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हंसते खेलते कब ठीक से पढना और समझना शुरू किया कुछ याद नहीं.. मगर जब से ऐसा हुआ तब से किस्सो और कहानियों की किताबें भी उसी जादू का एक अंग बन गये थे.. चंपक से चाचा चुधरी, नंदन से नागराज, पलाश से फैंटम(वेताल), मैंड्रेक, सुपर कमांडो ध्रुव, बालहंस, चंदामामा, सुमन सौरभ, ग्रीन एरो, सुपरमैन, बैटमैन, बांकेलाल, तौसी, अमर चित्र कथायें, बहादुर, और भी ना जाने क्या-क्या..
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चित्र कथायें अपनी ओर अलग ही ध्यान खींचते थे और मनस पटल पर कुछ ऐसी छाप छोड़ जाते थे जो अभी तक नहीं मिटे हैं.. विभिन्न बाल पत्रिकाओं में छपने वाले चित्र कथाओं का अलग ही जुनून होता था.. जैसे ही महीने की पहली तारीख आती थी बस इंतजार शुरू.. सुबह के अखबार के साथ पत्रिका के आते ही पापा-मम्मी का पहला काम होता था उसे छिपा कर रख देना, नहीं तो सभी बच्चे पहले उसे पढना चाहेंगे फिर कोई दूसरा काम होगा.. जब पत्रिका हम बच्चों के हाथ लगता था तब सबसे पहले चित्रकथा ढूंढी जाती थी.. चीकू, कवि आहत, शैलबाला, हवलदार ठोलाराम, कूं कूं और भी ना जाने क्या क्या.. यहां तक की मम्मी के लिये आने वाली पत्रिका "सरिता" भी उठा कर ननमुन खोजना शुरू..
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फिर एक दौर आया कामिक्सों का.. जब सारा दिन कामिक्स के रंगों में सराबोर होता था.. गलती से एक भी कामिक्स हाथ लग जाने पर दिन रात बस उसे ही पढते जाना.. कभी पाठ्य पुस्तक में छुपा कर तो कभी बिस्तर के नीचे घुस कर.. इस डर से की कहीं कोई देख ना ले.. कई बार विद्यालय में भी कक्षा के समय में पुस्तकों में कामिक्स छुपा कर पढने का मौका मिला है.. एक-दो बार पकरा भी गया.. मगर ये आदत ऐसी की जो ना तब छूटी और ना अब छूटने का नाम लेती है..
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इस चिट्ठे को बनाने का उद्देश्य बस इतना ही है कि हम सभी के भीतर जो भी बच्चा है उसे फिर से बाहर लेकर आऊं.. कुछ दिनों पहले ही पता चला था की युनुस जी, शास्त्री जी, दिनेश जी और उनके जैसे ही ना जाने कितने लोग हैं जो अभी भी मन के भीतर एक कामिक्स पढने की जिज्ञासा लेकर अभी भी अपने भीतर के बच्चे को जिंदा किये हुये हैं.. अभी कुछ दिन पहले की बात है.. मैं युनुस जी से कामिक्स के उपर ही चर्चा कर रहा था और उन्होंने मुझे ये चिट्ठा बना डालने का सुझाव दे डाला.. साथ ही ये भी कहा की इसे कंम्यूनिटि चिट्ठा रखा जाये.. अगर आप लोगों में से भी किसी की ये इच्छा है की अपने भीतर के बच्चे को बाहर लाकर अपने बीते हुये दिन, जिसमें बस कहानियां और कामिक्स ही था, को अपने शब्दों से सजायें तो आपका हार्दिक स्वागत है इस चिट्ठे पर.. बस आप मुझे इस पते पर मेल करें prashant7aug@gmail.com .. अपनी सही पहचान के साथ.. अगर आप अपने छद्म रूप में लिखना चाहते हैं तो आप मॉडेरेटर के रूप में यहां पोस्ट नहीं कर सकते हैं, मगर आप अपने छद्म नाम के साथ मुझे अपना पोस्ट मेल करें वो पोस्ट मैं आपके छद्म नाम के साथ प्रकाशित करूंगा..
वाह क्या याद दिलाई बचपन की, सब को एक बार फ़िर बच्चा बनते देख अच्छा लगेगा, सराहनीय प्रयास, बधाई
ReplyDeleteये हुई ना बात सीधे बचपन की बात करदी आपने.. मगर हम तो अपने बचपन को अभी भी कंधे पे बिताए घूमते है.. यानी की चंदामामा तो आज भी अपनी फ़ेवरेट है.. वैसे ये प्रयास बहुत अच्छा है.. नये ब्लॉग की हार्दिक शुभकामनाए
ReplyDeleteमुबारक । नया अड्डा बनाने के लिए । :)
ReplyDeleteरोचक।
ReplyDeleteवाह यह बेहतरीन काम हुआ गुड आइडिया लगा यह :)हार्दिक शुभकामनाए.....
ReplyDeleteबहुत अच्छी पहल । हमारे पास तो आज भी पुराने कामिक्स का तीस साल पुराना गट्ठर है और हम उसे पढते भी हैं- इंद्रजाल कामिक्स का वेताल, मेंड्रेक और फ्लैश गोर्डन सीरीज़...
ReplyDeleteअरे यहां तो खाजाना हे, उन सब को जो हम बचपन मे पढ चुके हे,धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत पुरानी यादों में ले जा रहे हैं बंधु!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कहा हमे पुरानी यादॊ मे ले चले हो,धन्यवाद
ReplyDeletevery nice approach for hindi comics lovers thanx
ReplyDeleteयह ब्लॉग ध्यान में ही नहीं आया. अब तो चित्र भी बहुत सुन्दर हो गए है पहले के मुकाबले. चित्रकथाएं आज भी मजेदार लगती है.
ReplyDeleteआपने सही पहचाना.. चित्र पहले से ज्यादा रोचक हो चला है आजकल मगर कहानी उतनी ही बकवास भी होती जा रही है.. ये कामिक्स वाले बस कंप्यूटर ग्राफिक्स पर ही ध्यान देते हैं आजकल..
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