं का अलग ही जुनून होता था.. जैसे ही महीने की पहली तारीख आती थी बस इंतजार शुरू.. सुबह के अखबार के साथ पत्रिका के आते ही पापा-मम्मी का पहला काम होता था उसे छिपा कर रख देना, नहीं तो सभी बच्चे पहले उसे पढना चाहेंगे फिर कोई दूसरा काम होगा.. जब पत्रिका हम बच्चों के हाथ लगता था तब सबसे पहले चित्रकथा ढूंढी जाती थी.. चीकू, कवि आहत, शैलबाला, हवलदार ठोलाराम, कूं कूं और भी ना जाने क्या क्या.. यहां तक की मम्मी के लिये आने वाली पत्रिका "सरिता" भी उठा कर ननमुन खोजना शुरू..
फिर एक दौर आया कामिक्सों का.. जब सारा दिन कामिक्स के रंगों में सराबोर होता था.. गलती से एक भी कामिक्स हाथ लग जाने पर दिन रात बस उसे ही पढते जाना.. कभी पाठ्य पुस्तक में छुपा कर तो कभी बिस्तर के नीचे घुस कर.. इस डर से की कहीं कोई देख ना ले.. कई बार विद्यालय में भी कक्षा के समय में पुस्तकों में कामिक्स छुपा कर पढने का मौका मिला है.. एक-दो बार पकरा भी गया.. मगर ये आदत ऐसी की जो ना तब छूटी और ना अब छूटने का नाम लेती है.. अभी कल ही की बात है, मुझे मेरे एक मित्र ने एक कामिक्स लाकर दिया था और उसे लेकर मैं ऑफिस आ गया.. अब भले कोई कुछ कहे या हंसे, मगर मैं पहले कामिक्स पढा फिर जाकर कुछ काम किया..:) कई दिनों तक सोचता था की सच में चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज ही चलता होगा, तभी तो इतनी आसानी से सभी को चकमा दे देते हैं.. क्या सच में वेताल के हजार आंख-कान होते हैं? सबका जवाब हां में ही आता था.. बचपन होता ही कुछ ऐसा है, जादू सा जहां हर बात सच होती है..
इस चिट्ठे को बनाने का उद्देश्य बस इतना ही है कि हम सभी के भीतर जो भी बच्चा है उसे फिर से बाहर लेकर आऊं.. कुछ दिनों पहले ही पता चला था की युनुस जी, शास्त्री जी, दिनेश जी और उनके जैसे ही ना जाने कितने लोग हैं जो अभी भी मन के भीतर एक कामिक्स पढने की जिज्ञासा लेकर अभी भी अपने भीतर के बच्चे को जिंदा किये हुये हैं.. अभी कुछ दिन पहले की बात है.. मैं युनुस जी से कामिक्स के उपर ही चर्चा कर रहा था और उन्होंने मुझे ये चिट्ठा बना डालने का सुझाव दे डाला.. साथ ही ये भी कहा की इसे कंम्यूनिटि चिट्ठा रखा जाये.. अगर आप लोगों में से भी किसी की ये इच्छा है की अपने भीतर के बच्चे को बाहर लाकर अपने बीते हुये दिन, जिसमें बस कहानियां और कामिक्स ही था, को अपने शब्दों से सजायें तो आपका हार्दिक स्वागत है इस चिट्ठे पर.. बस आप मुझे इस पते पर मेल करें prashant7aug@gmail.com .. अपनी सही पहचान के साथ.. अगर आप अपने छद्म रूप में लिखना चाहते हैं तो आप मॉडेरेटर के रूप में यहां पोस्ट नहीं कर सकते हैं, मगर आप अपने छद्म नाम के साथ मुझे अपना पोस्ट मेल करें वो पोस्ट मैं आपके छद्म नाम के साथ प्रकाशित करूंगा..
हंसते खेलते कब ठीक से पढना और समझना शुरू किया कुछ याद नहीं.. मगर जब से ऐसा हुआ तब से किस्सो और कहानियों की किताबें भी उसी जादू का एक अंग बन गये थे.. चंपक से चाचा चुधरी, नंदन से नागराज, पलाश से फैंटम(वेताल), मैंड्रेक, सुपर कमांडो ध्रुव, बालहंस, चंदामामा, सुमन सौरभ, ग्रीन एरो, सुपरमैन, बैटमैन, बांकेलाल, तौसी, अमर चित्र कथायें, बहादुर, और भी ना जाने क्या-क्या..
चित्र कथायें अपनी ओर अलग ही ध्यान खींचते थे और मनस पटल पर कुछ ऐसी छाप छोड़ जाते थे जो अभी तक नहीं मिटे हैं.. विभिन्न बाल पत्रिकाओं में छपने वाले चित्र कथाओं का अलग ही जुनून होता था.. जैसे ही महीने की पहली तारीख आती थी बस इंतजार शुरू.. सुबह के अखबार के साथ पत्रिका के आते ही पापा-मम्मी का पहला काम होता था उसे छिपा कर रख देना, नहीं तो सभी बच्चे पहले उसे पढना चाहेंगे फिर कोई दूसरा काम होगा.. जब पत्रिका हम बच्चों के हाथ लगता था तब सबसे पहले चित्रकथा ढूंढी जाती थी.. चीकू, कवि आहत, शैलबाला, हवलदार ठोलाराम, कूं कूं और भी ना जाने क्या क्या.. यहां तक की मम्मी के लिये आने वाली पत्रिका "सरिता" भी उठा कर ननमुन खोजना शुरू..
फिर एक दौर आया कामिक्सों का.. जब सारा दिन कामिक्स के रंगों में सराबोर होता था.. गलती से एक भी कामिक्स हाथ लग जाने पर दिन रात बस उसे ही पढते जाना.. कभी पाठ्य पुस्तक में छुपा कर तो कभी बिस्तर के नीचे घुस कर.. इस डर से की कहीं कोई देख ना ले.. कई बार विद्यालय में भी कक्षा के समय में पुस्तकों में कामिक्स छुपा कर पढने का मौका मिला है.. एक-दो बार पकरा भी गया.. मगर ये आदत ऐसी की जो ना तब छूटी और ना अब छूटने का नाम लेती है.. अभी कल ही की बात है, मुझे मेरे एक मित्र ने एक कामिक्स लाकर दिया था और उसे लेकर मैं ऑफिस आ गया.. अब भले कोई कुछ कहे या हंसे, मगर मैं पहले कामिक्स पढा फिर जाकर कुछ काम किया..:) कई दिनों तक सोचता था की सच में चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज ही चलता होगा, तभी तो इतनी आसानी से सभी को चकमा दे देते हैं.. क्या सच में वेताल के हजार आंख-कान होते हैं? सबका जवाब हां में ही आता था.. बचपन होता ही कुछ ऐसा है, जादू सा जहां हर बात सच होती है..
इस चिट्ठे को बनाने का उद्देश्य बस इतना ही है कि हम सभी के भीतर जो भी बच्चा है उसे फिर से बाहर लेकर आऊं.. कुछ दिनों पहले ही पता चला था की युनुस जी, शास्त्री जी, दिनेश जी और उनके जैसे ही ना जाने कितने लोग हैं जो अभी भी मन के भीतर एक कामिक्स पढने की जिज्ञासा लेकर अभी भी अपने भीतर के बच्चे को जिंदा किये हुये हैं.. अभी कुछ दिन पहले की बात है.. मैं युनुस जी से कामिक्स के उपर ही चर्चा कर रहा था और उन्होंने मुझे ये चिट्ठा बना डालने का सुझाव दे डाला.. साथ ही ये भी कहा की इसे कंम्यूनिटि चिट्ठा रखा जाये.. अगर आप लोगों में से भी किसी की ये इच्छा है की अपने भीतर के बच्चे को बाहर लाकर अपने बीते हुये दिन, जिसमें बस कहानियां और कामिक्स ही था, को अपने शब्दों से सजायें तो आपका हार्दिक स्वागत है इस चिट्ठे पर.. बस आप मुझे इस पते पर मेल करें prashant7aug@gmail.com .. अपनी सही पहचान के साथ.. अगर आप अपने छद्म रूप में लिखना चाहते हैं तो आप मॉडेरेटर के रूप में यहां पोस्ट नहीं कर सकते हैं, मगर आप अपने छद्म नाम के साथ मुझे अपना पोस्ट मेल करें वो पोस्ट मैं आपके छद्म नाम के साथ प्रकाशित करूंगा..
Subscribe to:
Posts (Atom)